ये हम कहां जा रहे हैं और वो कहां?
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क्या हिंदुस्तान की मात्र जुबान ही बनकर रह जाएगी-हिंदी
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र का सपना मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत और देश व उससे जुड़ी चीजों के विकास का सपना क्या पूरा हो पाएंगा? इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य के गर्भ में हैं जोकि समय के साथ-साथ स्वयं ही सामने आ जाएगा। खैर हमारा मकसद यहां पर इन चीजों पर चर्चा करना भी नहीं है। हमारा प्रयास है दो विशेष बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने का। जहां एक ओर हम भारतीय अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं वहीं प्रतिष्ठित एवं बड़ी कंपनियों को अब हिंदी की शरण लेनी पड़ रही है।
जी हां। शायद आपको हमारी बात पर विश्वास न हो लेकिन यह सत्य है? यह हमारा कहना नहीं है यह आंकड़े और वर्तमान गतिविधियां प्रदर्शित कर रही हैं। चलिए आपको इनसे रूबरू करवाते हैं।
क्या अंग्रेजी की ओर हमारा झुकाव इतना हैः
देश की आजादी के बाद से ही हिंदी पर जोर दिया जाता रहा है। समाज ने इसे कितना अपनाया यह एक चर्चा का विषय है। हमारा उद्देश्य यहां इसपर विचार-विमर्श करना नहीं बल्कि आपका इस सच्चाई से साक्षात्कार करवाना है कि देश के स्कूलों से मिले ब्यौरों के आधार पर नैशनल युनिवर्सिटी आॅफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के डिस्ट्रिक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम फाॅर एजुकेशन (डीआईएसई) की ओर से जारी किए आंकड़ों से रूबरू करवाना है। इन आंकड़ों की माने तो 2008-09 से 2014-15 के बीच हिंदी माध्यम स्कूलों में नामांकन 25 प्रतिशत बढ़ा है जबकि अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का नामांकन इस दौरान बढ़कर दुगना हो गया है।इसमें भी विशेष और विचारणीय बात यह है कि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की लोकप्रियता में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हिंदी भाषायी राज्यों में ही स्पष्ट दिखाई दे रही है। आंकड़ों की माने तो देश के दो प्रमुख बड़े राज्यों बिहार में अंग्रेजी भाषी विद्यालयों में नाम दर्ज करवाने वाले बच्चों की संख्या में 47 गुनी बढ़ी है जबकि उ.प्र. में 10 गुनी। दूसरी ओर इन्हीं राज्यों में हिंदी भाषी विद्यालयों में नामांकन क्रमशः 18 प्रतिशत व 11 प्रतिशत बढ़ा है। दूसरे राज्यों की स्थिति में इससे कोई बहुत अलग नहीं कही जा सकती।
समग्र रूप से देखे तो आज पूरे भारत में हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 10 करोड़ 40 लाख है जबकि अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या केवल 2 करोड़ 90 लाख। हिंदी भाषी विद्यालयों के बढ़े हुए अंाकड़ों से आप गलत अंदाजा न लगाए। इनमें पढ़ने वाले बच्चों में से अधिकांश के अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर हैं जोकि अंग्रेजी स्कूलों के खर्च को नहीं उठा पा रहे।
प्रतिष्ठित कंपनियां भी अब अपनाने लगी हैं विज्ञापनों में हिंदी को
दूसरी ओर, इस स्थिति को भी नहीं नकारा जा सकता है कि आज प्रतिष्ठित कंपनियां भी प्रसार-प्रसार में हिंदी का उपयोग करने लगी है यानि उन्होंने हिंदी की उपयोगिता स्वीकार लिया है।इसका प्रमाण हैः
1. Fashion101.in को देश की पहली व एकमात्र बहुभाषी फैशन वेबसाइट के रूप में लॉन्च किया गया यानि यह अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और गुजराती में भी उपलब्ध होगी।
2. Diesel ने अपने नये विज्ञापन में ग्राहकों को हिंदी में संबोधित किया है। शायद यह पहला महंगा ब्रैंड है जिसने हिंदी पाठकों से हिंदी में संवाद कायम किया है। मजे की बात यह है कि इस इटैलियन फैशन कंपनी ने विज्ञापन में उन्हीं चित्रों व ग्राफिक्स का उपयोग किया है जिनका इस्तेमाल इनके इंटरनैशनल कैंप में हुआ हैं। इससे संदेश आता है कि हम मात्र उनके लिए नहीं हैं जो अंग्रेजी बोलते और जानते हैं।
3. Montblanc द्वारा अनेक बार स्थानीय भारतीय भाषाओं में निमंत्रण पत्र प्रकाशित किया जा चुका है।
कई बुद्धिजीवियों की इसके पीछे सोच हो सकती है कि भाषा एक बहुत ही अजीब चीज होती है जोकि मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि दिमागी, सांस्कृतिक व भावनात्मक रूप से भी हमें प्रभावित करती है। नहीं विश्वास तो आप किसी द्विभाषिय से यह जान सकते हैं कि किसी हिंदी चुटकुले को अग्रेजी में अनुवादित करना कितना मुश्किल होता है। कुछ शब्द केवल सुने नहीं, अनुभव किए जाते हैं व कुछ विचार सिर्फ समझे जा सकते हैं, समझाए नहीं जा सकते।
पर चाहे, जो, कोई कुछ भी कहे पर हां यह मानने लायक बात है कि एक नई शुरूआत हो चुकी है भविष्य में यह एक बड़े रूप में हमारे सामने आ सकती हैं।
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