Monday 29 February 2016

विश्व के दस ऐसे देश जहां के लोगों को नहीं देना पड़ता इंकम टैक्स



आज वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2016 का आम बजट प्रस्तुत कर दिया है। इस बजट में विशेष रूप से फोकस किये गए क्षेत्र हैं-किसान, गांव, कृषि, ढांचागत सुविधाओं का विकास, आर्थिक रूप से कमजोर निर्धन वर्ग को राहत पहुंचाना। जहां तक मध्य वर्ग का प्रश्न है तो वह काफी समय से इंकम टैक्स में छूट की सीमा को बढ़ाने की आस लगाए बैठा था जोकि मोदी सरकार के तीसरे बजट में भी नदारद दिखाई दी। ऐसे में, चलिए हम आज आपको इंकम टैक्स के बारे में रोचक जानकारियां दिए देते हैं विशेषकर विश्व के ऐसे दस देशों की जानकारी दिए देते हैं, जहां आप चाहे जितना भी कमाओ परंतु आपको एक रुपये का भी इंकम टैक्स नहीं चुकाना पड़ता।



  •  डेनमार्क सरकार द्वारा साठ हजार डॉलर से अधिक आमदनी वाले लोगों से साठ प्रतिशत टैक्स लिया जाता है।
  •  बेल्जियम में अविवाहित लोगों को 43 प्रतिशत इंकम टैक्स चुकाना होता है तो जर्मनी में 39.9 प्रतिशत।
  •  चिली सबसे कम इनकम टैक्स लेने वाला देश है जहां सात प्रतिशत तथा मेक्सिको में कुछ इनकम स्लैब्स में 9.5 प्रतिशत तक टैक्स लिया जाता है।
  • छोटे से देश बरमूडा में किसी भी प्रकार का पर्सनल इंकम टैक्स नहीं चुकाना पड़ता। हां एम्प्लाॅयर को 14 प्रतिशत पे-रोल टैक्स देना पड़ता है।
  • बु्रनई दारुस्सलाम में कोई पर्सनल इंकम टैक्स नहीं चुकाना पड़ता। हां यहां पर एम्प्लाॅई ट्रस्ट फंड और सप्लीमेंट कंट्रीब्यूटरी पेंशन स्कीम है।
  • अमीर देश होने के बावजूद संयुक्त अरब अमीरात में इंकम टैक्स नहीं देना पड़ता। विदेशी बैंक व विदेशी तेल कंपनियों की कैपिटल गेन इंकम पर नाॅर्मल बिजनेस टैक्स ही लगता है।
  • सउदी अरब में इंकम पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। इतना ही नहीं यहां पर किसी भी आदमी पर किसी भी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता। हां, प्रवासी बिजनेसमैनों को 20 प्रतिशत कर चुकाना पड़ता है। 
  • बहमास में इंकम टैक्स, कैपिटल गेन, उत्तराधिकार या गिट टैक्स नहीं देना पड़ता। हां, स्टांप ड्यूटी व रियल प्राॅपर्टी टैक्स जरूर लगता है।
  • अमीर देश कतर में इंकम टैक्स, डिविडेंड, कैपिटल गेन्स व धन अथवा संपत्ति के ट्रांसफर पर कोई टैक्स नहीं लगता है। 
  • ओमान में भी कोई इंकम टैक्स नहीं लगता।
  • कुवैत में प्रत्येक नागरिक को आयकर से मुक्ति दिलाई गई है। हां नागरिकों को सोशल इंश्योरेंस में जरूर योगदान देना पड़ता है।
  • कैमेन आइलैंड में न तो इंकम टैक्स देना पड़ता है व न ही सोशल इंश्योरेंस फंड में भागीदारी देनी पड़ती है। हां, सभी एंप्लाॅयर द्वारा कर्मचारियों के लिए पेंशन स्कीम चलानी जरूरी है।


Saturday 27 February 2016

ग्रामीण भारत का हर तीसरा व्यक्ति है कर्जदार
दक्षिण भारतीय ग्रामीण राज्य कर्ज में सबसे आगे


कल यानि 26 फरवरी को सरकार द्वारा इकोनॉमिक सर्वे 2015-16 पेश कर दिया गया। इसमें आगामी बजट की रूपरेखा दिखाई गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार बजट का सबसे अधिक फोकस रहेगा-जर्जर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने में। चूंकि देश का मूल आधार है कृषि और अभी की हालत देखों तो ग्रामीण भारत का प्रत्येक तीसरा व्यक्ति ऋण के बोझ तले दबा हुआ है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो हम पाते हैं कि सबसे अधिक कर्ज आंध्र प्रदेश के ग्रामीणजनों पर है। साथ ही तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यांे के लोगों पर भी ऋण का कहर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दक्षिण भारतीय राज्यों से ही आते हैं। नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के वर्ष 2013 के डाॅटा बताते हैं कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कनार्टक और केरल में सबसे अधिक आत्महत्याओं के मामले उजागर हुए हैं।

