Saturday 31 October 2015

काम करें लेकिन ऐसे नहीं की
काम बन जाए जान का खतरा


यदि आप भी अपने काम को पूरा करने एवं सीनियर्स को खुश करने या प्रमोशन के लिए ऑफिस में लंबे समय तक काम करते हुए लगातार बैठे रहते हैं तो सतर्क हो जाएं। चूंकि ऐसा करना आपके दिल और शरीर के लिए ठीक नहीं है। हाल ही में ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा उन लोगों को चेतावनी जारी की गई है जोकि लंबे समय तक लगातार बैठकर काम करते हैं। उनके अनुसार वह रोगों को न्यौता देते हैं। एक दूसरे शोध की माने तो लंबे समय तक बैठकर काम करने के बीच प्रतिघंटे उठकर चहलकदमी करने से नकारात्मक प्रभाव कम होता है। सौरभ तोसार (शोधकर्ता, ओरेगोन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी) ने तो यहां तक दावा किया है कि ‘हमने शोध में पाया कि पांच मिनट की चहलकदमी मात्र से लंबे समय तक बैठने से पैरों की धमनियों पर पड़ने वाला कुप्रभाव कम हो जाता है।...हमने देखा कि लंबे समय तक बैठे रहने का संबंध एंडोथेलियल प्रक्रिया से है, जो दिल संबंधी रोगों का मुख्‍य कारक है। लंबे समय तक बैठने के दौरान बीच-बीच में चहलकदमी करते रहने से एंडोथेलियल प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।...एंडोथेलियल प्रक्रिया एक घंटे तक लगातार बैठे रहने से प्रभावी होती है।’

कुछ इसी तरह की बात एक इंटरनैशनल मैगजीन में भी कही गई है कि जितनी हानि स्मोकिंग से होता है, उससे कहीं अधिक सेडेंटरी लाइफस्टाइल से होती है। स्मोकिंग कैंसर व हार्ट के रोग पैदा करती है तो लगातार बैठे रहने से इन रोग के अतिरिक्त अनेक दूसरी बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। इंटरनैशनल जरनल में प्रकाशित यह स्टडी बताती है कि कुर्सी पर बैठे रहने से विभिन्न रोगों से मृत्यु के खतरे को 27 प्रतिशत और टी.वी. देखने से होने वाली बीमारियों से मौत होने का खतरा 19 प्रतिशत होता है।
डॉ. सी. एस. यादव (ऑर्थोपेडिक सर्जन, एम्स) के अनुसार सेडेंटरी लाइफस्टाइल एक साथ कई रोगों की जड़ है। सेडेंटरी लाइफस्टाइल का अर्थ है ऐसा रुटीन, जिसमें लोग काफी लंबे समय तक बैठे रहते हैं।...मेट्रो शहरों में सेडेंटरी लाइफस्टाइल की वजह से बच्चों से लेकर बड़ों तक पर असर हो रहा है। लंबे समय तक बैठ रहने से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है व कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है। इससे हार्ट पर भी असर होता है। अगर आप ऑफिस में भी हैं तो लगातार बैठे नहीं रहें, बीच-बीच में उठकर टहलें, बॉडी स्ट्रेच करें। अगर दिन में एक घंटा भी कोई इंसान फिजिकल ऐक्टिविटी करता है तो उनमें यह परेशानी उतनी नहीं होती।

 डॉ. यश गुलाटी (ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट, अपोलो) भी इस बात से इतफाक रखते हुए कहते हैं कि लंबे समय तक कुर्सी पर बैठने से सबसे अधिक परेशानी कमर व बॉडी के मसल्स को होती है। शुरुआत में कमर में दर्द होता है। बाद में इसका असर बॉडी के मसल्स पर भी पड़ता है। बैठे रहने की वजह से बॉडी में कोई एक्टिविटी नहीं होती, बंद कमरे में लंबे समय तक लोग रहते हैं तो सनलाइट नहीं मिलती, विटामिन डी की कमी होने लगती है, वजन बढ़ने लगता है।

लगातार बैठकर काम करने नुकसान 

एक ही मुद्रा में लंबे समय तक बैठेने से शरीर के प्रत्येक हिस्से को नुकसान होता है।
रक्त के थक्के जमने लगते हैं जोकि मस्तिष्क में पहुंचकर स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं।
पूरे दिन बैठे रहने से पल्मोनरी एम्बोलिज्म अर्थात् फेफड़ों में रक्त के थक्के जमने की संभावना बढ़ जाती है।
घंटों बैठने से शरीर के अंगों के सुन्न होने अर्थात् हाई ब्लडप्रेशर की आशंका बढ़ती है।
लगातार बैठने से कोलोन कैंसर, मोटापा आदि रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
शरीर की रक्त धमनियों में चर्बी जमने न देने वाले एंजाइम काम करना बंद कर देते हैं।
शरीर की गतिविधियां कम होती जाती हैं।
गर्दन की मांसपेशियां दर्द करने लगती हैं। रक्त का सही संचार न होने से सुन्नता व नसों को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है।
रीढ़ की हड्डी पर जोर पड़ती है व उसमें दर्द या इंजरी आ सकती है।
बैठे रहने से पैरों में एकत्र तरल रात को सोते समय गर्दन तक आ जाते है जिससे स्लीप एप्नीया यानी सोते समय सांस में रुकावट हो सकती है। खड़े होने, टहलते आदि से तरल शरीर में चारों ओर फैले रहते हैं।
लंबे समय तक बैठने से मांसपेशियां सुस्त पड़ जाती हैं व दिल को खून का संचार नहीं कर पातीं। इससे धमनी द्वारा ब्‍लड सर्कुलेशन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे पैर की धमनियों में खून का संचार रुक जाता है।

बचाव

बैठे-बैठे लंबे समय तक काम करने के बीच-बीच में तीन से चार घंटे खड़े रहने या टहलने का प्रयास करें
दो-तीन घंटे लगातार काम के बीच में पांच से दस मिनट तक अवश्य टहलें।
ऑफिस की अपेक्षा सीढिय़ों का प्रयोग करें।
कुर्सी पर बैठे-बैठे ही हाथों व पैरों को हिलाकर हल्की एक्सरसाइज करें ताकि खून का संचार सही से बना रहे।
फोन, चाय, सहयोगी से सामान लेने आदि के लिए स्वयं जाएं।

