ओस की बूंदों से सिंचाई
दीवारों पर गेहूं और धान की खेती
प्रतिकूल मौसम में भी हर तरह की फसल लेना
यह सब संभव कर एक किसान कर रहा है 1 करोड़ की आमदनी
कभी घर खर्च चलाना था मुश्किल
खेती को घाटे का सौदा करने वालों लोगों की बोलती बंद करती अनेक लोगों की मिसालें हम अपने इस ब्लाॅग में समय-समय पर प्रकाशित करते रहे हैं। इसी श्रृंखला के अंतर्गत आज हम आपको एक ऐसे राज्य के किसान से मिलवाने जा रहे हैं। जहां पर पानी की भारी किल्लत है। जहां तक बरसात की बात करें तो वहां उसका कोई ठोर-ठिकाना नहीं होता। ऐसे में, एक किसान ने अथक परिश्रम, लगन, आधुनिक तकनीकों और वैज्ञानिक तौर-तरीकों को अपनाकर ऐसी कमाई की ऐसी फसल तैयार की कि सारे भारतवर्ष में उसके बारे में चर्चे होने लगे।
जी हां! हम बात कर रहे हैं, राजस्थान के जयपुर से लगभग 35 कि.मी. दूर स्थित गांव गुड़ा कुमावतान के किसान खेमा राम (45 वर्ष) की। नौवीं पास खेमाराम की स्थिति आज से पांच वर्ष पूर्व दूसरें किसानों की ही तरह थी। आज से 15 साल पहले उनके पिता कर्ज से डूबे थे। ज्यादा पढ़ाई न कर पाने की वजह से परिवार के गुजर-बसर के लिए इनका खेती करना ही आमदनी का मुख्य जरिया था। ये खेती में ही बदलाव चाहते थे, शुरुआत इन्होने ड्रिप इरीगेशन से की थी। इजरायल जाने के बाद ये वहां का माडल अपनाना चाहते थे।
खेमा राम आज सारे देश के किसानों के लिए एक आदर्श बन चुके हैं। आज भी प्रतिदिन दूर-दूर से लोग यह देखने आते हैं कि कैसे ओस की बूंदों से सिंचाई हो सकती है?
कैसे दीवारों पर गेहूं और धान की खेती की जा सकती है? इतना ही नहीं कैसे हम मौसम को धता बता कर सफलतापूर्वक उपज ले सकते हैं? सबसे हैरान करने वाली बात तो यह कि पांच वर्ष पहले घर का खर्चा चलाने से परेशान खेमा रामजी का आज वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ जा पहुंचा है, जोकि निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।
आप भी यह सब पढ़कर सोच रहे होंगे कि आखिर खेमाराम जी ने कौन सी तकनीक को अपनाया कि पांच वर्षों में उनके वारे-न्यारे हो गए। चलिए आपको बताते हैं कि इस कृषि तकनीक के बारे में। असल में हुआ यूं कि खेमा राम ने वर्ष 2012 में सरकार के सहयोग से इजरायल की यात्रा की। कृषि क्षेत्र में इजरायल विश्व का सबसे हाईटेक देश माना जाता है। वहां रेगिस्तान में ओस से सिंचाई होती है, दीवारों पर गेहूं, धान उगाए जाते हैं, भारत के लाखों लोगों के लिए ये एक सपना ही है। इजरायल से सिंचाई की आधुनिक तकनीकों और सरंक्षित खेती (पॉली हाउस) में फसलें उगाने की जानकारी मिली। वापस आने के बाद इस तर्ज पर खेमा राम ने बिना देर लगाए इस तकनीक को व्यावहारिक धरातल पर उतारना शुरू कर दिया। जैसा कि स्वाभाविक रूप से सभी के साथ होता है वैसे ही आरंभ में खेमा राम जी के सामने भी अनेक परेशानियां आईं परंतु उन्होंने हार न मानी। कुछ देसी तकनीक तो कुछ विदेशी तकनीक को मिलाकर कर सिंचाई का सिस्टम व पॉली हाउस तैयार कर लिया, जिसे साधारणतः हम हिंदुस्तानी जुगाड़ का नाम देते हैं।
आरंभ में खेमा राम जी ने 9 लाख रुपए बैंक से ऋण लेकर और शेष सरकार से अनुदान प्राप्त कर चार हजार वर्गमीटर क्षेत्र में पॉली हाउस लगाया। इसमें सबसे पहले उन्होंने खीरे की फसल की। पहली बार में ही उन्होंने लगभग 11 लाख रुपए का खीरा बेचा। सबसे पहले उन्होंने बैंक कर्ज चुकाया। आज उनके पास तीस हजार वर्गमीटर क्षेत्र में पॉली हाउस हैं, जिसमें बीस हजार वर्ग मीटर पर पॉली हाउस उन्होंने सरकारी सहायता से तो दस हजार वर्गमीटर उन्होंने अपने खर्च से बनवाये हैं। पॉली हाउस की छत पर माइक्रो स्प्रिंकलर लगे हैं, जोकि भीतर तापमान कम रखते हैं। दस फीट पर लगे फव्वारे फसल में नमी बनाए रखते हैं।
