Tuesday 30 August 2016

चलती फिरती प्रयोगशाला है यह किसान 
धान की 426 प्रजातियां रखी सुरक्षित
साइंटिस्ट भी हैं हैरान


धान या चावल के बारे में तो आप सभी जानते होंगे लेकिन अगर हम आपसे पूछे कि चावल की कितनी और कौन-कौन सी प्रजातियां होती हैं तो शायद ही आपके पास इसका कोई जवाब हो। खैर, हमारा उद्देश्य यहां पर चावल की प्रजातियों की जानकारी देना नहीं है बल्कि एक ऐसे किसान की उपलब्धि के बारे में बताना है जिसे चलता-फिरता रिसर्च सेंटर कहा जाता है। पिछले 23 वर्षों से कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई छेड़े हुए इस किसान के पास एक-दो नहीं बल्कि धान की पूरी 426 प्रजातियां हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं टेंगनमार गांव (बालौद, बिलासपुर, छत्तीसगढ़) निवासी 40 वर्षीय होमप्रकाश साहू की।

वैसे तो होमप्रकाश बिलासपुर से 19 किलोमीटर दूर कोटा के गनियारी में कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में काम करते हैं। इसके बावजूद भी वह स्वयं कृषि करने के साथ-साथ दूसरों को भी सिखाते हैं। इतना ही नहीं प्रतिवर्ष अस्पताल की ओपीडी में किसानों को मुफ्त में धान के बीज बांटना और अधिक उत्पादन लेने के तरीकों की जानकारी देना उनके खून में शामिल है।
हेल्थ सेंटर कैंपस में ही चार एकड़ के खेत को होमप्रकाश ने अपनी प्रयोगशाला (लैब) बना रखा है। तरह-तरह के अधिक आयरन और मिनरल्स वाले धान के बीज लाकर उन्हें पैदावार में बदलना एवं बांटना, यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। ओमप्रकाश का कहना है कि हमारे क्षेत्र में कुपोषण बहुत बड़ी समस्या है। सही किस्म का चावल खाकर इसे दूर किया जा सकता है। अतः मैं ऐसी प्रजातियां खोजता रहता हूं, जिनमें आयरन और बाकी तत्व तो हों ही, पैदावार भी खूब हो।

होमप्रकाश की माने तो सन् 2000 में रायपुर की एक प्राइवेट रिसर्च संस्था में कृषि के तौर-तरीकों को सीखा। साथ ही जाना कि धान में कुपोषण दूर करने कई तत्व पाए जाते हैं। तभी से मुझे यह बात सताने लगी कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान की अनेक वैरायटीज गुम होने की कगार पर आ पहुंची हैं। ऐसे में मैंने बिलासपुर, अंबिकापुर, रायगढ़, उत्तराखंड, ओडिशा आदि राज्यों से अलग-अलग किस्म के धान इकट्ठे करने शुरू किए। इसीलिए आज अनेक लोगों का कहना है कि मेरा छप्पर का मकान पैरलल एग्रीकल्चर साइंस सेंटर में परिवर्तित हो चुका है।

धान की यह ओपीडी हर शुक्रवार को किसानों के लिए खुलती है, जहां पर डॉक्टर भी बैठते हैं। यही वजह है कि जानकारियां लेने दूसरे राज्यों से भी सैकड़ों किसान यहां आते हैं। होमप्रकाश की इच्छा है कि ग्रामीण लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक ही नहीं किया जाए बल्कि कृषि संबंधी सारी जानकारियां भी दी जाएं।

मजे की बात तो यह है कि जब कुछ वर्ष पहले कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम संयोजक श्री के. आर. साहू ने होमप्रकाश का नाम दिल्ली भेजकर कृषि संबंधी विशेष कार्य करने पर 25 लाख का पुरस्कार दिलवाने की कोशिश की तो होमप्रकाश ने साफ मना करते हुए कहा कि ऐसे में यह सारी किस्में सरकार की हो जाएगी तो ऐसे में मैं किसानों को कैसे प्रेरित करूंगा।


Saturday 27 August 2016

अब आप भी कर सकेंगे 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम


अगर हम कहे कि आपको देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करने का मौका मिल सकता है तो शायद ही आपको विश्वास हो। हो भी जाए तो यकायक मुंह से निकलेगा कैसे? जी हां यह बिल्कुल सच है कि अब आप प्रधानमंत्री महोदय के साथ काम सकते हैं। सभी के लिए यह एक अच्‍छा अवसर है।

केंद्र सरकार ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालय में अलग-अलग पदों पर विशेषज्ञों (एक्‍सपर्ट) को काम करने का अवसर प्रस्तुत कि‍या है। इस प्रक्रिया में लोगों को अनुबंध (कॉन्‍ट्रैक्ट) पर काम के लिए रखा जाएगा।

