Thursday 26 November 2015

वर्गीज़ कुरियन के 94वें जन्मदिवस एवं मिल्क डे पर विशेष
दूध उत्पादन में तो हम बन गए नंबर वन 
अब बारी दूसरे डेरी उत्पादों से आमदनी में बाजी मारने की


धरती पर अमृत यानि दूध प्रकृति का सर्वाधिक पौष्टिक आहार है। दूध बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक हमारी पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। ‘जीवेम शरदः शतम’ यानि दूध शक्ति का द्योतक है। महर्षि चरक के अनुसार ‘पयः पश्यं यथा मृतमः’ अर्थात् दूध तो अमृत के समान पथ्य है। आयुर्वेद में दूध को ‘सर्वोषधिसार’ यानि समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है, जो असाध्य रोगों को भी दूर करने में सक्षम है।

आज हम दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हमारे देश में दूध की बड़ी किल्लत थी। ऐसे में मिल्कमैन ऑफ इंडिया डा. वर्गीज़ कुरियन की दिखाई दिशा पर चलकर हमारे किसान ने श्वेत क्रांति को जन्म दिया जिसके बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राष्ट्र बन गया और आज तक कायम है। आज श्वेत क्रांति जनक व अमूल संस्थापक वर्गीज़ कुरियन की 94वीं जयंती है। इस अवसर पर समस्त भारत देश के साथ-साथ सर्च इंजन गूगल ने भी अपने डूडल से डाॅ. कुरियन को श्रद्धांजलि दी है।

डाॅ. कुरियन के दिखाए मार्ग पर चलकर आज पशुपालकों ने न केवल अपनी स्थिति को सुधारा है बल्कि हमारे देश भारत को दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर भी पहुंचाया है। यह दूसरी है कि आज भी प्रतिव्यक्ति दुग्ध उपलब्धता लगभग 290 ग्राम ही है। बहराल हमारा उद्देश्य यहां इस पर चर्चा करना नहीं है। आज हम चर्चा करना चाहते हैं किसान को दूध के अतिरिक्त डेरी से मिलने वाले पदार्थों जैसे गोबर, गोमूत्र आदि की जिसकी ओर उसका कोई ध्यान नहीं जाता और जोकि व्यर्थ चले जाते हैं। पशुपालक यदि इनका सही उपयोग करे तो वह बड़ा आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

चलिए इसे एक जीते जागते उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। पंजाब और हरियाणा राज्य में विदेशी नस्लों की गायों पर खड़े किए गए लगभग 10 हजार करोड़ डेरी व्यवसाय से हटकर लाडवा (हिसार, हरियाणा) के लोगों ने एक ऐसा फैसला किया जोकि अनेक लोगों के मिसाल साबित हो सकता है।

लाडवा के लोगों ने कमाई के लिए उन गायों का डेरी फार्म चलाने की सोची जिनको दूध न देने या बीमारी होने से लावारिस छोड़ दिया गया था। एक-एक करके ऐसी 1100 गायों को गौशाला में लाया गया। उनका इलाज किया गया। आश्चर्यचकित करने वाली बात तो यह है कि आज बिना दूध देने वाली गायों की इस गौशाला का वार्षिक लाभ 3.50 करोड़ रुपए को भी पार कर चुका है और पूरे व्यापार का फोकस गोबर व गोमूत्र पर है। 


अनेक लोगों की यह भी राय है कि प्राचीनकाल में हमारे देश को सोने की चिडि़या इसलिए भी कहा जाता था। चूंकि पूरे विश्व में केवल हमारे देश में ही पशुओं की सबसे अधिक जनसंख्या है और उनके गोबर को पीला सोना की संज्ञा दी जाती थी।

अगर हम इस गौशाला की आर्थिक पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि गौशाला लाडवा की एक गाय औसतन दस किलो गोबर और दस लीटर मूत्र देती है। दस किलो गोबर से बनी सात किलो खाद 35 रुपए में बिक जाती है। दस लीटर गौमूत्र से अलग-अलग तरह के दस लीटर उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं जिन्हें सौ रुपए प्रति लीटर की दर से बेच दिया जाता है। इस प्रकार गौशाला से प्रतिदिन ग्यारह लाख से अधिक की आमदनी होती है। इसके अलावा, लावारिस गाय को खरीदना भी नहीं पड़ता। जहां तक गाय के चारे का प्रश्न है तो उसपर 50 रुपए/प्रति गाय का खर्च आता है।


आनंदराज सिंह (प्रधान, गौशाला) की माने तो ‘गाय को जब तक आस्था या राजनीति से जोड़कर रखेंगे, तब तक इनकी यही हालत होगी। हमें समझना होगा कि गोपालन शुद्ध बिजनेस है। हम गाय के गोबर से बायोगैस बनाते हैं। फिर बायोगैस से निकले वेस्ट से जैविक खाद। गाय के मूत्र से कीटनाशक बनाते हैं। अर्क भी बनता है, जो विभिन्न दवाओं में प्रयोग होता है। इसकी सही मार्केटिंग से हम मुनाफा कमा लेते हैं।’

आनंदजी की बात से आप भी जरूरत सहमत होंगे। चूंकि उर्वरक/कीटनाशक जहां एक ओर कहीं न कहीं किसान की खुदकुशी के उत्तरदायी है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण व पृथ्वी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे बढ़कर इनके उत्पादों का हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इसी वजह से ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग जहां निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं इनका मुंह मांगा दाम भी मिलता हैं। गोबर की जैविक खाद ही इसका एकमात्र समाधान है।
तो अब समय आ गया है कि पशुपालकों को दूध के साथ-साथ पीले सोने यानि गोबर और गोमूत्र पर भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि किसान की आमदनी बढ़ सके व पर्यावरण भी सुरक्षित रह सकेे। 

