दवा ही कहीं बीमारी
का सबब न बन जाए
आज डेंगू ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना रखी है। यह एक भयानक बीमारी है जिसमें मरीज की मौत तक हो सकती है। वास्तव में डेंगू एक रक्तस्रावी बुखार है। इसका पता सबसे पहले 1950 में फिलीपींस व थाईलैंड में चला। आज भारत और अनेक एशियाई-लैटिन अमेरिकी देशों में डेंगू के मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
तेज सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, जी घबराना, उल्टी के साथ 40 डिग्री सेंटीग्रेड बुखार आदि डेंगू के लक्षणों में शामिल हैं। संक्रमित मच्छर के काटने के 4-10 दिन में यह लक्षण दिख सकते हैं।
डेंगू का समय पर इलाज न करने पर यह जानलेवा भी हो सकता। चूंकि प्लाज्मा लीक, शरीर में जल जमने, सांस में समस्या, आंतरिक रक्तस्राव से रोगी की मृत्यु भी संभव है।
हाल के दशक में डेंगू के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के हिसाब से ढाई अरब लोगों को डेंगू का खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो प्रतिवर्ष इस रोग के मामले पांच से दस करोड़ के बीच पहुंच सकते हैं।
एशिया की सबसे बड़ी पुणे बेस्ड वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट में एक ऐसी बायोलॉजिक ड्रग विकसित की गई है जिससे चारों तरह के डेंगू वायरस को नष्ट किया जा सकेगा। इतना ही नहीं, ये कंपनी मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टैक्नोलोजी में फास्ट एंड ट्रैक अप्रूवल के लिए भी आवेदन कर चुकी है जिससे दवा के इस्तेमाल से लोगों को डेंगू से बचाया जा सके।
डेंगू के इलाज में रोगी को बकरी का दूध देने की भी बात कही जाती है। निश्चित रूप से सही तरह से इसका उपयोग लाभ दे सकता है तो वहीं दूसरी ओर इससे नुकसान भी हो सकता है। डाॅ. अतुल गोगिया (गंगाराम अस्पताल) के अनुसार, अभी डेंगू तेजी से फैल रहा है और लोग बकरी का दूध पी रहे हैं। इंफेक्टेड पशु का कच्चा दूध् पीने से लोग बीमार हो सकते हैं। बकरी के दूध के लाभप्रद होने का कोई साइंटिफिक प्रूफ नहीं है।
बकरी के संक्रमित दूध के सेवन से रोगी को बैक पेन और बुखार हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बीमारी ‘‘ब्रूसेलोसिस’’ का पता लगाना भी डाॅक्टरों के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं होता। डाॅक्टर प्रत्युषकुमार (गंगाराम अस्पताल) की माने तो इस बीमारी की दवा तो है लेकिन इसे डायग्नोस करना सरल नहीं है। ग्रामीण इलाकों में ऐसी समस्याएं आम है। डाॅ. अतुल गोगिया (गंगाराम अस्पताल) की माने तो एक मरीज नैनीताल से आया था। वह ऐनिमल फार्म में काम करते थे, जानवरों के बीच रहने से उन्हें यह बीमारी हो गई थी।
ब्रूसेलोसिस एक बैक्टीरिया होता है जोकि गाय, भैंस, बकरी, भेड़ को इंफेक्ट करता है। यह रोग इन पशुओं के भोजन द्वारा उनके शरीर में पहुंचता है जोकि बाद में दूध के उपयोग अथवा पशु के मूल-मूत्रों के संपर्क से आदमी में पहुंच जाता है। इसके लक्षण होते हैं जल्दी थक जाना, हड्डियों और जोड़ों में दर्द व बुखार होना।
तो सतर्क हो जाइए क्योंकि कहीं दवा ही आपकी बीमारी को खत्म करने की बजाय दूसरी बीमारी पैदा करने का सबब न बन जाए।
बचाव के कुछ उपायः
- रोगी का तुरंत उपचार शुरू करें। डाॅक्टर की सलाह पर तेज बुखार में पेरासिटामाल दे सकते हैं।
- दर्द निवारक दवाई एस्प्रिन या डायक्लोफेनिक न लें।
- मरीज को खुली हवा में रखे, पर्याप्त मात्रा में भोजन, पानी, नींबू पानी दें ताकि कमजोरी न हो।
- फ्लू हवा से फैलता है इसलिए रोगी से 10 फुट की दूरी रखें।
- अधिक रोगी वाली जगहों जैसे अस्पताल आदि में फेस मॉस्क पहनें।
- घर, आफिस आदि में मच्छर न होने दें व मच्छरनाशक दवाइयों का छिड़काव करें।
- शरीर को पूरी तरह से ढककर रखें।
- पानी की टंकियों को ढककर रखें, उनकी नियमित सफाई करें, पानी इकट्ठा न होने से, फव्वारों को सप्ताह में एक दिन सुखाएं, कूड़ा-करकट सुनिश्चित जगह पर ढंका हुआ हो।