Thursday 27 April 2017

स्वास्थ्य का खजाना ए-2 दूध
मांग में हुई 5 गुना की वृद्धि


हम बचपन से ही दूध पीने के लाभों के बारे में सुनते आ रहे हैं। कहा जाता है कि दूध संजीवन तत्व है, जिसके सेवन से सभी विकार दूर हो जाते हैं। देसी गाय के दूध के साथ-साथ गोबर का भी विशेष महत्व है। गोबर से उगे पदार्थ जैविक खाद्यान्नों की श्रेणी में रखे जाते हैं। बहराल हमारा उद्देश्य यहां यह बताना है कि एक बार फिर से दूध का बाजार देसी गाय की महत्ता को समझ रहा है। यही कारण है कि देसी गाय के दूध की मांग में 5 गुना की बढ़ोतरी को देखते हुए छोटे से लेकर बड़े सभी दूध के ब्रैंड देसी गाय के दूध को प्रमोट करते दिख रहे हैं। इसी श्रृंखला में दूध बाजार के बड़े खिलाड़ी अमूल ने अहमदाबाद में देसी गाय के दूध से बने डेरी उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं। इसके बाद कहा जा रहा है कि अमूल का अगला लक्ष्य सूरत का दूध बाजार होगा। श्री आर.एस. सोढी (प्रबंध निदेशक, अमूल ) का कहना है कि जब हम इस डेरी उत्पाद को प्रीमियम प्राइज पर सेल करते हैं तो इसका बाजार बहुत सीमित हो जाता है। हालांकि धीरे-धीरे लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ रही है।

विदेशी और संकर नस्लों की गाय या भैंस का दूध बाजार में ए1 दूध के नाम से जाना जाता है, जबकि देसी गाय का दूध ए2 दूध कहलाता है। हमारे देश में प्रतिदिन गाय और भैंस से 40 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। प्रमुख बात यह है कि अब बाजार की नजर देसी गाय के दूध पर हैं। गत एक वर्ष में ये बाजार 5 गुना बड़ा हुआ है। गत वर्ष प्रतिदिन 8-9 लाख लीटर ए2 दूध की मांग थी, जोकि इस साल बढ़कर 40-45 लाख लीटर रोजाना हो गई है। यह दूध कम से कम 70-80 रुपये प्रतिलीटर दर पर बिक रहा है। विटामिन ए की प्रचुर मात्रा वाला यह दूध कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है।

बाजार मांग के रूख का लाभ लेने के लिए देश का सबसे बड़ा दूध उत्पादक ब्रांड अमूल भी देसी गाय के दूध के बाजार में उतरने को मजबूर हुआ है। अमूल से पहले मुंबई की पारस डेरी, अहमदाबाद की पथमेड़ा डेरी आदि भी अनेक प्राइवेट डेरी और छोटे-छोटे फार्म्स भी देसी दूध के इस बाजार में अपने पाँव जमाने में लग चुके हैं जबकि कई और बड़े प्लेयर्स भी इस मार्केट में उतरने का मन बना चुके हैं। देसी गाय का ए-2 दूध बाजार में मिलने वाले क्रॉसब्रीड अथवा विदेशी गाय के ए-1 दूध से अनेक बातों में बेहतर है। विभिन्न स्टडीज में समय-समय पर यह बात सामने आई है कि ए-1 दूध शरीर मे जलन, हार्ट प्रॉब्लम एवं डायबीटीज की संभावना को बढ़ा देता है। दूसरी ओर, ए-2 दूध आसानी से पचने वाला होता है। यही कारण है कि तमिलनाडु के डेरी संचालक और किसान वी. शिवकुमार स्थानीय नस्ल की गायों का संरक्षण कर रहे हैं और उन्हीं के दूध से बने डेरी उत्पाद बेचते हैं। इसके लिए उन्होंने ए-2 दूध से बने उत्पाद बेचने के लिए एक ऐप बना रखी है, जहां लोग ऑर्डर प्लेस करते हैं। शिवकुमार की माने तो इस दूध की सोर्सिंग अभी आसान काम नहीं है।