Wednesday 25 November 2015

गायों को ओढ़ाया जाता हैं कंबल
और नहलाया जाता हैं शैंपू से


हिमाचल प्रदेश के सोलन से लगभग पचास किलोमीटर दूर स्थित कुनिहार के एक छोटे से गांव में एक डेरी ऐसी भी है जहां ऑस्ट्रेलियन नस्ल की गायों को महंगे कंबल ओढ़ाये जाते है, गद्दों पर सुलाया जाता हैं, महंगे शैंपू से नहलाया जाता है और यहां तक कि उन गायों की तेल से मालिश भी की जाती है। आवास की जगह पर गंदगी का कहीं भी नामो-निशान नहीं होता ताकि वह बीमारियों से बचे रहें।

26 वर्षीय संजीव ठाकुर कुनिहार के इस डेरी फार्म को चलाते हैं। इस डेरी फार्म में दुधारु गायों के लिए भूमि पर गद्दे बिछाए गए है, ओढ़ने को मंहगे कम्बल हैं, दूध निकालने के लिए स्वचालित मशीने हैं। यहां तक कि इन दुधारू गायों के चारे के लिए डेरी फार्म मे ही फ्लोर मिल भी लगी हुई है। फार्म हाउस में डीपफ्रीजर भी लगा हुआ है।

इस डेरी फार्म में 12 ऑस्ट्रेलियन गायें है जोकि प्रतिदिन 200 लीटर दूध देती है। इन गायों की सेवा में तीन कर्मचारी रात-दिन सेवारत रहते हैं। डेरी फार्म एवं दुधारू पशुओं की सुरक्षा के लिए फार्म मे 12 सीसीटीवी कैमरे लगेे हैं जिनसे फार्म मालिक संजीव ठाकुर स्वयं गायों पर नजर रखते हुए कर्मचारियों की मॉनिटरिग भी करते हैं।

Tuesday 24 November 2015

जानिए ट्री ऑफ 40 को
इस पेड़ पर लगते हैं 40 तरह के फल और अनेक रंग वाले फूल


आपने बचपन में लंबी उम्र, ज्ञान और खुशहाली के प्रतीक कल्पतरू, बोधिवृक्ष, ल्मू और काबाला आदि विभिन्न धर्मों के पूजनीय वृक्षों के बारे में पढ़ा और सुना होगा। लेकिन आज जिस पेड़ के बारे में हम बात करने जा रहे हैं उसके बारे में शायद ही आपको जानकारी हो।

ट्री ऑफ 40 पेड़ में 40 प्रकार के फल व अनेक रंगों के फूल लगते हैं। विश्वास नहीं होता न लेकिन यह सच है। हमारी धरती पर एक ऐसा ही मैजिक ट्री  है जिसमें बेर, सतालू, खुबानी, चेरी, नेक्टराइन आदि फल एवं अनेक रंगों के फूल भी लगते हैं जोकि देखने वाले को जादुई पेड़ का एहसास दिलाते हैं।

अमेरिका के एक विजुअल ऑर्टस के प्रोफेसर द्वारा तैयार इस पेड़ की कीमत 30000 डॉलर यानि लगभग 1991398.50 रुपए है। वर्ष 2008 में प्रो. वॉन ऐकेन (प्रोफेसर व आर्टिस्ट, विजुअल आर्ट्स, अमेरिका, सेराक्यूज यूनिवर्सिटी) ने न्यूयॉर्क स्टेट एग्रीकल्चरल एक्सपेरिमेंट में 200 प्रकार के बेर व खुबानी के पौधे वाले एक बगीचे को देखा। दुर्भाग्यवश फंड की कमी से बगीचा बंद होने के कगार पर था।

कृषि परिवेश वाले परिवार से जुड़े होने के कारण और बगीचे के प्राचीन व दुर्लभ पौधों की प्रजातियां में रुचि के कारण वाॅन ने इस बगीचे को लीज पर ले लिया। इसके बाद शुरू हुआ ग्राफ्टिंग तकनीक का प्रयोग और बन गया अनोखा ट्री ऑफ 40 अजूबा। वॉन की माने तो ऐसे ही 16 पेड़ उन्होंने अमेरिका के सात और राज्यों में लगाए हैं।

क्या आप ग्राफ्टिंग तकनीक के बारे में जानते हैं? नहीं तो चलिए हम आपको बताए देते हैं कि ग्राफ्टिंग में पौधा तैयार करने हेतु सर्दियों में पेड़ की एक टहनी कली सहित काटकर अलग की जाती है। फिर उस टहनी को मुख्य पेड़ में छेद करके लगाते हैं। जुड़े स्थान पर पोषक तत्वों का लेप बनाकर लगाया जाता है और पूरी सर्दी के लिए पट्टी बांधी जाती है। धीरे-धीरे टहनी अपने आप मुख्य पेड़ से जुड़ने लगती है व उसमें फल-फूल भी आने लगते हैं।


Friday 20 November 2015

इन्हें भी आजमाएं
और भरपूर लाभ पाएं

कहते हैं न छोटी-छोटी बातों पर अमल करके हम बहुत लाभ उठा सकते हैं। इन्हीं बातों को हम बचपन से ही अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं लेकिन आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में इन बातों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। तो चलिए इन्हीं बातों की ओर हम आपका ध्यान खींचने का प्रयास करते हैं ताकि आप भी इन घरेलू नुस्खों से बड़ी राहत ले सकें।

1. चमकदार दांत के लिए अपनाएं सुपारीः 

दांतों की शोभा तभी होती है जबकि वो मोती से चमके। इस काम के लिए आप सुपारी को बारीक पीसे उसमें करीब 5 बूंद नींबू रस व जरा-सा काला अथवा सेंधा नमक मिलाकर इससे प्रतिदिन दांतों की सफाई करें।

2. नाखूनों को चमकाएं ऐसे: 