खेमाराम ने अपनी खेती में 2006-07 से ड्रिप इरीगेशन 18 बीघा खेती में लगा लिया था। इससे फसल को जरूरत के हिसाब से पानी मिलता है और लागत कम आती है। ड्रिप इरीगेशन से खेती करने की वजह से जयपुर जिले से इन्हें ही सरकारी खर्चे पर इजरायल जाने का मौका मिला था जहाँ से ये खेती की नई तकनीक सीख आयें हैं।
इतना ही नहीं खेमाराम आज कोई भी मौसम में कोई भी फसल लगा सकते हैं। चूंकि उनके पास दो तालाब और चार हजार वर्ग मीटर में फैन पैड है। साथ-साथ ही साथ उनके पास 40 किलोवाट का सोलर पैनल भी है। खेमा राम चैधरी बताते हैं कि सोलर पैनल लगाने से फसल को समय से पानी मिल पाता है, फैन पैड भी इसी की मदद से चलता है, इसे लगाने में पैसा तो एक बार खर्च हुआ ही है लेकिन पैदावार भी कई गुना बढ़ी है जिससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है, सोलर पैनल से हम बिजली कटौती को मात दे रहे हैं।
फैन पैड (वातानुकूलित) कूलिंग सिस्टम है, जिसकी सहायता से किसी भी ऋतु में कोई भी उपज ली जा सकती है। यद्यपि इसकी लागत अत्यधिक है। 80 लाख की लागत में 10 हजार वर्गमीटर में फैन पैड लगाने वाले खेमाराम ने बताया, “पूरे साल इसकी आक्सीजन में जिस तापमान पर जो फसल लेना चाहें ले सकते हैं, मै खरबूजा और खीरा ही लेता हूँ, इसमे लागत ज्यादा आती है लेकिन मुनाफा भी चार गुना होता है। डेढ़ महीने बाद इस खेत से खीरा निकलने लगेगा, जब खरबूजा कहीं नहीं उगता उस समय फैन पैड में इसकी अच्छी उपज और अच्छा भाव ले लेते हैं।...खीरा और खरबूजा का बहुत अच्छा मुनाफा मिलता है, इसमें एक तरफ 23 पंखे लगें हैं दूसरी तरफ फव्वारे से पानी चलता रहता है ,गर्मी में जब तापमान ज्यादा रहता है तो सोलर से ये पंखे चलते हैं, फसल की जरूरत के अनुसार वातावरण मिलता है, जिससे पैदावार अच्छी होती है।...ड्रिप से सिंचाई में बहुत पैसा बच जाता है और मल्च पद्धति से फसल मौसम की मार, खरपतवार से बच जाती है जिससे अच्छी पैदावार होती है। तरबूज, ककड़ी, टिंडे और फूलों की खेती में अच्छा मुनाफा है। सरकार इसमे अच्छी सब्सिडी देती है, एक बार लागत लगाने के बाद इससे अच्छी उपज ली जा सकती है।”
आज इस क्षेत्र में 200 से अधिक पॉली हाउस हैं। खेमा राम जी की माने तो यहां के किसान अब बहुत अधिक जागरूक हो चुके हैं, फिर भी यदि किसानों को सरकार की सहायता मिले तो इस काम को और आगे बढ़ाया जा सकता है। पॉलीहाउस जैसा सिस्टम बनाने में सरकारी अनुदान बहुत जरूरी है।
खेमाराम चैधरी जी के देखादेखी आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 200 पॉली हाउस बन चुके हैं। जहां किसान संरक्षित खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। पॉली हाउस लगे इस पूरे क्षेत्र को लोग अब मिनी इजरायल के नाम से जाना जाता हैं।
खेमाराम की माने तो “आज से पांच साल पहले हमारे पास एक रुपए भी जमा पूंजी नहीं थी, इस खेती से परिवार का साल भर खर्चा निकालना ही मुश्किल पड़ता था। हर समय खेती घाटे का सौदा लगती थी, लेकिन जबसे मैं इजरायल से वापस आया और अपनी खेती में नये तौर-तरीके अपनाए, तबसे मुझे लगता है खेती मुनाफे का सौदा है, आज तीन हेक्टयर जमीन से ही सालाना एक करोड़ का टर्नओवर निकल आता है।...अगर किसान को कृषि के नये तौर तरीके पता हों और किसान मेहनत कर ले जाए तो उसकी आय 2019 में दोगुनी नहीं बल्कि दस गुनी बढ़ जाएगी।”
खेमा राम चैधरी को खरबूजा की बेहतर पैदावार के लिए वर्ष 2015 में
महिंद्रा की तरफ से नेशनल अवार्ड केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह द्वारा दिल्ली में दिया गया। इन्हें कृषि विभाग की तरफ से सोलर पैनल लगाने के लिए सम्मानित किया जा चुका है।