वर्गीज़ कुरियन के 94वें जन्मदिवस एवं मिल्क डे पर विशेष
दूध उत्पादन में तो हम बन गए नंबर वन
अब बारी दूसरे डेरी उत्पादों से आमदनी में बाजी मारने की
धरती पर अमृत यानि दूध प्रकृति का सर्वाधिक पौष्टिक आहार है। दूध बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक हमारी पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। ‘जीवेम शरदः शतम’ यानि दूध शक्ति का द्योतक है। महर्षि चरक के अनुसार ‘पयः पश्यं यथा मृतमः’ अर्थात् दूध तो अमृत के समान पथ्य है। आयुर्वेद में दूध को ‘सर्वोषधिसार’ यानि समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है, जो असाध्य रोगों को भी दूर करने में सक्षम है।
आज हम दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हमारे देश में दूध की बड़ी किल्लत थी। ऐसे में मिल्कमैन ऑफ इंडिया डा. वर्गीज़ कुरियन की दिखाई दिशा पर चलकर हमारे किसान ने श्वेत क्रांति को जन्म दिया जिसके बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राष्ट्र बन गया और आज तक कायम है। आज श्वेत क्रांति जनक व अमूल संस्थापक वर्गीज़ कुरियन की 94वीं जयंती है। इस अवसर पर समस्त भारत देश के साथ-साथ सर्च इंजन गूगल ने भी अपने डूडल से डाॅ. कुरियन को श्रद्धांजलि दी है।
डाॅ. कुरियन के दिखाए मार्ग पर चलकर आज पशुपालकों ने न केवल अपनी स्थिति को सुधारा है बल्कि हमारे देश भारत को दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर भी पहुंचाया है। यह दूसरी है कि आज भी प्रतिव्यक्ति दुग्ध उपलब्धता लगभग 290 ग्राम ही है। बहराल हमारा उद्देश्य यहां इस पर चर्चा करना नहीं है। आज हम चर्चा करना चाहते हैं किसान को दूध के अतिरिक्त डेरी से मिलने वाले पदार्थों जैसे गोबर, गोमूत्र आदि की जिसकी ओर उसका कोई ध्यान नहीं जाता और जोकि व्यर्थ चले जाते हैं। पशुपालक यदि इनका सही उपयोग करे तो वह बड़ा आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।
चलिए इसे एक जीते जागते उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। पंजाब और हरियाणा राज्य में विदेशी नस्लों की गायों पर खड़े किए गए लगभग 10 हजार करोड़ डेरी व्यवसाय से हटकर लाडवा (हिसार, हरियाणा) के लोगों ने एक ऐसा फैसला किया जोकि अनेक लोगों के मिसाल साबित हो सकता है।
लाडवा के लोगों ने कमाई के लिए उन गायों का डेरी फार्म चलाने की सोची जिनको दूध न देने या बीमारी होने से लावारिस छोड़ दिया गया था। एक-एक करके ऐसी 1100 गायों को गौशाला में लाया गया। उनका इलाज किया गया। आश्चर्यचकित करने वाली बात तो यह है कि आज बिना दूध देने वाली गायों की इस गौशाला का वार्षिक लाभ 3.50 करोड़ रुपए को भी पार कर चुका है और पूरे व्यापार का फोकस गोबर व गोमूत्र पर है।
अगर हम इस गौशाला की आर्थिक पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि गौशाला लाडवा की एक गाय औसतन दस किलो गोबर और दस लीटर मूत्र देती है। दस किलो गोबर से बनी सात किलो खाद 35 रुपए में बिक जाती है। दस लीटर गौमूत्र से अलग-अलग तरह के दस लीटर उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं जिन्हें सौ रुपए प्रति लीटर की दर से बेच दिया जाता है। इस प्रकार गौशाला से प्रतिदिन ग्यारह लाख से अधिक की आमदनी होती है। इसके अलावा, लावारिस गाय को खरीदना भी नहीं पड़ता। जहां तक गाय के चारे का प्रश्न है तो उसपर 50 रुपए/प्रति गाय का खर्च आता है।
आनंदजी की बात से आप भी जरूरत सहमत होंगे। चूंकि उर्वरक/कीटनाशक जहां एक ओर कहीं न कहीं किसान की खुदकुशी के उत्तरदायी है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण व पृथ्वी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे बढ़कर इनके उत्पादों का हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इसी वजह से ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग जहां निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं इनका मुंह मांगा दाम भी मिलता हैं। गोबर की जैविक खाद ही इसका एकमात्र समाधान है।
तो अब समय आ गया है कि पशुपालकों को दूध के साथ-साथ पीले सोने यानि गोबर और गोमूत्र पर भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि किसान की आमदनी बढ़ सके व पर्यावरण भी सुरक्षित रह सकेे।