प्रतिदिन सोने से पूर्व नाखूनों की सतह की अरंडी तेल से कुछ समय तक मुलायम हाथों से मालिश करने से नाखून सुंदर व चमकदार बन जाते हैं।

3. कार के भीतर हो बदबू को ऐसे भगाएंः 

कप अथवा छोटी कटोरी में सेब के टुकड़ों रखें। इन्हें कार सीट के निचले हिस्से में रखने से एक-दो दिन में जहां एक ओर ये टुकड़े सिकुड़ जाएंगे तो वहीं दूसरी ओर कार की गंध भी दूर होती जाएगी।

4. चींटी से न घबराएं लौंग को अपनाएं: 

चीनी हो या चावल चींटियों का डर बना रहा है। अब इनसे घबराएं नहीं इसमें आप 2-4 लौंग डाल दें फिर देखे कमाल।

5. जूतों में लाएं ऐसे चमकः 

गुड़हल या जासवंत के लगभग 4-5 ताजे फूलों को जूतों पर रगड़ने वे जूतों न जैसे चमक उठेगे।

6. नमक की नमी को ऐसे करे दूरः 

मौसम के हिसाब से नमक में नमी आ जाना साधारण बात है। ऐसे में यदि आप नमक के डिब्बे में कुछ चावल के कच्चे दाने रख दें तो नमक में नमी नहीं आएगी।

7. कोलेस्ट्राॅल करें ऐसे कंट्रोल: 

आपके शरीर के लिए खतरनाक कोलेस्ट्राॅल के स्तर को कम करने और उच्च रक्त चाप को सामान्य बनाने के लिए प्रतिदिन प्रातः खाली पेट लहसुन की दो कलियों का छिलका उतारकर पानी के साथ सेवन करें। कई लोगों की माने तो निरंतर तीन महीने ऐसा करने से शरीर में ट्यूमर बनने की संभावना भी कम हो जाती है।

8. डायबिटीज से ऐसे पाएं छुटकाराः​

प्रतिदिन प्रातः खाली पेट व रात को सोने से पूर्व लगभग एक चम्मच अलसी के बीजों को अच्छे से चबाएं तथा साथ ही एक गिलास पानी पीये। यह डायबिटीज में बहुत लाभदायक होता है।

Saturday 31 October 2015

काम करें लेकिन ऐसे नहीं की
काम बन जाए जान का खतरा


यदि आप भी अपने काम को पूरा करने एवं सीनियर्स को खुश करने या प्रमोशन के लिए ऑफिस में लंबे समय तक काम करते हुए लगातार बैठे रहते हैं तो सतर्क हो जाएं। चूंकि ऐसा करना आपके दिल और शरीर के लिए ठीक नहीं है। हाल ही में ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा उन लोगों को चेतावनी जारी की गई है जोकि लंबे समय तक लगातार बैठकर काम करते हैं। उनके अनुसार वह रोगों को न्यौता देते हैं। एक दूसरे शोध की माने तो लंबे समय तक बैठकर काम करने के बीच प्रतिघंटे उठकर चहलकदमी करने से नकारात्मक प्रभाव कम होता है। सौरभ तोसार (शोधकर्ता, ओरेगोन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी) ने तो यहां तक दावा किया है कि ‘हमने शोध में पाया कि पांच मिनट की चहलकदमी मात्र से लंबे समय तक बैठने से पैरों की धमनियों पर पड़ने वाला कुप्रभाव कम हो जाता है।...हमने देखा कि लंबे समय तक बैठे रहने का संबंध एंडोथेलियल प्रक्रिया से है, जो दिल संबंधी रोगों का मुख्‍य कारक है। लंबे समय तक बैठने के दौरान बीच-बीच में चहलकदमी करते रहने से एंडोथेलियल प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।...एंडोथेलियल प्रक्रिया एक घंटे तक लगातार बैठे रहने से प्रभावी होती है।’

कुछ इसी तरह की बात एक इंटरनैशनल मैगजीन में भी कही गई है कि जितनी हानि स्मोकिंग से होता है, उससे कहीं अधिक सेडेंटरी लाइफस्टाइल से होती है। स्मोकिंग कैंसर व हार्ट के रोग पैदा करती है तो लगातार बैठे रहने से इन रोग के अतिरिक्त अनेक दूसरी बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। इंटरनैशनल जरनल में प्रकाशित यह स्टडी बताती है कि कुर्सी पर बैठे रहने से विभिन्न रोगों से मृत्यु के खतरे को 27 प्रतिशत और टी.वी. देखने से होने वाली बीमारियों से मौत होने का खतरा 19 प्रतिशत होता है।
डॉ. सी. एस. यादव (ऑर्थोपेडिक सर्जन, एम्स) के अनुसार सेडेंटरी लाइफस्टाइल एक साथ कई रोगों की जड़ है। सेडेंटरी लाइफस्टाइल का अर्थ है ऐसा रुटीन, जिसमें लोग काफी लंबे समय तक बैठे रहते हैं।...मेट्रो शहरों में सेडेंटरी लाइफस्टाइल की वजह से बच्चों से लेकर बड़ों तक पर असर हो रहा है। लंबे समय तक बैठ रहने से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है व कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है। इससे हार्ट पर भी असर होता है। अगर आप ऑफिस में भी हैं तो लगातार बैठे नहीं रहें, बीच-बीच में उठकर टहलें, बॉडी स्ट्रेच करें। अगर दिन में एक घंटा भी कोई इंसान फिजिकल ऐक्टिविटी करता है तो उनमें यह परेशानी उतनी नहीं होती।