Thursday 29 October 2015

सामने आई एक नई शोध

युवावस्था में फल और सब्जियां खाने वाले
वृद्धावस्था तक बने रहते हैं दिल से स्वस्थ 


हमारे देश में बच्चों और युवाओं को खिलाते समय कहा जाता है कि ‘‘खा ले यही उम्र है, यही खाया-पिया बुढ़ापे में तुम्हारे काम आएगा।’’ इस बात को सपोर्ट करती एक नई अमेरिकी रिसर्च सामने आई है जिसके अनुसार युवावस्था में अधिक फल और सब्जियां खाने वालों के लिए बुढ़ापे में दिल के रोग का खतरा कम हो जाता है। इससे पहले ऐसी कोई डायरेक्ट स्टडी नहीं हुई थी। यह शोध मिनेसोटा स्थित मिनेपोलिस हार्ट इंस्टीट्यूट के डॉ. माइकल डी. मिडेमा व उनकी टीम द्वारा अमेरिका में 30 वर्षों तक 2500 से अधिक युवाओं पर किया गया। इससे पहले अधिकांशतः वृद्ध लोगों के भोजन और दिल के रोगों की स्टडी की गई थी।

इस शोध में, 1985 में शोधकर्ताओं द्वारा 18-30 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की डाइट हिस्ट्री व दूसरे हेल्थ रिलेटेड डाटा इकट्ठे किए गए। इस लांग टर्म स्टडी के लिए रिसर्चर्स द्वारा 2506 पार्टिसिपेंट्स को फल व सब्जियों के खाने के अनुसार तीन ग्रुपों में बांटा गया। टॉप ग्रुप में उन युवाओं को रखा गया जोकि प्रतिदिन औसतन 7-9 बार सब्जियां व फल खाते थे। बाटम ग्रुप में उन युवाओं को रखा गया जोकि दिन में 2-3 बार ही फल और सब्जियां खाते थे। सन् 2005 में इन पार्टिसिपेंट्स की हार्ट की आर्टरीज का सीटी स्कैन करके डाटा एकत्र किया गया। ठीक दस वर्षों बाद पुनः जांच की गईं। इससे पता चला कि जो युवा सब्जियां व फल अधिक खाते थे, उनमें कम खाने वालों की अपेक्षा आर्टरी में ब्लॉकेज 26 प्रतिशत कम पाई गई। इस शोध से पब्लिश हुए डाॅटा की माने तो फल एवं सब्जियों की भरपूर मात्रा वाली डाइट आपको कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से प्रोटेक्ट करती है।

ऐसे रख सकते हैं अपने दिल को स्वस्थ


  • मोनोसैचुरेटेड फैट्सयुक्त ऑलिव ऑयल बैड कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करके हार्ट डिजीज के खतरे को कम करता है। 
  • दिन में एक कटोरी ओटमील लें। इसमें अधिक मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, फोलेट, फाइबर व पोटेशियम रहता है। जोकि दिल के लिए बहुत ही अधिक लाभदायक है। फोलेट द्वारा एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है।
  • अखरोट, बादाम आदि नट्स भी ओमेगा-3 फैटी एसिड्स से बड़े स्रोत हैं जोकि फाइबर की कमी को भी पूरा करते हैं। 
  • अलसी को खाने में शामिल करने से फाइबर, ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फैटी एसिड्स की कमी को पूरा किया जा सकता है। 
  • राजमा चैला आदि बीन्स व साबुत मूंग को खाने में शामिल करने से ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, कैल्शियम, फाइबर व सॉल्युबल फाइबर की कमी पूरी की जा सकती है।


Saturday 24 October 2015

हिंदुस्तान कैसे था सोने की चिडि़या जाने

हमारे देश भारत के बारे में हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ हैं कि यह ‘‘सोने की चिडि़या’’ था। इसको विदेशी आक्रमणकारियों मुगलों, पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों ने इतना लूटा कि देश की स्थिति बिगड़ गई। आज की स्थिति को देखें तो हम यूरोपीय देशों की भांति जीडीपी बढ़ाने एवं विकास करने की सोच रखते हैं। आपको आज हम ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिनपर शायद ही आप विश्वास करें लेकिन यह सच हैंः
1. एक ऐसा भी दौर था जब पूरी ग्लोबल इकोनॉमी पर एक हजार साल तक भारत का सिक्का चलता था। विश्व में उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की भागीदारी 25 प्रतिशत तक थी।
2. भारतीय सभ्यता ने सदैव विश्व विजय के लिए युद्ध के स्थान पर व्यापार का सहारा लिया। इसी का परिणाम था कि गत दो हजार वर्षों में लगभग 80 प्रतिशत समय तक विश्व अर्थव्यवस्था में भारत प्रथम नंबर पर रहा।
3. प्रो. एंगस मैडिसन ने इस संबंध में लिखा है प्रथम शताब्दी से 1000 ईस्वी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की नंबर एक अर्थव्यवस्था रही थी। 1000 ईसवी में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया की इकोनॉमी की अपेक्षा 29 प्रतिशत थी। इसी दौर में चीनी जीडीपी भारतीय जीडीपी का 79 प्रतिशत थी। वहीं इसी दौरान पूरे पश्चिमी यूरोप की जीडीपी भारतीय जीडीपी का एक तिहाई थी। 15वीं-17वीं शताब्दी में चीनी जीडीपी भारत से अधिक रही। हालांकि 17वीं शताब्दी में एक बार फिर भारतीय जीडीपी चीन से अधिक हो गई।
4. मैडिसन द्वारा 1990 के डॉलर के मूल्य को आधार बनाकर गणना की गई थी। यदि उनकी गणना को माने तो 17वीं शताब्दी में भारतीय जीडीपी 9,075 करोड़ डॉलर थी। वहीं चीनी जीडीपी 8,280 करोड़ डॉलर व पश्चिमी यूरोप की जीडीपी 8,339 करोड़ डॉलर थी।
5. इतिहास पढ़े तो पता चलता है कि भारत की खोज का एक प्रमुख कारण मांस को जायेदार बनाने के लिए मसालों का लोभ भी रहा। इन्हीं मसालों की मांग ने भारत को विश्व अर्थव्यवस्था में प्रथम स्थान दिया।
6. ईसा पूर्व से लेकर शताब्दी के आरंभ तक भारतीय मसालों के व्यापारियों ने भारतीय बाजार पर पकड़ बना ली। इसमें रोम प्रमुख था। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि प्रतिवर्ष 120 पानी के जहाज अगस्टस के समय में भारत के लिए चलते थे। इस व्यापार में रोम द्वारा भारतीय व्यापारियों को इतना धन दिया जाता था कि प्लिनी जैसे इतिहासकार ने तो भारत को रवाना किए जा रहे सोने पर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। प्लिनी के शब्दों में, व्यापार में रोमन साम्राज्य प्रतिवर्ष कम से कम 10 करोड़ रोमन मुद्रा चुका रहा है। रोमवासियों हेतु काली मिर्च इतनी आवश्यक बन चुकी थी कि प्रथम शताब्दी में रोम में विशेष रूप से काली मिर्च के वेयरहाउस बनाए गए थे।
7. शायद यह जानकर आपको आश्चर्य हो कि 408 ईसवी में रोम को घेरने वाले राजा ने शहर से अपनी सेना को हटाने हेतु 3000 पाउंड काली मिर्च की मांग कर दी थी।
8. मसालों की बढ़ती मांग ने यूरोपीय लोगों को नए भारतीय समुद्री रास्तों को ढूंढने पर मजबूर कर दिया। चूंकि जमीनी स्तर पर होने वाले व्यापार में बिचैलियों की बढ़ती संख्या से दाम बढ़ते जा रहे थे।
9. मध्यकाल तक भी सबसे अधिक मांग काली मिर्च की ही रही। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि अनेकों बार तो काली मिर्च की कीमत उसी वजन की चांदी के समान होती थी। इसीलिए उस दौर में काली मिर्च खपत के साथ भुगतान व कीमती तोहफे का भी माध्यम थी।
10. सन् 1468 में एक शाही परिवार के सदस्य द्वारा अपनी शादी में 150 किलो से अधिक काली मिर्च अतिथियों में वितरित की गई थी। इतना ही नहीं जर्मनी जैसे देश में भी काली मिर्च भोजन का अभिन्न अंग बन गई थी।
11. मध्यकाल तक काली मिर्च आदि अनेक मसाले विश्व व्यापार पर अपनी धाक बनाएं रहे, जिसका लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को हुआ। दूसरी ओर, इसका बुरा प्रभाव भी रहा क्योंकि हिंदुस्तान को ऐसे कारोबारियों व विदेशी राजाओं के हमलों का शिकार भी होना पड़ा। इसीलिए कहा जाता है कि अधिकांश हमलावर हिंदुस्तान की दौलत के किस्से सुनकर ही यहां पहुंचे थे।  
   
