गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

5 आदिवासी महिलाओं ने बन ली 40 लाख की कंपनी
जिससे चल रहे हैं 300 महिलाओं के घरों के चूल्हे 


किसी ने बहुत खूब कहा है कि खुदी को कर बुलंद कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से यह पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है? चाहे यह शेर बहुत पुराना है पर आज भी कुछ लोग इसी की तरह अपने आपको इतना ऊंचा उठा लेते हैं कि कामयाबी खुद ब खुद उनके कदमों में आ जाती है। यह उनकी मेहनत और लगन ही होती है जोकि उन्हंे नई-नई ऊंचाइयों को छूने को प्रेरित करती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पाली (राजस्थान) की पांच आदिवासी महिलाओं ने। इन्होंने एक नई सोच के साथ वो कर दिखाया जिससे पांच गांवों की 300 महिलाओं की तकदीर संवर गई। भौगोलिक चुनौतियों (जैसेकि अरावली पहाडि़यां और यातायात के साधन नदारद) होने पर इन महिलाओं ने 40 लाख रुपए वार्षिक टर्नओवर की कंपनी चला डालीं।

हुआ यूं कि आज से दो वर्ष पूर्व भीमाणा गांव की 5 आदिवासी महिलाएं-सुमी, सगी, नानरी, चंपा और करनी बाई गरीबी में दिन गुजर रही थीं। बेरोजार इन महिलाओं तक सरकारी सहायता या योजना रूपी कोई सहारा भी नहीं था। इन महिलाओं ने इस मायूसी के माहौल में भी आशा की किरण को नहीं खोया। अपने आसपास ही संसाधनों को खोजना शुरू किया। और इस तरह इन्होंने शुरू कर लिया शरीफा व्यवसाय। बिजनेस शुरू करना आसान काम नहीं था। इसके लिए सबसे पहले रुपए एकत्र किए गए। फिर खोली गई घूमर महिला प्रोड्यूसर कंपनी। कंपनी ने अपने इलाके की महिलाओं को शरीफा इकट्ठा करने के काम में लगा दिया।

जहां तक कंपनी के महत्वपूर्ण लोगों की बात है इसमें कोयलवाब गांव निवासी नानडी बाई को कम्पनी की फाउंडर डायरेक्टर बनाया गया। उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई कि वह कंपनी के नए सदस्य बनाएं एवं कम्पनी के व्यवसाय को आगे बढ़ाएं। गरासिया कोयलवाब निवासी सुमी बाई कम्पनी की चेयरपर्सन बनाई गई जोकि अपने बेहतरीन कोऑर्डिनेशन पाॅवर से शुरूआत से ही कम्पनी की कमान बखूबी संभाल रही हैं। गरासिया भीमाणा निवासी कंपनी की फाउंडर डायरेक्टर सगी बाई प्रत्येक कलेक्शन सेन्टर की मोनिटरिंग करती हैं ताकि सभी महिलाओं को उत्पादों का उचित दाम मिल सके। कालीबेरी गांव निवासी करनी बाई कम्पनी की फाउंडर डायरेक्टर हैं जिनके प्रबंधन में उत्पाद तैयार किये जाते हैं। उपला भीमाणा निवासी चम्पा बाई कम्पनी की डायरेक्टर है। नए उत्पाद लाने व प्रोसेसिंग का जिम्मा इनके पास है।

देखते ही देखते काम बढ़ने लगा। परिणाम भी अच्छे आने लगे। दो माह में ही महिलाओं को औसतन 12-15 हजार रुपए की आमदनी होने लगी। कंपनी ने अपने पहले ही वर्ष 18 लाख रुपए का टर्नओवर किया। आज जहां इस कंपनी का वार्षिक टर्नओवर 40 लाख रुपए तक पहुंच चुका है तो इसके उत्पाद मध्य प्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र तक पहुंच चुके हैं। इस तरह से कंपनी ने जहां 300 से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया वहीं इन महिलाओं को कंपनी का शेयर होल्डर भी बनाया।

कंपनी ने शरीफे खरीदने के लिए भीमाणा, उपला भीमाणा, कोयलवाब व तणी आदि स्थानों पर अपने 10 कलेक्शन सेंटर भी खोलेे हैं। इन सेंटरों से शरीफा प्रतिदिन नाणा गांव की प्रोसेसिंग यूनिट तक पहुंचाया जाता है। जहां पर उससे रबड़ी, आइसक्रीम आदि उत्पाद तैयार किए जाते हैं। सारा काम बहुत ही सिस्टमेटिक तरीके से किया जा रहा है। शरीफा लाने वाली प्रत्येक महिला के पास डायरी होती है। इसमें एंट्री की जाती है कि वह कितना शरीफा लेकर आईं। माल मिलने के तीसरे दिन पेमेंट कर दिया जाता है।

भले ही यह एक छोटी सी शुरूआत कही जाए लेकिन ऐसी ही छोटी-छोटी चीजों न केवल धीरे-धीरे बड़ा रूप ले लेती हैं बल्कि अनेक दूसरे लोगों को कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती हैं।

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