 डॉ. यश गुलाटी (ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट, अपोलो) भी इस बात से इतफाक रखते हुए कहते हैं कि लंबे समय तक कुर्सी पर बैठने से सबसे अधिक परेशानी कमर व बॉडी के मसल्स को होती है। शुरुआत में कमर में दर्द होता है। बाद में इसका असर बॉडी के मसल्स पर भी पड़ता है। बैठे रहने की वजह से बॉडी में कोई एक्टिविटी नहीं होती, बंद कमरे में लंबे समय तक लोग रहते हैं तो सनलाइट नहीं मिलती, विटामिन डी की कमी होने लगती है, वजन बढ़ने लगता है।

लगातार बैठकर काम करने नुकसान 

एक ही मुद्रा में लंबे समय तक बैठेने से शरीर के प्रत्येक हिस्से को नुकसान होता है।
रक्त के थक्के जमने लगते हैं जोकि मस्तिष्क में पहुंचकर स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं।
पूरे दिन बैठे रहने से पल्मोनरी एम्बोलिज्म अर्थात् फेफड़ों में रक्त के थक्के जमने की संभावना बढ़ जाती है।
घंटों बैठने से शरीर के अंगों के सुन्न होने अर्थात् हाई ब्लडप्रेशर की आशंका बढ़ती है।
लगातार बैठने से कोलोन कैंसर, मोटापा आदि रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
शरीर की रक्त धमनियों में चर्बी जमने न देने वाले एंजाइम काम करना बंद कर देते हैं।
शरीर की गतिविधियां कम होती जाती हैं।
गर्दन की मांसपेशियां दर्द करने लगती हैं। रक्त का सही संचार न होने से सुन्नता व नसों को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है।
रीढ़ की हड्डी पर जोर पड़ती है व उसमें दर्द या इंजरी आ सकती है।
बैठे रहने से पैरों में एकत्र तरल रात को सोते समय गर्दन तक आ जाते है जिससे स्लीप एप्नीया यानी सोते समय सांस में रुकावट हो सकती है। खड़े होने, टहलते आदि से तरल शरीर में चारों ओर फैले रहते हैं।
लंबे समय तक बैठने से मांसपेशियां सुस्त पड़ जाती हैं व दिल को खून का संचार नहीं कर पातीं। इससे धमनी द्वारा ब्‍लड सर्कुलेशन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे पैर की धमनियों में खून का संचार रुक जाता है।

बचाव

बैठे-बैठे लंबे समय तक काम करने के बीच-बीच में तीन से चार घंटे खड़े रहने या टहलने का प्रयास करें
दो-तीन घंटे लगातार काम के बीच में पांच से दस मिनट तक अवश्य टहलें।
ऑफिस की अपेक्षा सीढिय़ों का प्रयोग करें।
कुर्सी पर बैठे-बैठे ही हाथों व पैरों को हिलाकर हल्की एक्सरसाइज करें ताकि खून का संचार सही से बना रहे।
फोन, चाय, सहयोगी से सामान लेने आदि के लिए स्वयं जाएं।

Thursday 29 October 2015

सामने आई एक नई शोध

युवावस्था में फल और सब्जियां खाने वाले
वृद्धावस्था तक बने रहते हैं दिल से स्वस्थ 


हमारे देश में बच्चों और युवाओं को खिलाते समय कहा जाता है कि ‘‘खा ले यही उम्र है, यही खाया-पिया बुढ़ापे में तुम्हारे काम आएगा।’’ इस बात को सपोर्ट करती एक नई अमेरिकी रिसर्च सामने आई है जिसके अनुसार युवावस्था में अधिक फल और सब्जियां खाने वालों के लिए बुढ़ापे में दिल के रोग का खतरा कम हो जाता है। इससे पहले ऐसी कोई डायरेक्ट स्टडी नहीं हुई थी। यह शोध मिनेसोटा स्थित मिनेपोलिस हार्ट इंस्टीट्यूट के डॉ. माइकल डी. मिडेमा व उनकी टीम द्वारा अमेरिका में 30 वर्षों तक 2500 से अधिक युवाओं पर किया गया। इससे पहले अधिकांशतः वृद्ध लोगों के भोजन और दिल के रोगों की स्टडी की गई थी।

इस शोध में, 1985 में शोधकर्ताओं द्वारा 18-30 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की डाइट हिस्ट्री व दूसरे हेल्थ रिलेटेड डाटा इकट्ठे किए गए। इस लांग टर्म स्टडी के लिए रिसर्चर्स द्वारा 2506 पार्टिसिपेंट्स को फल व सब्जियों के खाने के अनुसार तीन ग्रुपों में बांटा गया। टॉप ग्रुप में उन युवाओं को रखा गया जोकि प्रतिदिन औसतन 7-9 बार सब्जियां व फल खाते थे। बाटम ग्रुप में उन युवाओं को रखा गया जोकि दिन में 2-3 बार ही फल और सब्जियां खाते थे। सन् 2005 में इन पार्टिसिपेंट्स की हार्ट की आर्टरीज का सीटी स्कैन करके डाटा एकत्र किया गया। ठीक दस वर्षों बाद पुनः जांच की गईं। इससे पता चला कि जो युवा सब्जियां व फल अधिक खाते थे, उनमें कम खाने वालों की अपेक्षा आर्टरी में ब्लॉकेज 26 प्रतिशत कम पाई गई। इस शोध से पब्लिश हुए डाॅटा की माने तो फल एवं सब्जियों की भरपूर मात्रा वाली डाइट आपको कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से प्रोटेक्ट करती है।

ऐसे रख सकते हैं अपने दिल को स्वस्थ


  • मोनोसैचुरेटेड फैट्सयुक्त ऑलिव ऑयल बैड कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करके हार्ट डिजीज के खतरे को कम करता है। 
  • दिन में एक कटोरी ओटमील लें। इसमें अधिक मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, फोलेट, फाइबर व पोटेशियम रहता है। जोकि दिल के लिए बहुत ही अधिक लाभदायक है। फोलेट द्वारा एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है।
  • अखरोट, बादाम आदि नट्स भी ओमेगा-3 फैटी एसिड्स से बड़े स्रोत हैं जोकि फाइबर की कमी को भी पूरा करते हैं। 
  • अलसी को खाने में शामिल करने से फाइबर, ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फैटी एसिड्स की कमी को पूरा किया जा सकता है। 
  • राजमा चैला आदि बीन्स व साबुत मूंग को खाने में शामिल करने से ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, कैल्शियम, फाइबर व सॉल्युबल फाइबर की कमी पूरी की जा सकती है।