12.16वीं सदी के दौरान भारतीय जीडीपी विश्व की कुल जीडीपी की एक चैथाई थी। कई इतिहासकारों की माने तो सन् 1600 में अकबरी खजाने का मूल्य 1.75 करोड़ पाउंड था। यदि इस रकम की तुलना लगभग 200 वर्ष पश्चात् ब्रिटेन की ट्रेजरी से करें तो वहां मात्र 1.6 करोड़ पाउंड ही जमा थे।
13. मुगलाई मयूर सिंहासन का निरीक्षण करने वाले यात्री टेवरनियर की माने तो तख्त हीरों और मोतियो से जड़ा हुआ है। उस पर 100-200 कैरेट के 108 रूबी व 30-60 कैरेट के 110 पन्ने जड़े थे। यह 10 करोड़ रुपए का था। फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार यह उस दौर के 4 करोड़ रुपए के बराबर था।
14. ताजमहल के निर्माण पर 3.2 करोड़ रुपए का खर्चा हुआ था। यह राशि इस समय के लगभग 52 अरब रुपए के बराबर थी।
10. शाहजहां की वार्षिक आय आज के समय के हिसाब से उस समय 10,500 करोड़ रुपए थी।  

Wednesday 21 October 2015

इन बातों को अपनायें
गलतियां करने से बचें और जीएं खुशहाल लाइफ

नवरात्र पर्व इन दिनों बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। कल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा है। आज हम इन्हीं दोनों पर्वों से अच्छाइयों को अपनाने एवं बुराइयों को त्यागने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देने के लए चर्चा करेंगे तो चलिए सबसे पहले हम माता दुर्गा से लाइफ मैनेजमेंट के बारे में सीखेगेः


  • संस्कृत शब्द ‘‘दुर्गा’’ का अर्थ है-सबसे शक्तिशाली। इसीलिए मां दुर्गा को सब देवताओं में शक्तिशाली माना जाता है। मां दुर्गा के नाममात्र से नकारात्मक शक्तियां और दोष दूर हो जाते हैं। वेबसाइट इंडिया करंट्स की माने तो ‘मां दुर्गा के आठ हाथ हैं जिनमें आठ तरह के शस्त्र हैं। हर शस्त्र व हाथों की मुद्राएं जीवन के लिए कुछ न कुछ सीख देतीं है।’
  • दुर्गा मां के ऊपरी व दाएं हाथ में धर्म चक्र है जोकि हमें अपने कर्तव्र्यों व जीवन के उत्तरदायित्वों को शानदार ढंग से पूरा करने की सीख देता है।
  • दुर्गा मां के ऊपरी बाएं हाथ का शंख हमें प्रेरणा देता है कि हमें जीवन में संतोष रखकर खुशी व हंसमुख रहकर अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथों की तलवार पे्ररित करती है कि हमें भेदभाव व अपने दुर्गुणों का उन्मूलन करना चाहिए।
  • दुर्गा मां के निचले हाथ का धनुष व तीर हमें सीख देता है कि हमें भी अपना चरित्र भगवान राम की तरह बनाना चाहिए। जिंदगी चाहे कितनी भी मुश्किले दे पर हमें अपने धैर्य, चरित्र व मान-सम्मान को नहीं खोने देना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ का कमल हमें प्रेरित करता है कि हमें बाहरी विश्व में मोहमाया रहित होकर जीवन जीना चाहिए। जिसप्रकार दलदल में खिलकर भी कमल मुस्कुराता रहता है। उसी प्रकार इस दलदल रूपी विकारों से भरी दुनिया में हमें अपनी मुस्कान को नहीं खोना चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ में पकड़ा गदा भक्ति व समर्पण का प्रतीक माना जाता हैं यानि हमें अपने जीवन में भक्ति व समर्पण का भाव रखकर सर्वशक्तिमान की इच्छा के रूप में परिणाम स्वीकार करने चाहिए।
  • दुर्गा मां के हाथ में त्रिशूल साहस का प्रतीक है जोकि प्रेरित करता है कि हमे अपने नकारात्मक गुणों का संहार करके जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए ताकि सफलता हमारे कदमों में हो।
  • दुर्गा मां का आशीर्वाद के लिए उठा एक हाथ बताता है कि हमें अपनी व दूसरों की गलतियों को भूलाकर जीवन में आगे बढ़ते जाना चाहिए।
  • दुर्गा मां का शेर प्रतीक है-असीमित शक्ति का जोकि बताता है कि शक्ति मात्र असीमित शक्ति के सानिध्य में ही रह सकती हैं। वास्तव में, शेर अहंकार, क्रोध, स्वार्थ आदि अनियंत्रित बुराइयों को नष्ट करने का प्रतीक है। इससे सीख मिलती है कि हम अच्छाईयां बटोरे व लालच, ईष्र्या, इच्छा, आदि नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित करें।
  • मां दुर्गा की लाल रंग की साड़ी बुराई को नष्ट करने का प्रतीक हैं। मानव जाति की रक्षा और उन्हें दानवों से बचाने के लिए मां हमेशा तत्पर रहती हैं। 
  • मां दुर्गा स्त्री में शक्ति का प्रतीक हैं। उनके मुख की आभा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। 

