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Tuesday 30 January 2018
Monday 29 January 2018
विकास से रूक रही
पर्यावरण संरक्षण की राह
मौसम का रेकॉर्ड रखने की व्यवस्था 1901 में शुरू हुई। इसके बाद से यह सबसे सूखी जनवरी सिद्ध होती दिख रही है। 24 जनवरी तक देश में औसत मात्र 2.2 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, जबकि जनवरी माह में भारत में सामान्य तौर पर 19.2 मिमी बारिश का औसत रहा है। इससे पहले वर्ष 2007 में केवल 2.8 मिमी बारिश रेकॉर्ड हुई थी। महत्ववूर्ण बात यह है कि जनवरी महीने में होने वाली बारिश न सिर्फ रबी की फसल के लिए उपयोगी होती है, बल्कि जल स्रोतों के रिचार्ज, ग्राउंडवॉटर और पर्वतीय ग्लेशियरों के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। साथ ही शीत ऋतु की वर्षा प्रदूषण को कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाती है। चूंकि सर्दियों में पारा गिरने और हवा की गति कम होने से प्रदूषण स्तर बढ़ता है। ऐसे में बारिश का न होना समस्या को गंभीर बना सकता है।
इतना ही नहीं हाल ही में देश की पर्यावरण स्थिति पर कड़ा प्रहार किया गया है एन्वायरनमेंटल परफॉर्मेंस इंडेक्स (ईपीआई) की ताजा रपट में। दावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की बैठक में जारी की हुई इस वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत इस मामले में संसार के चार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में खड़ा है। 180 देशों की इस सूची में भारत को 177 वां स्थान मिल पाया है। विशेष तथ्य यह है कि भारत की यह गिरावट बिल्कुल नई है। जहां दो वर्ष पूर्व हम इसी सूची में 141वें स्थान पर थे। दो वर्षों में 36 अंक नीचे लुढ़कना सहज और स्वाभाविक गिरावट को साबित नहीं करता।
विचार करने योग्य बात है कि इस दो वर्षों में ऐसा क्या हुआ है, जिससे हमारे देश के पर्यावरण पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा। सबसे पहले तो इसकी जड़ में पर्यावरण मंत्रालय की कार्यशैली में हुआ बदलाव है। यूपीए सरकार में पर्यावरण मंत्रालय बेहद सक्रिय था। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से किसी औद्योगिक प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी मिलना आसान नहीं था। अक्सर शिकायतें की जाती थीं कि पर्यावरण मंत्रालय विकास की गति को अवरूद्ध कर रहा है। इसे मंत्रियों की मनमानी व संतरियों के भ्रष्ट से भी जोड़ दिया जाता था। वर्तमान सरकार बदलने के बाद विकास को गति दी गई। प्रक्रिया में बदलाव हुआ। पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति एक औपचारिकता बनकर रह गई।
निश्चित रूप से विकासशील देशों की श्रेणी में शामिल हमारे देश में तीव्र एवं रोजगारपरक विकास की जरूरत हैं, लेकिन प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुंचाए बिना। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण को विशेष तरजीह देने की जरूरत है। हमें प्राकृतिक संपदा को संजोकर विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाना है। हम जर्मनी, जापान, कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से यह गुर सीख सकते हैं कि कैसे पर्यावरण और विकास दोनों को साथ-साथ आगे बढ़ाया जा सकता हैं। इससे सीख लेकर ही चीन भी अब इसी राह पर आगे बढ़ रहा है। अब यह हम पर है कि इस चुनौती को स्वीकार करते हैं या इससे घबराकर निगराहे फेरने को ही अपनी उन्नति मानते हैं।
इकोनॉमिक सर्वे 2018
- मौसम की मार कर सकती है किसानों की आय 25 प्रतिशत तक कम
- पशुधन से होने वाली आय में 15-18 फीसदी की कमी
मौसम के रहमो कर्म के लिए बार-बार आसमान की ओर ताकने वाले किसान के अरमानों पर इस बार फिर से मौसम की मार पड़ सकती है। ऐसा हमारा कहना नहीं है कि यह बात सामने आई है इकोनॉमिक सर्वे 2017-18 में। सरकार द्वारा 29 जनवरी 2018 को संसद के बजट सत्र के पहले दिन इकोनॉमिक सर्वे पेश किया गया। इस बार इकोनॉमिक सर्वे में कृषि पर विशेष अध्याय रखा गया है, जोकि पिछली बार नहीं था। सर्वे में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से मध्यावधि में फार्म इनकम 20-25 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
