गुरुवार, 17 नवंबर 2016

मुख्यतः पशुपालन पर निर्भर देश का पहला डिजिटल गांव 
बनाई अपनी अर्थव्यवस्था नहीं होती कैश की जरूरत


कालेधन पर रोक के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने 500-1000 के नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक की है। इससे हर तरफ लोगों को कैश की परेशानी झेलनी पड़ रही है। इसका प्रभाव हमारी रोजमर्रा की जरूरतों पर भी पड़ रहा है, परंतु विश्व की कुछ ऐसी जगहें भी है जहां पर 21वीं शताब्दी में भी लोग बिना कैश के बेहतरीन तरीके से जीवनयापन कर रहे हैं। चूंकि उन्होंने सुनिश्चित योजनाबद्ध समझ से अपनी एक स्थानीय अर्थव्यवस्था विकसित की है और अगर वह एक गांव हो तो बात ही क्या? ऐसा ही एक गांव है गुजरात का, जहां के किसान आज भी एकदम निश्चिंत हैं। उन्हें बीज, सिंचाई और खेती से जुड़े अन्य किसी काम के लिए नकदी का संकट नहीं है। कारण, डिजिटाइजेशन यानि सभी के पास ऑनलाइन बैंकिंग है।


जी हां, हम बात कर रहे हैं देश के पहले डिजिटल और कैशलेस गांव अकोदरा की। यह गांव अहमदाबाद से 90 कि.मी. दूर है। 220 घर और लगभग 1200 लोगों वाला यह गांव मुख्यतः पशुपालन और कृषि पर निर्भर है। इस गांव को देश के प्रथम ऐनिमल हॉस्टल का दर्जा दिया जा चुका है। जहां पशुओं की देखरेख से लेकर चिकित्सीय मदद के लिए डॉक्टर रहते हैं। श्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तभी इसका लोकार्पण किया गया था।
अकोदरा गांव को आईसीआईसीआई बैंक ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया अभियान के अंतर्गत गोद लिया है। जब आईसीआईसीआई बैंक ने इस गाँव को गोद लिया था तब हालात बिल्कुल अलग थे। उस समय की बैंक की सीएमडी चंदा कोचर ने कहा था कि देश में छः लाख गाँव हैं, सभी को अकोदरा की तरह बनाना है यानि कैशलेस, कनेक्टेड और काम्प्रीहेंसिव (नकदी रहित, हमेशा संपर्क में रहने वाला और व्यापक)। बैंक द्वारा गाँव की सब दुकानों, मंडियों एवं कोऑपरेटिव सोसायटी को ई पेमेंट से जोड़ा गया। दूध बेचने वाले कार्ड से भुगतान ले लेते हैं। कैश की आवश्यकता पड़ने पर गाँव में एटीएम भी लगे हैं। हालांकि गाँववाले नकदी घर में कम ही रखते हैं।

बैंक द्वारा गाँव में वाई-फाई टाॅवर से तेज गति वाला ब्रॉडबैंड लगवाया गया है, जिससे गाँववाले अपने मोबाइल से खरीदारी कर सकें। गाँव में प्रत्येक नुक्कड़ पर टर्मिनल लगाए गए हैं, जिसपर कृषि उत्पादों के दाम प्रदर्शित होते रहते हैं। गाँव के नाम से वेबसाइट और फेसबुक पेज भी है।
गाँव में केबल ऑपरेटर मनीलाल प्रजापति तक भी इंटरनेट बैंकिंग द्वारा अपना मासिक किराया लेते हैं। केबल कनेक्शन रखने वाले घर बैंक को एसएमएस द्वारा सूचित करते हैं। एसएमएस में अपना मोबाइल नंबर डालकर तीन टाइप करते हैं इसके बाद अपने खाते के अंतिम छः अंक लिख कर भेजते हैं और केबल ऑपरेटर के खाते में किराया चला जाता है। जहां तक इस गांव की विशेषता की बात करें तो इस गांव में पान की दुकान तक पर मोबाइल बैंकिंग और वाई फाई की सुविधा मिल जाती है। घर के लिए खरीदे जाने वाले आटे, दाल, चावल अंडा या खेती से संबंधित खरीदारी तक का भुगतान भी ग्राहकों द्वारा ऑनलाइन किया जाता हैं। आपको छोटी-छोटी जरूरतों जैसेकि दूध अथवा सब्जी के लिए कैश नहीं ले जाना पड़ता है।

