Tuesday 26 April 2016

बढ़ता हुआ जल संकट 
ऐसे में जरूरी है पानी की खेती


किसी से सत्य ही कहा है कि वह दिन दूर नहीं जबकि तृतीय विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। चूंकि हमारे देश में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। यही कारण है कि अनेक राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। विश्व बैंक के एक अध्ययन की माने तो 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 27 एशियाई शहरों में चेन्नई व दिल्ली जल उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले महानगर हैं। इसमें मुम्बई द्वितीय तो कोलकाता चतुर्थ पायदान पर है।

हाल ही सबसे विकट स्थिति लातूर की है, जहां तापमान 42 डिग्री सेल्सियस है, इसके बावजूद 10 वर्ष की बच्ची से लेकर बुजुर्ग तक चिलचिलाती धूप में पानी के लिए वाटर टैंकर के पास लंबी पंक्तियों में खड़े रहते हैं। तब भी बमुश्किल से 150 लीटर पीने का पानी मिल पाता है। घरों के नल पिछले तीन माह से सूखे पड़े हैं। प्रत्येक आठ दिन में नगर निगम का पानी का टैंकर आता है। हर परिवार को 200 लीटर पीने का पानी दिया जाता है। हुआ यूं कि निरंतर दो वर्षों से बारिश की कमी से लातूर को जल-आपूर्ति करने वाली मंजारा नदी में पानी बहुत कम हो गया है और अब इसमें कीचड़ और पत्थर ही बचे हैं। लातूर की लगभग पांच लाख जनसंख्या की जिंदगी पानी के आसपास ही घूम रही है। चूंकि जल ही उनके जहन में हर समय घूमता रहता है। शहर के बाहर हालात अधिक गंभीर हैं। टैंकर 800 में से 150 गांवों में पीने का पानी पहुंचा रहे हैं। भूजल का स्तर 500 फीट तक नीचे जा चुका है। निराश ग्रामीण पानी के लिए और गहरे कुएं खोद रहे हैं।

हमने जल के मूल्य को जल्द ही नहीं समझा तो वर्ष 2020 तक देश में पानी का संकट भीषण रूप ले सकता है। निरंतर देश में जल उपलब्धता की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2020 तक जल उपलब्धता प्रतिव्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम रह जाएगी। एक अध्ययन पत्र की माने तो देश में 85 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि में, 10 प्रतिशत पानी का उपयोग उद्योगों में और पाँच प्रतिशत जल घरेलू कामों में प्रयोग किया जाता है।

जल संकट से जूझ रहे लातूर जैसे स्थानों को जल संकट का स्थायी समाधान करना है तो उसे अपने पानी का संरक्षण बेहतर करना होगा, कृषि के तरीकों में बदलाव लाना होगा साथ ही पहले अच्छी वर्षा भी होनी चाहिए। ऐसा ही एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है गोरबा गांव (इंदौर) ने। जहां पानी की खेती होती है। विश्वास नहीं होता न लेकिन यह सच है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में इस गांव का जिक्र किया है। श्री मोदी ने कहा कि देश में सूखे व जलसंकट की स्थिति है ऐसे में देवास जिले में जल संरक्षण और प्रबंधन का बेहतर कार्य हुआ है जिसका सभी को अनुसरण करना चाहिए।

गोरबा देवास (टोंकखुर्द) 343 परिवार और 1479 की आबादी वाला गांव है। कभी देवास का गोरबा गांव पानी की कमी के कारण बेहाल हो गया था। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि भूजल स्तर घटते-घटते 400 फीट से भी नीचे जा पहुंचा था। लोगों को पीने का पानी दूसरे गांव से लाना पड़ता था। कृषि की बात तो न के बराबर थी। जल संकट ने लोगों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।

ऐसे में, वर्ष 2006 में उमाकांत उमराव (आईआईटी रूडकी से पासआउट) देवास के कलेक्टर बनकर आए। उन्होंने किसानों को अपने खेतों में छोटे भाग पर तालाब बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने बैंकों व सोसायटियों से निवेदन किया कि वे इसके लिए किसानों को लोन दे। इन्हीं प्रयासों से गोरबा गांव के 150 से अधिक किसानों ने अपने खेत में तालाब बनाएं। इसी काम को पानी की खेती कहा गया।

