इस किसान का है देखें कमाल
ऐसे ले रहा है 2.5 एकड़ जमीन से दस-बारह लाख रु. की वार्षिक आय
खेती किसानी छोड़ने की बात तो जहां तहां आप पढ़ते ही रहे होंगे लेकिन इनमें में कुछ ऐसे उदाहरण हैं जोकि जैविक खेती करते हुए अच्छी आमदनी ही नहीं ले रहे बल्कि धरती मां के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखते हैं, पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने की बात को ठाने हुए हैं। ऐसे ही हैं अकबरपुर बरोटा गांव (सोनीपत, हरियाणा) के श्री रमेश डागर। श्री डागर को 1970 में पारिवारिक परिस्थितियों के कारण मैट्रिक स्तर पर ही पढ़ाई छोड़कर खेती में लगना पड़ा। उस समय उनके पास केवल 16 एकड़ जमीन थी। शुरूआत में उन्होंने साधारण तरीके से खेती की पर संतुष्टि नहीं मिली कुछ अलग करने व समृध्दि के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए सब्जी (टिन्डे) की खेती की जिससे उन्हें बाजरे और गेहूं से तीन गुना ज्यादा आमदनी हुई। बाजार में फूलों की विशेष मांग को देखते हुए प्रयोग के तौर पर फूलों की भी खेती शुरू की, जिससे सबसे ज्यादा आमदनी हुई। फिर 1987-88 में बेबीकार्न की खेती की जिससे काफी लाभ हुआ।
रमेश डागर जैविक आधार पर की बहुआयामी खेती करते हैं। किस मौसम में कौन सी फसल की खेती करनी है, यह तय करने के पहले वह जमीन की गुणवत्ता और पानी की उपलब्धता के साथ-साथ बाजार की मांग को भी हमेशा ध्यान में रखते हैं। इसकी खेती के कुछ प्रमुख पहलू हैं :
केंचुआ खाद : डागरजी अपने खेतों में केंचुआ खाद का खूब प्रयोग करते हैं। एक किलो केंचुआ वर्ष भर में 50-60 किलो केंचुआ पैदा कर सकता है। केंचुआ खाद बनाने में खेती के सारे बेकार पदार्थों, जैसे डंठल, सड़ी घास, भूसा, गोबर, चारा आदि का प्रयोग हो जाता है। सब मिलाकर केंचुए से 60-70 दिनों में खाद तैयार हो जाती है। इस खाद की प्रति एकड़ खपत यूरिया की अपेक्षा एक चौथाई है। इसके प्रयोग से मिट्टी को नुकसान भी नहीं पहुंचता है। फसल की उत्पादकता भी 20-30 प्रतिशत बढ़ जाती है। केंचुआ खाद बनाने पर यदि किसान ध्यान दें तो वे अपने खेतों में प्रयोग करने के बाद इसे बेच भी सकते हैं। यह किसान भाईयों के लिए आमदनी का एक अतिरिक्त स्रोत भी हो सकता है।
बायोगैस : रमेशजी बायोगैस का इतना अधिक उत्पादन कर लेते हैं कि इससे इंजन चलाने और अन्य जरूरतें पूरी करने के बाद भी गैस बच जाती है। बची हुई गैस वे अपने मजदूरों में बांट देता हूं। इससे उनके भी ईंधन का काम चल जाता है। बायोगैस का उन्होंने एक परिवर्तित माडल तैयार किया है जिसमें प्रतिघन मीटर की लागत 5000 रुपए की बजाय 1000 रुपए हो जाती है। इस माडल में गैस प्लांट की मरम्मत का खर्चा भी न के बराबर है।
मशरूम खेती : डागरजी मशरूम की कई फसलें लेते हैं। उनका कहना है कि जिन किसान भाइयों के यहां मार्केट नजदीक नहीं है, उन्हें डिंगरी (ड्राई मशरूम) की फसल लेनी चाहिए। आज पूरी दुनिया में डिंगरी का 80 हजार करोड़ का बाजार है। जहां धान की फसल होती है, वहां इसकी खेती की संभावनाएं सबसे अधिक होती हैं क्योंकि इसकी खेती में पुआल का विशेष रूप से प्रयोग होता है। फसल लेने के बाद बेकार बचे हुए पदार्थों को मैं केंचुआ खाद में बदल कर 60-70 दिनों में वापस खेतों में पहुंचा देता हूं
तालाब एवं मछली पालन : खेत के सबसे नीचे कोने को और गहरा करके डागरजी ने तालाब बना दिया है, जिसमें बरसात का सारा पानी इकट्ठा होता है और डेरी का सारा व्यर्थ पानी भी चला जाता है। डेरी के पानी में मिला गोबर आदि मछलियों का भोजन बन जाता है। इससे उनका विकास दोगुना हो जाता है। मछलीपालन के अलावा तालाब में कमल ककड़ी, मखाना आदि भी वे उगाते हैं।