पिछले मंगलवार को प्रधानमंत्री डलहवअ पोर्टल पर नौकरी का ऑफर प्रस्तुत करते हुए एक पोस्‍ट में कहा गया कि‍ डलहवअ ने वि‍भि‍न्‍न लेवल और स्‍पेशलाइजेशन के रीज्‍यूम का डाटा बैंक बनाने का प्रस्‍ताव दि‍या है। इस डाटा बैंक का प्रयोग सरकार भिन्न-भिन्न समय पर करेगी। वि‍भि‍न्‍न मंत्रालय, वि‍भाग, संगठन और स्‍पेशलाइज्‍ड कंपनि‍यों में वि‍भि‍न्‍न पॉजि‍शन पर कॉन्‍ट्रैक्‍ट जॉब दी जाएंगी। इसमें आगे बताया गया है कि रीज्‍यूम को डलळवअ द्वारा छंटनी किया जाएगा और साक्षात्कार (इंटरव्‍यू) और बातचीत के लि‍ए शॉर्टलिस्‍ट कि‍या जाएगा। वेतन पैकेज को भी सीधे बातचीत में निर्धारित कर लि‍या जाएगा। हां रीज्‍यूम भेजने का अर्थ यह नहीं कि जॉब लग ही जाएगी।

जिन पदों के लिए आप आवेदन कर सकते हैं वे हैं-
एडि‍टोरि‍यल राइटर्स, सीनि‍यर मैनेजमेंट प्रोफेशनल्‍स, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, रि‍सर्च डाटा साइंटि‍स्‍ट, ग्राफि‍क डि‍जाइनर्स, डि‍जि‍टल कंटेट स्‍क्रिप्‍ट राइटर्स, ऐडवर्टाइजिंग प्रोफेशनल्‍स, अकादमी एक्‍सपर्ट, सोशल मीडि‍या एक्‍सपर्ट, एप्‍लीकेशन डेवलपर्स।

एडि‍टोरि‍यल राइटर्स के लि‍ए शैक्षिक योग्यता है-मास कम्‍युनि‍केशन अथवा जर्नलि‍ज्‍म या इकोनॉमि‍क/सोशल साइंस में मास्‍टर्स। साथ ही मीडि‍या प्‍लैटफॉर्म पर राइटिंग का एक्‍सपीरि‍यंस।
सीनि‍यर मैनेजमेंट पोस्‍ट के लि‍ए शैक्षिक योग्यता है-यूनि‍वर्सि‍टी, हॉस्‍पि‍टल, आर्म्ड फोर्स, सि‍वि‍ल सर्वि‍सेज और पुलि‍स सर्वि‍सेज के सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) अथवा सीनि‍यर लेवल के प्रोफेशनल्‍स।

अकादमी एक्‍सपर्ट के लि‍ए शैक्षिक योग्यता रखी गई है-पीएचडी। साथ ही यूनि‍वर्सि‍टी, कॉलेज अथवा थिंक टैंक या इंटरनेशनल यूनि‍वर्सि‍टी में अकादमी एक्‍सपीरि‍यंस।

सोशल मीडि‍या एक्‍सपर्ट के लि‍ए शैक्षिक योग्यता है-ट्वि‍टर, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्‍टाग्राम, लिंक्‍डइन और वॉट्सऐप में सफलतापूर्वक सोशल मीडि‍या प्रोफाइल चलाने का एक्‍सपीरि‍यंस।

Friday 26 August 2016

10 करोड़ से तैयार हुई है यह गौशाला
हाइटैक आधुनिक सुविधाओं से है लैस


नाथद्वारा(राजस्थान) के निकट संत कृपा सनातन संस्थान द्वारा संचालित केंद्र गऊ सेवा में उल्लेखनीय भूमिका निभा  रहा है। 25 बीघा में फैली इस गौशाला पर अब तक 10 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। यहां 80 लोग ऑटोमैटिक मशीनों से गायों की देखभाल करते है। श्री लक्ष्मीकांत शर्मा (मैनेजर, गौशाला) की माने तो गायों को घास खिलाने, दूध निकालने, दूध नापने आदि अधिकांश काम हाईटेक ऑटोमैटिक मशीनों से किए जाते हैं।

मिराज ग्रुप द्वारा संचालित गौशाला वर्ष 2001 में 100 गायों से शुरू हुई थी जिनकी संख्या आज बढ़कर 1331 हो चुकी हैं। इनसे प्रतिदिन 650 लीटर दूध निकलता है जिसे बाजार में बेच दिया जाता है।

 गौशाला में बायोगैस प्लांट भी लगा हुआ है। जहां तक गायों के आहार की बात है। गायों को सूखे चारे में ज्वार की कुट्टी, गेहूं, मैथी, ग्वार, मसूर का खांखला और हरे चारे में ज्वार, बाजरा व रिजका दिया जाता है। गौशाला पर लगभग 15-16 लाख रुपए प्रतिमाह खर्च होता है जबकि दूध और कंपोस्ट (खाद) को बेचकर कुल सात लाख रुपए की आमदनी होती है।

गौशाला में शामिल सभी गायों के गले में ऑटोमैटिक मेडिकल बेल्ट लगे हुए हैं। बेल्ट्स पर उपस्थित कार्ड में गायों का ब्लडप्रेशर, गाभिन होने का समय तथा बीमारियां आदि उल्लेखित रहती हैं। गायों के लिए ऑटोमैटिक काउ-ब्रश की व्यवस्था है। गोशाला में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। मदन पालीवाल (सीएमडी, मिराज ग्रुप) की माने तो गायों के आहार और देखभाल के लिए यहां पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके लिए एडवांस मशीनों का भी सहारा लिया जाता है।

