Thursday 30 March 2017

इस औषधीय पौधे की खेती दे सकती है
कम समय और पैसे में लाखों की कमाई 


आज समय बदल रहा है या यूं कहे तो गलत नहीं होगा कि हम मूल की ओर लौटते दिख रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं अपनी पुरानी परंपराओं और पद्धतियों के बारे में, जिसके बारे में लोगों का रूझान अब बदल रहा है।

लोग अब एलोपैथिक दवाइयों से फिर से आयुर्वेदिक दवाइयों और चीजों की ओर अधिक आकर्षित होते दिख रहे हैं। इसलिए अगर आप व्यवसाय करना चाहते हैं तो औषधीय पौधे यानि मेडिसिनल प्‍लांट फार्मिंग एक अच्छा बिजनेस साबित हो सकता है। इसके अंतर्गत केवल 1 हेक्‍टेयर कृषि भूमि पर इसबगोल खेती करके आरंभ में 10-15 हजार रुपए लगाकर आप केवल तीन माह में 2-2.5 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं। हां यदि आप एक हेक्टेयर से अधिक खेती करते हैं तो आय कई गुना बढ़ सकती है।

आपको बता दें कि औषधीय पौधे ईसबगोल के बीजों का उपयोग आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में किया जाता है। संसार के कुल उत्‍पादन का लगभग 80 प्रतिशत हमारे देश में ही उत्पन्न होता है। आरंभ में इसकी खेती केवल राजस्‍थान और गुजरात में होती थी पर अब हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश, पंजाब एवं उत्‍तराखंड आदि उत्‍तर भारतीय राज्‍यों में भी यह बड़ी मात्रा में होने लगी है। हमारे देश में लगभग तीन प्रकार के ईसबगोल होते हैं। विशेषज्ञों की माने तो केवल 110 से 140 दिनों में इसकी फसल पक जाती है। विशेषकर हरियाणा-2 किस्‍म की फसल 100 से 115 दिनों में पक जाती है, जिसे काटकर इसके बीजों को बाजार में बेचा जा सकता है।
हम अगर एक हेक्‍टेयर को आधार बनाकर कृषि गणना करें तो इससे लगभग 15 क्विंटल बीज पैदा होते हैं। हाल फिलहाल इसकी दर लगभग 12,500 रुपए प्रति क्विंटल है। इस हिसाब से बीज-बीज ही मात्र 1,90,000 रुपए के बैठते हैं। शीत ऋतु में तो दाम बढ़ जाने पर आय और भी अधिक हो सकती है।

इतना ही नहीं, यदि आप ईसबगोल के बीज को प्रोसेस करवाते हैं तो आपको अधिक लाभ हो सकता है। वास्तव में, प्रोसेसिंग होने के बाद इसके बीज में लगभग 30 प्रतिशत भूसी निकलती है, जोकि इसका सबसे अधिक महंगा भाग है। हमारे देश के थोक बाजार में भूसी का भाव लगभग 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। ऐसे में, एक हेक्‍टेयर भूमि में पैदा फसल की भू‍सी का दाम करीब 1.25 लाख रुपए तक बैठता है। साथ ही बचती है खली, गोली आदि अलग, जोकि लगभग डेढ़ लाख रुपए तक बिक सकती है। 

Friday 17 March 2017

तो ऐसे बढ़ सकता है निजी क्षेत्र 
के कर्मियों का पीएफ कंट्रीब्यूशन


सबका साथ, सबका विश्वास में विश्वास रखने वाली केंद्र सरकार को मिल रहे चैतरफा समर्थन से सरकार के हौंसले बहुत मजबूत हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए काफी जागरूक नजर आती है। इसी श्रृंखला में काफी समय से सरकार प्रयास कर रही है कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को सोशल सिक्युरिटी उपलथ्ध करवाई जाए।