ऐसा हम नहीं कह रहे, यह बता रही है नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की ‘‘भारत में कर्ज और निवेश’’ नामक रिपोर्ट। इसमें बताया गया है कि दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि कर्ज में आगे हैं। 54 प्रतिशत परिवार की दर के साथ सबसे आगे है आंध्र प्रदेश। जहां पर आधे से अधिक ग्रामीणजनों पर ऋण का बोझ है। जहां तक शहरी क्षेत्र की बात है तो इसमें 47 प्रतिशत परिवार की दर के साथ केरल बढ़त बनाए हुए है। आंकड़े बताते हैं कि ऋण के मामले में उत्तर भारतीय राज्य दक्षिण भारतीय राज्यों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में हैं।

गत दस वर्ष में ग्रामीण परिवारों पर कर्ज के स्तर में विशेष वृद्धि हुई है, जोकि 27 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत तक पहुंच गई है। दूसरी ओर शहरी आबादी पर भी ऋण का भार बढ़कर 18 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक जा पहुंचा है। यद्यपि यह आंकड़े 2012 तक के हैं। वास्तव में 2002-2012 के बीच यह सर्वे सभी राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों के 4,529 गांवों और 3,507 शहरी ब्लाॅकों में करवाए गए सैंपल पर आधारित है। चलिए आपको इन आंकड़ों से अवगत करवा देते हैंः
प्रदेश शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र

आंध्र प्रदेश 40 54
कर्नाटक 27 46
केरल 47 50
तमिलनाडु 35 40
बिहार 13 29
उत्तर प्रदेश 19 30
भारत 22 31

एक ओर जहां 2002-12 के मध्य तक कर्ज की राशि लगभग दुगुनी हुई वहीं कुल एसेट्स में डिपाजिट्स की औसत भागीदारी 2.3 प्रतिशत से घटकर 1.7 प्रतिशत तक जा पहुंची। शहरी क्षेत्रों में तो यह 9.7 से 4.3 तक आ गई। जहां तक डेट एसेट रेशो का प्रश्न तो तो इस क्षेत्र में हरियाणा के ग्रामीण इलाकों पर सबसे कम यानि केवल 1 प्रतिशत ऋण है। यद्यपि वर्ष 2002-2012 के बीच कर्नाटक (6.5 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश(14.1 प्रतिशत), केरल(5.4 प्रतिशत) व तमिलनाडू(6.8 प्रतिशत) के ग्रामीण क्षेत्रों में डेट एसेट रेश्यों तेजी से आगे बढ़ा परंतु महाराष्ट्र में जरूर इसमें गिरावट देखी गई।

Tuesday 23 February 2016

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया मुहिम का दिखने लगा असर
कहीं काम कर रही है टैबलेट दीदियां तो कहीं हो गया पेपरलेस संस्थान


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को डिजिटल इंडिया की शुरूआत किए अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ लेकिन परिणाम अभी से दिखाई देने लगे हैं। एक संस्थान ने जहां पूरी तरह से अपने को पेपरलेस बना लिया है तो वहीं गांव-गांव काम करने वाली टैबलेट दीदियां जागरूकता का संचार कर रही हैं। चलिए हम आज आपको दिखने में भले ही  छोटे परंतु महत्वपूर्ण प्रयासों की जानकारी दिए देते हैं।

महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी (वडोदरा, गुजरात) में डिजिटल इंडिया की तर्ज पर ‘‘इंस्टीट्यूट ऑफ लीडरशिप एंड गवर्नंस’’ पेपरलेस संस्थान आरंभ किया गया है। इंस्टीट्यूट का मैनेजमेंट संस्था के 25 विद्यार्थियों द्वारा किया जा रहा है। संस्थान द्वारा इंडिविज्यूअल डेवलपमेंट, स्किल डेवलपमेंट, इंग्लिश इम्प्रूवमेंट, कम्प्यूटर एफिसियंसी, पर्सनालिटी डेवलपमेंट आदि 11 कोर्स आरंभ किए गए हैं। इसके अंतर्गत चाहे छात्रों की पढ़ाई हो या कार्यालय का काम सबकुछ पेपरलेस है यानि उसके लिए कागज का इस्तेमाल नहीं किया जाता।

जहां तक स्टूडेंट की एजुकेशन का प्रश्न है तो उनको प्रोजेक्ट द्वारा शिक्षित बनाया जा रहा है तो लैपटॉप से क्लासवर्क करवाया जाता है। जिगर इनामदार (निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ लीडरशिप एंड गवर्नंस) की माने तो पेपरलेस संस्थान का विचार बहुत पहले से चल रहा था। यहां पर एक भी प्रिंटर नहीं है। सभी जानकारियों का ऑनलाईन आदान-प्रदान किया जाता है। आवश्यकतानुसार विद्यार्थियों को मोबाइल पर मैसेज भेजा जाता है। इस प्रकार से समय व पर्यावरण दोनों का बचाव हो रहा है।