Thursday 25 August 2016

बेरोजगारी से परेशान होकर शुरू किया डेरी व्यवसाय 
एक गाय से शुरू कर बनाई 56 गायों की गुजन डेरी
दूध से कमाते हैं प्रतिदिन पंद्रह हजार रुपए

आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान श्रीकृष्ण का बहुप्रचलित नाम गोपाल गौवंश के महत्व को रेखांकित करता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने गौपालन व गाय चराने का कार्य संपादित कर गौवंश के महत्व को प्रतिपादित किया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र की माने तो उस समय गायों की समृद्धि और स्वास्थ्य हेतु विशेष विभाग ‘‘गोऽअध्यक्ष’’ चलता था। गांधीजी ने कहा है कि ‘‘देश की सुख-समृद्धि गाय के साथ ही जुड़ी हुई है।’’ अंग्रेजों ने भी भांप लिया था कि ‘गाय’ के कारण ही भारत संपन्न है और भारतीय बौद्धिक दृष्टि से भी तेज हैं जिसको नष्ट करने के लिए चाय व काफी लाई गई। डॉ. फ्रैंक लाऊन्टेन ने जब एक लीटर गाय का दूध लेकर उसका पृथक्करण किया तो इसमें आठ अण्डे, पांच सौ ग्राम मुर्गी का मांस और ७५० ग्राम मछली जितने तत्व मिले। यही कारण है कि वर्ष १९३५ में प्रसिद्ध पशु विशेषज्ञ डॉ. राइट ने माना कि गोवंश से होने वाली वार्षिक आय ११ अरब रुपये से अधिक है। आज १९३५ की अपेक्षा वस्तुओं के भाव कई गुना अधिक बढ़ गये हैं अतः गोवंश से होने वाली आय १०० अरब रुपये से अधिक हो सकती है।

डेरी व्यवसाय से अच्छा-खासा मुनाफा ले रहे सफल लोगों से हम आपको समय-समय पर मिलवाते रहते हैं। इसी श्रेणी में आज हम आपको मुजफ्फरपुर जिले की गुंजन डेरी के बारे में बताने जा रहे हैं। ब्रजेश रंजन व गंगेश गुंजन (इब्राहिमपुर, सरैया पंचायत) ने अपने घर पर ही गुंजन डेरी की स्थापना की है। कभी एक गाय से शुरू हुआ कारोबार आज 56 गायों की गुंजन डेरी के रूप में बदल चुका है जबकि अब तक इन गायों के 40 बछड़े भी बेचे जा चुके हैं। तीन करोड़ की गुंजन डेरी में 14 बछिया व 56 गायें हैं। औसतन 20 लीटर दूध देने वाली प्रति गाय की कीमत लगभग 50 हजार रुपये है। रोजाना 15 हजार का दूध सुधा व आसमा डेरी के साथ-साथ सरैया के पीएचसी व एसटीएफ कैंप और मांग पर स्थानीय लोगों को भी दिया जाता है। बचे हुए दूध का पनीर बनाकर बेचा जाता है।

अंग्रेजी में पीजी करने के बाद ललन ठाकुर ने काफी दिनों तक बेरोजगार रहे। आखिकार 24 जनवरी, 2000 को हाजीपुर के चंद्रालय से 22 हजार में 20 लीटर दूध देनेवाली काली गाय खरीदीं। वैज्ञानिक तरीके से दुधारू पशुओं का प्रबंधन किया। गुंजन डेरी में गुणवत्तायुक्त तिमुल के सुधा दाना का उपयोग किया जाता है। स्वयं दलिया तैयार कर गायों को दिया जाता है। रोज प्रति गाय को चार किलो गेहूं, तीसी खल्ली दो किलो, मसूर दाल दो किलो, चना बेसन एक किलो, गुड़ आधा किलो को पानी में उबाल कर दिया जाता है साथ ही 50 ग्राम नमक, कैल्शियम व मिनरल्स भी किया जाता है।

सर्दी और गर्मी में अलग-अलग आहार दिया जाता है। हरे चारे में जई बरसीम, गरमी में केला, केले का पत्ता व पेड़ भी देते हैं। गर्मी में यूपी का ज्वार व बाजरा, सर्दी में बरसीम और जई प्रयोग करते हैं। डेरी की पहली गाय ने अप्रैल, 2014 में 14 वें बच्चे को जन्म दिया। इसी समुचित प्रबंधन का परिणाम है कि आज यहां फ्रिजियन और साहिवाल नस्ल की करीब पांच दर्जन गायें हैं। डेढ़ एकड़ जमीन में फैली गौशाला ने एसबीआइ की कृषि विकास शाखा से 20 लाख कर्ज लेकर पशुओं को आधुनिक सुविधाएं दी। छः शेड बनाएं गए हैं, बछड़ों के लिए अलग शेड है, गर्मी से बचाने के लिए गाय के लिए कूलर की व्यवस्था है, प्रतिदिन दूध वाले बर्तन को उपचारित किया जाता है।