ऐसी संभावना काफी समय से जताई जा रही है कि भविष्य में केंद्र सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन तय करने में कंपनियों के मनमाने रैवये पर रोक लगाई जा सकती है। इसलिए सरकार न्‍यूनतम फीसदी ग्रॉस सैलरी निश्चित करने पर विचार कर रही है, जिसे कंपनियों के लिए अनिवार्य रूप से बेसिक प्‍लस डीए के तौर पर मानना होगा। इससे जहां कर्मचारियों का प्रॉविडेंट फंड और पीएफ कंट्रीब्‍यूशन बढ़ेगा वहीं उनकी इन हैंड सैलरी कम हो जाएगी। वास्तव में अभी तक ऐसा होता रहा है कि निजी क्षेत्र में कंपनियां ग्रॉस सैलरी पर पीएफ न काट कर बेसिक सैलरी और डीए पर पीएफ काटती हैं। इससे कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी तो बढ़ती है पर पीएफ कंट्रीब्‍यूशन कम हो जाता है। इससे उनके पीएफ में इतनी रकम जमा नहीं हो पाती है जो रिटायरमेंट के बाद उनकी जरूरतों को पूरा कर सके।

कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन (ईपीएफओ) की निर्णयाक शीर्ष बॉडी सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्‍टी सीबीटी के सदस्‍य और हिंद मजदूर सभा के महामंत्री एडी नागपाल ने सीबीटी की सब कमेटी की बैठक में कंपनियों द्वारा सैलरी को भत्‍तों में बांटने की बात उठाते हुए कहा कि कुछ कंपनियां ग्रॉस सैलरी का केवल 10-20 प्रतिशत बैसिक सैलरी और डीए के रूप में दिखाती रहीं हैं। इस बैठक में सदस्‍यों ने सुझाया कि कंपनियों की इस मनमानी पर रोक लगनी चाहिए और ईपीएफओ को ग्रॉस सैलरी का मिनिमम पर्सेंट निश्चित करना चाहिए, जिसे कंपनियों हेतु बेसिक सैलरी एवं डीए के रूप में मानना अनिवार्य हो।  

उपस्थित एम्‍पलॉयर प्रतिनिधियों ने माना कि यह एक गंभीर मुद्दा है, जिसके दूरगामी प्रभाव होंगे। इसलिए इसपर सीबीटी की अगली बैठक में चर्चा होगी। ईपीएफओ अगर मिनिमम बेसिक सैलरी और डीए निश्चित करने का निर्णय लेता है तो इससे लगभग 4 करोड़ से अधिक कर्मचारियों को लाभ होगा। इन का पीएफ कंट्रीब्‍यूशन बढ़ जाएगा।  

वास्तव में, इंप्‍लाइज प्रॉविडेंट फंड स्क‍ीम का लक्ष्य अपने सदस्यों को सोशल सिक्‍युरिटी उपलब्ध कराना है परंतु कर्मचारियों की ग्रॉस सैलरी पर पीएफ न कटने से पीएफ बहुत कम कटता है और इसकी वजह से कर्मचारियों को बहुत कम पेंशन मिलती है। ऐसे में स्‍कीम का अपने कर्मचारियों को सोशल सिक्‍युरिटी कवर मुहैया कराने का मकसद नहीं पूरा हो पा रहा है। 

Saturday 11 March 2017


सिगरेट के टु़कड़ोें से ऐसे हो रही कमाई


आपके स्वास्थ्य और जेब पर भारी पड़ने वाली सिगरेट आज भी हमारे देश में लोगों द्वारा बहुत अधिक पी जाती है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों की माने तो वर्ष 2014-15 में 9300 करोड़ सिगरेट प्रयोग हुई। वहीं दूसरी ओर, विश्व में लगभग 110 करोड़ जनता सिगरेट पीती है, जिनमें 80 करोड़ पुरुष शामिल हैं। ये आंकड़े बयां करते हैं कि बड़ी मात्रा में जले हुए सिगरेट के टुकड़े अथवा बट फेंके जाते होंगे। एक अध्ययन बताता है कि विश्व में औसत प्रतिवर्ष लगभग 1.69 बिलियन पौंड वजन के सिगरेट-बट फेंके जाते हैं।  

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अनेक ऐसे लोग भी हैं, जोकि इस कचरे से भी कमाई ही नहीं बिजनेस भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं यह पर्यावरण हितैषी व्यवसाय 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रहा है। इस व्यवसाय का आइडिया दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक 23 वर्षीय नमन गुप्ता और उनके मित्र विशाल को आया।
नमन का कहना है कि पीजी में लोगों की सिगरेट की लत और उसके बचे टुकड़ों से मुझे यह आइडिया आया। हमारे व्यवसाय से निरंतर लोग जुड़ रहे हैं और आगामी वर्षों में यह एक मिसाल बनेगा। नमन के दोस्त विशाल (केमिकल साइंस से शिक्षित) का कहना है कि हमने अपने यूनिक आइडिया से 200 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार भी प्रदान किया। जुलाई 2016 में बिजनेस कोड इंटरप्राइजेज एलएलपी नामक स्टार्टअप काम सिगरेट-वेस्ट अर्थात् फेंके गए सिगरेट-बटों को रिसाइकिल करना है, जोकि प्रत्येक तरह के रिसाइक्लिंग का वन-स्टॉप सोल्यूशन देता है।