पंसारी तक भी 10 रुपए से अधिक के सामान खरीदने पर ई बैंकिंग से भुगतान लेता है। स्थानीय दूध कोऑपरेटिव ने गत वर्ष से किसानों को नकद भुगतान बिल्कुल बंद कर दिया है और राशि सीधे बैंक में हस्तांतरित करता है। सभी किसानों का खाता आधार से जुड़ा होने से सरकारी सब्सिडी भी सीधे खाते में आती है। पशुपालकों को डेरी में दूध जमा करना हो या फिर किसानों को अपनी फसल बेचनी हो, सभी कुछ आॅनलाइन होता है और पैसे के लेन-देन के लिए उन्हें प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती राशि शीघ्र ही अकाउंट से ट्रांसफर हो जाती है। यही कारण है कि आज देश में नोटबंदी पर मचे कोहराम के बाद भी यहां लोग सामान्य दिनचर्या का निर्वहन कर रहे हैं।

अकोदरा गांव (सारबरकांठा, गुजरात) में लोग 5 रुपये से अधिक का भुगतान मोबाइल अथवा कार्ड से करते हैं। गांव के बाजार और मंडी आदि सभी जगह पर कैश लेन देन पूर्णतः बंद हो चुका है। इस कैशलेश व्यवस्था को बनाना इस गांव के लिए कोई आसान काम नहीं था लेकिन यहां युवाओं का सहयोग इसमें अहम् रहा है। ग्रामीण युवाओं की इस नई सोच ने बैंक को दूसरे गांववालों की सोच को भी बदलने में मदद की। इसने गांव में नकदी के लेन-देन को लगभग समाप्त कर दिया। गांववालों की माने तो डिजिटाइजेशन से बचत बढ़ी है और लोग इस परिवर्तन से पैसे से पैसा बनाना सीख रहे हैं।
गांव के डिजिटल होने से लेन-देन के तरीकों, निवेश और खरीदारी के तरीकों के साथ-साथ लोगों के जीवन में भी बहुत बदलाव आया, जिसे गांव की आंगनबाड़ी से लेकर हायर सेकेंडरी तक में देखा जा सकता है। गाँव के स्कूलों में ब्लैकबोर्ड के स्थान पर स्मार्ट बोर्ड आ गए। शिक्षा टेलीविजन से होने लगी है। बच्चों के स्कूल बैग में पुस्तकों की जगह टैबलेट ने ली। इस नई तकनीक ने बच्चों में पढ़ाई प्रति अधिक उत्साह पैदा कर दिया हैं। स्कूलों में विधार्थियों की संख्या बढ़ने लगी है।

गांव में ई-हेल्थ सेंटर में गांववालों का मेडिकल रिकॉर्ड बटन दबाते ही दिखाई देने लगता है। टेलीमेडिसिन की सुविधा से गांव में बैठे हुए आप दूसरे बड़े शहरों के डॉक्टरों की सलाह भी ले सकते हैं। अब गांव के आसपास के लोग अपनी लड़कियों का विवाह अकोदरा गांव में करने की इच्छुक रहते हैं ताकि शादी के बाद उनकी लड़कियों को आधुनिक रहन-सहन और बेहतरीन सुविधाएं मिल सकें। स्कूलों में अत्याधुनिक ढंग से पढ़ाई होती है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर ऑडियो-वीडियो सामग्री चलाने की सुविधा है। सरकार के कई कौशल विकास कार्यक्रम यहां चलाए जाते हैं। लड़कियों के लिए भी विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
तो चलिए, हमारे द्वारा भी ऐसा ही कुछ किया जाए ताकि हम भी बेफ्रिक हो जाए और कैश के लिए एटीएम और बैंक की लाइनों से छुटकारा पाएं।

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