रावण से सीखें जीवन में किन-किन कामों को न करेंः


  • विद्वान ब्राह्मण रावण सभी शास्त्रों, ज्योतिष व पूजा-पाठ का ज्ञाता था पर उसकी बुराइयों ने सभी अच्छाइयों के महत्व को समाप्त कर दिया था। रावण कभी किसी की सही सलाह नहीं मानता था। जिद्दी स्वभाव से रावण ने विभीषण, मंदोदरी, कुंभकर्ण, माल्यवंत, हनुमानजी आदि की सलाह नहीं मानी कि श्रीराम से शत्रुता न ले व सीता को लौटा दे इसी गलती से रावण का अंत हुआ। अतः हमें भी हमेशा सही सलाह को तुरंत मान लेना चाहिए।
  • रावण स्त्रियों को मात्र भोग-विलास की वस्तु मानता था। रंभा की सुंदरता पर मोहित रावण ने एक बार रंभा का अपमान किया। रंभा ने जब नलकुबेर (रावण के भाई कुबेर देव का पुत्र) को यह बताया तो उसने रावण को शाप दिया कि रावण जब भी किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसे छुएगा या अपने महल में रखेगा तो वह भस्म हो जाएगा। इसी वजह से रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा था। अतः हमें भी स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। 
  • रावण को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था जिससे वह श्रीराम को साधारण शत्रु समझा पर श्रीराम ने उसका वध कर दिया। अतः स्वयं पर विश्वास होना अच्छी चीज पर हां शत्रु को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए।
  • रावण सिर्फ खुद की तारीफ ही सुनता था। उसके सामने शत्रु की प्रशंसा करने पर दंड दिया जाता था। यही कारण है कि रावण हमेशा ही चापलूसों से घिरा रहता था। अतः हमें चापलूसों से निकलकर सच सुनने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। 

Tuesday 20 October 2015

12.5 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में मिले कीटनाशक 
आॅर्गेनिक सामग्री में भी 
मिले खतरनाक कीटनाशक


यदि आप यह सोच रहे हैं कि ताजा सब्जियों, फलों और दूध के रोज सेवन से आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा तो यह सोच गलत साबित हो सकती है। वास्तव में, देश के 12.5 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में खतरनाक कीटनाशक पाए गए हैं, जो आपको अनजाने में गंभीर बीमारियों का शिकार बना रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा करवाए इस अध्ययन की माने तो अधिकांश सब्जियों, फलों, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों में सबसे अधिक खतरनाक कीटनाशक पाए गए हैं। अध्ययन के लिए ये नमूने देश के विभिन्न खुरदा और थोक दुकानों से इकट्ठा किए गए थे। चाौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि आॅगेर्निक खाद्य पदार्थ बेचने का दावा करने वाली दुकानों से लिए गए नमूनों में भी खतरनाक कीटनाशक पाए गए।

केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2005 में खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों की मौजूदगी पर निगरानी के लिए शुरू की गई योजना के तहत वर्ष 2014-15 में लिए गए कुल 20,618 नमूनों से 12.50 प्रतिशत में खतरनाक कीटनाशक पाए गए। इन नमूनों का देश के 25 प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया गया। परीक्षण रिपोर्ट में 12.5 प्रतिशत नमूनों में
एसफेट, बाइफेंथ्रीन, एस्टैमीप्राइड, ट्राइआजोफोस, मटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, ट्राइआजोपफोस, मेटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, ट्राइआजोफोस, मैटालैक्सील, मैलाथीन, एस्टैमीप्रीड, कार्बोसल्फान, प्रोपफोनोफोस और हेक्साकोनाजोल जैसे अस्वीकृत कीटनाशक पाए गए। यानी इन कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 18.7 प्रतिशत
नमूनों में कीटनाशक पाए गए जबकि 2.6 प्रतिशत नमूनों में फूड सेफ्टी और स्टैंडर्स अथाॅरिटी आॅफ इंडिया (एफ.एस.एस.ए.आई.) की ओर से तय कीटनाशक की अधिकतम मात्रा में अधिक कीटनाशक पाए गए। 

Saturday 17 October 2015

पीएफ के लिए होगा अब आॅनलाइन आवेदन 
तीन घंटे में आ जाएगा पैसा

यदि आपका भी पीएफ कटा है और आप इसे निकालवाने के लिए धक्के खाते फिर रहे हैं तो आपके लिए खुशखबरी है। प्राॅविडेंट फंड (पीएफ) विभाग इस दिशा में काम कर रही है। इसके बाद पीएफ अंशधारकों को आॅनलाइन निकासी की सुविधा मिल जाएगी यानि घर बैठे आपका पैसा मात्र तीन घंटे में आपके खाते में जमा हो जाएगा। यह सुविधा मार्च 2016 तक शुरू हो जाएगी।
आपको बता दें कि गत 15 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीएफ निकासी में आधार काॅर्ड को ऐच्छिक कर दिया गया है। इसके बाद आधार को पीएफ से लिंक करने का रास्ता साफ हो गया है। आधार काॅर्ड के पीएफ खाते से लिंक होने से यह प्रक्रिया आसान व तेज हो जाएगी।
आॅनलाइन सुविधा शीघ्र शुरू करने हेतु ईपीएफओ, यूआईडीएआई का रजिस्ट्रार भी बन गया है। इसके अलावा, ईपीएफओ, यूआईडीएआई का आॅनलाइन अथोन्टिकेट करने की एजेंसी भी बना दी गई है। आॅनलाइन काम करने के लिए पीएफ के 40 प्रतिशत अंशधारकों के पास यूएएन का नंबर होने चाहिए, जिनका आधार के साथ-साथ बैंक खाता नंबर भी लिंक हो। ईपीएफओ की वेबसाइट की माने तो 5.6 करोड़ अंशधारकों को यूएएन नंबर दिया जा चुका है जिसमें से 92.88 लाख अंशधारकों ने अपने आधार नंबर व 2.75 धारकों ने अपना बैंक खाता नंबर दिया है।
श्री केके जालान, कमिश्नर, की माने तो हम जल्द ही इस सुविधा को लाॅन्च करना चाहते हैं लेकिन इससे पहले हम उन केस को पूरा करना चाहेंगे जिन्होंने अपने क्लेम फार्म में आधार नंबर दे रखा है। इसके लिए हम उन क्लेम को तीन दिन के अंदर पूरा करने की कोशिश करेंगे जिसपर आधार नंबर दिया गया है। अभी क्लेम का रिफंड मिलने में 20 दिन का समय लगता है।

Thursday 15 October 2015

ये हम कहां जा रहे हैं और वो कहां? 
जानना चाहते हैं तो पढ़े जरूर 
क्या हिंदुस्तान की मात्र जुबान ही बनकर रह जाएगी-हिंदी