इस व्यवसाय में ग्राहक को बची हुई सिगरेट के बदले पैसे दिए जाते हैं। कंपनी प्रति 100 ग्राम सिगरेट-बट के बदले 80 रुपए एवं एक किलोग्राम सिगरेट-बट के लिए 700 रुपए देती है। इससे ग्राहक और वेंडर दोनों को ही फायदा होता है। सिगरेट बट को ट्रीटमेंट करके फिल्टर किया जाता है। यह 99 प्रतिशत तक उपयोग हेतु सुरक्षित होता है। इसे केमिकल से ट्रीट करके बाइप्रोडक्ट की जांच की जाती है। विशेषतः सिगरेट-बट के कूड़े को एकत्र करने के लिए वीबिन तैयार किया गया है। ‘कोड’ हेतु कूड़ा एकत्र करनेवाला प्रति पंद्रह दिनों में एक बार कस्टमर के पास से सिगरेट-बट लाता है।

नमन का कहना है कि अभी हम दिल्ली-एनसीआर में यह काम कर रहे हैं परंतु भविष्य में हमारी मंशा देश के दूसरे राज्यों तक पहुंचने की है विशेषकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक। नमन की माने तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ में भी सहयोगी व्यवसाय साबित होगा।

Saturday 4 March 2017

इस ब्रेन फ्रूड के बारे में जानते हैं आप?
अनेक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ता है यह


आज के प्रतिस्पर्धा के युग में हर क्षेत्र में तेज मस्तिष्क का होना हर के लिए जरूरी होता है। यह बात दूसरी है कि हर व्यक्ति अपने दिमाग को दुरूस्त करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाता है। और बात अधिक मस्तिष्कीय शक्ति के साथ-साथ इम्युन पाॅवर की भी की जाए तो कुछ ऐसे पदार्थ हैं जिसका नाम तुरंत जुबान में आता है। चलिए इन पदार्थों में से एक प्रमुख पदार्थ के बारे में आज हम आपको बताते हैं।

जी हां, हम बात कर हैं अखरोट की। अखरोट यानि पावर फूड, जोकि स्टैमिना बढ़ाने में मदद करता है। यह शरीर के लिए बहुत लाभदायक होने के साथ-साथ अनेक गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाता है। यह भयंकर रोग कैंसर आदि से भी लड़ने की क्षमता शरीर में पैदा करता है और मेटाबोलिज्‍म दुरूस्‍त रखकर ऊर्जा के स्‍तर को भी बनाएं रखता है। अनेक लोग इसे ब्रेन फूड भी कहते हैं। चूंकि इसके सेवन से मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है। एक अमेरिकी संस्था की शोध बताती है कि यह विटामिन ई, ओमेगा 3 फैटी ऐसिड, ऐंटीऑक्सिडेंट्स का अच्छा स्रोत है। इसको रोज खाने से दिमाग को ऊर्जा मिलती है। याद्दाश्‍त बढ़ती है। अखरोट का सेवन दूध के साथ करना अधिक लाभदायक होता है।
अच्छी नींद के लिए
नींद के लिए उत्तरदायी मेलाटोनिन हारमोन अखरोट में भी पाया जाता है। जिन्हें नींद न आने की समस्या हो वो अखरोट का सेवन कर सकते हैं।
डाइटिंग में लाभदायक
अखरोट में फैट एवं कैलोरी भरपूर मात्रा में होती है, अतः डाइटिंग करने वालों के लिए यह अत्यंत लाभप्रद है। शरीर के लिए फायदेमंद वसा की उचित मात्रा, जरूरी फाइबर तथा प्रोटीन भी अखरोट में मौजूद होते हैं, जोकि शरीर को ऊर्जा देकर स्वस्थ रखते हैं।
ऐंटीऑक्सिडेंट गुण
अखरोट ऐंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है। ओमेगा 3 ऐसिड की उच्च मात्रा होने से यह शरीर को होने वाली हानि से बचाता है। यह बाॅडी के लिए जरूरी वसीय अम्ल है।
स्वस्थ हृदय
अखरोट हाॅर्ट की बीमारियों से बचाता है। इसे सैचुरेटेड फैट वाली चीजों के साथ खाकर हृदय को रोगों से बचा सकते हैं।