Saturday 24 October 2015

हिंदुस्तान कैसे था सोने की चिडि़या जाने

हमारे देश भारत के बारे में हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ हैं कि यह ‘‘सोने की चिडि़या’’ था। इसको विदेशी आक्रमणकारियों मुगलों, पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों ने इतना लूटा कि देश की स्थिति बिगड़ गई। आज की स्थिति को देखें तो हम यूरोपीय देशों की भांति जीडीपी बढ़ाने एवं विकास करने की सोच रखते हैं। आपको आज हम ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिनपर शायद ही आप विश्वास करें लेकिन यह सच हैंः
1. एक ऐसा भी दौर था जब पूरी ग्लोबल इकोनॉमी पर एक हजार साल तक भारत का सिक्का चलता था। विश्व में उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की भागीदारी 25 प्रतिशत तक थी।
2. भारतीय सभ्यता ने सदैव विश्व विजय के लिए युद्ध के स्थान पर व्यापार का सहारा लिया। इसी का परिणाम था कि गत दो हजार वर्षों में लगभग 80 प्रतिशत समय तक विश्व अर्थव्यवस्था में भारत प्रथम नंबर पर रहा।
3. प्रो. एंगस मैडिसन ने इस संबंध में लिखा है प्रथम शताब्दी से 1000 ईस्वी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की नंबर एक अर्थव्यवस्था रही थी। 1000 ईसवी में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया की इकोनॉमी की अपेक्षा 29 प्रतिशत थी। इसी दौर में चीनी जीडीपी भारतीय जीडीपी का 79 प्रतिशत थी। वहीं इसी दौरान पूरे पश्चिमी यूरोप की जीडीपी भारतीय जीडीपी का एक तिहाई थी। 15वीं-17वीं शताब्दी में चीनी जीडीपी भारत से अधिक रही। हालांकि 17वीं शताब्दी में एक बार फिर भारतीय जीडीपी चीन से अधिक हो गई।
4. मैडिसन द्वारा 1990 के डॉलर के मूल्य को आधार बनाकर गणना की गई थी। यदि उनकी गणना को माने तो 17वीं शताब्दी में भारतीय जीडीपी 9,075 करोड़ डॉलर थी। वहीं चीनी जीडीपी 8,280 करोड़ डॉलर व पश्चिमी यूरोप की जीडीपी 8,339 करोड़ डॉलर थी।
5. इतिहास पढ़े तो पता चलता है कि भारत की खोज का एक प्रमुख कारण मांस को जायेदार बनाने के लिए मसालों का लोभ भी रहा। इन्हीं मसालों की मांग ने भारत को विश्व अर्थव्यवस्था में प्रथम स्थान दिया।
6. ईसा पूर्व से लेकर शताब्दी के आरंभ तक भारतीय मसालों के व्यापारियों ने भारतीय बाजार पर पकड़ बना ली। इसमें रोम प्रमुख था। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि प्रतिवर्ष 120 पानी के जहाज अगस्टस के समय में भारत के लिए चलते थे। इस व्यापार में रोम द्वारा भारतीय व्यापारियों को इतना धन दिया जाता था कि प्लिनी जैसे इतिहासकार ने तो भारत को रवाना किए जा रहे सोने पर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। प्लिनी के शब्दों में, व्यापार में रोमन साम्राज्य प्रतिवर्ष कम से कम 10 करोड़ रोमन मुद्रा चुका रहा है। रोमवासियों हेतु काली मिर्च इतनी आवश्यक बन चुकी थी कि प्रथम शताब्दी में रोम में विशेष रूप से काली मिर्च के वेयरहाउस बनाए गए थे।
7. शायद यह जानकर आपको आश्चर्य हो कि 408 ईसवी में रोम को घेरने वाले राजा ने शहर से अपनी सेना को हटाने हेतु 3000 पाउंड काली मिर्च की मांग कर दी थी।
8. मसालों की बढ़ती मांग ने यूरोपीय लोगों को नए भारतीय समुद्री रास्तों को ढूंढने पर मजबूर कर दिया। चूंकि जमीनी स्तर पर होने वाले व्यापार में बिचैलियों की बढ़ती संख्या से दाम बढ़ते जा रहे थे।
9. मध्यकाल तक भी सबसे अधिक मांग काली मिर्च की ही रही। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि अनेकों बार तो काली मिर्च की कीमत उसी वजन की चांदी के समान होती थी। इसीलिए उस दौर में काली मिर्च खपत के साथ भुगतान व कीमती तोहफे का भी माध्यम थी।
10. सन् 1468 में एक शाही परिवार के सदस्य द्वारा अपनी शादी में 150 किलो से अधिक काली मिर्च अतिथियों में वितरित की गई थी। इतना ही नहीं जर्मनी जैसे देश में भी काली मिर्च भोजन का अभिन्न अंग बन गई थी।
11. मध्यकाल तक काली मिर्च आदि अनेक मसाले विश्व व्यापार पर अपनी धाक बनाएं रहे, जिसका लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को हुआ। दूसरी ओर, इसका बुरा प्रभाव भी रहा क्योंकि हिंदुस्तान को ऐसे कारोबारियों व विदेशी राजाओं के हमलों का शिकार भी होना पड़ा। इसीलिए कहा जाता है कि अधिकांश हमलावर हिंदुस्तान की दौलत के किस्से सुनकर ही यहां पहुंचे थे।  
   