 किसानों के दिमाग में बैठाया गया कि जैसे फसल से लाभ होता है वैसे ही पानी की खेती से भी लाभ होगा। कलेक्टर आशुतोष अवस्थी की माने तो आज गोरबा में 150 निजी व दो सरकारी तालाब हैं। प्रत्येक किसान वर्ष में दो फसलें ले रहा है। इससे प्रत्येक किसान का परिवार सम्पन्न है। अधिकतर किसान कार से चलते हैं। बीज उत्पादक सहकारी समिति होने से गांव बीज के मामले में आत्मनिर्भर है। डॉ. अब्बास पटेल (कृषि उपसंचालक ) की माने तो जल की खेती ने इस क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। पंचायत में 170 तालाब हैं और सभी में भरपूर पानी है। गांव में 5 दूध डेयरी हैं और यहां रोज 1000 लीटर दूध का उत्पादन होता है।


Tuesday 19 April 2016

गर्मी में ऐसे बचाएं 

फूड खराब होने से


गर्मी अपने चरम पर है। धीरे-धीरे इसके और अधिक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में हमारे फूड्स को विशेष देखभाल की जरूरत होती है वरना इनके जल्द खराब होने की संभावना रहती है। आज हम ऐसी ही कुछ टिप्स बताने जा रहे हैं जिससे आप अपने फूड्स को अधिक समय तक तरोताजा रख सकते हैं।

दूध

दूध को उबालते समय इसमें एक चुटकी बैकिंग सोड़ा डालने से दूध ताजा बना रहता है।

दही

इसमें आधा चम्मच शहद डालकर रखें जिससे यह फ्रैश रहेगा एवं खट्टा भी नहीं होगा।

साग-सब्जियां
इन्हें बनाते समय इसमें नारियल को घिसकर डाल दें जिससे यह काफी समय तक खराब नहीं होती।

केला

केले पर पालिथीन या एल्युमिनियम फाइल लपेटने से इसका छिलका जल्दी काला नहीं होता।


पत्तेदार सब्जियां

इनके डंठल तोड़कर फिर इसे पेपर में लपेट ले और फ्रिज में रखने से यह ताजा बनी रहती हैं।

नींबू

इसे पालीथीन में पैक करके कमरे के तापमान पर रखने से इसका रस अधिक दिनों तक सूखता नहीं।

पनीर

इसे मलमल के कपड़े में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह काफी समय तक ताजा बना रहता है।

ब्रेड

यह पालिथीन या एल्युमिनियम फाइल लपेटकर कमरे के तापमान पर रखने से ताजा बना रहता है।

अदरक-लहसुन पेस्ट

इसे पीसकर फ्रिज में रखने से पहले एक चम्मच वेजिटेबल आॅयल डाल दें। इससे यह कई दिनों तक खराब नहीं होगा।

Friday 8 April 2016

25 लीटर पानी की भारी कीमत चुकानी पड़ती है यहां



कभी किताबी बातें होती थी-जल ही जीवन है पर आज हर ओर यह दिखाई देने लगा है। सूखा, खेती के लिए पानी और अब पीने के पानी के लाले पड़ते दिख रहे हैं। कुछ ऐसा ही पिछले दो दशकों से धनबाद (झारखंड) में हो रहा है। वहां पर 65 प्रतिशत कुएं सूख चुके हैं यही हाल हैंडपंप का भी जहां 88 प्रतिशत हैंडपंपजल के स्थान पर हवा दे रहे हैं। उबाड़-खबाड़ रास्ते, पर्वत व जंगलों से भरे झरिया बकरीहाट में तो यह स्थिति बन चुकी है कि पानी के लिए 100 परिवार जान पर खेलकर 300 फीट नीचे गहरी खाई में उतर कर पत्तों की पाइपलाइन बनाकर खदान से रिस रहे जल को जमा कर रहे हैं। जहां पर 25 लीटर के गैलन को भरने में लगभग 3 घंटे लगते हैं।

पिछले 20 वर्षों से बंद इस खदान के दोनों ओर से हर समय पानी रिसता रहता है जिससे गांववासी अपनी प्यास बुझाते हैं। वे इस पानी को पत्थरों व पत्तों के साफ करते हैं व बर्तन में भर कर घर लाते हैं जिसके लिए 4 से 6 घंटे का समय लगता हैं।

Thursday 7 April 2016

आरबीआई से जुड़ी इन रोचक बातों को क्या जानते हैं आप?


