Saturday 18 February 2017

नोटबंदी रही बेअसर रिकॉर्ड बना सकता है एफडीआई, 
नौ माह में ढाई लाख करोड़ के पार पहुंचा आंकड़ा


नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभावों को लेकर अर्थशास्त्रियों की राय एवं सुझाव काफी समय से आ रहे हैं। यह बात दूसरी है कि कोई इसके उजले पक्ष को दिखाता रहा है तो कोई श्याम पक्ष को। इन सभी के बीच हाल ही में आ रहे आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो हम देखेगे कि इस वित्त वर्ष में भारत विदेशी निवेश के मामले में नए रिकॉर्ड कायम कर सकता है।
आपको बता दें कि एफडीआई यानि विदेशी निवेश के वैश्विक पक्ष को देखे तो गत वर्ष अच्छा नहीं था। इस दौरान, पूरे विश्व में विदेशी निवेश में लगभग 16 प्रतिशत की कमी आई थी तो वहीं भारत ऐसी स्थिति में भी आर्थिक स्थिरता की ओर बढ़ता दिख रहा है। अप्रैल-दिसंबर में हमारे देश में विदेशी निवेश गत वर्ष की तुलना में 22 फीसदी बढ़कर 35.8 बिलियन डॉलर यानि कि लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है जबकि इस वित्त वर्ष के तीन माह के आंकड़े आने अभी बाकी हैं। सरकार की माने तो इस वित्त वर्ष विदेशी निवेश गत वर्ष के 40 बिलियन डॉलर के आंकडे़ को भी पार करके एक नया रिकॉर्ड बना सकता है।

यदि एफडीआई के आंकड़े में असमावेशित कंपनियों के निवेशों को भी जोड़ दिया जाए तो अभी तक कुल एफडीआई लगभग 48 बिलियन डॉलर पहुंच चुका है। गत वित्त वर्ष यह 55.5 बिलियन डॉलर था। विदेशी निवेश में सबसे बड़ा भाग (18 प्रतिशत) सेवा यानि सर्विस क्षेत्र का है है। साथ ही निर्माण, विकास, टेलिक्युनिकेशन्स, कंप्यूटर हार्डवेयर तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में भी भारी विदेशी निवेश हुआ है। असल में सरकार द्वारा देश की एफडीआई नीतियों में गत दो वर्षों में अनेक उदारवादी कदम उठाए गए हैं जिसके अंतर्गत अनेक क्षेत्रों में ऑटोमैटिक अप्रुवल को शामिल किया गया है। इससे विदेशी निवेश बढ़ा है।
विदेशी निवेश से संबंधित सरकारी एजेंसी इन्वेस्ट इंडिया को लगभग 41 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिले हैं, जिसमें से 2 लाख करोड़ का निवेश पहले ही हो चुका है। देवराज सिंह (निदेशक, टैक्स और रेग्युलेटरी सर्विसेज ) का कहना है कि निवेशकों ने भारत पर अपना विश्वास दिखाया है। 90 फीसदी से अधिक विदेशी निवेश ऑटोमैटिक रूट से आ रहा है जोकि गत दो वर्षों में तेजी से बढ़ा है। 17 फरवरी को डीआईपीपी द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि भारत में एफडीआई के पांच प्रमुख देशों में मॉरिशस, सिंगापुर, जापान, यूके और अमेरिका शामिल हैं।

तीसरी कक्षा की छात्रा ने 
डाबर इंडिया को बताई उसकी गलती


किसी ने सच ही कहा है कि अनुभव एवं शिक्षा तो जरूरी है लेकिन साथ ही तेज दिमाग भी अपना अलग ही महत्व रखता है। ऐसा ही एक मामला हाल ही सामने आया जबकि एक नौ वर्षीय तीसरी कक्षा की छात्रा ने डाबर इंडिया को उसकी कमी से अवगत करवाया। असल में हमसे से कम लोग ही बाजार में उपलब्ध सामान पर लिखी बातों को ध्यान से पढ़ते हैं, अगर पढ़ते भी हैं तो शायद अधिक गहराई से समझने का प्रयास नहीं करते पर सभी ऐसे हो ऐसा नहीं होता।