आज ललन ठाकुर संत पल स्कूल, वैशाली में अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं तो धर्मपत्नी नूतन कुमारी शिक्षिका हैं। ब्रजेश रंजन गणित विषय से बीएससी हैं। इसके बावजूद सभी परिजन गौशाला की देख-रेख भी करते हैं। ब्रजेश रंजन गायों का दूध दूहते हैं। गंगेश गुंजन द्वारा पशुओं को वैज्ञानिक तरीके से चारा दिया जाता है। गंगेश ने बीसीए के बाद आइआइबीएमए तक शिक्षा ली है। ब्रजेश ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड से, दाजिर्लिंग में, क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र से कृत्रिम गर्भाधान सह पशु प्राथमिक उपचार का तीन महीने का प्रशिक्षण भी लिया जिससे डेरी व्यवसाय में बहुत फायदा हुआ।

धन्य हैं गुंजन डेरी के जन्मदाताओं जैसे लोग जोकि भगवान श्रीकृष्ण के दिखाएं मार्ग पर चलकर न केवल गौ सेवा कर रहे हैं बल्कि उससे लाभ भी ले रहे हैं। यही वजह है कि आज गुंजन डेरी अनेक पशुपालकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।

Tuesday 23 August 2016

आस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर के खेती में निवेश का आया नतीजा
कमाया 17 करोड़ रुपए से भी अधिक मुनाफा


आस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर एडम गिलक्रिस्ट किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कभी क्रिकेट के मैदान में अपना हुनर दिखाने वाले गिलक्रिस्ट आजकल ऑस्ट्रेलिया के कृषि जगत में अपनी चमक बिखर रहे हैं। हुआ यूं कि गिलक्रिस्ट ने छः वर्ष पूर्व, कृषि संबंधी काम करने वाली और बंद होने की कगार पर खड़ी, टीएफएस काॅरपोरेशन नामक कंपनी में निवेश किया। गिलक्रिस्ट का कमाल देखिए कि उन्होंने न केवल उस कंपनी की डूबती नैय्या को भी बचाया बल्कि पिछले 6 महीनों में 17 करोड़ 70 हजार रुपए भी कमाएं। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया के निवेश बाजार के पंडित गिलक्रिस्ट की खुलकर प्रशंसा कर रहे हैं।

वास्तव में, ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण क्षेत्रों की निवेशक प्रमुख कंपनियां Timbercorp, Forest Enterprises Australia and Gunns, Willmott Forests, Great Southern आदि घाटे में चली गई। इतना ही नहीं वर्ष 1999 में भारतीय चंदन की कृषि से आरंभ करने वाली टीएफएस काॅरपोरेशन भी इससे दवाब में आ गई। इसी का नतीजा था कि वर्ष 2010 तक कोई भी इस कंपनी में निवेश करने को तैयार नहीं था। इसके बावजूद गिलक्रिस्ट ने इसमें निवेश किया और अपना नाम भी इससे जोड़ा। इसी का परिणाम है कि टीएफएस काॅरपोरेशन इस वर्ष चंदन की सप्लाई करने वाली है जिससे उसके शेयर्स तेजी से बढ़ रहे हैं। नतीजतन पिछले छः माह में गिलक्रिस्ट की कंपनी में भागीदारी बढ़कर दुगुनी अर्थात् 2.5 मिलियन डॉलर (लगभग 17 करोड़ 70 लाख रूपए) हो चुकी है।



Tuesday 16 August 2016

क्या आप जानते हैं इस अरबपति गांव को
यह कमाता 1.5 अरब रुपए


गांवों से शहरों को पलायन की बात आज की नहीं कभी पुरानी है। ग्रामीणों के शहरों में आने का एक प्रमुख कारण रोजगार की कमी को माना जाता है। साथ ही गांवों में रोजगार के प्रमुख साधन खेती को भी घाटे का सौदा कहकर किसान आत्महत्या से भी जोड़ा जाता रहा है। यद्यपि कुछ उन्नतिशील किसान इसके अपवाद के रूप में भी उभकर आए हैं जिन्होंने खेती से करोड़ों रुपए कमाये हैं। आज हम आपको हिंदुस्तान के एक ऐसे ही गांव की जानकारी देने जा रहे हैं जोकि 1.5 अरब रुपए कमाई के साथ एशिया के अरबपति गांव में शामिल हो चुका है।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला विश्व में प्राकृतिक सौंदर्य और सेब की खेती की वजह से जानी जाती है। शिमला के सेब देश-विदेश में बहुत प्रसिद्ध होने से काफी मांग रखते हैं। शिमला जिले की चैपाल तहसील में एक गांव मड़ावग आजकल चर्चा का विषय बना चुका है। हो भी क्यों न, यह एशिया के अरबपति गांवों में शामिल हो चुका है क्योंकि लगभग दो हजार गांववाले कमाते हैं 1.5 अरब रुपए।

