स्वास्थ्य का खजाना ए-2 दूध
मांग में हुई 5 गुना की वृद्धि
हम बचपन से ही दूध पीने के लाभों के बारे में सुनते आ रहे हैं। कहा जाता है कि दूध संजीवन तत्व है, जिसके सेवन से सभी विकार दूर हो जाते हैं। देसी गाय के दूध के साथ-साथ गोबर का भी विशेष महत्व है। गोबर से उगे पदार्थ जैविक खाद्यान्नों की श्रेणी में रखे जाते हैं। बहराल हमारा उद्देश्य यहां यह बताना है कि एक बार फिर से दूध का बाजार देसी गाय की महत्ता को समझ रहा है। यही कारण है कि देसी गाय के दूध की मांग में 5 गुना की बढ़ोतरी को देखते हुए छोटे से लेकर बड़े सभी दूध के ब्रैंड देसी गाय के दूध को प्रमोट करते दिख रहे हैं। इसी श्रृंखला में दूध बाजार के बड़े खिलाड़ी अमूल ने अहमदाबाद में देसी गाय के दूध से बने डेरी उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं। इसके बाद कहा जा रहा है कि अमूल का अगला लक्ष्य सूरत का दूध बाजार होगा। श्री आर.एस. सोढी (प्रबंध निदेशक, अमूल ) का कहना है कि जब हम इस डेरी उत्पाद को प्रीमियम प्राइज पर सेल करते हैं तो इसका बाजार बहुत सीमित हो जाता है। हालांकि धीरे-धीरे लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
विदेशी और संकर नस्लों की गाय या भैंस का दूध बाजार में ए1 दूध के नाम से जाना जाता है, जबकि देसी गाय का दूध ए2 दूध कहलाता है। हमारे देश में प्रतिदिन गाय और भैंस से 40 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। प्रमुख बात यह है कि अब बाजार की नजर देसी गाय के दूध पर हैं। गत एक वर्ष में ये बाजार 5 गुना बड़ा हुआ है। गत वर्ष प्रतिदिन 8-9 लाख लीटर ए2 दूध की मांग थी, जोकि इस साल बढ़कर 40-45 लाख लीटर रोजाना हो गई है। यह दूध कम से कम 70-80 रुपये प्रतिलीटर दर पर बिक रहा है। विटामिन ए की प्रचुर मात्रा वाला यह दूध कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है।
बाजार मांग के रूख का लाभ लेने के लिए देश का सबसे बड़ा दूध उत्पादक ब्रांड अमूल भी देसी गाय के दूध के बाजार में उतरने को मजबूर हुआ है। अमूल से पहले मुंबई की पारस डेरी, अहमदाबाद की पथमेड़ा डेरी आदि भी अनेक प्राइवेट डेरी और छोटे-छोटे फार्म्स भी देसी दूध के इस बाजार में अपने पाँव जमाने में लग चुके हैं जबकि कई और बड़े प्लेयर्स भी इस मार्केट में उतरने का मन बना चुके हैं। देसी गाय का ए-2 दूध बाजार में मिलने वाले क्रॉसब्रीड अथवा विदेशी गाय के ए-1 दूध से अनेक बातों में बेहतर है। विभिन्न स्टडीज में समय-समय पर यह बात सामने आई है कि ए-1 दूध शरीर मे जलन, हार्ट प्रॉब्लम एवं डायबीटीज की संभावना को बढ़ा देता है। दूसरी ओर, ए-2 दूध आसानी से पचने वाला होता है। यही कारण है कि तमिलनाडु के डेरी संचालक और किसान वी. शिवकुमार स्थानीय नस्ल की गायों का संरक्षण कर रहे हैं और उन्हीं के दूध से बने डेरी उत्पाद बेचते हैं। इसके लिए उन्होंने ए-2 दूध से बने उत्पाद बेचने के लिए एक ऐप बना रखी है, जहां लोग ऑर्डर प्लेस करते हैं। शिवकुमार की माने तो इस दूध की सोर्सिंग अभी आसान काम नहीं है।
नंदगांव (मुंबई के निकट) में स्थानीय नस्ल की गायों के ए-2 मिल्क से डेरी उत्पाद बनाने वाले टीटू अहलुवालिया इन्हीं गायों के गोबर से जैविक खेती भी करते हैं। टीटू की माने तो देसी गायों की नस्ल विलुप्त होने की कगार पर है। उन्होंने अपने बच्चों को स्वस्थ जीवन देने के लिए ऑर्गेनिक खेती हेतु गौपालन शुरू किया था। यह बात दूसरी है कि इनके दूध के महत्व के बारे में उन्हें बाद में जानकारी मिली। जबकि अनेक डेरी वालों का मत है कि ए-1 दूध की खपत को लेकर किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है। वह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि देसी गाय भारतीय जलवायु के हिसाब से ज्यादा सुरक्षित हैं। पुणे की भाग्यलक्ष्मी डेरी फार्म के अंकित का कहना है कि देसी नस्ल की गाय हमारे देश की जलवायु यानि क्लाइमेट के अनुसार एकदम फिट हैं। इनमें गर्मी सहन करने की बेहतर क्षमता है। इसलिए हम अपनी यूरोपियन प्रजाति की गायों की देसी गायों के साथ क्रास ब्रीडिंग कराना चाहते हैं।
ए-2 दूध की बढ़ती लोकप्रियता देश ही नहीं विदेशों में बढ़ रही है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी यह तेजी देखी जा सकती है। ए-2 दूध उत्पाद बनाने वाली सिडनी स्थित एक कंपनी के उत्पादों की न्यूजीलैंड और चीन में प्रमुख मांग है। अब यह कंपनी अमेरिका में भी अपने उत्पाद उतारने की तैयारी कर रही है।