इसी प्रकार झारखंड के पाकुड़ व पश्चिमी सिंहभूम जिले (रांची) की महिलाएं स्वयं सहायता समूह, लेन-देन व बैठक के आंकड़ों को आॅनलाइन टैबलेट द्वारा अपलोड करती हैं ताकि ये आंकड़े झारखंड सरकार तथा भारत सरकार की एमआईएस में अपडेट हो जाए। इसीलिए उन गांववालों ने इन महिलाओं को टैबलेट दीदी नाम दे दिया है। इन महिलाओं की माने तो यह काम करने से पहले स्मार्टफोन तो देखा था पर कभी उसे चलाया नहीं था। चूंकि इससे पहले सारा काम वह रजिस्टर में दर्ज करती थी परंतु टैबलेट आने के बाद सारा काम पेपरलेस और फिंगरटीप पर हो गया है। इस काम की शुरूआत की झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा जिसने गांव की महिलाओं को टैबलेट चलाने की ट्रेनिंग देकर बुक-कीपिंग सिखाया। इसके अलावा, यह टैबलेट दीदी ग्रामीण महिलाओं को फिल्म दिखाकर जागरुक भी करती है। इस जागरूकता अभियान के अंतर्गत वह सरकारी योजनाओं, उन्नत पशुपालन और खेती की बेहतरीन विधियों से संबंधित फिल्में दिखाती हैं।

जब इन महिलाओं से इन नए प्रयोगों के बारे में पूछा जाता है तो वह बताती हैं कि हम समझते थे कि टैबलेट अमीरों की चीज है। हमें उम्मीद नहीं की थी कि हमारे पास भी टैबलेट हो सकता है। आज यही टैबलेट हमारी पहचान बन चुका है। इससे जहां एक ओर हम अपने लेखाजोखा को अच्छी तरह से मेन्टेन कर लेती हैं तो दूसरी ओर अन्य महिलाओं को भी अच्छे से जागरुक बना सकती हैं। केवल सात दिन के प्रशिक्षण के बाद डेटा अपलोड, फिल्में देखना, गेम खेलना, फोटो खींचना सब कुछ आ जाता है।

महिलाओं को यह टेबलेट और आॅनलाइन प्लेटफार्म इतना पसंद आया है कि वह बताती हैं कि हमारी योजना है कि हम जल्द से जल्द इस टैबलेट के द्वारा ही स्वयं सहायता समूह के उत्पादों की बिक्री करें। झारखंड सरकार भी टैबलेट दीदी की इन सेवाओं को समर्थन देने के लिए इनकी सर्विस को प्रस्तावित मोबाइल गवर्नेंस की अनेक सेवाओं से कनेक्ट करने पर विचार कर रही है जिससे कि गांव स्तर पर इन सेवाओं का फायदा सभी ग्रामीणों को मिल पाएं।


Monday 22 February 2016

अपने दम पर इन 21 गांवों ने 
इंतजाम कर लिया 24 घंटे पानी का 

कभी पीने के पानी को तरसने वाले यह गांव
आज ले रहे हैं साल में दो फसलें


जाट आंदोलन जोरों पर है और अगर आप दिल्ली में रहने वाले हैं तो आपको पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा होगा। कई बुर्जुगों को तो रहिमन का वर्षों पुराना दोहा ‘‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।’’ याद आ गया होगा। नीतिवाद से प्रेरित यह दोहा आज सत्य प्रतीत होता दिखाई दे रहा है। प्रमुख पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने तो यहां तक कह दिया कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर लड़ा जाएगा। इसीलिए वैदिक युग से लेकर आधुनिक युग तक जल को विशेष महत्व दिया गया है। पर इसके बावजूद भी आज चिंतनीय स्थिति है कि पानी कहीं नहीं है? सावन को तरसती नमन आँखे आज फसलों को जलते देखने के लिये विवश हैं, रेगिस्तान निरंतर फैलते जा रहे हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदियाँ, नालों में तब्दील होती जा रही हैं। कमोबेश समूचे विश्व की यही स्थिति है। सरकारी और निजी स्तर जल संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वह नगण्य ही हैं।

ऐसे में, झारखंड की घाटशिला तहसील के लगभग 21 गांववालों ने अपने दम पर करिश्मा कर दिखाया है। इसी का नतीजा है कि इन गांवों में बिना मोटर पंप, बिजली के चैबीस घंटे पानी की सप्लाई हो रही है। इस पानी से न केवल घरों की जरूरतें पूरी हो रही हैं बल्कि खेतों को भी सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके बदले देना पड़ता हैं केवल 20 रुपए महीना।

