Thursday 26 November 2015

वर्गीज़ कुरियन के 94वें जन्मदिवस एवं मिल्क डे पर विशेष
दूध उत्पादन में तो हम बन गए नंबर वन 
अब बारी दूसरे डेरी उत्पादों से आमदनी में बाजी मारने की


धरती पर अमृत यानि दूध प्रकृति का सर्वाधिक पौष्टिक आहार है। दूध बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक हमारी पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। ‘जीवेम शरदः शतम’ यानि दूध शक्ति का द्योतक है। महर्षि चरक के अनुसार ‘पयः पश्यं यथा मृतमः’ अर्थात् दूध तो अमृत के समान पथ्य है। आयुर्वेद में दूध को ‘सर्वोषधिसार’ यानि समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है, जो असाध्य रोगों को भी दूर करने में सक्षम है।

आज हम दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हमारे देश में दूध की बड़ी किल्लत थी। ऐसे में मिल्कमैन ऑफ इंडिया डा. वर्गीज़ कुरियन की दिखाई दिशा पर चलकर हमारे किसान ने श्वेत क्रांति को जन्म दिया जिसके बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राष्ट्र बन गया और आज तक कायम है। आज श्वेत क्रांति जनक व अमूल संस्थापक वर्गीज़ कुरियन की 94वीं जयंती है। इस अवसर पर समस्त भारत देश के साथ-साथ सर्च इंजन गूगल ने भी अपने डूडल से डाॅ. कुरियन को श्रद्धांजलि दी है।

डाॅ. कुरियन के दिखाए मार्ग पर चलकर आज पशुपालकों ने न केवल अपनी स्थिति को सुधारा है बल्कि हमारे देश भारत को दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर भी पहुंचाया है। यह दूसरी है कि आज भी प्रतिव्यक्ति दुग्ध उपलब्धता लगभग 290 ग्राम ही है। बहराल हमारा उद्देश्य यहां इस पर चर्चा करना नहीं है। आज हम चर्चा करना चाहते हैं किसान को दूध के अतिरिक्त डेरी से मिलने वाले पदार्थों जैसे गोबर, गोमूत्र आदि की जिसकी ओर उसका कोई ध्यान नहीं जाता और जोकि व्यर्थ चले जाते हैं। पशुपालक यदि इनका सही उपयोग करे तो वह बड़ा आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

चलिए इसे एक जीते जागते उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। पंजाब और हरियाणा राज्य में विदेशी नस्लों की गायों पर खड़े किए गए लगभग 10 हजार करोड़ डेरी व्यवसाय से हटकर लाडवा (हिसार, हरियाणा) के लोगों ने एक ऐसा फैसला किया जोकि अनेक लोगों के मिसाल साबित हो सकता है।

लाडवा के लोगों ने कमाई के लिए उन गायों का डेरी फार्म चलाने की सोची जिनको दूध न देने या बीमारी होने से लावारिस छोड़ दिया गया था। एक-एक करके ऐसी 1100 गायों को गौशाला में लाया गया। उनका इलाज किया गया। आश्चर्यचकित करने वाली बात तो यह है कि आज बिना दूध देने वाली गायों की इस गौशाला का वार्षिक लाभ 3.50 करोड़ रुपए को भी पार कर चुका है और पूरे व्यापार का फोकस गोबर व गोमूत्र पर है। 


अनेक लोगों की यह भी राय है कि प्राचीनकाल में हमारे देश को सोने की चिडि़या इसलिए भी कहा जाता था। चूंकि पूरे विश्व में केवल हमारे देश में ही पशुओं की सबसे अधिक जनसंख्या है और उनके गोबर को पीला सोना की संज्ञा दी जाती थी।

अगर हम इस गौशाला की आर्थिक पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि गौशाला लाडवा की एक गाय औसतन दस किलो गोबर और दस लीटर मूत्र देती है। दस किलो गोबर से बनी सात किलो खाद 35 रुपए में बिक जाती है। दस लीटर गौमूत्र से अलग-अलग तरह के दस लीटर उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं जिन्हें सौ रुपए प्रति लीटर की दर से बेच दिया जाता है। इस प्रकार गौशाला से प्रतिदिन ग्यारह लाख से अधिक की आमदनी होती है। इसके अलावा, लावारिस गाय को खरीदना भी नहीं पड़ता। जहां तक गाय के चारे का प्रश्न है तो उसपर 50 रुपए/प्रति गाय का खर्च आता है।


आनंदराज सिंह (प्रधान, गौशाला) की माने तो ‘गाय को जब तक आस्था या राजनीति से जोड़कर रखेंगे, तब तक इनकी यही हालत होगी। हमें समझना होगा कि गोपालन शुद्ध बिजनेस है। हम गाय के गोबर से बायोगैस बनाते हैं। फिर बायोगैस से निकले वेस्ट से जैविक खाद। गाय के मूत्र से कीटनाशक बनाते हैं। अर्क भी बनता है, जो विभिन्न दवाओं में प्रयोग होता है। इसकी सही मार्केटिंग से हम मुनाफा कमा लेते हैं।’