मड़ावग में मुख्यतः सेब की खेती होती है। यह सेब विदेशों में निर्यात किए जाते हैं जिनसे किसानों को जबरदस्त कमाई होती है। यही कारण है कि आजकल मड़ागव में आलीशान घर भी दिखाई देने लगे हैं। इस गांव के किसान नई-नई तकनीकों की जानकारी इंटरनेट से लेकर उसका उपयोग सेब की खेती में करते हैं। इतना ही नहीं यह सेब के बाजार के दामों पर निरंतर नजर रखते हैं और फिर उसे बेचते हैं। इस तरह से गांववालों ने प्रधानमंत्री की डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से जुड़कर तकनीक का उपयोग न केवल सेब की खेती बल्कि सेब की फसल को बेचने में किया है।

सेब के आॅन इयर प्रोडक्शन के साथ मड़ावग ने प्रतिव्यक्ति आय के मामले में गुजरात को भी पछाड़ दिया है। इससे पहले माधवपर (गुजरात) एशिया का सबसे अमीर गांव रह चुका है। 1982 में क्यारी (शिमला) भी सबसे अमीर गांव रह चुका है। 

सफल हुआ परीक्षण
भारतीय नस्ल की गाय भी देगी अब 80 लीटर दूध प्रतिदिन
होशंगाबाद (म.प्र.) में खुल सकता है सेंटर


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का सपना है किसान की आय को 2022 तक दुगना किया जाए। इसके लिए सरकार द्वारा अनेक कदम उठाएं जा रहे हैं। ग्रामोदय से भारत उदय के अंतर्गत गांवों में सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। 2018 तक देश के हर गांव तक बिजली पहुंचाने का निर्णय लिया है। गांव, किसान, कृषि एवं पशुपालन सरकार की प्राथमिकता में शामिल हैं।
पशुपालन के क्षेत्र में सरकार को एक बड़ी कामयाबी मिली है। अब तक भारतीय पशुपालक का देसी नस्ल की गायों की ओर रूझान इसलिए कम था कि उनकी दूध उत्पादन क्षमता कम थी। सरकार ने पशुपालकों की समस्या को समझा और भारतीय नस्ल की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाएं हैं। इसी के अंतर्गत, देसी गायों की नस्ल सुधार के लिए अब सॉटेंड सेक्सड सीमन तकनीक का उपयोग मध्यप्रदेश में किया जाएगा। इससे जहां दुधारू गाय की नस्ल में सुधार होगा तो वहीं उसका दूध उत्पादन भी बढ़ेगा। देसी नस्ल की गायों में इस तकनीक के प्रयोग से केंद्र सरकार मादा अथवा नर बछड़े पैदा करने को लेकर अनुसंधान (रिसर्च) करवा रही है।

इसी क्रम में, मध्यप्रदेश में ज्यादा दूध देने वाली गायों की संख्या बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम ने ब्राजील से गिर और जर्सी नस्ल के सांडों के आठ हजार सीमन डोज मंगवाए हैं। पशुपालन विभाग की माने तो ब्राजील में गिर और जर्सी नस्ल की गाय 35-40 लीटर दूध एक समय में देती है। जबकि मध्य प्रदेश में इन नस्लों की गायों से एक समय में अधिकतम पांच लीटर दूध ही मिलता है। राज्यों की गायों में दुग्ध उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए गिर और जर्सी नस्ल की सांड के आठ हजार सीमन डोज ब्राजील से मंगवाए हैं। सरकार द्वारा ब्राजील नस्ल के सांड का सीमन सैंपल लेकर उसे देसी गाय में प्रत्यारोपित कराया गया है, जिसके बहुत अच्छे परिणाम आ रहे हैं। अब यह गाय प्रतिदिन एक समय में अधिकतम 40 लीटर दूध देगी। इस कार्यक्रम का लक्ष्य 2022 तक किसान की आमदनी को दुगुना करना है।
पशुपालन विभाग के डॉक्टरों की माने तो सीमन से अधिक पशुओं का गर्भाधान कराया जा सकता है। इसकी लागत भी अधिक नहीं आती है। यही कारण है कि सरकार ने सीमन लाने का फैसला किया है। इस सीमन का उपयोग पशु चिकित्सालयों और कृत्रिम गर्भाधान क्लीनिकों द्वारा अधिक दूध देने वाली अच्छी गायों के गर्भाशय में स्थापित कर भ्रूण तैयार किए जाएंगे ताकि गायों में नस्ल सुधार किया जा सके। इसके बाद इन भ्रूणों को सामान्य गाय के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाएंगा। इससे गाय में नस्ल सुधार के साथ-साथ दूध उत्पादन भी बढ़ेगा।

ऐसी संभावना है कि कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर को होशंगाबाद के कीरतपुर में खोला जा सकता है। फिलहाल मध्य प्रदेश में सॉर्टेंड सेक्सड सीमन तकनीक का इस्तेमाल जर्सी और एचएफ गाय में किया जाएगा।
देसी नस्ल की गायों में इस तकनीक के प्रयोग से मादा अथवा नर बछड़े उत्पन्न करने को लेकर केंद्र सरकार शोध (रिचर्स) करवा रही है जिस दिशा में काफी काम भी हो चुका है। केंद्र सरकार ने सीएसएस (सेक्स सॉटेंड सीमन) तकनीक के प्रयोग की मंजूरी दे दी है। मादा बछड़े ज्यादा पैदा होने पर दुग्ध उत्पादन बढ़ेगा। हाल में में पंजाब और हरियाणा में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

