Tuesday 28 June 2016

गाय को यूं नहीं कहा जाता माता

दूध ही नहीं अब मूत्र से भी मिलेगा सोना
सरकार देगी एक लाख परिवारों को बायोगैस


हमारे देश में वैदिक काल से ही गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक रही है। चूंकि गोधन को मुख्य धन माना जाता था। मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक आहार गाय का दूध ही है। इसमें जीव के लिये उपयोगी ऐसे
संजीवन तत्व है कि इसका सेवन सभी विकारों को दूर रखता है। ऐसी भी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है। इसीलिए गोमाता की पूजा भी की जाती है।

उपर्युक्त बातें कुछ लोग वैज्ञानिक आधार न होने से नहीं मानते थे लेकिन हाल की शोध से यह बात सुदृढ़ हो गई है। इससे पता चला है कि गाय के दूध से ही नहीं पैसा बनाया जा सकता बल्कि उसके मूत्र से सोना भी पैदा किया जा सकता है। यानि अब देशी गाय आपको रातों-रात लखपति बना सकती है। शायद आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा। परंतु वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गोमूत्र में उन्‍हें सोना मिला है।

जूनागढ़ एग्रीकल्‍चर यूनिवर्सिटी (गुजरात) के वैज्ञानिक डॉ. बीए गोलकिया और उनकी टीम ने चार वर्षाें के अनुसंधान के बाद गिर गायों के मूत्र से सोना निकालने का दावा किया है। डॉ. गोलकिया की माने तो अभी तक हमने गोमूत्र में सोने की मौजूदगी और इसके औषधीय गुणों के बारे में हमारे प्राचीन ग्रंथों में सुना था। चूंकि इसे साबित करने का कोई विस्‍तृत वैज्ञानिक विश्‍लेषण नहीं था तो हमने गोमूत्र पर शोध करने का फैसला किया। हमने गि‍र गाय के मूत्र के 400 नमूनों का विश्‍लेषण किया और सोने की मौजूदगी पाई। रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा गोमूत्र से सोना निकाला जा सकता है। शोधकर्ताओं द्वारा भैंस, ऊंट, भेड़ एवं बकरी के मूत्र नमूने भी जांचें गए थे पर उसमें कोई एंटी-बायोटिक तत्‍व नहीं मिला। गोमूत्र में 388 ऐसे औषधीय गुण पाए गए है जिनसे कई बीमारियों को ठीक किया जा सकता है।

रिसर्च के दौरान गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री मेथड का इस्तेमाल कर गिर नस्‍ल की 400 से अधिक गायों के मूत्र की निरंतर जांच हुई जिसमें 3-10 एमजी तक सोना निकाला है। यह सोना 1 लीटर गोमूत्र से निकला है। यह धातु साल्ट के रूप में मिला जोकि पानी घुलनशील है। उत्साहित टीम अब भारत के 39 गायों की दूसरी नस्‍लों के नमूनों का भी वि‍श्‍लेषण करेंगी।

सरकार देंगी खाना पकाने के लिए बायोगैस


वर्ष 2016-17 में एक लाख परिवार को खाना पकाने के लिए सरकार बॉयोगैस उपलब्ध करवाएगी। यह लक्ष्य नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने निर्धारित किया है जिसपर अमल राज्य सरकार करेगी। इससे जहां 21,90000 एलपीजी सिलेंडर की बचत होगी वहीं खेतों के लिए प्रोसेस्ड खाद भी मिलेगी और लगभग 10000 टन यूरिया की बचत होगी। एमएनआरई की माने तो इससे पर्यावरण को 4.5 लाख टन कार्बन डायक्साइड तो 2.5 लाख टन मिथेन की मिलावट से बचाया जा सकेगा।

भोजन तैयार करने के लिए बॉयोगैस के प्रयोग के लिए एमएनआईई एनबीएमएमपी (नेशनल बॉयोगैस एंड मैन्योर मैनेजमेंट प्रोग्राम) कार्यक्रम चला रहा है जिसका उद्देश्य खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन और खेतों के लिए नाइट्रोजन, फॉसफोरस व पोटाशियम की उच्च मात्रा वाली आर्गेनिक खाद उपलब्ध कराना है। साथ ही इससे ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी चुनने व गोबर के उपले बनाने से मुक्ति मिलेगी। इस संबंध में नीति आयोग ने एकीकृत एनर्जी पॉलिसी के अंतर्गत लाइफलाइन एनर्जी की आवश्यकताओं की पूति के लिए एप्लीकेशंस भी तैयार करवाए हैं जिसमें कहा गया है कि बॉयोगैस खाने पकाने के साथ, गर्मी देने के लिए, बिजली का उत्पादन के लिए और वाहनों को चलाने में उपयोग हो सकती है। इसके प्रयोग से घरों में होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है।