बढ़ता हुआ जल संकट
ऐसे में जरूरी है पानी की खेती
किसी से सत्य ही कहा है कि वह दिन दूर नहीं जबकि तृतीय विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। चूंकि हमारे देश में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। यही कारण है कि अनेक राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। विश्व बैंक के एक अध्ययन की माने तो 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 27 एशियाई शहरों में चेन्नई व दिल्ली जल उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले महानगर हैं। इसमें मुम्बई द्वितीय तो कोलकाता चतुर्थ पायदान पर है।
हाल ही सबसे विकट स्थिति लातूर की है, जहां तापमान 42 डिग्री सेल्सियस है, इसके बावजूद 10 वर्ष की बच्ची से लेकर बुजुर्ग तक चिलचिलाती धूप में पानी के लिए वाटर टैंकर के पास लंबी पंक्तियों में खड़े रहते हैं। तब भी बमुश्किल से 150 लीटर पीने का पानी मिल पाता है। घरों के नल पिछले तीन माह से सूखे पड़े हैं। प्रत्येक आठ दिन में नगर निगम का पानी का टैंकर आता है। हर परिवार को 200 लीटर पीने का पानी दिया जाता है। हुआ यूं कि निरंतर दो वर्षों से बारिश की कमी से लातूर को जल-आपूर्ति करने वाली मंजारा नदी में पानी बहुत कम हो गया है और अब इसमें कीचड़ और पत्थर ही बचे हैं। लातूर की लगभग पांच लाख जनसंख्या की जिंदगी पानी के आसपास ही घूम रही है। चूंकि जल ही उनके जहन में हर समय घूमता रहता है। शहर के बाहर हालात अधिक गंभीर हैं। टैंकर 800 में से 150 गांवों में पीने का पानी पहुंचा रहे हैं। भूजल का स्तर 500 फीट तक नीचे जा चुका है। निराश ग्रामीण पानी के लिए और गहरे कुएं खोद रहे हैं।
हमने जल के मूल्य को जल्द ही नहीं समझा तो वर्ष 2020 तक देश में पानी का संकट भीषण रूप ले सकता है। निरंतर देश में जल उपलब्धता की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2020 तक जल उपलब्धता प्रतिव्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम रह जाएगी। एक अध्ययन पत्र की माने तो देश में 85 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि में, 10 प्रतिशत पानी का उपयोग उद्योगों में और पाँच प्रतिशत जल घरेलू कामों में प्रयोग किया जाता है।
जल संकट से जूझ रहे लातूर जैसे स्थानों को जल संकट का स्थायी समाधान करना है तो उसे अपने पानी का संरक्षण बेहतर करना होगा, कृषि के तरीकों में बदलाव लाना होगा साथ ही पहले अच्छी वर्षा भी होनी चाहिए। ऐसा ही एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है गोरबा गांव (इंदौर) ने। जहां पानी की खेती होती है। विश्वास नहीं होता न लेकिन यह सच है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में इस गांव का जिक्र किया है। श्री मोदी ने कहा कि देश में सूखे व जलसंकट की स्थिति है ऐसे में देवास जिले में जल संरक्षण और प्रबंधन का बेहतर कार्य हुआ है जिसका सभी को अनुसरण करना चाहिए।
गोरबा देवास (टोंकखुर्द) 343 परिवार और 1479 की आबादी वाला गांव है। कभी देवास का गोरबा गांव पानी की कमी के कारण बेहाल हो गया था। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि भूजल स्तर घटते-घटते 400 फीट से भी नीचे जा पहुंचा था। लोगों को पीने का पानी दूसरे गांव से लाना पड़ता था। कृषि की बात तो न के बराबर थी। जल संकट ने लोगों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
ऐसे में, वर्ष 2006 में उमाकांत उमराव (आईआईटी रूडकी से पासआउट) देवास के कलेक्टर बनकर आए। उन्होंने किसानों को अपने खेतों में छोटे भाग पर तालाब बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने बैंकों व सोसायटियों से निवेदन किया कि वे इसके लिए किसानों को लोन दे। इन्हीं प्रयासों से गोरबा गांव के 150 से अधिक किसानों ने अपने खेत में तालाब बनाएं। इसी काम को पानी की खेती कहा गया।
किसानों के दिमाग में बैठाया गया कि जैसे फसल से लाभ होता है वैसे ही पानी की खेती से भी लाभ होगा। कलेक्टर आशुतोष अवस्थी की माने तो आज गोरबा में 150 निजी व दो सरकारी तालाब हैं। प्रत्येक किसान वर्ष में दो फसलें ले रहा है। इससे प्रत्येक किसान का परिवार सम्पन्न है। अधिकतर किसान कार से चलते हैं। बीज उत्पादक सहकारी समिति होने से गांव बीज के मामले में आत्मनिर्भर है। डॉ. अब्बास पटेल (कृषि उपसंचालक ) की माने तो जल की खेती ने इस क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पंचायत में 170 तालाब हैं और सभी में भरपूर पानी है। गांव में 5 दूध डेयरी हैं और यहां रोज 1000 लीटर दूध का उत्पादन होता है।