नंदगांव (मुंबई के निकट) में स्थानीय नस्ल की गायों के ए-2 मिल्क से डेरी उत्पाद बनाने वाले टीटू अहलुवालिया इन्हीं गायों के गोबर से जैविक खेती भी करते हैं। टीटू की माने तो देसी गायों की नस्ल विलुप्त होने की कगार पर है। उन्होंने अपने बच्चों को स्वस्थ जीवन देने के लिए ऑर्गेनिक खेती हेतु गौपालन शुरू किया था। यह बात दूसरी है कि इनके दूध के महत्व के बारे में उन्हें बाद में जानकारी मिली। जबकि अनेक डेरी वालों का मत है कि ए-1 दूध की खपत को लेकर किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है। वह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि देसी गाय भारतीय जलवायु के हिसाब से ज्यादा सुरक्षित हैं। पुणे की भाग्यलक्ष्मी डेरी फार्म के अंकित का कहना है कि देसी नस्ल की गाय हमारे देश की जलवायु यानि क्लाइमेट के अनुसार एकदम फिट हैं। इनमें गर्मी सहन करने की बेहतर क्षमता है। इसलिए हम अपनी यूरोपियन प्रजाति की गायों की देसी गायों के साथ क्रास ब्रीडिंग कराना चाहते हैं।

ए-2 दूध की बढ़ती लोकप्रियता देश ही नहीं विदेशों में बढ़ रही है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी यह तेजी देखी जा सकती है। ए-2 दूध उत्पाद बनाने वाली सिडनी स्थित एक कंपनी के उत्पादों की न्यूजीलैंड और चीन में प्रमुख मांग है। अब यह कंपनी अमेरिका में भी अपने उत्पाद उतारने की तैयारी कर रही है। 

Monday 10 April 2017

विश्व में कैंसर से लड़ने योग्य 50 क्रांतिकारी दवाएं
भारत में केवल 7 ही, जबकि मरीज हैं करोड़ों में


कैंसर रोग पर गत कई वर्षों से निरंतर शोध हो रही है। विश्व में इस बीमारी को समाप्त करने के लिए बहुत-सी  दवाएं और थेरपी खोजी जा चुकी हैं, लेकिन आश्चर्य-चकित करने वाली बात यह है कि विश्व में मौजूद इन दवाओं में कुछ ही दवाएं ही हमारे देश में पहुंच पाई हैं। साथ ही हैरानी में डालने वाली बात यह है कि आंकड़े बताते हैं कि देश में कैंसर मरीजों की संख्या करोड़ में है।

जहां तक मेडिकल फील्ड में अनुसंधान की बात करें तो कैंसर के इलाज के लिए अब तक 50 से अधिक दवाइयां एवं थेरपी विकसित की गई हैं, जबकि गत 5 वर्ष में हमारे देश में इनमें से मात्र 7 दवाएं ही इंट्रोड्यूज हुई हैं। भारत में चिकित्सीय स्थिति पर ध्यान दें तो पता चलता है कि विगत 10 वर्षों में कैंसर के इलाज में मरीजों को नाकों चने चबाने पड़े है। विशेषकर उन रोगियों के लिए जोकि इलाज के लिए विदेश जाने का खर्च वहन नहीं कर सकते। एक हेल्थ केयर सर्विस प्रोवाइडर कंपनी द्वारा एकत्र डेटा की माने तो भारत में लगभग 1 करोड़ कैंसर के रोगी हैं।