सर्वे में आगे कहा गया है कि वर्ष 2017-18 में एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ 2.1 प्रतिशत रह सकती है। यह वर्ष 2016-17 की वृद्धि से 2.8 प्रतिशत कम है। पिछली बार कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.9 फीसदी रही थी। 22 सितंबर 2017 को जारी हुए फर्स्ट एडवांस एस्टीमेट के अनुसार, इस बार खरीफ फसल उत्पादन 13.47 करोड़ टन रहने का अंदेशा है। यह 2016-17 की तुलना में 39 लाख टन कम है। वर्ष 2016-17 में खरीफ उत्पादन 13.85 करोड़ टन था। किसानों के लिए जारी अनेक स्कीमों में लोन के ब्याज में राहत हेतु 20339 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं। इस बार सस्ता संस्थागत ऋण मिलने से किसान उधारी के लिए गैर संस्थागत स्रोतों से उधार नहीं लेंगे, जहां उन्हें भारी ब्याज चुकाना पड़ता है।
बिगड़ती स्थिति पर काबू पाने के लिए सिंचाई सुविधाओं में ‘नाटकीय’ ढंग से इजाफा करना चाहिए। जहां तक सरकार की बात है तो किसानों की आय को दुगुना करने हेतु पहले से ही मजबूती से सिंचाई की व्यवस्था दुरुस्त करने सहित जरूरी कदम उठाएं जा रहे हैं और उनकी सफलता का आंकलन करने पर भी बल दिया जा रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि किसानों की आय बढ़ाने और एग्रीकल्चर सेक्टर में सुधार हेतु जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर ही एक तंत्र बनाया जाए। चूंकि मौसम की मार का प्रभाव भारतीय कृषि पर पड़ना आरंभ हो चुका है, जिससे मिड टर्म में फार्म इनकम पर 20-25 प्रतिशत तक असर पड़ सकता है।
प्रकृति के प्रभाव से पशुधन क्षेत्र भी अछूता नहीं रहेगा। इस क्षेत्र में भी पशुधन से होने वाली आय में 15 -18 प्रतिशत की कमी हो सकती है। कृषि की वर्तमान आय को देखें को एक औसत किसान को इससे लगभग 3600/- रुपए का नुकसान हो सकता है।
आज केवल 45- 50 प्रतिशत खेतों तक ही सिंचाई सुविधा है, बाकी कृषि मानसून का जुआ बनी हुई है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के अनेक क्षेत्रों में मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ी है। ऐसे में, जरूरी हो जाता है कि प्राकृतिक मार और घटते मौजूदा जलस्तर के मद्देनजर सिंचाई सुविधा का विस्तार किया जाए। मोर क्रॉप फॉर एव्री ड्रॉप के अंतर्गत ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंक्लर्स और जल प्रबंधन आज भारतीय कृषि की आवश्यकता बन गया है, जिसे प्राथमिकता देनी होगी।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि पहले की तुलना में आज किसान तेजी से मशीनों को अपना रहे हैं। ट्रैक्टर की खरीद में निरंतर हुई वृद्धि इसका प्रमाण है। यही कारण है कि भारतीय ट्रैक्टर इंडस्ट्री विश्व का सबसे बड़ा उद्योग बन गया है। संसार में बनने वाले ट्रैक्टरों का एक तिहाई भारत में उत्पादन होता है। सर्वेक्षण के अनुसार, रबी फसलों की बुवाई सामान्य ढंग से चल रही है। वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो 19 जनवरी 2018 तक 617.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुआई हुई है। यह सामान्य का 98 फीसदी है।
इससे पूर्व महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में कृषि क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने कहा कि भारत के 82 प्रतिशत गांव अब सड़कों से जुड़ चुके हैं। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2019 तक सभी गांवों को सड़कों से जोड़ा जाए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत 5.71 करोड़ किसानों को शामिल किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि 2022 तक किसानों की आय को दुगुना करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। भारत नेट के अंतर्गत 2,50,000 ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्शन दिया जाएगा। मंडियों को ऑनलाइन जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। सरकार का लक्ष्य किसानों की लागत कम करना है।
Sunday 28 January 2018
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Friday 5 January 2018
Thursday 4 January 2018
आज का विचार
आजकल लोग अपनी कार की सर्विस हर दो या तीन महीने में करा लेते हैं और सर्विस की प्रत्येक तारीख, यानि सर्विस हो चुकी और सर्विस होने वाली तारीख का, पूरा हिसाब किताब रखते हैं परंतु शरीर की सर्विस कब करानी है, इसका कोई ध्यान नहीं है, इसका कोई हिसाब किताब नहीं है, कभी सोचा है आपने ऐसा क्यों होता है?
Wednesday 3 January 2018
Tuesday 2 January 2018
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