कोलेस्ट्रॉल को कम करे
अखरोट में मौजूद ओमेगा 3 शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है। साथ ही पित्ताशय को ठीक रखकर सुचारु कार्य करने में भी सहायक होता है।
डायबटीज में लाभकारी 
मधुमेह रोग में अखरोट का सेवन लाभकारी होता है। इसका नियमित सेवन मधुमेह से बचाता हैं। यह डायबटीज 2 में लाभ पहुंचाता है।
स्‍पर्म में वृद्धि 
अखरोट का सेवन पुरुषों में स्‍पर्म काउंट बढ़ाकर पिता बनने में मदद करता है।
ब्रेन फूड 
अखरोट विटामिन ई से भरपूर होने से यह दिमाग को तेज और स्वस्थ बनाता है। इसलिए इसे ब्रेन फूड कहा जाता है।

पेट के कैंसर में लाभकारी
अखरोट का सेवन पेट के कैंसर की जटिलताओं में फायदेमंद साबित होता है।
सुखद दीर्घायु में लाभप्रद
सुखद दीर्घायु के लिए अखरोट अच्‍छा रहता है। इसके नियमित सेवन से जीवनकाल बढ़कर जीवन ऊर्जा से भरपूर रहता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए उपयोगी
गर्भवती महिलाओं के लिए अखरोट के सेवन से भू्रण में पलने वाले बच्‍चे को एलर्जी नहीं होती है और उसकी वृद्धि के लिए जरूरी तत्‍व भी मिल जाते हैं।
तनाव घटाएं 
हाल ही के एक सर्वे की माने तो अखरोट का सेवन तनाव स्‍तर घटाता है, ब्‍लड़ प्रेशर नियंत्रित रखता है और शरीर को पर्याप्‍त ऊर्जा देता है।

Friday 3 March 2017

शहरों से गांव की ओर लौटते युवा
तीन लाख का व्यवसाय बना 30 लाख रुपए का


सरकार की मुहिम गांव में ही रोजगार पैदा करना और समृद्ध ग्राम जोर पड़ती दिख रही है। आज ग्रामीण युवा शहरों में आधुनिक शिक्षा तो ले रहे हैं लेकिन लौटकर वापिस अपने गांव को आगे बढ़ाने में भी योगदान दे रहे हैं। गांव की समस्याएं भी उनका रास्ता नहीं रोक पा रही हैं।
आज हम आपको उत्‍तराखंड की ऐसी ही युवा महिला दिव्‍या रावत से रूबरू करा रहे हैं जोकि मशरूम गर्ल के नाम से प्रसिद्ध है। दिव्या ने गांव के प्राकृतिक संसाधनों को उपयोग करके न केवल स्वयं आगे बढ़ी बल्कि दूसरों को भी आगे बढ़ाया। दिव्या ने मशरूम का व्यवसाय 3 लाख रुपए से शुरु किया। गत वर्ष उनकी कंपनी का टर्नओवर 30 लाख रुपए था, जोकि आगामी वित्त वर्ष में लगभग एक करोड़ रुपए का हो जाएगा। दिव्‍या रावत इस कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।

दिव्या ने एमिटी यूनिवर्सिटी (नोएडा) से बीएचडब्ल्यू में उच्च शिक्षा और इग्नू से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री ली। इसके बाद शक्ति वाहिनी एनजीओ में कुछ दिनों तक नौकरी भी की। अपना व्यवसाय आरंभ करने से पहले डिपार्टमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर, देहरादून से एक सप्ताह का मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण भी लिया। दिव्‍या का कहना है कि पहले स्वयं सीखकर, करो फिर दूसरों को सिखाओे।