आरबीआई यानी भारतीय रिजर्व बैंक हमारे देश के बैंकिंग सिस्टम को रेग्युलेट, करेंसी सिस्टम को ऑपरेट और बैंकिंग से संबंधित अन्य कार्यों को संचालित करता है। इसीलिए इसे ‘बैंकों का बैंक’ भी कहा जाता है। साधारणतः रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में परिवर्तन को आधार बनाकर ही कमर्शियल बैंक सभी प्रकार के लोन हेतु ब्याज दर निश्चित करते हैं। चलिए आज हम आपको रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया से संबंधित 13 रोचक तथ्यों से अवगत करवाते हैं।

1. आरबीआई का लोगो ईस्ट इंडिया कंपनी की डबल मोहर से प्रेरित था। इसमें थोड़ा-सा परिवर्तन किया गया है।

2. 1 अप्रैल, 1935 को रिजर्व बैंक का गठन एक निजी संस्था के रूप में किया गया था, पर अभी यह एक सरकारी संस्था बन चुकी है। वर्ष 1949 तक इस केंद्रीय बैंक का राष्ट्रीयकरण नहीं हो पाया था।

3. हमारे देश में वित्त वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है परंतु रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का फाइनेंशियल ईयर 1 जुलाई से 30 जून तक होता है।
4. आरबीआई मात्र करेंसी नोटों की छपाई करता है लेकिन सिक्कों के निर्माण का कार्य भारत सरकार करती है।

5. वर्ष 2003 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की पहली महिला डिप्टी गवर्नर केजे उडेशी को बनाया गया।
6. वर्ष 1938 में आरबीआई ने 5,000 व 10,000 रुपए मूल्य वर्ग के नोटों की छपाई की थी। बाद में वर्ष 1954 एवं 1978 में भी इन नोटों का प्रकाशन किया गया था।

7. आरबीआई भारत के साथ-साथ पाकिस्तान व म्यांमार के सेंट्रल बैंक की भी भूमिका निभा चुका है। जुलाई 1948 तक पाकिस्तान और अप्रैल 1947 तक म्यांमार के सेंट्रल बैंक के रूप में आरबीआई काम कर चुका है।
8. भारत में आरबीआई की स्थापना हिल्टन यंग कमीशन की रिपोर्ट को आधार बनाकर की गई थी।
9. आरबीआई में द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी नहीं हैं। इसमें 17 हजार श्रेणी-1, श्रेणी-3 और श्रेणी-4 के कर्मचारी कार्य करते हैं।
10. मनमोहन सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जोकि वर्ष 1982 से 1985 तक आरबीआई के गवर्नर रहे हैं।.

11. बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विरोध करने वाले सीडी देशमुख ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने आरबीआई के गवर्नर का पदभार संभाला था और वे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तीसरे गवर्नर बने। साथ ही वह सन् 1951-52 में अंतरिम बजट के समय भारत के वित्त मंत्री भी रहे।
12. आरबीआई, मुंबई हेडक्वार्टर पर मॉनिटरी म्यूजियम अर्थात् मौद्रिक संग्रहालय का भी संचालन होता है।


13. देशभर में आरबीआई के 29 ऑफिस हैं। इनमें से ज्यादातर कार्यालय राज्यों की राजधानियों में है।


Tuesday 5 April 2016

एक साल में ही गजब का विकसित हो गया यह गांव


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आदर्श गांव की अवधारणा के अच्छे परिणाम आने शुरू हो चुके हैं। यह बात दूसरी है कि सभी जगह से एक-से परिणाम नहीं आ रहे हैं। फिर भी जो चीजे उभरकर सामने आ रही हैं। उससे लग रहा है कि शुरूआती दौर में यह अच्छे नतीजे कहे जा सकते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक भारतीय गांव से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिसने केवल एक ही वर्ष में अपने सांसद की मेहनत से बेहतरीन विकास के पायदानों को छू लिया है।

