इंजीनियर ने शुरू की डेरी
कमाई है 2 लाख महीना
किसी ने सत्य ही कहा है कि इंसान चाहे तो हर चीज संभव है। प्रयास सफलता की ओर ले ही जाते हैं, हां दृढ़ निश्चय होना बहुत जरूरी है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कि उत्तराखंड निवासी हरिओम नौटियाल ने। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर नौटियाल ने गांव में कुछ नया करने की इच्छा के साथ अपने सफल इंजीनियरिंग करियर को विराम देकर गांव में डेरी शुरू की। आज इसी डेरी बिजनेस के चलते वह प्रतिमाह 1.5 -2 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं। यह व्यवसाय न केवल हरिओम का जीवन बदल रहा हैं बल्कि हजारों ग्रामीणजनों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बना हुआ है कि वह गांव में रहकर अपने पैरों खड़े हो।
हरिओम ने बड़कोट गांव (रानी पोखरी, देहरादून) में अपने घर से ही डेरी शुरु की थी, जोकि आज डेरी, पॉल्ट्री, कंपोस्टिंग और जाम-अचार बनाने की फैक्ट्री तक जा पहुंची है। हरिओम नौटियाल की माने तो उन्होंने दिल्ली और बेंगलुरु में लगभग चार वर्ष सॉफ्टवेयर इंजीनियर और रिसर्चर के रूप में काम किया, जिससे उन्हें 70-80 हजार रुपए की आमदनी होती थी, परंतु गांव में कुछ करने की लगन ने इतनी अच्छी नौकरी छोड़ गांव में व्यवसाय शुरू करने को प्रेरित किया। पहचान वालों ने नौकरी न छोड़ने की सलाह दी, पर मैंने ठान लिया कि गांव पहुंचकर डेरी शुरू की जाये। मैं अपनी जमा पूंजी लेकर गांव पहुंचा और जहां मैंने अपने परिवार के साथ मिलकर डेरी शुरू की।
हरिओम का कहना हैं कि जब डेरी शुरु करने के बाद मुझे प्रतिदिन केवल 9 रुपए यानि 270 रुपए प्रतिमाह कमाई कई महीनों तक हुई। इसके बावजूद भी मैंने हौसला नहीं हारा और डेरी के साथ-साथ मुर्गी पालन भी शुरू कर दिया। इससे हालात में थोड़ा सुधार आया। धीरे-धीरे व्यवसाय आगे बढ़ने लगा जबकि कुछ रिश्तेदार नाराज हो गए, चंूकि मैं एक ब्राह्मण परिवार से होने के बावजूद भी चिकन और अंडे का बिजनेस कर रहा था, परंतु धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। एक कमरे से शुरू हुई डेरी में आज लगभग हर नस्ल की गाय है। डेरी व मुर्गी पालन के साथ-साथ आज वह कंपोस्टिंग, मशरूम खेती, बकरी पालन, अचार और जाम सहित अनेक काम करते हैं।
उत्तराखंड में मिलने वाले फल माल्टा और बुरांस आदि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर हरिओम ग्रामीणों को स्वरोजगार की प्रेरणा भी देते हैं। इतना ही नहीं धन्यधेनु के नाम से अपने बिजनेस मॉडल के अंतर्गत मिनी स्टोर की योजना को शीघ्र ही उत्तराखंड के दूसरे गांवों में भी शुरू करने वाले हैं। यह स्टोर फ्री होम डिलीवरी भी करते हैं।
हरिओम नौटियाल शहर छोड़कर गांवों में काम करने के इच्छुक लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण भी देते हैं ताकि उत्तराखंड के खाली होते हजारों गांव फिर से आबाद हो सके। स्वरोजगार गांव से पलायन को रोकने का सबसे कारगर उपाय है।