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र का सपना मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत और देश व उससे जुड़ी चीजों के विकास का सपना क्या पूरा हो पाएंगा? इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य के गर्भ में हैं जोकि समय के साथ-साथ स्वयं ही सामने आ जाएगा। खैर हमारा मकसद यहां पर इन चीजों पर चर्चा करना भी नहीं है। हमारा प्रयास है दो विशेष बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने का। जहां एक ओर हम भारतीय अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं वहीं प्रतिष्ठित एवं बड़ी कंपनियों को अब हिंदी की शरण लेनी पड़ रही है।
जी हां। शायद आपको हमारी बात पर विश्वास न हो लेकिन यह सत्य है? यह हमारा कहना नहीं है यह आंकड़े और वर्तमान गतिविधियां प्रदर्शित कर रही हैं। चलिए आपको इनसे रूबरू करवाते हैं।

क्या अंग्रेजी की ओर हमारा झुकाव इतना हैः

देश की आजादी के बाद से ही हिंदी पर जोर दिया जाता रहा है। समाज ने इसे कितना अपनाया यह एक चर्चा का विषय है। हमारा उद्देश्य यहां इसपर विचार-विमर्श करना नहीं बल्कि आपका इस सच्चाई से साक्षात्कार करवाना है कि देश के स्कूलों से मिले ब्यौरों के आधार पर नैशनल युनिवर्सिटी आॅफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के डिस्ट्रिक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम फाॅर एजुकेशन (डीआईएसई) की ओर से जारी किए आंकड़ों से रूबरू करवाना है। इन आंकड़ों की माने तो 2008-09 से 2014-15 के बीच हिंदी माध्यम स्कूलों में नामांकन 25 प्रतिशत बढ़ा है जबकि अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का नामांकन इस दौरान बढ़कर दुगना हो गया है।
इसमें भी विशेष और विचारणीय बात यह है कि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की लोकप्रियता में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हिंदी भाषायी राज्यों में ही स्पष्ट दिखाई दे रही है। आंकड़ों की माने तो देश के दो प्रमुख बड़े राज्यों बिहार में अंग्रेजी भाषी विद्यालयों में नाम दर्ज करवाने वाले बच्चों की संख्या में 47 गुनी बढ़ी है जबकि उ.प्र. में 10 गुनी। दूसरी ओर इन्हीं राज्यों में हिंदी भाषी विद्यालयों में नामांकन क्रमशः 18 प्रतिशत व 11 प्रतिशत बढ़ा है। दूसरे राज्यों की स्थिति में इससे कोई बहुत अलग नहीं कही जा सकती।
समग्र रूप से देखे तो आज पूरे भारत में हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 10 करोड़ 40 लाख है जबकि अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले बच्चों की संख्या केवल 2 करोड़ 90 लाख। हिंदी भाषी विद्यालयों के बढ़े हुए अंाकड़ों से आप गलत अंदाजा न लगाए। इनमें पढ़ने वाले बच्चों में से अधिकांश के अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर हैं जोकि अंग्रेजी स्कूलों के खर्च को नहीं उठा पा रहे।
यह स्थिति समाज को दो वर्गों में विभाजित कर रही है जोकि धर्म, जाति, संप्रदाय आदि के विभाजन से भी खतरनाक स्थिति है। इसपर सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

प्रतिष्ठित कंपनियां भी अब अपनाने लगी हैं विज्ञापनों में हिंदी को  

दूसरी ओर, इस स्थिति को भी नहीं नकारा जा सकता है कि आज प्रतिष्ठित कंपनियां भी प्रसार-प्रसार में हिंदी का उपयोग करने लगी है यानि उन्होंने हिंदी की उपयोगिता स्वीकार लिया है।
इसका प्रमाण हैः
1. Fashion101.in  को देश की पहली व एकमात्र बहुभाषी फैशन वेबसाइट के रूप में लॉन्च किया गया यानि यह अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और गुजराती में भी उपलब्ध होगी।
2. Diesel ने अपने नये विज्ञापन में ग्राहकों को हिंदी में संबोधित किया है। शायद यह पहला महंगा ब्रैंड है जिसने हिंदी पाठकों से हिंदी में संवाद कायम किया है। मजे की बात यह है कि इस इटैलियन फैशन कंपनी ने विज्ञापन में उन्हीं चित्रों व ग्राफिक्स का उपयोग किया है जिनका इस्तेमाल इनके इंटरनैशनल कैंप में हुआ हैं। इससे संदेश आता है कि हम मात्र उनके लिए नहीं हैं जो अंग्रेजी बोलते और जानते हैं।
3. Montblanc द्वारा अनेक बार स्थानीय भारतीय भाषाओं में निमंत्रण पत्र प्रकाशित किया जा चुका है।
कई बुद्धिजीवियों की इसके पीछे सोच हो सकती है कि भाषा एक बहुत ही अजीब चीज होती है जोकि मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि दिमागी, सांस्कृतिक व भावनात्मक रूप से भी हमें प्रभावित करती है। नहीं विश्वास तो आप किसी द्विभाषिय से यह जान सकते हैं कि किसी हिंदी चुटकुले को अग्रेजी में अनुवादित करना कितना मुश्किल होता है। कुछ शब्द केवल सुने नहीं, अनुभव किए जाते हैं व कुछ विचार सिर्फ समझे जा सकते हैं, समझाए नहीं जा सकते।
पर चाहे, जो, कोई कुछ भी कहे पर हां यह मानने लायक बात है कि एक नई शुरूआत हो चुकी है भविष्य में यह एक बड़े रूप में हमारे सामने आ सकती हैं। 

Monday 12 October 2015

अंतरिक्ष से जुड़ी इन बातों को जानते हैं आप?


आप शायद ही इन अंतरिक्ष से जुड़ी रोचक जानकारियों को जानते होंगेः

  • एक अंतरिक्ष सूट बनाने में लगभग 12 मिलियन डॉलर अर्थात् 77 करोड़ 70 लाख रुपए का खर्चा आता है।
  • स्पेस यानि अंतरिक्ष में आप किसी दूसरे के सामने खड़े होकर चाहे कितना ही तेज चिल्लाएं वह आपकी आवाज नहीं सुन पाएगा। चूूंकि वहां ऐसा कोई माध्यम ही नहीं है जिसके द्वारा आपकी आवाज एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच पाएं। 
  • स्पेस में जब धातु के दो टुकड़े एक दूसरे को छूते हैं तो वह परमानेंट जुड़ जाते हैं।
  • वायुमंडल से अंतरिक्ष वाहन को बाहर निकालने के लिए न्यूनतम 7 मील प्रति सेकंड की रफ्तार की आवश्यकता पड़ती है। 
  • आप चाहे कितना ही चाहे पर अंतरिक्ष में कभी नही रो पाएंगे चूंकि आपके आंसू नीचे नही गिरेंगे।
  • सन् 1966 में बज एल्ड्रिन ने अंतरिक्ष में पहली सेल्फी खींची जिसकी कीमत आज की डेट में 6 लाख रुपए है।
  • अंतरिक्ष यात्री द्वारा अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करने पर उसकी लंबाई 2.25 इंच तक बढ़ जाती है। चूंकि स्पेस में कम गुरुत्वाकर्षण से आदमी की रीढ़ की हड्डी को धरती पर लगने वाले खिंचाव से छुटकारा मिल जाता है। 
  • अंतरिक्ष यान में सोना या स्लिपिंग के लिए आंखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है और फिर एक बंक में सोना
    होता है ताकि तैरने व इधर-उधर टकराने से बचा जा सकें।
  • सूरज को स्पेस से देखे तो वह काला दिखाई देता है।
  • हमारी धरती से दिखाई देने वाला नीला आकाश अंतरिक्ष यात्रियों को काला दिखाई देता है।
  • गुरुत्वाकर्षण के अभाव से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में कमजोरी आ जाती है जिससे बाहर आने में उसे करीब 2-3 दिन का समय लग सकता है।
  • किसी व्यक्ति को बिना सुरक्षा इंतजाम के स्पेस में छोड़ने के मात्र 2 मिनट बाद ही उसकी मौत हो जाती है। 
  • अंतरिक्ष से देखने पर द गे्रट वाॅल आॅफ चाइना दिखाई नही देती।
    चूंकि चाइना में वायु प्रदूषण बहुत अधिक है।
  • गुरुत्वाकर्षण के अभाव में अंतरिक्ष यात्री भोजन पर नमक, मिर्च आदि नहीं छिड़क पाते एवं खाने में लिक्विड लेते हैं। चूंकि सूखा खाना हवा में उड़ने लगता है। यहां तक कि अंतरिक्ष यात्री की आंख में भी घुस जाता है।
  • अंतरिक्ष यात्री स्पेस सूट के साथ सीटी नही बजा सकते। चूंकि इसमें हवा का दबाव काफी कम होता है।

Saturday 10 October 2015

गाय सुनती है लाइव म्यूजिक
इससे बढ़ जाता है उसका दूध


आपने शायद ही सुना हो कि कोई गाय लाइव संगीत सुनने जाती है। जी हां, यह सत्य है। वुडस्टॉक फार्म एनिमल सैंक्चुअरी (न्यूयॉर्क) में एक गाय लाइव म्यूजिक सुनती हैं। इस गाय को संगीत सुनाने के लिए विशेष रूप से बोविन म्यूजिक सोसायटी के परफॉर्मर आते हैं। गाय बहुत ही शांत भाव से इस संगीत का मुल्फत उठाती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि संगीत सुनकर यह गाय दूध भी अधिक देती हैं। यह बात दूसरी है कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2004 की एक खबर की माने तो हमारे देश में भी कोढ़ा गांव (बैतूल, मध्य प्रदेश) के पशुपालक रवि देशमुख की गाय जब तक संगीत नहीं सुन लेती थी दूध नहीं देती थी। यहां तक कि रेडियो को बंद करते ही गाय उछलने-कूदने लगती थी।
ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर की एक शोध से यह बात सामने आई है कि कुछ गायों को अनेक तरह की धुनें सुनाई गई इसके बाद उनके दूध की मात्रा को नापा गया। इससे यह बात निकलकर आई कि कुछ विशेष प्रकार की धुनें सुनने वाली गायों द्वारा अधिक दूध दिया गया। शोध बताती है कि गायों के दूध में 3 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई। आपको चाहे यह बढ़ोतरी कोई खास न लगे किंतु डेरी फार्मस के लिए यह बहुत महत्व रखती है।
शोध में बताया गया है कि गाय के दूध में वृद्धि का प्रमुख कारण यह रहा कि म्यूजिक सुनकर गाय अधिक रिलैक्स हो गई थी। इससे उनके दूध के प्रोडक्शन में वृद्धि हो गयी। साथ ही विचार करने योग्य बात यह है कि जिन गायों को म्यूजिक के अलावा दूसरे तरीकों से रिलैक्स करवाया गया उन गायों के दूध में कोई बढ़ोतरी नहीं दर्ज की गई। 

Friday 9 October 2015

इस ‘प्राइड ऑफ काउ’ मिल्क को पीते हैं 
अमिताभ बच्चन, अंबानी परिवार व सचिन तेंडुलकर जैसी सेलिब्रिटी 
यह है पूना का हाइटैक भाग्यलक्ष्मी डेरी फार्म


आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि देश के प्रमुख व्यक्ति एक विशेष ब्रांॅड के दूध का उपयोग करते है। मंचर (पूना) में स्थित भाग्यलक्ष्मी डेरी के ‘प्राइड ऑफ काउ’ दूध को बड़े सेलिब्रिटी जैसे अमिताभ बच्चन, अंबानी परिवार, सचिन तेंडुलकर आदि सहित 12000 कस्टमर उपयोग करते हैं। यह डेरी फार्म 27 एकड़ में फैला है जिसमें 3500 गाय हैं जिनकी देखरेख के लिए 75 कर्मचारी हैं। यह मिल्क 80 रुपए लीटर दूध बिकता है।
कपड़े का व्यवसाय छोड़कर डेरी शुरू करने वाले इस फार्म के मालिक देवेंद्र शाह बताते हैं कि उन्होंने 175 ग्राहकों से ‘प्राइड ऑफ काउ’ उत्पाद शुरू किया था किंतु अभी मुंबई व पूना में 12 हजार से अधिक ग्राहक हैं। सरकार द्वारा जब 90 दशक में मिल्क हॉलिडे की घोषणा हुई तो मंचर के डेरी फार्मर्स द्वारा दूध को गोबर गैस प्लांट में फेंके जाने से पशुपालक को हानि होने लगी। ऐसे में, हमने अपने आलू कोल्ड स्टोरेज में दूध रखकर बाद में शहरों में सप्लाई करना शुरू कर दिया। इसके बाद तो एक माह में ही दूध 20-40 हजार लीटर तक आने लगा। फिर मैंने अपने आपको पूर्णतः दूध के काम में ही लगा लिया। अब हम दूध उत्पाद बनाकर निर्यात करने लगे। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि के विशेषज्ञों जब दूध की गुणवत्ता जांचने आते तो उनकी सोच रहती कि भारत में गाय गंदगी में रहती होगी व वही खाती-पीती होंगी। इसी सोच में बदलाव हेतु मैंने भाग्यलक्ष्मी डेयरी फॉर्म की स्थापना एक मॉडल फार्म के तौर पर की। उनका कहना है कि ट्रेडिंग छोड़ जब मैंने दूध का व्यवसाय शुरू किया तो लोग मुझे कहते थे कि ये क्या ग्वाले का काम करने लगे हो पर मैं स्वयं को सबसे बड़ा ग्वाला मानता हूं।

जाने भाग्यलक्ष्मी डेरी फार्म कोः

  • गायों को पीने के लिए केवल आरओ का पानी ही दिया जाता है। 
  • गायों के बिछावन के लिए रखा गया रबर मैट दिन में तीन बार साफ किया जाता है। 
  • यहां की गायों के लिए 24 घंटे संगीत बजता रहता है। 
  • गायों के आहार में सोयाबीन, मौसमी सब्जियां, अल्फा घास व मक्की चारा को शामिल किया जाता है। 
  • गायों के पेट की सफाई हेतु हिमालय आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल होता है। 
  • गायों के पोषण से ही दूध में फैट की मात्रा को कंट्रोल किया जाता हैं।
  • तीन माह में एक बार आकर डॉक्टर फ्रैंक (पशु पोषण विशेषज्ञ, कनाडा) ऋतु के अनुसार पशु पोषण की सलाह देते हैं। 
  • इस डेरी फार्म की गायों में 54 लीटर तक दूध देने वाली गायें भी शामिल हैं। 
  • यूरोपियन मानकों के अनुसार इस डेरी के दूध में 7-9 हजार लैक्टेशन हैं जिसको कैनेडियन लैक्टेशन 9-11 हजार पर लाने का टाॅरगेट है।
     
  • शुरू में ‘प्राइड ऑफ काउ’ तीन दिन तक ट्रायल के लिए शहर के 175 प्रॉमिनेंट व्यक्तियों को भेजा गया। इसके बाद फार्म टू होम का आरंभ हुआ। प्रतिदिन 163 किलोमीटर तक फ्रीजिंग वैन एवं डिलीवरी मैन द्वारा 5.30 से 7.30 के बीच ग्राहकों के घर तक दूध की होम डिलीवरी मुंबई में दी जाती है। 
  • ‘प्राइड ऑफ काउ’ ब्रांड के ग्राहकों को एक लॉगिन आईडी दिया गया है। इससे वह अपना ऑर्डर बदल सकते हैं, रद्द भी कर सकते हैं या फिर डिलीवरी का स्थान भी बदलवा सकते हैं जैसेकि अनेक बार पूना का ग्राहक मुंबई या मुंबई का ग्राहक पूना में दूध मांगता है तो भी उसे देने का प्रयास करते हैं। 
  • नये ग्राहक को तभी जोड़ा जाता है जबकि पुराना ग्राहक रेफर करता है। चूंकि अभी अधिक मांग की पूर्ति संभव नहीं है। 
  • ऐसे ही फार्म भविष्य में नॉर्थ व साउथ इंडिया में भी शुरू करने की योजना हैं। 
  • स्कूलों व फूड एग्जीबिशन में शामिल होकर इस दूध की जानकारी दी जाती है। 
  • भाग्यलक्ष्मी डेरी फार्म पर्यटकों को भी लुभा रहा है। प्रतिवर्ष 7-8 हजार पर्यटक फार्म घूमने आते हैं। अनेक टूर ऑपरेटर मुंबई व पुणे से फार्म के लिए पैकेज टूर चलाते हैं। 
  • डेरी फार्म में जाने से पहले पैरों पर पाउडर से डिसइंफेक्शन करना आवश्यक है। फार्म में दाईं तरफ रबर मैट बिछा हुआ है। इसपर गायें रहती हैं। इसके सामने ही बाॅटलिंग सेंटर बनाया गया है। गायों का दूध निकालने के लिए बीचोबीच रोटरी बनाई गई है। प्रत्येक गाय का वजन व तापमान रोटरी पर जाने से पूर्व चैक किया जाता है। यदि गाय बीमार होती है तो उसे सीधे अस्पताल भेजा जाता है। 
  • रोटरी में जब तक गाय रहती है, जर्मन मशीन से उसकी मसाज होती रहती है
  •  दूध सीधा पाइपों से साइलोज में व उसके बाद पॉश्चुराइज्ड होकर बोतल में पैक किया जाता है। 
  • प्रिजरवेटिव व अडल्ट्रेशन के बिना दूध को ग्राहकों तक पहुंचाया जाता है। 
  • गाय के दूध दोहने से बाॅटलिंग तक सारा काम ऑटोमैटिक मशीनों से होता है। सात मिनट में 50 गायों का दूध एक साथ निकाला जाता है। यह प्रक्रिया दिन में तीन बार लगभग दो घंटे तक होती है। ।

Thursday 8 October 2015

हैं लो ब्लड प्रेशर से परेशान 
तो कर ले ये काम


भागती-दौड़ती जिंदगी ने मनुष्य के जीवन को बदल दिया है। इस परिणाम है अनेक बीमारियां। इसमें प्रमुखता से आता हैं ब्लड प्रेशर एवं हाइपोटेंशन आदि। इससे शरीर में खून का सर्कुलेशन बहुत धीमा हो जाता है जिससे चक्कर आना, कमजोरी, सिर घूमना, धुंधला दिखना, जी मिचलाना व सांस लेने में परेशानी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। बीपी लो किडनी, ब्रेन व हार्ट पर प्रभावित करता है जिससे हार्ट डिसीज, प्रेग्नेंसी, दिमाग से संबंधित रोगों की संभावना रहती है।

  • आपको बता दें कि नार्मल शरीर का ब्लड प्रेशर 120/80 होता है। इससे कुछ ऊपर नीचे चलता है किंतु यदि बीपी लेवल 90/60 हो तो विशेष ध्यान देना चाहिए। अब आप भी लो ब्लड प्रेशर से परेशान हैं तो आप ये चीजे अपना सकते हैंः


  • लो बीपी का घरेलू उपचार है कि नमक मिला पानी पीएं। चूंकि नमक का सोडियम ब्लड प्रेशर को बढ़ाने में मदद करता है पर बहुत अधिक मात्रा में भी इसका उपयोग न करें। 
  • एक कप कॉफी, हॉट चाकलेट अथवा कैफीन सहित खाद्य सामग्री खाने या पीने से लो बीपी शीघ्र कंट्रोल में आ जाता है। लो बीपी से लंबे समय से परेशान हैं तो सुबह उठते ही या नाश्ते में एक कप कॉफी जरूर पीएं पर हां इसकी आदत भी न डालें चूंकि अधिक कैफीन नुकसान भी पहुंचा सकती है।
  • तुलसी के 10-15 पत्ते लें उसका रस निकाले व उसमें करीब 1 चम्मच शहद मिलाएं। प्रतिदिन खाली पेट पीएं। 
  • किशमिश को एक माह निरंतर उपयोग करने से लो बीपी में आराम मिलता है। किशमिश को रात में पानी में भिगोएं। सुबह उठकर खाली पेट चबाएं व पानी को छानकर पीयें। 
  • अधिक मात्रा में पानी व जूस पीएं।
  • प्रतिदिन प्रातः व्यायाम करें।
  • नहाने में गरम पानी का उपयोग कम करें।
  •  एक कप शकरकंद का जूस दिन में दो बार पिएं। यह लो ब्लड प्रेशर का सबसे अच्छा घरेलू उपचार है।
  • एक सप्ताह तक निरंतर दिन में दो बार एक कप चुकंदर का जूस पीएं।
  • बादाम को रातभर पानी में भिंगोएं। सुबह इसे छीले व इसे पीसकर पेस्ट बनें। पेस्ट को दूध में मिलाकर प्रतिदिन प्रातः पीएं। 
  • रोजमैरी की 10 मिली मात्रा को खाने का हिस्सा बनाएं।
  • चुटकी भर हींग भी लो ब्लड प्रेशर में मदद करती है। इससे ब्लड क्लोटिंग नहीं होती और सर्कुलेशन ठीक से होता है।
  • नींबू व नमक में अदरक टुकड़ एयर टाइट डिब्बे में रखें। प्रतिदिन भोजन से पूर्व इसके टुकड़ों को अच्छे से चबाना लाभप्रद होता है।
  • गाजर को कच्चा खाएं। शहद मिलकर इसका जूस एक महीने तक दिन में एक बार पीने से लाभ होता है।
  • सुबह खाली पेट खजूर का सेवन लाभप्रद होता है। 
  • छुहारे खाना भी इस समस्या के लाभप्रद है। 
  • प्रतिदिन 50 ग्राम गुड़ खाने या गुड़ पानी में घोले। उसमें नींबू व नमक मिलाएं। इसको दिन में दो बार पीएं।
  • अनार, सेब, केला, चीकू आदि का जूस एक हफ्ते पीने से ही लाभ मिलता है। 


Tuesday 6 October 2015

गाय के दूध के इन फायदों को जानते हैं आप?


हमारी संस्कृति में गाय को माता माना जाता है और उसके दूध को अमृत। प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान की माने तो शुद्ध आहार खाने वाली गाय का दूध यौवन को बनाएं रखता है। इसके अलावा भी गाय के दूध के अनेक लाभ हैं चलिए जानते हैं इन्हें
1. ताइवान में हुए एक शोध में माना गया है कि गाय के दूध के नियमित सेवन से पेट के कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जा सकता है। अनुसंधानकर्ताओं की माने तो गाय के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिसिन बी25 (लेफसिन बी25) गैस्ट्रिक कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में मदद करता हैं। यह तत्व गाय के दूध की खुशबू में होता है। गाय के दूध में उपस्थित यह तत्व शरीर में कैंसर अथवा ट्यूमर बढ़ाने हेतु उत्तरदायी प्रोटीन बेसलिन 1 को रोकने में भी बहुत प्रमुख हो सकता है। शोधकर्ता वे-जुंग चेन का कहना है कि ‘‘विश्व में, विशेषरूप से एशियाई देशों में गैस्ट्रिक कैंसर से मरने वाले रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस दिशा में हमारी यह खोज एक बड़ी उपलब्धि है।’’
2. गाय के दूध के सेवन से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है और पेट में गैस भी नहीं बनती।
3. देसी गाय के दूध में ए-2 प्रोटीन पाया जाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, दिल की बीमारी के खतरे को कम करता है, कैंसर रोग से बचाता है व पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है आदि। आप सोच रहे होंगे कि यह ए-2 प्रोटीन क्या है तो चलिए आपको बता दें कि गाय के दूध में बीटाकेजिन व बीटा कैरोटिन नामक प्रोटीन होते है जिससे गाय का दूध पीला होता है। यह सभी गायों के दूध में पाया जाता है जोकि विटामिन का स्रोत है। बीटाकेजिन प्रोटीन दो तरह का होता है। पहला ए-1 व दूसरा ए-2। ए-1 प्रोटीनयुक्त दूध मनुष्य के लिए हानिकारक है जबकि ए-2 दूध मानव के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। ए1 प्रोटीन विदेशी प्रजाति की गायों में पाया जाता है जबकि ए-2 देसी गायों के दूध में किंतु कोई तकनीक नहीं है जिससे पता लग सके कि देसी गाय में भी कौन सी गाय के दूध में ए-2 पाया जाता है। लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा अब ऐसी तकनीकी विकसित की गई है जिससे पता लग सकेगा कि कौन सी गाय ए-2 दूध देती है और कौन सी नहीं। इसके लिए ए-2 दूध देने वाली गाय के खून का सैंपल लिया जाएगा जिसको पीसीआर तकनीकी से जांचा जाएगा।
4. गाय के दूध में सन ग्लैंडस पाया जाता है जोकि शरीर को मजबूत करता है व आंतों के रोगों में फायदा पहुंचाता है।
5. नए शोध में कहा गया है कि एच1 एन1 वायरस से बचाने में गाय का प्रथम दूध सबसे महत्वपूर्ण है। गाय के दूध के प्रयोग से बन रही एंटीबायोटिक्स द्वारा स्वाइन फ्लू वायरस को भी समाप्त किया जा सकता है।
6. गाय की 50 ग्राम दही में 10 ग्राम हल्दी पाउडर मिलाकर रोज सुबह खाली पेट खाएं, इससे पीलिया में आराम मिलेगा।
7. गाय के दूध में मसूर दाल व बेसन भिगोकर पूरी रात रखें। सुबह उठकर इन्हें पीसकर पेस्ट बनाएं। इसको रेगुलर लगाने से चेचक दाग, मुंहासे, चेहरे के बाल और झाइयां समाप्त हो जाएगीं।
8. गाय के घी में जायफल को घिसें। इस मिक्सचर को बबासीर के मस्सों पर लगाएं, दर्द खत्म हो जाएगा। आयुर्वेद की माने तो गाय की छाछ में मसूर की दाल का उबला पानी मिलाकर पीने से बवासीर में रक्तस्राव में आराम मिलता है।
9. गाय का मट्ठा कुछ दिन पड़ा रहने दें फिर इससे बाल धोएं, इससे
झड़ते बाल व गंजेपन की समस्या दूर हो जाएगी।
10. प्रातःकाल गाय के दही के साथ पका हुआ केला खाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
11. गाय के दूध में सूती कपड़े की पट्टी को भिगोएं। अब इसे एक्जीमा वाली जगह पर दस मिनट के लिए बांधें। एक सप्ताह तक इसी प्रकार पट्टी करने से एक्जीमा और उसकी खुजली गायब हो जाती है।
13. 250 मि.ली. गाय की ताजी छाछ के साथ लगभग 5 ग्राम अजवाइन चूर्ण मिलाकर प्रातः खाली पेट लेने से कब्ज में आराम होगा।