गांव चीखली (नवसारी, गुजरात) आज से केवल एक वर्ष पहले पेयजल आदि आवश्यक सुविधाओं से काफी हद तक महरूम था। इसके बाद सांसद सीआर पाटिल ने प्रधानमंत्री महोदय की आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत चीखली गांव को गोद लिया। इसके बाद गांव ने विकास करना शुरू कर दिया है।

आज स्थिति यह है कि मात्र एक वर्ष में 20 लाख खर्च से गांव के सभी 450 घरों में पेयजल कनेक्शन लग गए हैं। 2 लाख रुपए खर्च कर प्रत्येक घर में शौचालय बनवाए गए है।

10 लाख खर्च कर सड़कों पर सीसीटीवी कैमरे लगा दिए गए हैं।  20 लाख खर्च कर जिले के प्रथम रिवरफ्रंट को भी तैयार किया जा चुका है।

पाटिल की माने तो एक वर्ष में चीखली गांव के विकास पर तीन करोड़ रुपए तक खर्च किए जा चुके हैं। साथ ही लगभग ढाई करोड़ रुपए ग्राम पंचायत ने भी खर्च किए।

गांव की सरपंच ज्योति बेन का कहना है कि गांव के विकास के साथ-साथ पर्यावरण पर भी विशेष ध्यान दिया गया है जैसेकि सीवेज का दूषित जल नदी में न गिरे, इसलिए फिल्टर प्लांट लगाया गया।

06 लाख खर्च कर गांव व सड़क के किनारे पर पौधे लगाए गए हैं। शवों को दहन हेतु इलेक्ट्रिक मशीन की व्यवस्था की गई है। गांव को स्वच्छ रखने के लिए 20 लाख खर्च किए गए हैं। आंगनवाड़ी में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।


Monday 4 April 2016

जान ले जल है तो कल है


किसी ने सत्य ही कहा है कि पानी की अगर ऐसे ही किल्लत होती रही तो तीसरा विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। इसीलिए सरकारी और गैसरकारी दोनों स्तर पर पानी बचाओ, अभियान चलाया जा रहा है। इसी के अंतर्गत आज से इंडिया वाटर वीक आरंभ हो रहा है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस बार वाटर वीक में इस्राइल को पार्टनर व गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं तेलंगाना पांच राज्यों को सक्रिय भागीदार बनाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह राज्य पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं। इसमें भी महाराष्ट्र की स्थिति बहुत खराब है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लातूर में तो कुएं, ट्यूबवेल व टैंकरों के करीब धारा 144 लगाकर पांच से अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है।

हमारे देश के 600 में 300 से अधिक जिले सूखे की मार से त्रस्त हैं। यह स्थिति एकदम से नहीं बनी। काफी समय लगा इन हालतों के बनने में और भविष्य में स्थिति और भी भंयकर होने की संभावना है। आंकड़ों पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि वर्ष 1951 में प्रतिव्यक्ति 5177 घनमीटर पेय जल मौजूद था जोकि सन् 2011 में घटकर 1150 घनमीटर रह ही गया। इसकी जड़ में एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन रहा है। साथ ही गत 50 वर्षों में हरित क्रांति में भूजल के लापरवाह उपयोग ने हमें यहां तक ला दिया। वास्तव में हम जल को भी वायु व प्रकाश की तरह मानकर उसका शोषण करते गए। इतना ही नहीं कूड़ा-करकट आदि बहाकर उसे विषैला बना दिया। ताल-तलैय्या, कुएं, नदियां, तालाब आदि बर्बाद होते चले गए। समर्सिबल पंप लगाने के लिए जहां पहले 60-70 फुट लंबा पाइप काफी होता था वहीं आज 150 फुट गहरा पाइप लगाने पर बदबूदार पानी ही आता है। ऐसे में, हमें निर्णय लेना होगा कि या तो पाइप की लंबाई बढ़ाते जाएं अन्यथा अपनी सोच को बड़ा करके वाटर हार्वेस्टिंग के उपायों को युद्धस्तर पर अपनाएं।