Saturday 13 August 2016

70वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
पाकिस्तान शुरू से ही रहा है धूर्त
विभाजन के समय गांधीजी की जिद ने 
पाकिस्तान को दिलवाएं थे 55 करोड़ रुपए


आप सभी को 70वें स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं। आज सत्तर बरस बाद भी एक नासूर ऐसा है जोकि हमारे देश के विकास के लिए बाधक बना हुआ है। चाहे वह आतंकवाद की बात हो या आर्थिक रूप से देश को नुकसान पहुंचाना। सब जगह यह दिखाई देता है। हाल ही में भारत के गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भी इसपर कटाक्ष करते हुए कहा था कि पड़ोसी है कि मानता नहीं। जी हां बिल्कुल सच है चूंकि जन्म से ही इस पाकिस्तान ने धूर्तता ओड़ी थी जोकि आज अपने चरम पर पहुंच चुकी है। जन्म के समय ही पाकिस्तान ने आंतकी अंदाज में कश्मीर पर हमला किया वो भी हिंदुस्तान के पैसे से। क्या कहा विश्वास नहीं होता तो चलिए इतिहास के पन्ने पलटते और जानते हैं कि जरूरी नहीं होता कि सरकारी किताबों से जो हमने पढ़ा और जाना वह पूरा और बिल्कुल सही ही हो। चूंकि सामने से हमें तस्वीर का एक पक्ष दिखता है उसके पीछे का हिस्सा अंधकार की भेंट चढ़ जाता है। चलिए उस हिस्से को जानने का प्रयास करें।

भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय आजाद भारत के खजाने में कुल 155 करोड़ रुपए थे जोकि दोनों देशों में बराबर बांटे जाने थे। इसमें से 20 करोड़ रुपए पहले ही पाकिस्तान को दे दिए थे। बाकी 55 करोड़ देना बाकी था। तभी कबाइली रूपी पाक सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया। सरदार पटेल ने सख्ती दिखाते हुए और कश्मीर में सेना भिजवाई। भारतीय फौज ने कश्मीर से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। उस समय महात्मा गांधीजी की धमकी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलाने पर भारत को मजबूर कर दिया। कहा जा रहा था कि पाकिस्तान को यह रुपए टेंट खरीदने के लिए चाहिए पर हुआ इसका उल्ट इनका उपयोग पाकिस्तान ने जन्म के समय ही भारत के विरुद्ध हथियार खरीदने के लिए किया। यद्यपि सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरु पैसे देने के विरुद्ध थे। चूंकि पाकिस्तान अहम समझौतों को नहीं मान रहा था। सरदार पटेल ने चेतावनी दे डाली थी कि दिए जाने वाले करोड़ों रुपए का उपयोग पाकिस्तान भारत के खिलाफ करेगा। परंतु गांधीजी की आमरण अनशन की धमकी ने सारा खेल पलट दिया। पटेल अड़े रहे पर नेहरू झुक गए और जनवरी, 1948 के प्रथम सप्ताह में पाकिस्तान को पैसा दे दिया गया।

फिर क्या था पैसे मिलने से कुछ घंटे बाद ही उसने पाकिस्तान ने फिर से कश्मीर पर हमला कर दिया। हिंदुस्तान जब जवाबी रणनीति बना रहा था तब बापू ने भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए 7 फरवरी, 1948 को लाहौर में अनशन करने की बात कही। उस समय यह पाकिस्तान की राजधानी थी। यानि पाकिस्तान अपने जन्म से ही धोखे, धूर्तता और आतंक का पर्याय रहा है जोकि आज समय-समय पर दिखाई देता है।

Thursday 11 August 2016

सरकारी इंजीनियर ने नौकरी छोड़ की एलोवेरा खेती
जिसने बना दिया उसे करोड़पति 


अगर आपसे कोई कहे कि एक जूनियर इंजीनियर ने सरकारी नौकरी छोड़ खेती करने की ठानी और वही आइडिया इतना हिट हुआ किया आज वह करोड़पति है तो आपको शायद ही यकीन हो लेकिन यह सच है। हर इंसान की तरह राजस्थान के जैसलमेर निवासी हरीश के लिए भी नौकरी छोड़ना कठिन और किसान बनना चुनौती भरा था। चूंकि आए-दिन घाटे का सौदा साबित होती कृषि और आत्महत्या करते किसान की खबरे उनतक भी पहुंच चुकी थी। इतना ही नहीं दूसरे किसान ने भी उनसे खेती से दूर रहने की बातें कहीं पर धनदेव ने अपने श्रम और दूरदर्शिता से वह कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।

हरीश का पुश्तैनी व्यवसाय कृषि था। इसके बावजूद हरीश को जैसेलमेर म्युनिसिपल काउंसिल में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई पर उसमें उनका मन न रमा। इसी दौरान उनकी मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक सज्जन से हुई। उन्होंने हरीश को एलोवेरा की खेती करने को कहा। फिर दिल्ली में आयोजित खेती-किसानी एक्सपो में हरीश को नई तकनीक की जानकारी मिली। अब हरीश ने एलोवेरा की कृषि का निर्णय लिया। हरीश बीकानेर पहुंचे और एलोवेरा के 25 हजार प्लांट लेकर जैसलमेर आ गए। एलोवेरा खेत में लगाते समय अनेक लोगों ने कहा कि इसमें कायमाबी नहीं मिलेगी पर हरीश की मार्केटिंग स्किल ने सफलता कायम की।