हाल ही में एक तीसरी कक्षा की छात्रा ने डाबर जूस पीने से इसलिए मना कर दिया चूंकि उसपर केवल एक ही लिंग यानि जेंडर को डिफाइन करने वाला शब्द लिखा हुआ था। जूस पैक पर अंकित टैगलाइन थी, "Something that is good for your child should also make him smile." इसे पढ़कर बच्ची ने अपने पिता से कहा कि मैं इस जूस को इसलिए नहीं पी सकती क्योंकि ये लड़कियों के लिए तो है ही नहीं। ये तो लड़कों के लिए है बस। अंग्रेजी ग्रामर के अनुसार अंग्रेजी में मेल के लिए 'him' का उपयोग होता है और फीमेल के लिए 'her' का।

बच्ची के पिता ने इस बाबत डाबर इंडिया को शिकायती मेल लिखा। कोई उत्तर न आने पर पिता ने वुमन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट मंत्री मेनका गांधी को पत्र लिखा। इसपर मंत्रालय ने डाबर इंडिया से उत्तर मांगा, जिसका जवाब 15 फरवरी 2017 को मिला। डाबर इंडिया की ओर से कहा गया कि हमने 'him' का इस्तेमाल जनरल टर्म में किया था लेकिन अब हम इसे बदलेंगे। टैगलाइन में ये शब्‍द किसी खास जेंडर के लिए नहीं है। इसे गलत समझा जा रहा है। ये जेनरल सेंस में इस्तेमाल किया गया वर्ड है। कंपनी की ओर से कहा गया कि वे इस बात के लिए आवश्यक कदम भी उठाएंगे जिससे कि भविष्‍य में इस तरह की गल‍तफहमी ना हो।

Wednesday 15 February 2017

अमेरिकी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट भारत 
में जान का दुश्मन बनता वायु प्रदूषण


प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही जा रही है। यह बात दूसरी है कि इसको नियंत्रित करने के लिए अनेक तरह के प्रयास किए जा रहे हैं पर यह है कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है। समय-समय पर अनेक देशी-विदेशी संस्थान इस बारे में सर्तक करते हैं। इसी श्रृंखला में गत 14 फरवरी को  प्रतिष्ठित अमेरिकी हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में हिंदुस्तान के वायु प्रदूषण को लेकर बड़ी खतरनाक तस्वीर प्रस्तुत की है। उन्होंने कहा कि हवा में पीएम 2.5 कणों की सीमा से अधिक उपस्थिति होने से वर्ष 2015 में भारत में 11 लाख समय से पहले मौतें हुईं, जोकि इसी कारण चीन में हुई मृत्यु के बिल्कुल बराबर है।

वहीं दूसरी ओर सारे संसार में इस वर्ष 42 लाख लोगों की अकाल मृत्यु हुई थी, जिसमें आधी से भी अधिक यानि 22 लाख मौतें केवल भारत और चीन में हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के शहरी वातावरण में पीएम 2.5 कणों की उपस्थिति में कमी लाने के लिए कठोर कदम उठाए जा चुके हैं, परंतु भारत में तो अनेक मंत्री तक औपाचारिक रूप से बयान देते रहते हैं कि वायु प्रदूषण यहां कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है।

यही कारण है कि संभावना व्यक्त की जा रही है कि भारत जल्द ही वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में चीन को काफी पीछे छोड़ देगा। यही नहीं इस क्षेत्र में संसार का कोई दूसरा देश उसके आस-पास भी दिखाई नहीं देगा। प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारों की आम राय यही रही है कि इसको विकसित राष्ट्र बनाम विकासशील राष्ट्र के भाषणबाजी वाले मुद्दे की तरह ही लिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा चलाया गया स्वच्छ भारत अभियान भी ठोस कचरे की सफाई तक ही सीमित रहा है। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि हम समय रहते चेते नहीं तो वह दिन दूर नहीं कि प्रदूषण का यह जनजाल हमारी सृष्टि के लिए मौत का जन-जाल साबित होगा।

Friday 10 February 2017

अमेरिकी थिंक टैंक की माने तो भारत पांच साल में होगा 
सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था 