12.16वीं सदी के दौरान भारतीय जीडीपी विश्व की कुल जीडीपी की एक चैथाई थी। कई इतिहासकारों की माने तो सन् 1600 में अकबरी खजाने का मूल्य 1.75 करोड़ पाउंड था। यदि इस रकम की तुलना लगभग 200 वर्ष पश्चात् ब्रिटेन की ट्रेजरी से करें तो वहां मात्र 1.6 करोड़ पाउंड ही जमा थे।
13. मुगलाई मयूर सिंहासन का निरीक्षण करने वाले यात्री टेवरनियर की माने तो तख्त हीरों और मोतियो से जड़ा हुआ है। उस पर 100-200 कैरेट के 108 रूबी व 30-60 कैरेट के 110 पन्ने जड़े थे। यह 10 करोड़ रुपए का था। फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार यह उस दौर के 4 करोड़ रुपए के बराबर था।
14. ताजमहल के निर्माण पर 3.2 करोड़ रुपए का खर्चा हुआ था। यह राशि इस समय के लगभग 52 अरब रुपए के बराबर थी।
10. शाहजहां की वार्षिक आय आज के समय के हिसाब से उस समय 10,500 करोड़ रुपए थी।  

Wednesday 21 October 2015

इन बातों को अपनायें
गलतियां करने से बचें और जीएं खुशहाल लाइफ

नवरात्र पर्व इन दिनों बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। कल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा है। आज हम इन्हीं दोनों पर्वों से अच्छाइयों को अपनाने एवं बुराइयों को त्यागने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देने के लए चर्चा करेंगे तो चलिए सबसे पहले हम माता दुर्गा से लाइफ मैनेजमेंट के बारे में सीखेगेः


  • संस्कृत शब्द ‘‘दुर्गा’’ का अर्थ है-सबसे शक्तिशाली। इसीलिए मां दुर्गा को सब देवताओं में शक्तिशाली माना जाता है। मां दुर्गा के नाममात्र से नकारात्मक शक्तियां और दोष दूर हो जाते हैं। वेबसाइट इंडिया करंट्स की माने तो ‘मां दुर्गा के आठ हाथ हैं जिनमें आठ तरह के शस्त्र हैं। हर शस्त्र व हाथों की मुद्राएं जीवन के लिए कुछ न कुछ सीख देतीं है।’
  • दुर्गा मां के ऊपरी व दाएं हाथ में धर्म चक्र है जोकि हमें अपने कर्तव्र्यों व जीवन के उत्तरदायित्वों को शानदार ढंग से पूरा करने की सीख देता है।
  • दुर्गा मां के ऊपरी बाएं हाथ का शंख हमें प्रेरणा देता है कि हमें जीवन में संतोष रखकर खुशी व हंसमुख रहकर अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथों की तलवार पे्ररित करती है कि हमें भेदभाव व अपने दुर्गुणों का उन्मूलन करना चाहिए।
  • दुर्गा मां के निचले हाथ का धनुष व तीर हमें सीख देता है कि हमें भी अपना चरित्र भगवान राम की तरह बनाना चाहिए। जिंदगी चाहे कितनी भी मुश्किले दे पर हमें अपने धैर्य, चरित्र व मान-सम्मान को नहीं खोने देना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ का कमल हमें प्रेरित करता है कि हमें बाहरी विश्व में मोहमाया रहित होकर जीवन जीना चाहिए। जिसप्रकार दलदल में खिलकर भी कमल मुस्कुराता रहता है। उसी प्रकार इस दलदल रूपी विकारों से भरी दुनिया में हमें अपनी मुस्कान को नहीं खोना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ में पकड़ा गदा भक्ति व समर्पण का प्रतीक माना जाता हैं यानि हमें अपने जीवन में भक्ति व समर्पण का भाव रखकर सर्वशक्तिमान की इच्छा के रूप में परिणाम स्वीकार करने चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ में त्रिशूल साहस का प्रतीक है जोकि प्रेरित करता है कि हमे अपने नकारात्मक गुणों का संहार करके जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए ताकि सफलता हमारे कदमों में हो।
  • दुर्गा मां का आशीर्वाद के लिए उठा एक हाथ बताता है कि हमें अपनी व दूसरों की गलतियों को भूलाकर जीवन में आगे बढ़ते जाना चाहिए।
  • दुर्गा मां का शेर प्रतीक है-असीमित शक्ति का जोकि बताता है कि शक्ति मात्र असीमित शक्ति के सानिध्य में ही रह सकती हैं। वास्तव में, शेर अहंकार, क्रोध, स्वार्थ आदि अनियंत्रित बुराइयों को नष्ट करने का प्रतीक है। इससे सीख मिलती है कि हम अच्छाईयां बटोरे व लालच, ईष्र्या, इच्छा, आदि नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित करें।
  • मां दुर्गा की लाल रंग की साड़ी बुराई को नष्ट करने का प्रतीक हैं। मानव जाति की रक्षा और उन्हें दानवों से बचाने के लिए मां हमेशा तत्पर रहती हैं। 
  • मां दुर्गा स्त्री में शक्ति का प्रतीक हैं। उनके मुख की आभा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। 