खेती में रुचि रखने वाली दिव्या ने मन की मानकर अच्छे-खासे वेतन को छोड़कर गांव में वापिसी की। शुरूआत में दिव्‍या ने खंडहर पड़े मकान के छोटे से कमरे में 100 बैग मशरूम से उत्पादन शुरू किया। इस फैसले से दिव्या के घर वाले भी आश्चर्यचकित थे। आज इनकी कंपनी का प्लांट अनेक मंजिलों वाले भवन में तब्दील हो चुका है। दिव्‍या की कंपनी मिनिस्‍टरी ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स को गत वित्त वर्ष में बैलेंस सीट फाइल कर चुकी है।
आज दिव्‍या दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। जब किसान आलू 8 से 10 रुपए प्रति किलो की दर से बेंच रहे थे तब दिव्‍या से प्रेरणा लेकर यहां के अधिकांश किसान अब मशरूम का उत्‍पादन करके 150 से 200 रुपए प्रति किलो की दर पर बेंच रहे हैं। इसीलिए आज गांव से पलायन में कमी आई है। दिव्या ने 23 सितंबर, 2013 को सौम्य फूड प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी बनाई। फिर ‘सौम्‍य फूड’ ब्रांड का प्रोडक्‍शन शुरू किया। 30 हजार रुपए का निवेश करके कोई भी यह व्यवसाय शुरू कर सकता है। दिव्‍या की कंपनी इसमें मदद और प्रशिक्षण भी देती है। वर्ष में तीन प्रकार का मशरूम पैदा होता है। दिव्‍या गांव कंडारा (चमोली गढ़वाल) जाकर भी महिलाओं को मशरूम पैदा करने का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाने का काम कर रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दिव्या ने 35-40 डिग्री तापमान में भी मशरूम पैदाकर इस क्षेत्र में रोजगार की नई संभावनाओं को पैदा किया है। दिव्या रावत की माने तो युवाओं को रोजगार के लिए शहर में भटकने के स्थान पर स्वयं का व्यवसाय शुरू करना चाहिए।

Thursday 2 March 2017

भारत में बढ़ता स्वच्छ ऊर्जा का दायरा
पारंपरिक स्रोतों ऊर्जा का सामना करने की स्थिति में वैकल्पिक ऊर्जा 


भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश है इसीलिए हमपर स्वच्छ ऊर्जा अपनाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार ने भी इसे अपने अजेंडे में प्रमुख स्थान दिया हुआ है। यही कारण है कि वर्ष 2022 तक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से 175 गीगावाट ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य है। इसी टारगेट को पूरा करने के लिए वैकल्पिक अथवा स्वच्छ ऊर्जा के अधिक से अधिक उपयोग की संभावनाएं बनने लगी हैं।

गत सप्ताह सरकार की नीलामी में पवन ऊर्जा दरों में रिकॉर्ड गिरावट आई। एक गीगावाट प्रॉजेक्ट्स की बिल्डिंग में 5 कंपनियों ने 3.46 रुपये प्रति यूनिट की बोली देकर टेण्ड्रर ले लिया। इतना ही नहीं हाल ही में सौर ऊर्जा दरों में भी भारी गिरावट आई थी, जोकि अब तीन रुपये प्रति यूनिट से भी कम हो चुकी है। यही कारण है कि पहली बार वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत दाम की तुलना में परम्परागत स्रोत से मिलने वाली ऊर्जा का मुकाबला करने की स्थिति में आ गए हैं। इसमें सरकार के प्रोत्साहन की बहुत बड़ी भूमिका रही। पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन दाम कम करने में तकनीकी विकास की भूमिका सबसे बड़ी है, पर इस काम को अंजाम देने वाले संस्थानों को जरूरी लाभ भी मिलना चाहिए, ताकि दूसरे संस्थान भी इससे प्रेरणा लेकर वैकल्पिक ऊर्जा के इस क्षेत्र में उतरकर बढ़-चढ़कर भाग ले सकें। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वैकल्पिक बिजली के नए दामों से इसकी मांग में तेजी आ सकती है। इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार ने 2020 तक सौर ऊर्जा उत्पादन का अपना लक्ष्य दोगुना करते हुए 40 गीगावाट तय कर दिया है।

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से अगर मौजूदा बाजार दाम के लगभग बराबर मूल्य पर अतिरिक्त ऊर्जा मिले, तो देश में बिजली की कमी दूर होगी। इससे घरेलू उपयोग एवं उद्योग-धंधों तक पर सकारात्मक असर होगा।