हुआ यूं कि बागडूबा गांव में खेतों की सिंचाई के लिए तो दूर पीने के पानी के लिए लोग तरसते थे। हां, गांव से आधा कि.मी. की दूरी पर पहाड़ी से पानी गिरकर बह जाता था। ऐसे में, गांव के लोगों ने पहाड़ से गिरते पानी का सही तरह से इस्तेमाल करने की ठानी। गांववालों की मेहनत और एनजीओ से जुड़े कंचन कर की प्रेरणा से जहां एक ओर गांव को 24 घंटे पीने का पानी मिला तो वहीं खेतों को भी सिंचाई के लिए भरपूर पानी। पहाड़ से गांव तक की दूरी को नापा गया और स्थानीय प्रशासन की सहायता से पाइप लाइन डाली गई ताकि पहाड़ से गिरने वाले पानी को पाइप के सहारे गांवांे तक और फिर फिल्टर लगाकर घरों तक पहुंचाया गया। इतना ही नहीं गांव के पांच विद्यालयों में भी भरपूर पानी मिलने लगा है। यह मॉडल इतना प्रसिद्ध हुआ कि दूसरे 21 गांवों ने भी इसको अपनाया। इससे इन गांवों में घरों और खेतों को भरपूर जल मिल रहा है। गर्मी में भी झरना सूखता नहीं है, हां पानी अवश्य कुछ कम हो जाता है। इसी का परिणाम है कि आज किसान वर्ष में दो फसलें उगाने लगे। कंचन की माने तो पहले यह काम बहुत मुश्किल लगता था पर जब सभी गांववालों ने एक साथ कदम आगे कदम बढ़ाएं तो राह आसान होती चली गई। पीयूष जेना (रूरल डेवलपमेंट एसोसिएशन) के अनुसार, किसानों की जिद से जलक्रांति आई है। अन्य गांवों के किसान भी इस दिशा में काम कर रहे हैं।

Saturday 20 February 2016

कभी टीवी बेचने और छतों पर टीवी के एंटीना लगाने वाला सीए
आज है 350 करोड़ की कंपनी का सीईओ


किसी ने सच ही कहा है कि सपने तभी सच होते हैं जब वह देखे जाए। उनके बारे में सोचा जाए। उन्हें मूर्तरूप देने की कार्ययोजना बनाई जाए। जब यह सब मिल जाता है तो भाग्य भी अपने आप साथ आ खड़ा होता है और बन जाती है वह बात जो कभी सपने भी नहीं सोच सकतस। कुछ ऐसा ही हुआ है केशव मुरुगेश के साथ।

सीए केशव मुरुगेश ने अपने करियर का आरंभ टीवी सेल्समैन के रूप में शुरू किया। टीवी बेचने के साथ-साथ वे लोगों के घरों पर टीवी के एंटीना भी लगाने का काम करते थे। पर केशव की मेहनत और किस्मत के साथ से आज वह उस मुकाम पर जा पहुंचे हैं जहां पहुंचने में अच्छे अच्छों को पसीना आ जाए। जी हां! आज वह 345 करोड़ रुपए के रेवन्यू वाली कंपनी डब्ल्यूएनएस (आउटसोर्सिंग कंपनी) के सीईओ हैं। डब्ल्यूएनएस कंपनी आजकल काफी चर्चा में हैं चूंकि यह कंपनी अपना बिजनेस भारत एवं विदेश में हेल्थकेयर तथा एनालेटिक्स पर केंद्रित कर रही है। यह कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भी लिस्टेड है।

हुआ यूं कि केशव की मां एक दिन सीए पत्रिका देख रही थीं तभी उनकी नजर आईटीसी कंपनी निकली एक वैंकसी पर पड़ी। केशव की मां ने उससे इसमें अप्लाई करने के लिए कहा। केशव ने नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। आईटीसी कंपनी में उनके अंतिम राउंड के इंटरव्यू में आईटीसी के सीईओ ने अंतिम सवाल पूछा, विशाखापत्तनम के विख्यात डॉल्फिन होटल को बनाने में कितनी ईंटें लगी होंगी। केशव ने बिना कुछ सोचे-विचारे बोल दिया-नौ लाख, नौ हजार, नौ सौ इक्यान्वे। बस इतना सुनते ही आईटीसी के सीईओ ने केशव से हाथ मिलाते हुए बधाई देकर कहा आपकी नौकरी पक्की है। वर्ष 1989 में केशव ने आईटीसी ज्वाइंन की।
नौकरी में आने के बाद केशव को होटल के फ्रंट ऑफिस से लेकर किचन तक आईटीसी के हर वेंचर में ट्रेनिंग दी गई। अपने काम व मेहनत से उन्होंने अपने बॉस का दिल जीत लिया। बाॅस ने अपने रुपयों से खरीदकर केशव को गोल्ड मेडल दिया। फिर क्या था केशव निरंतर सफलता की सीढि़यां चढ़ते चले गए और कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट के पद तक पहुंचे। बाद वे सिंटेल में भी रहे।

जहां तक पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रश्न है तो केशव के पिता तमिल और मां बंगाली हैं जिससे वह तमिल व बंगाली भाषाओं में दक्ष हैं। उनका परिवार पूरी तरह से क्रिकेट को समर्पित रहा है। पिता एम.के. मुरुगेश चेन्नई से रणजी ट्रॉफी खेल चुके हैं तो मां आरती देश की प्रथम महिला क्रिकेट टीम की पहली मैनेजर रही हैं। वर्ष 1955 में चेन्नई टीम को रणजी मैच जितवाने में केशव के पिता का विशेष योगदान रहा। इसके बाद वे नेशनल सिलेक्टर भी रहे। यहां तक कि केशव की धर्मपत्नी शमिनी भी एक क्रिकेटर की ही बेटी है।


Thursday 18 February 2016

अपने दम पर बन गया है यह गांव बेहतरीन टूरिस्ट स्पाॅट
गोबर न उठाने पर हो जाता है जुर्माना


गांव के बारे में सोचते ही हमारे मन में गंदगी और गोबर की तस्वीर उभरकर सामने आती है। यह बात ओर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का असर भले ही सब ओर दिख रहा हो लेकिन ऐसे में एक गांव ऐसा भी जिसने अपने दम पर वह कर दिखाया है जोकि दूसरे गांवों के लिए मिसाल है। ऐसा नहीं है कि इस गांव में स्वच्छता के प्रति जागरूकता शुरू से ही थी बल्कि यह केवल डेढ़ साल की मेहनत का असर है कि यह गांव आज इतना शानदार टूरिस्ट स्पाॅट बन गया है। गांव के विकास की सराहना करते हुए सरकार द्वारा भी गांव की पंचायत को 26 जनवरी पर बेस्ट विलेज के पुरस्कार से नवाजा गया।

हम बात कर रहे हैं पंजाब राज्य के दो सौ वर्ष पुराने कृषि प्रधान गांव सक्कांवाली (मुक्तसर, अमृतसर)। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व यहां का गंदा पानी एकत्र होने वाला स्थान छप्पर बहुत ही गंदा था जिससे कि यहां बीमारियां फैलती रहती थीं पर आज यह छप्पर ट्रीटेड वाटर के कारण सुंदर लेक में बदल चुका है। हुआ यूं कि गांव के गंदे पानी की सफाई करने के लिए पंचायत ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर छप्पर के गंदे पानी की सफाई की व्यवस्था करवाई। साथ ही छप्पर को नीचे से ऊपर तक पक्का कर लेक बना दिया गया। जहां पर सैलानी बोटिंग करते हैं। आसपास हरियाली करके सुंदरता को बढ़ाया गया है। यातायात को सुविधाजनक बनाने के लिए पक्के और मजबूत रोड़ तैयार किए गए। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गएं। यही कारण है कि आज यह गांव सैलानियों का पसंदीदा गांव बन चुका है। टूरिस्टों को गांव के लोग अपने घरों में ही ठहराते हैं।

जहां तक स्वच्छता बनाएं रखने का प्रश्न है तो यहां नियम कानून भी बहुत सख्त हैं। अगर किसी ग्रामीण की भैंस सड़क पर गोबर करती है और उसे बीस मिनट में नहीं उठाया जाता तो उस आदमी को सौ रुपए जुर्माना देना पड़ता है। इतना ही नहीं पंचायत ने गोबर उठाने के लिए विशेष रूप से एक इंसान को रखा हुआ है जोकि फोन आने पर गोबर उठाने पहुंच जाता है। साथ ही भैंसों को लेक में ही नहाया जाता है परंतु उसके लिए सुबह और शाम के दो-दो घंटे का समय नियत कर दिया गया हैं। नियम न मानने पर पचास रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। बैठने के लिए बेंच व कैंटीन बनाने की भी तैयारी की जा रही है।

आपको बताते चले कि रोजी बरंकदी के अनुसार पंसारी गांव (साबरकांता, गुजरात) को देश का सबसे विकसित गांव होने का सम्मान प्राप्त है। वहां पर मिनरल वाटर सप्लाई, बैंकिंग, टोल फ्री कंप्लेंट रिसेप्शन सिस्टम एवं सीवर एंड ड्रेनेज प्रोजेक्ट इत्याादि अनेक सुविधाएं हैं। इसके बावजूद भी वह सक्कांवाली गांव की तरह शानदार टूरिस्ट स्पाॅट नहीं बन पाया।


Wednesday 17 February 2016

वकालत छोड़ खेती कर रहा है यह किसान
कमाई है लाख रुपए महीना


आज जहां कृषि में निरंतर होते नुकसान से किसान खेती से किनारा करते जा रहे हैं। वहीं कुछ किसानों ने वो कर दिखाया है जोकि दूसरों के लिए पथ प्रदर्शन का कार्य कर सकता है। आज हम आपको ऐसे ही एक किसान से रूबरू करवाने जा रहे हैं।

गढ़चिरोली (नागपुर) के संजय गटाडे ने लाॅ की डिग्री हासिल की। इसके बावजूद भी उन्होंने वकालत छोड़कर अजीविका के लिए कृषि को चुना परंतु कुछ हटकर। संजय ने खेती तो शुरू की लेकिन मोतियों की। इसके लिए, उन्होंने अपने गांव में एक छोटे से तालाब में मोतियों की खेती आरंभ की। इसी की बदौलत आज वह प्रतिमाह लगभग एक लाख रुपए कमा रहे हैं। वास्तव में संजय की बचपन से ही मोतियों में रुचि थी। इसी वजह से वे गढ़चिरोली एग्रीकल्चर कॉलेज जा पहुंचे। वहां एक प्रोफ़ेसर के मार्गदर्शन में संजय ने मीठे पानी में मोती बनाने की तकनीक का पता लगाया।

संजय ने मोतियों की खेती 10x10 फीट के तालाब में शुरू की। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने बंद सीपों में खांचे लगाकर उनमें मोतियों का बीज डाला। इसके बाद उन सीपों को थैलीनुमा बैगों में बंद करके जाली द्वारा तालाब के पानी में उतार दिया है। 5-6 माह बाद ही इसमें मोती तैयार होने लगे है। मोती की इस खेती से संजय आज प्रतिवर्ष लगभग 11-12 लाख रुपए सरलता से कमा लेते हैं।

इतना ही नहीं संजय ने साधारण मोतियों के साथ-साथ विशेष डिज़ाइनर मोतियों को बनाने की भी तकनीक खोज निकाली है। उन्होंने डिज़ाइनर मोतियों को तैयार करने के लिए विशेषरूप से खांचे तैयार किए हैं जिनमें वह महात्मा बुद्ध, गणेशजी, होली क्रॉस साइन आदि डिज़ाइनर मोती भी बना चुके हैं। इन मोतियों से वह अच्छी खासी राशि कमाते हैं।




Tuesday 16 February 2016

पढ़कर यकीन नहीं होगा
सौ वर्षों बाद ऐसे बदल जाएगी दुनिया 


विज्ञान और तकनीक के दम पर इंसान ने बहुत तरक्की की है। रोज नए-नए आविष्कारों ने मानव जीवन को आसान और आरामदायक बना दिया है। यही वजह है कि अगर हम आज से कुछ वर्ष पीछे झांके तो पाएंगे कि तब में और अब में जमीन आसमान का फर्क आ चुका है। इसी श्रृंखला में एक रिपोर्ट सामने आई है जोकि चौंकाने वाली है।

आपको बता दें कि ‘‘स्मार्ट थिंग्स फ्यूचर लिविंग’’ नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि 100 वर्षों बाद इंसान जिंदगी यानि कि फ्यूचर लाइफ कैसी होगी। यह रिपोर्ट विश्व के विभिन्न अकादमिक प्रमुखों और विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई है। इसके द्वारा वह यह बताना चाहते हैं कि जिस प्रकार सौ वर्ष पूर्व की तुलना में जीवनयापन सरल हो चुका है वैसे ही आगामी सौ सालों बाद और भी अधिक गति से परिवर्तन आएंगे।

इस रिपोर्ट की माने तो आगामी शताब्दी में आदमी का जीवन पूर्णतः बदल चुका होगा। चलिए हम आपको इस रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की जानकारी दिए देते हैंः

1. रिपोर्ट की माने तो आने वाली सदी में इंसान पानी के अंदर रहने लगेगा, चांद व मंगल ग्रह पर छुट्टियां बिताएंगा, उसके घर में ड्रोन होंगे और प्रिंटर से भोजन निकलेगा।

2. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2116 तक मात्र हाईराइज बिल्डिंग्स बना करेंगी।
3. रिपोर्ट कहती है कि निरंतर घटती जमीन के कारण समंुद्र ही आदमी का अगला निवास होगा। समुद्र के पानी में ‘बबल सिटी’ बनी होगी। पानी में बड़े गुब्बारे होंगे जिसमें घर, विद्यालय, कार्यालय व पार्क होंगे जिनमें आॅक्सीजन का संचार समुद्र के जल से ही होगा।
4. रिपोर्ट में कहा गया है कि सौ वर्षों बाद इंसान घूमने के लिए पर्सनल ड्रोन रखने लगेगा।
5. आदमी हाॅलीडे बिताने के लिए इंसान चांद व मंगल ग्रह जा सकेंगे।

6. छुटपुट बीमारियों की जांच के लिए अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। चूंकि जांच की मशीनें लगभग सभी घरों में होगी।
7. जायकेदार भोजन हो या घर का सुंदर फर्नीचर सभी एडवांस 3डी प्रिंटर्स से प्रिंट हो जाएगा।
8. वर्क एट होम की तर्ज पर उस समय इंसान को कार्यालय नहीं जाना होगा वह घर से ही सारा काम कर सकेगा।

Monday 15 February 2016

3 महिलाओं ने बदल दी 800 महिलाओं की जिंदगी
दूधियों के चुंगल से आजाद होकर 
ढाई साल में बना ली डेढ़ करोड़ की कंपनी 


मरुथल राज्य राजस्थान के धौलपुर जिले की कम पढ़ी लिखी तीन महिलाओं अनीता, हरिप्यारी व विजय शर्मा ने कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए भी हिम्मत नहीं हारी। और अपनी मेहनत से पत्थरों में भी फूल खिला दिए। जी हां, इन तीनों महिलाओं ने केवल ढाई साल में ही डेढ़ करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी जोकि आज 800 महिलाओं को रोजगार दे रही है।

हुआ यूं कि अनीता, हरिप्यारी व विजय की पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे अपना व परिवार का खर्चा निकालने के लिए दूध का व्यवसाय करती थीं। इसके लिए उन्हें भैंस खरीदने के लिए दूधियों से रुपए कर्ज लेने पड़ते थे। ऐसे में, मजबूरन उन्हें दूधियों को बाजार दाम से कम कीमत में दूध बेचना पड़ता था। मेहनत की तुलना में उन्हें बहुत कमाई हो रही थी। जीवनयापन कठिन हो रहा था। हताश महिलाओं ने अब अपनी कंपनी बनाने की बात सोची।

अपना धंधा खोलना तब तक मुश्किल था जबतक कि पैसा हाथ में न आ जाए। पैसा जुटाने में प्रदान संस्थान ने मदद की और महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बना लिया। अब उन्हें आसानी से लोन मिल गया। एक लाख की पूंजी से 1 अक्टूबर 2013 को दूध के व्यवसाय के लिए ‘‘सहेली’’ प्रोड्यूसर कंपनी की शुरूआत हुई। सहेली के लिए करीमपुर गांव में दूध प्लांट लगाने में संजय शर्मा (निदेशक, मंजली फाउण्डेशन) की तकनीकी सहायता ली गई। दूध देने वाली 18 गांव की 800 महिलाओं को कंपनी का शेयरधारक बनाया गया।  हर गांव की महिला के घर पर मिल्क कलेक्शन सेन्टर बनाया गया। जहां पर महिलाएं स्वयं पहुंचकर दूध दे जाती हैं जिसे करीमपुर मिल्क प्लांट तक गाडि़यों से पहुंचाया जाता हैं। सहेली कंपनी के बोर्ड में आज 11 महिलाएं हैं जोकि 12,000 रुपए प्रति महीना कमा रही हैं। सहेली ने ग्रामीण महिलाओं को लाभ देते हुए 30-32 रुपए लीटर में दूध खरीदना शुरू किया जबकि दूधिये 20-22 रुपए प्रति लीटर से अधिक नहीं देते थे।

सहेली कंपनी द्वारा धौलपुर में दो बिक्री केन्द्र बनाएं गए हैं जहां 500 ग्राम की दूध थैली, पनीर व घी आदि बनाकर बेचा जाता है। दूसरी कंपनियों की तुलना सहेली के उत्पाद सस्ते और खरे हैं। राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा भी महिलाओं के काम को देखा गया और प्रसन्नता व्यक्त की गई। अधिकारियों की रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने सहेली को पांच लाख रूपए की प्रोत्साहन राशि देते हुए कहा वह दूसरी महिलाओं को दूधियों के चंगुल से छुड़वाएं व कंपनी को दूध देने के लिए प्रेरित करे।

Saturday 13 February 2016

इंटरनेट से जुड़ी इन रोचक बातों को नहीं जानते होंगे आप


आधुनिक युग में इंटरनेट जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। छोटे से लेकर बड़े-बड़ा काम भी इससे चुटकियों में निपटाया जा सकता है। इंटरनेट की शुरूआत करने वाले ने कभी सोचा भी न होगा कि आगे चलकर यह इतना उपयोगी साबित हो सकता है। इसी इंटरनेट से जुड़ी रोचक बातों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते होंगेः

1. हमारे देश में इंटरनेट की शुरूआत 15 अगस्त 1995 में विदेश संचार निगम द्वारा की गई।
2. अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा 1969 में इंटरनेट का इस्तेमाल करने से इसे गति मिली।

3. इंटरनेट में महत्वपूर्ण शब्द @ को 12वीं शताब्दी में सन् 1345 में बल्गेरियाई शब्दों-Manasses Chronicle (जोकि11वीं शताब्दी के आंरभ से अंत तक संक्षिप्त इतिहास बना रहा) के अनुवाद के रूप में ढूंढ़ा गया था। इसका अर्थ था ‘आमीन’। डच लोग / को ‘‘मंकी टेल’’ (Monkey tail) और इटैलियन लोग ‘‘स्नेल’’ (Snail) कहते थे। सन् 1536 में प्रथम बार इसका प्रयोग Florentine के एक व्यापारी Francesco Lapi ने किया। सन् 1890 में अमेरिका में इसे पहली बार कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में सम्मिलित किया गया।

4.  http://info.cern.ch/hypertext/WWW/TheProject.html पहली वेबसाइट ब्रिटिश वैज्ञानिक टिम बर्नर्स-ली, जोकि सीईआरएन (European Organization for Nuclear Research) के कर्मचारी थे, द्वारा 5 अगस्त 1991 को फ्रांस व स्विट्जरलैंड बॉर्डर पर बनाई गई और NeXT कंप्यूटर पर लाइव की गई। इसमें कुछ हाइपर टेक्सट का इस्तेमाल किया गया था। आज टिम वल्र्ड वाइड वेब कॉनसोर्टियम के फाउंडर मेंबर व निदेशक हैं। वे अभी भी वेबसाइट विकास व प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

6. स्टीव जॉब्स की कंपनी NeXT द्वारा तैयार NeXTCube उस समय का काफी महंगा कंप्यूटर था।

7. सन् 1991 में ही पहला एमपी3 को तैयार कर लिया गया था। यह बात दूसरी है कि इसे सन् 1998 में म्यूजिक फाइल शेयर सर्विस Napster द्वारा लाइव किया गया।

8. 5 इंच या 13 से.मी. वाली सीआरटी स्क्रीन और 10.7 कि.ग्रा. वजन वाला Osborne सन् 1981 में तैयार पहला लैपटाॅप था।
9. Spam शब्द पोर्क मीट से आया। जबकि सन् 1937 में हाॅरमेल फूड्स द्वारा सूअर के कंधे और जांघ से बना पैक्ड मीट Shoulder Pork and hAM बना से उतारा गया जिसे कंपनी द्वारा SPAM नाम से दिया गया। SPiced hAM द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सैनिकों का पसंदीदा व्यंजन था। स्टेरलाइज्ड करके तैयार इस मीट को कई लोग अनौपाचारिक रूप से Fake Meat भी कह देते थे। साथ ही सन् 1970 में Monty Python के फ्लाइंग सर्कस स्किट को भी ’स्पैम’ का ओरिजिन माना जाता है। इसके अलावा, स्किट के एक रेस्टोरेंट के मेन्यू की प्रत्येक आइटम स्पैम नाम से शुरू होती थी।
10. 31 मार्च, 1993 को सॉफ्टवेयर मॉडरेटर Richard Depew द्वारा सॉफ्टवेयर में कुछ परीक्षण के दौरान गलती से news.admin.policy नामक न्यूज ग्रुप पर करीब 200 डुप्लिकेट मैसेज भेजे दिए गए। तकनीकी रूप से प्रथम स्पैम ईमेल यही था जिसकी माफी मांगने के लिए स्पैम मैसेज शब्द का प्रयोग किया गया।

11. वर्ष 1971 में अमेरिकी प्रोग्रामर रे टाॅमलिंसन द्वारा पहला ईमेल स्वयं को भी भेजा गया जिसमें लिखा था "QWERTYIOP"। जबकि औपचारिक रूप से ईमेल बनाया भारतीय मूल के अमेरिकी वी.ए. शिवा अय्यदुरई ने। यह बात दूसरी है कि काॅपीराइट मिलने के बाद भी इसका श्रेय उनके खाते में नहीं गया।

13. प्रथम वेब कैमरा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की कम्प्यूटर लैब में इसलिए लगाया गया ताकि एक काॅफी मेकर की माॅनिटरिंग की जा सके।
12. चीन ने अपना अलग गूगल, टिविटर, फेसबुक व यूट्यूब बना रखा है।

13. टिम ने अपनी गर्लफ्रेंड, जोकि जिनेवा की न्यूक्लियर रिसर्च लैब में सेक्रेटरी व काॅमेडी बैंड की सदस्या थी, की फोटो पहली बार इंटरनेट पर अपलोड किया था।

14. सन् 1956 में आईबीएम द्वारा 305 RAMAC प्रथम सुपर कंप्यूटर तैयार किया गया। इसमें केवल 5 एमबी की हार्डडिस्क लगी थी और जिसका वजन एक टन से भी अधिक था। इसीलिए इसे ट्रक में लोड करके कार्गो फ्लाइट से भेजा गया था।

15. वाईफाई (WiFi) में Fi का कोई अर्थ नहीं था। केवल HiFi की तरह की रिदम देने के लिए Fi को जोड़ा गया। यह बात दूसरी है कि बाद में थ्प को फिडेलिटी बोला जाने लगा।

16. यू-ट्यूब के बाद Youku विश्व की दूसरी सबसे बड़ी वीडियो शेयरिंग वेबसाइट है।
17. CERN HTTPd पहला वेब सर्वर था जिसे टिम बर्नर्र ली ने तैयार किया था। आज भी CERN के पास वह ओरिजनल सर्वर है जिसपर कि टिम द्वारा प्रथम वेबसाइट होस्ट की गई थी।

18. इंटरनेट द्वारा सबसे पहले मारिजुआना बैग को बेचा गया था। यह एक प्रकार का नशीला पदार्थ था। जबकि अनेक स्थानों पर बताया गया है कि सन् 1971 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक विद्यार्थी ने यूनिवर्सिटी की ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस लैब के Arpanet अकाउंट से प्रथम सेल की थी। उस द्वारा मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से यह खरीदा गया था जोकि उस समय ई-कॉमर्स जैसे ही काम करता था।

19. प्रथम वेब ब्राउजर www अर्थात् world wide web टिम बर्नर्स द्वारा तैयार किया गया। शानदार ग्राफिकल यूजर इंटरफेस वाला यह वेब ब्राउजर साउंड, इमेजेस, मूवी और एनिमेशन देखने के लिए उपयोग किया जा सकता था। इसमें अलग-अलग साइज के फॉन्ट दिए गए थे।