विश्व में कैंसर के इलाज के लिए नवीनतम तकनीक विकसित की जा रही हैं तो दूसरी ओर हमारे देश में कैंसरग्रस्त रोगी सही इलाज के अभाव में जीने को विवश हैं। एक चिकित्सीय फर्म की माने तो भारत में कैंसर की दवाओं और थेरपी की उपलब्धता न होने के पीछे अनेक कारण हैं। इनमें रेग्युलेटरी सिस्टम, ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रकचर और फाइनैंस मकेनिज्म आदि कारण प्रमुख हैं।
एक आंकड़े के अनुसार भारत में 10 मिलियन कैंसर रोगियों के इलाज हेतु मात्र 2 हजार कर्करोग विशेषज्ञ उपस्थित हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का कहना है कि हिंदुस्तान में अगले 4 वर्ष में कैंसर से मरने वाले रोगियों की संख्या में 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है। विशेषज्ञों की माने तो इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए देश में पब्लिक तथा प्राइवेट सेक्टर्स को साथ काम करने की आवश्यकता है, जिससे कैंसर केयर सिस्टम को आवश्यक फंड उपलब्ध कराया जा सके। इसके साथ-साथ सही समय पर इस रोग की जांच की उचित व्यवस्था की जरूरत है, ताकि रोग को घातक  बनने से पूर्व ही नियंत्रित किया जा सके।

Saturday 8 April 2017

नई स्टडी के मुताबिक अपने भोजन में बदलाव कर
निजात पाएं बढ़ती पानी की समस्या से


किसी ने सच ही कहा है कि ‘‘आज बचाएं जल, सुखी रहेगा कल।’’ जी हां हम बात कर रहे हैं दिनोंदिन बढ़ते जल संकट की। इसी कारण कहा भी जाता है कि तीसरा विश्वयुद्ध जल पर हो सकता है। हमारे देश में आज सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है और विशेषकर वो भी भूमि के नीचे उपस्थित जल की। अब एक नई स्टडी बताती है कि अगर हम अपने जीवन और खानपान ढंग में थोड़ा बहुत भी परिवर्तन ले आएं तो इस समस्या से छुटकारा
पाया जा सकता है। यह बदलाव कैसा हो चलिए जानते हैं।

लानसिट प्लैनेट्री हेल्थ में प्रकाशित एक नई स्टडी की माने इसके लिए हमें अपनी डायट में गेंहू की खपत कम करनी होगी। सब्जी और दालों को बढ़ाना होगा। अपनी प्रतिदिन खानपान आदतों में नॉनवेज को कम करके तरबूज, खरबूजा, संतरा और पपीता आदि अधिक से अधिक फल को शामिल करना होगा।

ऐसे खानपान परिवर्तन से हम एक बेहतरीन और स्वस्थ जीवन ही नहीं जीएंगे वरन् तीव्र गति से घटते भूजल स्तर को भी नियंत्रित कर पाएंगे। लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के मार्गदर्शन में संपन्न हुए एक अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि ऐसे खाद्य पदार्थ, जिनके उत्पादन में कम पानी की आवश्यकता होती है उनकी सहायता से भी हिंदुस्तान वर्ष 2050 तक 1.64 बिलियन लोगों को खाना खिलाने के साथ ही ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को भी कम कर सकता है।

यह स्टडी आगे बताती है कि औसतन हिंदुस्तानियों के भोजन में प्रतिदिन 51.5 ग्राम फल एवं 17.5 ग्राम सब्जी को सम्मिलित करने तथा नॉनवेज खाने में 6.8 ग्राम की कमी करके स्वच्छ जल यानि फ्रेश वॉटर के उपयोग को 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हिंदुस्तान में भोज्य पदार्थों का उत्पादन पूर्णतः कृषि पर निर्भर है, जिसमें सिंचाई और भूजल की अत्याधिक जरूरत पड़ती है। इसीलिए कुछ भागों में भूजल स्तर बहुत ही तीव्रता से कम हो रहा है।

निरंतर बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर पृथ्वी के नीचे उपस्थित पानी का स्तर वर्ष 2050 तक पहुंचते-पहुंचते प्रतिव्यक्ति लगभग 30 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। शोध के जांच परिणाम बताते हैं कि यदि डायट में सुझाएं गए बदलाव किए जाएं तो कम से कम भूजल स्तर यानि ग्राउंडवॉटर की आवश्यकता होगी। साथ ही ये डाइट प्लान हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होगा।

