सोमवार, 4 अप्रैल 2016

जान ले जल है तो कल है


किसी ने सत्य ही कहा है कि पानी की अगर ऐसे ही किल्लत होती रही तो तीसरा विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। इसीलिए सरकारी और गैसरकारी दोनों स्तर पर पानी बचाओ, अभियान चलाया जा रहा है। इसी के अंतर्गत आज से इंडिया वाटर वीक आरंभ हो रहा है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस बार वाटर वीक में इस्राइल को पार्टनर व गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं तेलंगाना पांच राज्यों को सक्रिय भागीदार बनाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह राज्य पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं। इसमें भी महाराष्ट्र की स्थिति बहुत खराब है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लातूर में तो कुएं, ट्यूबवेल व टैंकरों के करीब धारा 144 लगाकर पांच से अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है।

हमारे देश के 600 में 300 से अधिक जिले सूखे की मार से त्रस्त हैं। यह स्थिति एकदम से नहीं बनी। काफी समय लगा इन हालतों के बनने में और भविष्य में स्थिति और भी भंयकर होने की संभावना है। आंकड़ों पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि वर्ष 1951 में प्रतिव्यक्ति 5177 घनमीटर पेय जल मौजूद था जोकि सन् 2011 में घटकर 1150 घनमीटर रह ही गया। इसकी जड़ में एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन रहा है। साथ ही गत 50 वर्षों में हरित क्रांति में भूजल के लापरवाह उपयोग ने हमें यहां तक ला दिया। वास्तव में हम जल को भी वायु व प्रकाश की तरह मानकर उसका शोषण करते गए। इतना ही नहीं कूड़ा-करकट आदि बहाकर उसे विषैला बना दिया। ताल-तलैय्या, कुएं, नदियां, तालाब आदि बर्बाद होते चले गए। समर्सिबल पंप लगाने के लिए जहां पहले 60-70 फुट लंबा पाइप काफी होता था वहीं आज 150 फुट गहरा पाइप लगाने पर बदबूदार पानी ही आता है। ऐसे में, हमें निर्णय लेना होगा कि या तो पाइप की लंबाई बढ़ाते जाएं अन्यथा अपनी सोच को बड़ा करके वाटर हार्वेस्टिंग के उपायों को युद्धस्तर पर अपनाएं।

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