रावण से सीखें जीवन में किन-किन कामों को न करेंः


  • विद्वान ब्राह्मण रावण सभी शास्त्रों, ज्योतिष व पूजा-पाठ का ज्ञाता था पर उसकी बुराइयों ने सभी अच्छाइयों के महत्व को समाप्त कर दिया था। रावण कभी किसी की सही सलाह नहीं मानता था। जिद्दी स्वभाव से रावण ने विभीषण, मंदोदरी, कुंभकर्ण, माल्यवंत, हनुमानजी आदि की सलाह नहीं मानी कि श्रीराम से शत्रुता न ले व सीता को लौटा दे इसी गलती से रावण का अंत हुआ। अतः हमें भी हमेशा सही सलाह को तुरंत मान लेना चाहिए।
  • रावण स्त्रियों को मात्र भोग-विलास की वस्तु मानता था। रंभा की सुंदरता पर मोहित रावण ने एक बार रंभा का अपमान किया। रंभा ने जब नलकुबेर (रावण के भाई कुबेर देव का पुत्र) को यह बताया तो उसने रावण को शाप दिया कि रावण जब भी किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसे छुएगा या अपने महल में रखेगा तो वह भस्म हो जाएगा। इसी वजह से रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा था। अतः हमें भी स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। 
  • रावण को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था जिससे वह श्रीराम को साधारण शत्रु समझा पर श्रीराम ने उसका वध कर दिया। अतः स्वयं पर विश्वास होना अच्छी चीज पर हां शत्रु को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए।
  • रावण सिर्फ खुद की तारीफ ही सुनता था। उसके सामने शत्रु की प्रशंसा करने पर दंड दिया जाता था। यही कारण है कि रावण हमेशा ही चापलूसों से घिरा रहता था। अतः हमें चापलूसों से निकलकर सच सुनने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। 

Tuesday 20 October 2015

12.5 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में मिले कीटनाशक 
आॅर्गेनिक सामग्री में भी 
मिले खतरनाक कीटनाशक


यदि आप यह सोच रहे हैं कि ताजा सब्जियों, फलों और दूध के रोज सेवन से आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा तो यह सोच गलत साबित हो सकती है। वास्तव में, देश के 12.5 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में खतरनाक कीटनाशक पाए गए हैं, जो आपको अनजाने में गंभीर बीमारियों का शिकार बना रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा करवाए इस अध्ययन की माने तो अधिकांश सब्जियों, फलों, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों में सबसे अधिक खतरनाक कीटनाशक पाए गए हैं। अध्ययन के लिए ये नमूने देश के विभिन्न खुरदा और थोक दुकानों से इकट्ठा किए गए थे। चाौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि आॅगेर्निक खाद्य पदार्थ बेचने का दावा करने वाली दुकानों से लिए गए नमूनों में भी खतरनाक कीटनाशक पाए गए।

केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2005 में खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों की मौजूदगी पर निगरानी के लिए शुरू की गई योजना के तहत वर्ष 2014-15 में लिए गए कुल 20,618 नमूनों से 12.50 प्रतिशत में खतरनाक कीटनाशक पाए गए। इन नमूनों का देश के 25 प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया गया। परीक्षण रिपोर्ट में 12.5 प्रतिशत नमूनों में
एसफेट, बाइफेंथ्रीन, एस्टैमीप्राइड, ट्राइआजोफोस, मटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, ट्राइआजोपफोस, मेटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, ट्राइआजोफोस, मैटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, कार्बोसल्फान, प्रोपफोनोफोस और हेक्साकोनाजोल जैसे अस्वीकृत कीटनाशक पाए गए। यानी इन कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 18.7 प्रतिशत
नमूनों में कीटनाशक पाए गए जबकि 2.6 प्रतिशत नमूनों में फूड सेफ्टी और स्टैंडर्स अथाॅरिटी आॅफ इंडिया (एफ.एस.एस.ए.आई.) की ओर से तय कीटनाशक की अधिकतम मात्रा में अधिक कीटनाशक पाए गए। 

Saturday 17 October 2015

पीएफ के लिए होगा अब आॅनलाइन आवेदन 
तीन घंटे में आ जाएगा पैसा

यदि आपका भी पीएफ कटा है और आप इसे निकालवाने के लिए धक्के खाते फिर रहे हैं तो आपके लिए खुशखबरी है। प्राॅविडेंट फंड (पीएफ) विभाग इस दिशा में काम कर रही है। इसके बाद पीएफ अंशधारकों को आॅनलाइन निकासी की सुविधा मिल जाएगी यानि घर बैठे आपका पैसा मात्र तीन घंटे में आपके खाते में जमा हो जाएगा। यह सुविधा मार्च 2016 तक शुरू हो जाएगी।
आपको बता दें कि गत 15 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीएफ निकासी में आधार काॅर्ड को ऐच्छिक कर दिया गया है। इसके बाद आधार को पीएफ से लिंक करने का रास्ता साफ हो गया है। आधार काॅर्ड के पीएफ खाते से लिंक होने से यह प्रक्रिया आसान व तेज हो जाएगी।
आॅनलाइन सुविधा शीघ्र शुरू करने हेतु ईपीएफओ, यूआईडीएआई का रजिस्ट्रार भी बन गया है। इसके अलावा, ईपीएफओ, यूआईडीएआई का आॅनलाइन अथोन्टिकेट करने की एजेंसी भी बना दी गई है। आॅनलाइन काम करने के लिए पीएफ के 40 प्रतिशत अंशधारकों के पास यूएएन का नंबर होने चाहिए, जिनका आधार के साथ-साथ बैंक खाता नंबर भी लिंक हो। ईपीएफओ की वेबसाइट की माने तो 5.6 करोड़ अंशधारकों को यूएएन नंबर दिया जा चुका है जिसमें से 92.88 लाख अंशधारकों ने अपने आधार नंबर व 2.75 धारकों ने अपना बैंक खाता नंबर दिया है।
श्री केके जालान, कमिश्नर, की माने तो हम जल्द ही इस सुविधा को लाॅन्च करना चाहते हैं लेकिन इससे पहले हम उन केस को पूरा करना चाहेंगे जिन्होंने अपने क्लेम फार्म में आधार नंबर दे रखा है। इसके लिए हम उन क्लेम को तीन दिन के अंदर पूरा करने की कोशिश करेंगे जिसपर आधार नंबर दिया गया है। अभी क्लेम का रिफंड मिलने में 20 दिन का समय लगता है।