Friday 7 April 2017

इन पांच समस्याओं का समाधान
कर सकता है आपको मालामाल


जनहित और नए आइडिया लेने तथा रोमांच के लिए कंपनियां या धनाढ्य वर्ग प्रतियोगिताओं का आयोजन करते रहते है। इन प्रतियोगिताओं में से अनेकों में तो करोड़ों रुपयों के पुरस्कार रखे जाते हैं। विश्वास नहीं होता न, लेकिन यह सच है? चलिए आपको ऐसी 5 प्रतियोगिताओं के बारे में जानकारी दिए देते हैं, जोकि आपको करोड़पति बना सकते हैं।
यह प्रतियोगिताएं अंर्तराष्ट्रीय स्तर की हैं। 5 में से 2 प्रतियोगिताएं नवीन आइडिया हेतु, एक शिक्षा, एक जागरूकता के लिए एवं एक रोमांच से संबंधित है। इनमें 2 प्रतियोगिताओं की डेडलाइन अप्रैल में समाप्त हो जाएगी। शेष 3 की कोई डेडलाइन नहीं है। यह प्रतियोगिताएं द रिचेस्ट के जनवरी में जारी की गई सूची में सम्मिलित हैं।

एक्स प्राइज-स्वच्छ जल के लिए 11 करोड़ का पुरस्कार
तकनीक द्वारा जीवन को उत्कृष्ट बनाने के बेहतरीन आइडिये की तलाश के लिए एक्स प्राइज की घोषणा की गयी है। इसके अंतर्गत अनेक प्रतियोगिताएं रखी गई हैं, हाल में 9 प्रतियोगिताएं सक्रिय हैं, जिसमें से 2 आरंभिक स्तर पर हैं।  
प्रथम प्रतियोगिता में हवा से स्वच्छ जल यानि क्लीन वाटर पाने के लिए आइडिया मांगा गया हैं। पुरस्कार राशि 17.5 लाख डॉलर अर्थात् लगभग 11 करोड़ रुपए रखी गई है। इसमें भी यह शर्त रखी गई है कि नवीन तकनीक प्रतिदिन लगभग 2000 लीटर पीने का साफ पानी तैयार करने की क्षमता रखें, जोकि दाम में 1.5 रुपए प्रति लीटर से कम हो। इसके लिए 28 अप्रैल 2017 तक पंजीकरण किया जा सकता है। अगस्त 2018 में विजेता की घोषणा की जाएगी। अधिक जानकारी आप एक्स प्राइज वेबसाइट के पुरस्कार वर्ग से ले सकते है।

एक्स प्राइज-वूमेन सेफ्टी
अनु और नवीन जैन वुमन सेफ्टी एक्स प्राइज की पुरस्कार राशि 6 करोड़ रखी गयी है। इसमें ऐसे आइडिया और व्यवस्था बनाने पर जोर दिया गया हैं, जिसमें तकनीक द्वारा नारी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। शर्त यह है कि तकनीक ऐसी हो जोकि आवश्यकतानुसार अपने आप चेतावनी दे सके और 90 सेकेंड में सभी जरूरी अथॉरिटी को मैसेज भेज दे। साथ ही तकनीक का दाम 40 डॉलर अर्थात् लगभग 25 सौ रुपए से अधिक न हो।

मिलेनियम प्राइज प्रॉब्लम    
इस पुरस्कार में गणित के 7 प्रश्न है, जिसमें से प्रत्येक पर 10 लाख डॉलर अर्थात् लगभग 6 करोड़ रुपए का नकद पुरस्कार है। द रिचेस्ट की माने तो रूस के एक गणितज्ञ द्वारा इनमे से एक प्रश्न हल किया गया, परंतु नकद पुरस्कार नहीं लिया। शेष प्रश्न के लिए अभी भी प्रतियोगिता जारी है। ये प्रश्न क्ले मैथमैटिक इंस्टीट्यूट द्वारा रखे गए हैं। प्रश्न इस्टीट्यूट की वेबसाइट पर है। मिलेनियम प्राइज प्रॉब्लम की जानकारी इंटरनेट से सीधी ली जा सकती है।