हरीश की माने तो 2013 के आखिर में 10 बीघे से शुरू की गई एलोवेरा की खेती आज 700 सौ बीघे में फैल चुकी है जिसमें कुछ अपनी जमीन पर है तो बाकी लीज पर। फिर जयपुर की कुछ एजेंसियों ने एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट किया। बाद मेें सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्स से पल्प निकालना शुरु किया। हरीश बताते हैं कि धीरे-धीरे खेती बढ़ी तो मैंने पतंजलि को मेल भेजकर बताया। पतंजलि का प्रतिनिधि आया। फिर तो चीजें ही नहीं आमदनी भी बदली। साथ हम अधिक प्रोफेशनल ढंग से काम करने लगे। हरीश लगभग डेढ़ वर्षों से  एलोवेरा पल्प की सप्लाई पतंजलि को कर रहे हैं।

देश और विदेश की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए हरीश ने जैसलमेर से 45 किलोमीटर दूर धहिसर में अपनी कंपनी ‘नेचरेलो एग्रो’ बना ली है जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों में जा पहुंचा। इतना ही नहीं उन्होंने आधुनिक प्रोसेस यूनिट भी लगा लिया है। हरीश का कहना है कि हम विशेषकर उत्पाद की क्वालिटी कंट्रोल पर फोकस करते हैं। आज हरीश करोड़ों किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।

Wednesday 10 August 2016

विश्व बायोफ्यूल दिवस पर विशेष
खेतों में लगेगे अब जैविक ईंधन वाले पौधे
जैविक खाद के बाद अब बारी है जैविक पैट्रोल और डीजल की


किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार अनेक प्रयास कर रही है। खेती बाड़ी हो या पशुपालन सभी क्षेत्र में नई-नई योजनाएं लाई जा रही हैं। इसी कड़ी में अब सरकार बायोफ्यूल को भी एक नए रूप में परिभाषित करने की योजना बना रही है। भावी बायोफ्यूल की संभावनाओं के बारे में बताते हुए रामाकृष्णा वाईबी (अध्यक्ष, बायोफ्यूल) ने कहा कि बायोफ्यूल को लेकर सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके लिए फीडस्टॉक कहां से लाया जाए। हमें ये बात समझ में आ गई है कि सिर्फ मोलासीज से एथनॉल बनाने से देश की जरूरत का पांच-सात प्रतिशत से अधिक बायोफ्यूल नहीं बनाया जा सकता। इस चुनौती के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा किसानों एवं निजी क्षेत्र को बायोफ्यूज से जोड़ना होगा। इसे किसानो की आय दोगुनी करने की योजना से जोड़कर हम काफी प्रगति कर सकते हैं। इससे किसानों की दशा सुधारने में काफी मदद मिलेगी। 

उन्होंने आगे बताया कि हमारा अध्ययन बताता है कि देश की 70 फीसद उपजाऊ जमीन कम से कम 5 महीने खाली रहती है। इस अवधि में हम वहां जैविक ईंधन वाले प्लांट्स लगा सकते हैं। अब आप देखिए कि सिर्फ पंजाब और हरियाणा में 4.50 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। पूरे देश में 30 करोड़ टन फसलों को जलाया जाता है या बर्बाद किया जाता है। इन्हें अब जैविक ईंधन में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कार्य के लिए 18-20 हजार करोड़ रुपए निवेश की जरूरत होगी, जो सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी से आसानी से जुटाई जा सकती है। बायोफ्यूल बनाने के लिए जो संयंत्र लगाए जाएंगे उनसे बायोगैस और बिजली भी सह-उत्पाद के तौर पर बन सकते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि भारत बहुत आसानी से अगले पांच वर्षों में पैट्रोल में मिलाने के लिए 20 फीसद जैविक ईंधन और डीजल में मिलाने के लिए 5 फीसद जैविक ईंधन का उत्पादन घरेलू स्तर पर ही कर सकते हैं। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी, तेल आयात बिल कम होगा, किसानों की आय बढ़ेगी और सबसे अहम पर्यावरण की सुरक्षा होगी।

रामाकृष्णा वाईबी की माने तो बायो फ्यूल ईंधन को बढ़ावा देने वाली पहली नीति पंद्रह वर्ष पहले राजग सरकार में बनी थी। तब इसके लिए अनेक अहम लक्ष्य तय कर कुछ काम भी शुरु हुआ था, परंतु संप्रग कार्यकाल में इसमें खास प्रगति नहीं हुई। संप्रग-दो के कार्यकाल में बायोफ्यूल नीति की घोषणा की गई। वर्ष 2017 तक देश में पेट्रोल और डीजल में 20 प्रतिशत तक जैविक ईंधन मिश्रण का लक्ष्य रखा गया। इसे हासिल करने के लिए भी कुछ खास नहीं हुआ। जब राजग सरकार सत्ता में आई तो सिर्फ 1.7 फीसद ही मिश्रण हो रहा था। नई सरकार ने पूरे हालात की समीक्षा की और अब देश में बायोफ्यूल को नए सिरे से बढ़ावा देने की नीति लागू की जा रही है। इससे अगले पांच-छः वर्ष में बायोफ्यूल को लेकर पूरी तस्वीर बदल जाएगी।