Thursday 15 October 2015

ये हम कहां जा रहे हैं और वो कहां? 
जानना चाहते हैं तो पढ़े जरूर 
क्या हिंदुस्तान की मात्र जुबान ही बनकर रह जाएगी-हिंदी


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र का सपना मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत और देश व उससे जुड़ी चीजों के विकास का सपना क्या पूरा हो पाएंगा? इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य के गर्भ में हैं जोकि समय के साथ-साथ स्वयं ही सामने आ जाएगा। खैर हमारा मकसद यहां पर इन चीजों पर चर्चा करना भी नहीं है। हमारा प्रयास है दो विशेष बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने का। जहां एक ओर हम भारतीय अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं वहीं प्रतिष्ठित एवं बड़ी कंपनियों को अब हिंदी की शरण लेनी पड़ रही है।
जी हां। शायद आपको हमारी बात पर विश्वास न हो लेकिन यह सत्य है? यह हमारा कहना नहीं है यह आंकड़े और वर्तमान गतिविधियां प्रदर्शित कर रही हैं। चलिए आपको इनसे रूबरू करवाते हैं।

क्या अंग्रेजी की ओर हमारा झुकाव इतना हैः

देश की आजादी के बाद से ही हिंदी पर जोर दिया जाता रहा है। समाज ने इसे कितना अपनाया यह एक चर्चा का विषय है। हमारा उद्देश्य यहां इसपर विचार-विमर्श करना नहीं बल्कि आपका इस सच्चाई से साक्षात्कार करवाना है कि देश के स्कूलों से मिले ब्यौरों के आधार पर नैशनल युनिवर्सिटी आॅफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के डिस्ट्रिक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम फाॅर एजुकेशन (डीआईएसई) की ओर से जारी किए आंकड़ों से रूबरू करवाना है। इन आंकड़ों की माने तो 2008-09 से 2014-15 के बीच हिंदी माध्यम स्कूलों में नामांकन 25 प्रतिशत बढ़ा है जबकि अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का नामांकन इस दौरान बढ़कर दुगना हो गया है।
इसमें भी विशेष और विचारणीय बात यह है कि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की लोकप्रियता में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हिंदी भाषायी राज्यों में ही स्पष्ट दिखाई दे रही है। आंकड़ों की माने तो देश के दो प्रमुख बड़े राज्यों बिहार में अंग्रेजी भाषी विद्यालयों में नाम दर्ज करवाने वाले बच्चों की संख्या में 47 गुनी बढ़ी है जबकि उ.प्र. में 10 गुनी। दूसरी ओर इन्हीं राज्यों में हिंदी भाषी विद्यालयों में नामांकन क्रमशः 18 प्रतिशत व 11 प्रतिशत बढ़ा है। दूसरे राज्यों की स्थिति में इससे कोई बहुत अलग नहीं कही जा सकती।
समग्र रूप से देखे तो आज पूरे भारत में हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 10 करोड़ 40 लाख है जबकि अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या केवल 2 करोड़ 90 लाख। हिंदी भाषी विद्यालयों के बढ़े हुए अंाकड़ों से आप गलत अंदाजा न लगाए। इनमें पढ़ने वाले बच्चों में से अधिकांश के अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर हैं जोकि अंग्रेजी स्कूलों के खर्च को नहीं उठा पा रहे।
यह स्थिति समाज को दो वर्गों में विभाजित कर रही है जोकि धर्म, जाति, संप्रदाय आदि के विभाजन से भी खतरनाक स्थिति है। इसपर सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

प्रतिष्ठित कंपनियां भी अब अपनाने लगी हैं विज्ञापनों में हिंदी को  

दूसरी ओर, इस स्थिति को भी नहीं नकारा जा सकता है कि आज प्रतिष्ठित कंपनियां भी प्रसार-प्रसार में हिंदी का उपयोग करने लगी है यानि उन्होंने हिंदी की उपयोगिता स्वीकार लिया है।
इसका प्रमाण हैः
1. Fashion101.in  को देश की पहली व एकमात्र बहुभाषी फैशन वेबसाइट के रूप में लॉन्च किया गया यानि यह अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और गुजराती में भी उपलब्ध होगी।
2. Diesel ने अपने नये विज्ञापन में ग्राहकों को हिंदी में संबोधित किया है। शायद यह पहला महंगा ब्रैंड है जिसने हिंदी पाठकों से हिंदी में संवाद कायम किया है। मजे की बात यह है कि इस इटैलियन फैशन कंपनी ने विज्ञापन में उन्हीं चित्रों व ग्राफिक्स का उपयोग किया है जिनका इस्तेमाल इनके इंटरनैशनल कैंप में हुआ हैं। इससे संदेश आता है कि हम मात्र उनके लिए नहीं हैं जो अंग्रेजी बोलते और जानते हैं।
3. Montblanc द्वारा अनेक बार स्थानीय भारतीय भाषाओं में निमंत्रण पत्र प्रकाशित किया जा चुका है।
कई बुद्धिजीवियों की इसके पीछे सोच हो सकती है कि भाषा एक बहुत ही अजीब चीज होती है जोकि मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि दिमागी, सांस्कृतिक व भावनात्मक रूप से भी हमें प्रभावित करती है। नहीं विश्वास तो आप किसी द्विभाषिय से यह जान सकते हैं कि किसी हिंदी चुटकुले को अग्रेजी में अनुवादित करना कितना मुश्किल होता है। कुछ शब्द केवल सुने नहीं, अनुभव किए जाते हैं व कुछ विचार सिर्फ समझे जा सकते हैं, समझाए नहीं जा सकते।
पर चाहे, जो, कोई कुछ भी कहे पर हां यह मानने लायक बात है कि एक नई शुरूआत हो चुकी है भविष्य में यह एक बड़े रूप में हमारे सामने आ सकती हैं।