पैरानॉर्मल एबिलिटी पुरस्कार 
हमें अधिकांश ऐसे लोग मिल जाते हैं, जोकि पारलौकिक शक्तियों का दावा करते हैं। इसलिए ऑस्ट्रेलियन स्केप्टिक्स पत्रिका ने 75 हजार डॉलर अर्थात् लगभग 50 लाख रुपए का पुरस्कार रखा है। पत्रिका की माने तो टेलीपैथी, एक्स्ट्रा सेंसरी पावर प्रूव करने वाले लोगों को ये पुरस्कार मिल सकता है। ये प्रतियोगिता अभी भी जारी है। ऑस्ट्रेलियन स्केप्टिक्स वेबसाइट पर विशेष फीचर वर्ग में इस पुस्कार की जानकारी दी गई है। वेबसाइट में यह जिक्र नहीं है कि ये पुरस्कार मात्र एक बार ही दिया जाएगा ऐसे में इसमें करोड़ो के इनामी चैलेंज सम्मिलित होने की संभावना है।

फेन ट्रेजर 
जाने माने लेखक और आर्ट डीलर फॉरेस्ट फेन द्वारा वर्ष 1988 में सोने और आभूषणों से भरा संदूक छुपाकर लोगों के लिए कुछ पहेलियां सार्वजनिक की गई। इन पहेलियों को हल करके आप उस बॉक्स तक पहुंच सकते हैं। इस संदूक में लगभग 6 करोड़ रुपए के सोने और कीमती पत्थर रखे जाने की बात कही जाती हैं। अगस्त 2016 में फेन ने घोषणा की थी कि ये संदूक अभी तक वहीं पर छुपा है। करोड़पति बनाने वाली यह प्रतियोगिता आज भी जारी है।

Wednesday 5 April 2017

इस शख्स ने तैयार करवाया ऐसा घर
22 साल से नहीं देना पड़ रहा पानी का बिल


सत्य ही कहा गया है कि जल है, तो कल है। पानी के महत्व से सभी भली-भाँति परिचित हैं। हमारे शरीर का 70 प्रतिशत एवं पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग पानी से बना हुआ है। धरती की इस कुल जलराशि का 1.6 प्रतिशत पानी भूमिगत है और लगभग 0.001 प्रतिशत पानी वाष्प और मेघों के रूप में है। पृथ्वी की सतह पर मौजूद पानी में से भी एक बड़ी मात्रा 97 प्रतिशत सागरों और महासागरों में समाया हुआ है, जिसे पेयजल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। मात्र तीन प्रतिशत, जो पानी पीने योग्य है, उसमें से भी 2.4 प्रतिशत हिमनदों और उत्तरी व दक्षिणी धु्रवों में जमा हुआ है। अब शेष बचा केवल 0.6 प्रतिशत पानी, जोकि नदियों, झीलों और तालाबों में भरा पड़ा है, वास्तव में वही पेयजल है। आँकड़ों की माने तो एक इंसान औसतन 30-40 लीटर पानी प्रतिदिन इस्तेमाल करता है।

पानी का महत्व तो हर कोई जानता है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जल संरक्षण को लेकर प्रत्येक जन में कोई विशेष जागरूकता दिखाई नहीं देती पर इसका यह अर्थ नहीं है कि सभी इसी श्रेणी में ऐसे हैं। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जोकि जल को अपने जीवन की आवश्यक इकाई मानकर सरंक्षित ही नहीं कर रहे बल्कि उसका सजगतापूर्वक उपयोग भी करते पाए जाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही इंसान से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने पानी का इतना बेहतरीन संरक्षण किया कि पिछले 22 सालों से उन्हें पानी का बिल नहीं भरना पड़ रहा है।

