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Tuesday 26 September 2017
Tuesday 12 September 2017
अब बिना रसायन केवल 2300 रुपए में
गोदाम में रखे अनाज को, बचा सकेगे किसान
हाल में जारी कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सिफेट की रिपोर्ट को माने तो हमारे देश भारत में प्रतिवर्ष इतना अनाज बर्बाद होता है, जितना ब्रिटेन उगा भी नहीं पाता। भारत में हर साल 67 लाख टन खाना बर्बाद हो जाता है। स्टडी के अनुसार बर्बाद होने वाले खाने का मूल्य 92 हजार करोड़ रुपए है। यह रकम भारत सरकार की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत व्यय की जाने वाली राशि का दो-तिहाई है।
आगे रिपोर्ट में कहा गया है कि फल, सब्जियां और दालें सबसे अधिक बर्बाद होती हैं। अनाज का सड़ना, कीट, मौसम और भंडारण (स्टोरेज) की कमी बर्बादी के सबसे बड़े और प्रमुख कारण हैं। यदि बात फसलों की जाए तो 10 लाख टन प्याज खेतों से मार्केट में आने के रास्ते में ही बर्बाद हो जाती है। वहीं 22 लाख टन टमाटर भी बीच रास्ते में दम तोड़ देता है। इतना ही नहीं 50 लाख अंडे कोल्ड स्टोरेज में सड़ जाते हैं।
सन् 2009 में उत्तराखंड के उधमपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर चकरपुर गाँव के अरुण कुमार काम्बोज (60 वर्ष) एवं उसके सुपुत्र शोभित काम्बोज ने मिलकर एक ऐसा यंत्र बनाया जिससे भण्डार गृह में ऑक्सीजन को अंदर जाने से रोका जाता है। वास्तव में यह एक यंत्र है, जिससे बीज गोदाम में रखे अनाज को कीटों एवं चूहों से बिना रसायनों के उपयोग से कम लागत में बचाया जा सकता हैं।
अरुण का कहना हैं कि मैंने अनेक अनुभवी बुजुर्ग किसानों से इस संबंध में बात की, जाना कि पुराने समय में अनाज का भण्डारण कैसे होता था और कौन-कौन से तरीकों को अपनाया जाता था। जानकारी मिली कि पहले धुएं से किसान अपना बीज भण्डारण करते थे। इसी सोच को और विकसित करते हुए मैंने अंगीठीनुमा एक यंत्र बना डाला, जिसको “हवन पात्र तकनीक” नाम दिया गया।
वैसे तो अरुण काम्बोज द्वारा तैयार अंगीठीनुमा यंत्र विज्ञान के बहुत ही साधारण नियम पर आधारित है। उनकी माने तो, किसी बीज भंडारगृह से यदि ऑक्सीजन को खत्म कर दिया जाए, तो अनाज को कीटों तथा चूहों से बचाया जा सकता है। इस अंगीठीनुमा यंत्र को इस तरह से फिट करके, उसमें लकड़ी जलाई जाती है कि जिससे भंडारगृह में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस प्रवाहित हो सके। इस पात्र में लकड़ी तब तक जलाई जाती है, जब तक भंडारगृह की पूरी ऑक्सीजन खत्म न हो जाये।
अरुण का आगे कहना हैं कि जैसे ही भंडारगृह की पूरी ऑक्सीजन समाप्त हो जाती वैसे ही पात्र में जल रही लकड़ियां स्वतः ही बंद हो जाती हैं। ऑक्सीजन की कमी होते ही यहां के कीटों और सूक्ष्म जीवों की श्वसन क्रिया बाधित होने लगती है और ये मर जाते हैं। इससे भंडारण में रखा बीज जैविक ढंग से सुरक्षित किया जा सकता है।
इस तकनीक के अविष्कारक अरुण काम्बोज को अनेक सरकारी विभागों द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। अरुण की माने तो 100 क्विंटल अनाज भण्डारण के लिए ये यंत्र मात्र 2300/- रुपये में तैयार हो जाता है। इस यंत्र के आकार के अनुसार ही इसकी लागत भी आती है।
कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर के प्रभारी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सी. तिवारी का कहना है कि ये यंत्र कम लागत में तैयार किया गया है। इस यंत्र को विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग को रिसर्च के लिए भेज दिया है, जिससे व्यापक स्तर पर बीज गोदामों में इस यंत्र का उपयोग किया जा सके।...केमिकल फ्री वातावरण वाला ये यंत्र अभी छोटे गोदामों के लिए कारगर है, अगर ये बड़े स्तर पर सफल हुआ तो देश में बीज गोदामों में हजारों टन सड़ रहे अनाज को बर्बाद होने से रोका जा सकता है।
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