अमेरिका के एक प्रमुख खुफिया थिंक टैंक द नैशनल इंटेलिजेंस काउंसिल की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट की माने तो भारत अगले पांच साल में विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। पाकिस्तान भी भारत की आर्थिक ताकत का सामना करने में सक्षम नहीं है, इसलिए वह संतुलन के दिखावे के प्रयास में दूसरे तरीकों को खोजेगा। रिपोर्ट बताती है कि ‘‘भारत की आर्थिक क्षमता से सामना करने में असक्षम पाकिस्तान संतुलन साधने का दिखावा करने हेतु दूसरे रास्तों की खोज करेगा।...चूंकि, चीन की अर्थव्यवस्था नरम पड़ रही है और दूसरी अर्थव्यवस्थाओं का विकास भी मंद पड़ रहा है, ऐसे में भारत अगले पांच सालों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन, असमानता और धार्मिक मसलों से पैदा आंतरिक तनाव की वजह से विकास का विस्तार जटिल हो जाएगा।’’ अमेरिकी खुफिया समुदाय एनआईसी मध्यावधि एवं दीर्घावधि की रणनीतियां बनाती है।

इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि पाकिस्तान अपने लिए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों की खोज करेगा, जिनसे उसे आर्थिक एवं सुरक्षा सहायता मिल सकती है। सहयोगी देश पाकिस्तान को परमाणु शस्त्रागार व आपूर्ति के साधनों का विस्तार कर विश्वसनीय परमाणु प्रतिरोध विकसित करने में भी मदद कर सकते हैं। इनमें युद्ध क्षेत्र के परमाणु हथियारों और समुद्री लड़ाई के विकल्पों को मजबूती प्रदान करना भी शामिल होगा। उग्रवाद पर लगाम लगाने के प्रयास में इस्लामाबाद को कई मोर्चों पर आंतरिक सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही, वहां इन अभियानों में प्रयोग औजारों की निरंतर कमी, वित्तीय साधनों में गिरावट एवं अतिवाद का स्थान कम करने के लिए बदलावों की आवश्यकता पर विचार-विमर्श भी होंगे।

एनआईसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत कर बढ़ती आर्थिक ताकत और इलाके में इसकी हैसियत से समीकरण एवं जटिल हो जाएगा चूंकि नई दिल्ली अपने बढ़ते हितों की सुरक्षा के लिए पेइचिंग, मॉस्को एवं वॉशिंगटन के साथ संबंध का संतुलन साधता रहेगा। यद्यपि, नई दिल्ली दक्षिण एशिया के छोटे देशों को विकास में सहयोग व अपनी अर्थव्यवस्था से संलग्नता बढ़ाकर उनकी आर्थिक हैसियत का लाभ देगा। इस प्रयत्न में स्वयं भारत को इलाके में अपना दबदबा बनाने की कोशिश को बल मिलेगा।

Thursday 9 February 2017

इन छः टाॅप स्कूलों को जानते हैं आप?
भारत के सबसे महंगे स्कूल हैं यह

आप भारत के उन स्कूलों के बारे में क्या जानते हैं जहां विद्यार्थी को पढ़ाई के लिए सबसे अधिक पैसे चुकाने पड़ते हैं? यदि नहीं तो चलिए हमारे साथ हम आपको बताते हैं इन सबसे महंगे स्कूलों के बारे में जोकि फीस, इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नॉलजी आदि के हिसाब से देश के दूसरे स्कूलों से कहीं आगे मिलते हैं।

1. मर्सेडीज बेंज इंटरनैशनल स्कूल, पुणे
फीसः 6 से 16 लाख रुपये (वार्षिक)
इस को-एजुकेशन स्कूल में देश-विदेश के विद्यार्थी पढ़ते हैं।

2. एकोल मांडेल वर्ल्ड स्कूल, मुंबई
फीसः 6 से 11 लाख रुपये (वार्षिक)
अत्याधुनिक तकनीक से लैस मुंबई के इस पहले इंटरनैशनल स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतरीन है। इसमें आॅडिटोरियम, गेम रूम्ज, डांस ऐंड ड्रामा स्टूडियोज, स्विमिंग पूल्ज, विज्ञान लैब और खेल मैदान की सुविधाएं दी गई हैं।

3. वुडस्टॉक स्कूल, मसूरी(उत्तराखंड)
फीसः 8 से 9 लाख रुपये (वार्षिक)
हिमालय की गोद में बसे इस प्राइवेट स्कूल का नजारा बहुत आकर्षक है। यह स्कूल लगभग 250 एकड़ में है। इस स्कूल में लाइब्रेरी, लैबरोटरीज एवं फिटनेस सेंटर भी हैं।