जी हां हम बात कर रहे हैं बेंगलुरू के ए आर शिवकुमार की। कर्नाटक स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक शिवकुमार ने वर्ष 1995 में अपने घर ‘‘सौरभा’’ को ऐसी तकनीक से तैयार करवाया है कि वे ईजी रेन वॉटर सप्लाई सिस्टम और ईको फ्रेंडली तरीके से पानी की बचत कर रहे है, जिससे उनके परिवार को नहाने एवं पीने के लिए भरपूर जल यानि प्रतिदिन 400 लीटर से भी अधिक पानी इस्तेमाल करने को मिल रहा है। इसीलिए उन्होंने आज तक कोई भी जल सप्लाई कनेक्शन नहीं लिया है। उनके परिवार में पत्नी सुमा, बेटे अनूप और बहू वामिका भी जल संरक्षण में उनकी सहायता करते हैं।

शिवकुमार की माने तो उनके 4 सदस्यों के परिवार में लगभग 400 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। उनके घर में कुल 45000 लीटर जल स्टोरेज की व्यवस्था है, जिसमें स्टोर किए गए पानी को उनके परिजन उपयोग करते हैं। प्रतिवर्ष 2.3 लाख लीटर जल स्टोर किया जाता हैं। एक वर्ष में 1-1.5 लाख लीटर जल लगता है। अतः जल स्टोरेज हेतु अनेक टेंक तैयार करवाए गए हैं। किचन, सिंक और वॉशिंग मशीन से लेकर टॉयलेट फ्लश में भी इस जल का उपयोग होता हैं। वे प्रतिवर्ष 2.3 लाख लीटर पानी स्टोर करते हैं, जो उनकी 4 लोगों की फैमिली के लिए पर्याप्त है, जिससे पानी की कमी नहीं होती क्योंकि वे पहले से ही अपने लिए पानी स्टोर करके रखते हैं।
शिवकुमार ने घर की ढलान वाली छत पर एक वॉटर फिल्टर लगवाया हुआ है, जिससे वर्षा का जल फिल्टर होकर छत से धरती में बने एक टेंक में चला जाता है। इस जल को फिल्टर की सहायता से साफ किया जाता है, जिससे धूल आदि पदार्थ जल से अलग हो जाते हैं और साफ पानी स्टोर कर लिया जाता है।

शिवकुमार के घर की खिड़कियां एवं वेंटिलेटर से हवा और रोशनी फिल्टर होकर आती है। घर के चारों ओर ग्रीन पर्दा लगवाया गया है। घर के बाहर पौधे, वृक्ष लगे हुए हैं, जिनसे फिल्टर होने के बाद ही ताजी यानि फ्रेश हवा घर में प्रवेश करती है। घर की छत पर सोलर लाइटिंग सिस्टम लगवाया गया है ताकि दिन में भी घर के अंदर लाइट जलाने की आवश्यकता न पड़े। लाइट और घर की कूलिंग का खर्च बचता है।

Tuesday 4 April 2017

40 मिनट की पैदल चाल
बना देगी आपको एकदम फिट


हमने बचपन से ही सुना और पढ़ा है कि पैदल चलना या टहलना स्वस्थ के लिए बहुत ही फायदेमंद है। टहलना अर्थात् वॉक करना बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी के लिए बहुत ही लाभकारी है। ऐसा करके आप न केवल स्वस्थ रह सकते है वरन् आप हड्डी, जॉइंट और स्पाइन दर्द से भी बच सकते हैं। अनेक डॉक्टरों की माने तो पैदल चलने से अच्छी कोई दवा नहीं है।

डॉ. प्रदीप शर्मा का कहना हैं कि प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट टहलना ऐक्टिव लाइफस्टाइल के लिए बेहद जरूरी है। टहलने से हार्ट, लीवर और ब्रेन को भी स्वस्थ रखा जा सकता है। टहलने से हड्डियां स्वस्थ रहती हैं, मांसपेशियां मजबूती बनती हैं और उन्हें ऐक्टिव रखा जा सकता है।

इंटरनैशनल जर्नल ऑफ ऑबीसिटी के अनुसार रोजाना कम से कम 1500 कदम चलने से वजन दुरुस्त रहता है, कमर पतली रहती है और मेटाबॉलिजम सामान्य रखने में सहायता मिलती है। इससे हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है।