रामाकृष्णा बताते हैं कि बायोफ्यूल में अनेक समस्याएं आड़े आ रही थी जिनमें पहली समस्या थी बायोफ्यूल खरीदने के लिए अभी तक एक प्राइसिंग नीति नहीं थी। सरकार की तरफ से बायोफ्यूल के लिए 48.50 रुपए प्रति लीटर का आधार मूल्य तय करने से कई दिक्कतें एक साथ खत्म हो गई। राज्यों ने अपने-अपने तरह से नियमन की नीति बनाई थी जिसे समाप्त करते हुए पूरे देश में एक जैसी नीति बनाने की कोशिश की गई। इसका असर दिखाई दे रहा है। केवल एक वर्ष में एथॉल मिश्रण का स्तर 1.7 फीसद से बढ़कर दिसम्बर 2015 में 3.9 फीसद हो गया। दिसम्बर 2016 तक ये 5 प्रतिशत हो जाएगा। अब हम पांच फीसद से ज्यादा के मिश्रण की तरफ बढ़ेंगे। खासतौर पर जिन राज्यों में बायोफ्यूल पर्याप्त है वहां ज्यादा मिश्रण करने को तैयार है। कुछ राज्यों में 10 प्रतिशत से भी ज्यादा का मिश्रण किया जाएगा। सिर्फ एथनॉल मिश्रण में ही नही बल्कि बायोडीजल के मामले में भी अच्छी प्रगति हो रही है। एक वर्ष पहले देश के 5 शहरों के 12 पेट्रोल पंप पर बायोडीजल बिक्री शुरु की गई थी। अभी छः राज्यों के 2300 जिलों में बायोडीजल की बिक्री हो रही है।

Tuesday 9 August 2016

विदेशी तर्ज पर आधुनिक डेरी फार्म ने बदल डाली गांव की तस्वीर
 गांव के सभी घरों तक मुफ्त बायोगैस


किसी ने सच ही कहा है जहां चाह वहां राह। इसी तर्ज पर पंजाब के बहादुरपुर गांव के लोगों ने अपने गांव की ऐसी तस्वीर बदली कि वह बड़े शहरों तक को पीछे छोड़ता दिख रहा है। पहले जहां गांववाले एलपीजी सिलैंडर और कृषि के लिए उर्वरक खरीदते थे। वहीं आज यह गांव वाले इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन चुके हैं। सभी घरों में पाइप द्वारा बायोगैस की मुफ्त सप्लाई, शुद्ध पीने का पानी, सीवरेज, कंक्रीट की पक्की गलियां बनाई गई हैं। इसीलिए बेस्ट विलेज और बेस्ट पंचायत के तहत इस गांव को केंद्र सरकार की ओर से पांच लाख रुपए भी मिल चुके हैं।

गांव के विकास में आर.एस. फार्म और उसके मालिक दिलबार सिंह बारा और उसके भाइयों बलवीर सिंह तथा प्रीतम सिंह का विशेष योगदान रहा है। दिलबार की माने तो उन्होंने बहरगामों गांव (इटली) की तर्ज पर गांव विकसित किया है। तीनों भाइयों ने अपने खानदानी व्यवसाय को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2010 में दस गायों से डेरी फार्म की शुरूआत की और दूध की सप्लाई का काम करने लगे। इससे पहले उन्होंने विदेशों जैसेकि दुबई, इटली, यूरोप, साइप्रस आदि देशों में भी जाकर कृषि और डेरी फार्म की जानकारी ली। गांव आकर उन्होंने डेरी व्यवसाय को बढ़ावा दिया। उनका सपना था कि विदेशों में हमारे गांवों का दूध बिके। आज आर.एस. डेरी फार्म में 150 से अधिक गायें हैं। दिलबार सिंह बारा की माने तो वह डेरी फार्म के लिए अपनी फीड तैयार करते हैं, दूध, दही, लस्सी, मिठाई, पनीर आदि दुग्ध उत्पाद तैयार करते हैं। अभी यह दूध शहरों में सप्लाई होता है, पर शीघ्र ही इसे विदेशों तक पहुंचाया जाएगा।

आर.एस. डेरी फार्म में लगभग 150 दुधारू पशु हैं। गोबर गैस बनाने के लिए गांव में 65-65 मीटर के दो बायोगैस प्लांट बनाए हैं। इससे बनने वाली बायोगैस की सप्लाई घरों में फ्री की जाती है। गोबर गैस के बाद जो स्लरी बचती है, उसका प्रयोग खेतों में खाद के रूप में होता है।

गांव, आर.एस. डेरी और विकास के कार्य को आप निम्नलिखित लिंक्स पर जाकर स्वयं अपनी आंखों से देख सकते हैं। कृपया आर.एस. डेरी फार्म और गांव की बदलती तस्वीर को जरूर देखें:-