4. दून स्कूल, देहरादून(उत्तराखंड)
फीसः 9 लाख 70 हजार रुपये (वार्षिक)
लड़कों के इस बोर्डिंग स्कूल में आर्ट और मीडिया स्कूल भी हैं। आॅडिटोरियम, फिल्म स्टूडियो आदि सुविधाएं भी हैं। इसमें 13-18 वर्ष तक के लगभग 500 लोग पढ़ते हैं। यह स्कूल ब्रिटिश पब्लिक स्कूल के आधार पर बना है।

5. गुड शेफर्ड स्कूल, ऊटी
फीसः 6 से 11 लाख रुपये तक (वार्षिक)
नीलगिरि पहाड़ी पट्टी में स्थित यह फुल टाइम रेजिडेंशियल स्कूल है जिसका कैंपस 70 एकड़ में फैला है।

6. सिंधिया स्कूल, ग्वालियर
फीसः लगभग 8 लाख रुपये(वार्षिक)
वर्ष 1897 में बने यह बोर्डिंग स्कूल ग्रैंड ग्वालियर किले में स्थित है। इसमें केवल लड़के पढ़ते हैं। यहां सलमान खान, नितिन मुकेश, अनुराग कश्यप आदि सेलेब्रिटीज ने भी पढ़ाई की है।

Friday 3 February 2017

इस हस्ती को नाकामी की मिजी चुनौती पर 
इसने समस्याओं को भी झुकाकर जीत ली मंजिल 


किसी सच ही कहा है कि आदमी गरीब जन्म लेता है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं लेकिन हां अगर वह गरीब मरता है तो इसमें उसकी जरूर कमी है। यह गरीबी और भूख ही तो है जो मनुष्य को हर तरह का संघर्ष करना सिखाती है। आज हम आपको ऐसे  शख्स से मिल रहे हैं जिसे कंपनी तो विरासत में मिली थी पर उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से उसे कई गुना बढ़ाया दिया है। हम बात कर रहे हैं कभी तेल, साबुन आदि चीजें बेचने वाली कंपनी के कर्ताधर्ता और चेयरमैन अजीम प्रेमजी की जिनकी कंपनी आज 1,110 अरब रुपए नेटवर्थ वाली बन चुकी हैं। आज विप्रो विश्व की चिरपरिचत आईटी कंपनी है। विप्रो में अजीम प्रेमजी की शुरुआत अत्यंत कठिन परिस्थितियों में हुई थी। इसे उनके शब्दों में कहे तो ‘‘उन्हें स्वीमिंग पूल में फेंक दिया गया था।’’

प्रेमजी के पिता की इच्छा थी कि वह एजुकेशन पूरी करें। प्रेमजी 1966 में अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग कर रहे थे, लेकिन पिता की अचानक मृत्यु के कारण उन्हें पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापस आना पड़ा था और 21 वर्ष की आयु में उन्होंने विप्रो की बागडोर संभाली। उस समय उन्हें कारोबार की कोई जानकारी नहीं थी। कंपनी संभालने के बाद उन्होंने इसे जाना। कम उम्र और अनुभव की कमी ने इन्वेस्टरों को उनके खिलाफ कर दिया था। वह उनकी योग्यता को लेकर संदेहित थे। इसीलिए प्रेमजी कहते हैं कि यह स्वीमिंग पूल में फेंक दिए जाने जैसा था। ऐसे समय में डूबने से बचने के लिए आपको बहुत जल्दी तैरना सीखना होता है।

अजीम प्रेमजी के पिता मो. हुसैन हशम प्रेमजी द्वारा 29 दिसंबर, 1945 को वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रॉडक्ट्स लि. बनाई गई। बाद में इसमें से वेजिटेबल शब्द को हटा दिया गया। कंपनी संभालने के बाद अजीम प्रेमजी ने कंपनी के नाम को शॉर्ट फॉर्म में विप्रो कर दिया। चेयरमैन बनाने के बाद प्रेमजी को लगा कि शायद वे कंपनी नहीं चला पाएंगे। ऐसे में, प्रेमजी समझ नहीं पा रहे थे कि वे कंपनी चलाएं अथवा किसी अनुभवी को सौंप दें। इसी कशमकश में उन्होंने एक मीटिंग में चेयरमैनशिप छोड़ने का एलान का निश्चय किया। तभी एक शेयर होल्डर के उनकी योग्यता को लेकर सवाल करने पर प्रेमजी को उसकी तीखी बातें चुभ गईं। तब प्रेमजी ने पक्का इरादा किया कि अब तो किसी भी परिस्थिति में कंपनी चलाकर ही दिखाएंगे। इस तरह आलोचना ने उनके जीवन को बदल दिया।

प्रेमजी में पक्का इरादा और मेहनती स्वभाव तो था परंतु बिजनेस का अनुभव नहीं था। बिजनेस के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए अजीम प्रेमजी तब मुंबई के एक प्रतिष्ठित मैनेजमेंट स्कूल के प्रोफेसर के पास गए। प्रेमजी ने उनसे टेक्स्ट बुक्स की लिस्ट मांगी। उसके बाद उन्होंने ढेर सारी पुस्तकें खरीदीं और एक साल में सारी पुस्तकें पढ़ भी लीं। प्रेमजी दिन में बिजनेस संभालते और देर रात जागकर एवं सुबह जल्दी उठकर पुस्तकें पढ़ते थे।

बिजनेस की सभी समस्याएं प्रेमजी अपने तरीके से सुलझाते थे। वे लीड बाय एग्जांपल में विश्वास रखते हैं। विप्रो की अमलनेर (महाराष्ट्र) नामक फैक्टरी एरिया में बहुत गर्मी पड़ती है। गर्मियों के मौसम में सुविधाओं की कमी से काम धीमा हो जाता था, जिससे प्रॉडक्शन घटता था। एक बार अजीम प्रेमजी भी इसी गर्मी में तीन माह अमलनेर रहे। उन्होंने एयर कंडीशनर जैसी कोई सुविधा नहीं ली। सभी लोगों की तरह प्रेमजी भी रहे। इसके बाद कर्मचारियों ने कभी कोई शिकायत नहीं की।

अजीम प्रेमजी देश में कहीं भी हवाई सफर करते हैं, तो इकानॉमी क्लास में ही करते हैं। एक फोरम में भाग लेने प्रेमजी और नारायण मूर्ति पेरिस गए। वहां दोनों थ्री स्टार होटल में ठहरे जबकि फोरम के दूसरे सदस्यों ने फाइव स्टार होटल में रुकना पसंद किया। इतना ही नहीं वहां पर दोनों ने टैक्सी में ही सफर करते थे। प्रेमजी सेकंड हैंड कारें रखते हैं। वे ऑफिस में लोगों को इलेक्ट्रिक स्विच बंद करने की याद भी दिलाते हैं। प्रेमजी के गुजराती परिवार को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में बसने के लिए बुलाया था। जिन्ना ने प्रेमजी के पूर्वज हशम प्रेमजी को पाकिस्तान का वित्त मंत्री बनाने की पेशकश भी की थी पर हशम प्रेमजी ने अपनी जन्मभूमि भारत में ही रहना पसंद किया।

Thursday 2 February 2017

सभी परेशानियों का है एक यही इलाज
फिर क्यों न आजमाएं


आधुनिक युग कड़े श्रम का नहीं वरन् स्‍मार्ट तरीके से काम करने का है। स्‍मार्ट तरीके से काम करना है तो हमारे सामने अनेक परेशानियां आती हैं और समय के साथ-साथ अपने में बदलाव करने होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हों। इसके लिए जरूरी है लाइफस्टाइल में बदलाव लाया जाए। चाहे वह खाने की थाली से शुरू करके प्रातः की नींद में भी बदलाव हो या फिर रोज कसरत करना। इस दिशा में जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते है वैसे-वैसे हम अपने आपको स्वस्थ महसूस करने लगते हैं पर इतना ही काफी नहीं होता हमें शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी स्ट्रांग होना होगा। इसके लिए जरूरी है कि हम तनाव को बढ़ने न दें और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं ताकि बार-बार रोग न पकड़े। इसके लिए आज हम आपको ऐसी चीज बताने जान रहे हैं जोकि आपके लिए रामबाण का कमा करेगी। वह है त्रिफला।
त्रिफला एक आयुर्वेदिक पारंपरिक दवा है जोकि रसायन अथवा कायाकल्‍प के नाम से भी जानी जाती है। यह तीन जड़ी-बूटियों - अमलकी ( एमबलिका ऑफीसीनालिस ), हरीतकी ( टरमिनालिया छेबुला ) और विभीतकी ( टरमिनालिया बेलीरिका ) का मिश्रण है।

आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि त्रिफला एक चमत्‍कारी आयुर्वेदिक दवा है। आयुर्वेदिक डॉक्‍टरों की यह सबसे पंसदीदा दवा है। इसकी सहायता से वह किसी भी रोग के लिए दवाईयां बना सकते है। चरक सहिंता के पहले अध्‍याय में ही त्रिफला के बारे में उल्‍लेख मिलता है। यह मिश्रण किसी भी रोग से लड़ने वाली दवा का निर्माण करती है और यह दवा उस रोग को दूर भगाने की क्षमता रखती है। चलिए जानते हैं इसके फायदों को

1. त्रिफला, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है जिससे शरीर को बीमारियों से लड़ने की क्षमता मिलती है। त्रिफला, शरीर में एंटीबॉडी के उत्‍पादन को बढ़ावा देता है जोकि शरीर में एंटीजन के खिलाफ लड़ते है और बॉडी को बैक्‍टीरिया मुक्‍त रखते है। त्रिफला शरीर में टी- हेल्‍पर कोशिकाओं के उत्‍पादन को भी बढ़ावा देकर शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बना देता है।    
2. त्रिफला में भरपूर एंटी-ऑक्‍सीडेंट होते है जोकि सेल्‍स के मेटाबोल्जिम को नियमित रखते है और उनकी प्रक्रिया को बनाएं रखते है। त्रिफला से उम्र बढ़ाने वाले कारक भी कम होते है, इसी कारण इसके सेवन से उम्र कम दिखती है।

3. पाचन समस्‍याओं को दूर करने में त्रिफला सफल है। हल्‍‍के दस्‍त आने पर ही नहीं बल्कि गैस्‍ट्रो आंत्र पथ में परेशानी होने पर भी त्रिफला खाने से काफी राहत मिलती है। शरीर में जी. आई. ट्रेक्‍ट के पीएच लेवल को भी त्रिफला बनाए रखता है। त्रिफला से शरीर में डीटॉक्‍सीफिकेशन में मदद मिलती है।
4. पेट में वॉर्म/कीड़े या संक्रमण होने पर त्रिफला से राहत मिलती है। शरीर में रिंगवॉर्म या टेपवॉर्म होने पर त्रिफला कारगर है। त्रिफला, शरीर में लाल रक्‍त कोशिकाओं के उत्‍पादन में बढ़ावा देती है जोकि किसी भी संक्रमण से लड़ने में सक्षम होती है।
5. एनीमिया यानि हीमोग्‍लोबिन की मात्रा में आई कमी होने पर त्रिफला का सेवन फायदेमंद होता है। त्रिफला शरीर में रेड ब्‍लड़ सेल्‍स को बढ़ा देता है जिससे शरीर में एनीमिया की दिक्‍कत कम हो जाती है।    
6. मधुमेह के उपचार में त्रिफला काफी प्रभावी है। यह पेन्क्रियाज को उत्‍तेजित करने में मदद करता है जिससे इंसुलिन की मात्रा उत्‍पन्‍न होती है। शरीर में इंसुलिन की उचित मात्रा शर्करा के स्‍तर को बनाएं रखती है।

7. अधिक मोटे लोगों को त्रिफला खाने की सलाह दी जाती है। चूंकि यह शरीर से वसा को कम करता है।
8. त्‍वचा सम्‍बंधी समस्‍या होने पर त्रिफला काफी मददगार होता है। त्रिफला, बॉडी से विषाक्‍त पदार्थो को बाहर निकाल देता है और खून को साफ कर देता है। यह शरीर में किसी प्रकार के संक्रमण को होने से भी रोकता है।    
9. त्रिफला, साइनस और श्वांस रोगों में लाभकारी होता है। इसके सेवन से सांस लेने में होने वाली असुविधा भी दूर हो जाती है और फेफडों में होने वाला संक्रमण भी समाप्‍त हो जाता है।  

10. सिरदर्द की समस्‍या अधिक रहने पर डॉक्‍टर की सलाह से त्रिफला का नियमित सेवन करना चाहिए। सिरदर्द विशेष रूप से मेटाबोलिक गड़बड़ी के कारण होता है। इसके सेवन से जड़ से समस्‍या का निदान होता है।
11. जेएनयू के अध्‍ययन की माने तो त्रिफला से कैंसर का इलाज संभव है। त्रिफला में एंटी-कैंसर गतिविधियां पाई गई है। इसकी मदद से शरीर की कैंसर कोशिकाओं के विकास को कम किया जा सकता है और बीमारी को घटाया जा सकता है।