बहुफसलीय खेती : मैं एक साथ तीन से चार फसल लेता हूं। ऐसा करते समय वह समय, तापमान और मेल का विशेष ध्यान रखते हैं। उदाहरण के तौर पर सितंबर माह के अंत में मूली की बुवाई हो जाती है जिसके साथ गेंदा फूल भी लगा देते हैं। मूली को अक्टूबर में निकाल लेते हैं और नवंबर के शुरूआत में पालक या तोरी आदि लगा देते हैं जिसकी कटाई दिसंबर में हो जाती है। वहीं फूलों से आमदनी जनवरी से शुरू हो जाती है।
गुलाब एवं स्टीवीया : स्टीवीया एक छोटा सा पौधा है जिससे निकलने वाला रस चीनी से 300 गुना ज्यादा मीठा होता है। इसका प्रयोग मधुमेह के मरीज भी कर सकते हैं। श्री रमेशजी इसकी खेती से प्रति एकड़ लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। एक विशेष प्रकार के महारानी प्रजाति के गुलाब की खेती से भी उन्होंने काफी लाभ कमाया है। इस गुलाब से निकलने वाले तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 4 लाख रुपए प्रति लीटर है। एक एकड़ में उत्पादित गुलाब से लगभग 800 ग्राम तेल निकाला जा सकता है।
केले की खेती : केले की खेती से जमीन में केंचुओं की संख्या बहुत ज्यादा हो जाती है। केला एक ऐसा पौधा है जो खराब एवं पथरीली जमीन को भी कोमल मिट्टी में तब्दील कर देता है। इसके प्रभाव से किसी भी फसल की उत्पादकता 25 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। केले की जैविक खेती करने से पौधे सामान्य से ज्यादा ऊंचाई के होते हैं। इसकी खेती से लगभग 25 से 30 हजार रुपए प्रति एकड़ की आमदनी हो जाती है। गर्मी में केलों के बीच में ठंडक रहती है इसलिए इसमें फूलों की भी खेती हो जाती है, जिससे 15-20 हजार रुपए की अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। गर्मी के दिनों में मधुमक्खी के बक्सों को रखने के लिए भी यह सबसे सुरक्षित स्थान होता है।
वृक्षारोपण : खेतों की मेड़ों पर श्री डागरजी ने पापुलर आदि के पेड़ लगा रखे हैं जिससे 7 से 8 वर्षों में प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। इन वृक्षों से खेतों को नुकसान भी नहीं होता और पर्यावरण भी ठीक रहता है।
मधुमक्खी पालन : मधुमक्खी से भरे एक बक्से की कीमत लगभग चार हजार रुपए होती है। रमेशजी कहते हैं कि खेती में मधुमक्खियों की विशेष भूमिका है। वैसे भूमिहीन किसान भाइयों के लिए भी मधुमक्खी पालन एक अच्छा काम है। शहद उत्पादन के अलावा भी इनके कई फायदे हैं। फूलों की पैदावार में इनसे 30 से 40 प्रतिशत और तिलहन-दलहन की पैदावार में लगभग 10 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जाती है। बेहतर परागण के कारण फसलें भी एक ही समय पर पकती हैं। इस क्षेत्र में खादी ग्रामोद्योग एवं कई अन्य संस्थाएं सहायता कर रही हैं।
रमेश डागर कहते हैं कि मैंने 2.5 एकड़ में छः परियोजनाएं चला रखी हैंः
1. मधुमक्खी पालन : मधुमक्खियों के 150 बक्सों से हम शुरुआत करते हैं। एक ही साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाती है। इससे साल में 5-6 लाख की आमदनी हो जाती है।
2. केंचुआ खादः इसे बेचकर मैं 3-4 लाख रुपए की आमदनी कर लेता हूं।
3. मशरूम खेतीः इससे मुझे प्रतिवर्ष 3-4 लाख रुपए मिल जाते हैं।
4. डेरीः एक छोटी सी डेरी से लगभग 60-70 हजार की सीधी आय होती है।
5. मछली पालन : इससे भी लगभग 15-20 हजार रुपए मिल जाते हैं।
6. ग्रीन हाउस : इसमें लगी फसल से एक-डेढ़ लाख रुपए आ जाते हैं।
डागरजी कहते हैं कि समझदार किसान तो वो है जो पहले मार्केट देखे, फिर मिट्टी की जांच कराए, तापमान का ख्याल रखे और अच्छे बीज का चयन करे। किसान भाइयों को जैविक खेती ही करनी चाहिए, मवेशी रखनी चाहिए, बायोगैस तथा वर्मी कम्पोस्ट तैयार करना चाहिए। 365 दिन में 300 दिन कैसे काम करें, प्रत्येक किसान को इसकी चिन्ता करनी चाहिए। हमें एक-दो फसलें ही नहीं बल्कि एक-दूसरे पर आश्रित खेती की बहुआयामी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए।