हिंदुस्तान कैसे था सोने की चिडि़या जाने
हमारे देश भारत के बारे में हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ हैं कि यह ‘‘सोने की चिडि़या’’ था। इसको विदेशी आक्रमणकारियों मुगलों, पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों ने इतना लूटा कि देश की स्थिति बिगड़ गई। आज की स्थिति को देखें तो हम यूरोपीय देशों की भांति जीडीपी बढ़ाने एवं विकास करने की सोच रखते हैं। आपको आज हम ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिनपर शायद ही आप विश्वास करें लेकिन यह सच हैंः1. एक ऐसा भी दौर था जब पूरी ग्लोबल इकोनॉमी पर एक हजार साल तक भारत का सिक्का चलता था। विश्व में उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की भागीदारी 25 प्रतिशत तक थी।
2. भारतीय सभ्यता ने सदैव विश्व विजय के लिए युद्ध के स्थान पर व्यापार का सहारा लिया। इसी का परिणाम था कि गत दो हजार वर्षों में लगभग 80 प्रतिशत समय तक विश्व अर्थव्यवस्था में भारत प्रथम नंबर पर रहा।
3. प्रो. एंगस मैडिसन ने इस संबंध में लिखा है प्रथम शताब्दी से 1000 ईस्वी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की नंबर एक अर्थव्यवस्था रही थी। 1000 ईसवी में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया की इकोनॉमी की अपेक्षा 29 प्रतिशत थी। इसी दौर में चीनी जीडीपी भारतीय जीडीपी का 79 प्रतिशत थी। वहीं इसी दौरान पूरे पश्चिमी यूरोप की जीडीपी भारतीय जीडीपी का एक तिहाई थी। 15वीं-17वीं शताब्दी में चीनी जीडीपी भारत से अधिक रही। हालांकि 17वीं शताब्दी में एक बार फिर भारतीय जीडीपी चीन से अधिक हो गई।
4. मैडिसन द्वारा 1990 के डॉलर के मूल्य को आधार बनाकर गणना की गई थी। यदि उनकी गणना को माने तो 17वीं शताब्दी में भारतीय जीडीपी 9,075 करोड़ डॉलर थी। वहीं चीनी जीडीपी 8,280 करोड़ डॉलर व पश्चिमी यूरोप की जीडीपी 8,339 करोड़ डॉलर थी।
5. इतिहास पढ़े तो पता चलता है कि भारत की खोज का एक प्रमुख कारण मांस को जायेदार बनाने के लिए मसालों का लोभ भी रहा। इन्हीं मसालों की मांग ने भारत को विश्व अर्थव्यवस्था में प्रथम स्थान दिया।
6. ईसा पूर्व से लेकर शताब्दी के आरंभ तक भारतीय मसालों के व्यापारियों ने भारतीय बाजार पर पकड़ बना ली। इसमें रोम प्रमुख था। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि प्रतिवर्ष 120 पानी के जहाज अगस्टस के समय में भारत के लिए चलते थे। इस व्यापार में रोम द्वारा भारतीय व्यापारियों को इतना धन दिया जाता था कि प्लिनी जैसे इतिहासकार ने तो भारत को रवाना किए जा रहे सोने पर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। प्लिनी के शब्दों में, व्यापार में रोमन साम्राज्य प्रतिवर्ष कम से कम 10 करोड़ रोमन मुद्रा चुका रहा है। रोमवासियों हेतु काली मिर्च इतनी आवश्यक बन चुकी थी कि प्रथम शताब्दी में रोम में विशेष रूप से काली मिर्च के वेयरहाउस बनाए गए थे।
7. शायद यह जानकर आपको आश्चर्य हो कि 408 ईसवी में रोम को घेरने वाले राजा ने शहर से अपनी सेना को हटाने हेतु 3000 पाउंड काली मिर्च की मांग कर दी थी।
8. मसालों की बढ़ती मांग ने यूरोपीय लोगों को नए भारतीय समुद्री रास्तों को ढूंढने पर मजबूर कर दिया। चूंकि जमीनी स्तर पर होने वाले व्यापार में बिचैलियों की बढ़ती संख्या से दाम बढ़ते जा रहे थे।
9. मध्यकाल तक भी सबसे अधिक मांग काली मिर्च की ही रही। अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि अनेकों बार तो काली मिर्च की कीमत उसी वजन की चांदी के समान होती थी। इसीलिए उस दौर में काली मिर्च खपत के साथ भुगतान व कीमती तोहफे का भी माध्यम थी।
10. सन् 1468 में एक शाही परिवार के सदस्य द्वारा अपनी शादी में 150 किलो से अधिक काली मिर्च अतिथियों में वितरित की गई थी। इतना ही नहीं जर्मनी जैसे देश में भी काली मिर्च भोजन का अभिन्न अंग बन गई थी।
11. मध्यकाल तक काली मिर्च आदि अनेक मसाले विश्व व्यापार पर अपनी धाक बनाएं रहे, जिसका लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को हुआ। दूसरी ओर, इसका बुरा प्रभाव भी रहा क्योंकि हिंदुस्तान को ऐसे कारोबारियों व विदेशी राजाओं के हमलों का शिकार भी होना पड़ा। इसीलिए कहा जाता है कि अधिकांश हमलावर हिंदुस्तान की दौलत के किस्से सुनकर ही यहां पहुंचे थे।
12.16वीं सदी के दौरान भारतीय जीडीपी विश्व की कुल जीडीपी की एक चैथाई थी। कई इतिहासकारों की माने तो सन् 1600 में अकबरी खजाने का मूल्य 1.75 करोड़ पाउंड था। यदि इस रकम की तुलना लगभग 200 वर्ष पश्चात् ब्रिटेन की ट्रेजरी से करें तो वहां मात्र 1.6 करोड़ पाउंड ही जमा थे।
13. मुगलाई मयूर सिंहासन का निरीक्षण करने वाले यात्री टेवरनियर की माने तो तख्त हीरों और मोतियो से जड़ा हुआ है। उस पर 100-200 कैरेट के 108 रूबी व 30-60 कैरेट के 110 पन्ने जड़े थे। यह 10 करोड़ रुपए का था। फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार यह उस दौर के 4 करोड़ रुपए के बराबर था।
14. ताजमहल के निर्माण पर 3.2 करोड़ रुपए का खर्चा हुआ था। यह राशि इस समय के लगभग 52 अरब रुपए के बराबर थी।
10. शाहजहां की वार्षिक आय आज के समय के हिसाब से उस समय 10,500 करोड़ रुपए थी।
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