आनंदजी की बात से आप भी जरूरत सहमत होंगे। चूंकि उर्वरक/कीटनाशक जहां एक ओर कहीं न कहीं किसान की खुदकुशी के उत्तरदायी है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण व पृथ्वी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे बढ़कर इनके उत्पादों का हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इसी वजह से ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग जहां निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं इनका मुंह मांगा दाम भी मिलता हैं। गोबर की जैविक खाद ही इसका एकमात्र समाधान है।
तो अब समय आ गया है कि पशुपालकों को दूध के साथ-साथ पीले सोने यानि गोबर और गोमूत्र पर भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि किसान की आमदनी बढ़ सके व पर्यावरण भी सुरक्षित रह सकेे। 

Wednesday 25 November 2015

गायों को ओढ़ाया जाता हैं कंबल
और नहलाया जाता हैं शैंपू से


हिमाचल प्रदेश के सोलन से लगभग पचास किलोमीटर दूर स्थित कुनिहार के एक छोटे से गांव में एक डेरी ऐसी भी है जहां ऑस्ट्रेलियन नस्ल की गायों को महंगे कंबल ओढ़ाये जाते है, गद्दों पर सुलाया जाता हैं, महंगे शैंपू से नहलाया जाता है और यहां तक कि उन गायों की तेल से मालिश भी की जाती है। आवास की जगह पर गंदगी का कहीं भी नामो-निशान नहीं होता ताकि वह बीमारियों से बचे रहें।

26 वर्षीय संजीव ठाकुर कुनिहार के इस डेरी फार्म को चलाते हैं। इस डेरी फार्म में दुधारु गायों के लिए भूमि पर गद्दे बिछाए गए है, ओढ़ने को मंहगे कम्बल हैं, दूध निकालने के लिए स्वचालित मशीने हैं। यहां तक कि इन दुधारू गायों के चारे के लिए डेरी फार्म मे ही फ्लोर मिल भी लगी हुई है। फार्म हाउस में डीपफ्रीजर भी लगा हुआ है।

इस डेरी फार्म में 12 ऑस्ट्रेलियन गायें है जोकि प्रतिदिन 200 लीटर दूध देती है। इन गायों की सेवा में तीन कर्मचारी रात-दिन सेवारत रहते हैं। डेरी फार्म एवं दुधारू पशुओं की सुरक्षा के लिए फार्म मे 12 सीसीटीवी कैमरे लगेे हैं जिनसे फार्म मालिक संजीव ठाकुर स्वयं गायों पर नजर रखते हुए कर्मचारियों की मॉनिटरिग भी करते हैं।

Tuesday 24 November 2015

जानिए ट्री ऑफ 40 को
इस पेड़ पर लगते हैं 40 तरह के फल और अनेक रंग वाले फूल


आपने बचपन में लंबी उम्र, ज्ञान और खुशहाली के प्रतीक कल्पतरू, बोधिवृक्ष, ल्मू और काबाला आदि विभिन्न धर्मों के पूजनीय वृक्षों के बारे में पढ़ा और सुना होगा। लेकिन आज जिस पेड़ के बारे में हम बात करने जा रहे हैं उसके बारे में शायद ही आपको जानकारी हो।

ट्री ऑफ 40 पेड़ में 40 प्रकार के फल व अनेक रंगों के फूल लगते हैं। विश्वास नहीं होता न लेकिन यह सच है। हमारी धरती पर एक ऐसा ही मैजिक ट्री  है जिसमें बेर, सतालू, खुबानी, चेरी, नेक्टराइन आदि फल एवं अनेक रंगों के फूल भी लगते हैं जोकि देखने वाले को जादुई पेड़ का एहसास दिलाते हैं।

अमेरिका के एक विजुअल ऑर्टस के प्रोफेसर द्वारा तैयार इस पेड़ की कीमत 30000 डॉलर यानि लगभग 1991398.50 रुपए है। वर्ष 2008 में प्रो. वॉन ऐकेन (प्रोफेसर व आर्टिस्ट, विजुअल आर्ट्स, अमेरिका, सेराक्यूज यूनिवर्सिटी) ने न्यूयॉर्क स्टेट एग्रीकल्चरल एक्सपेरिमेंट में 200 प्रकार के बेर व खुबानी के पौधे वाले एक बगीचे को देखा। दुर्भाग्यवश फंड की कमी से बगीचा बंद होने के कगार पर था।

कृषि परिवेश वाले परिवार से जुड़े होने के कारण और बगीचे के प्राचीन व दुर्लभ पौधों की प्रजातियां में रुचि के कारण वाॅन ने इस बगीचे को लीज पर ले लिया। इसके बाद शुरू हुआ ग्राफ्टिंग तकनीक का प्रयोग और बन गया अनोखा ट्री ऑफ 40 अजूबा। वॉन की माने तो ऐसे ही 16 पेड़ उन्होंने अमेरिका के सात और राज्यों में लगाए हैं।

क्या आप ग्राफ्टिंग तकनीक के बारे में जानते हैं? नहीं तो चलिए हम आपको बताए देते हैं कि ग्राफ्टिंग में पौधा तैयार करने हेतु सर्दियों में पेड़ की एक टहनी कली सहित काटकर अलग की जाती है। फिर उस टहनी को मुख्य पेड़ में छेद करके लगाते हैं। जुड़े स्थान पर पोषक तत्वों का लेप बनाकर लगाया जाता है और पूरी सर्दी के लिए पट्टी बांधी जाती है। धीरे-धीरे टहनी अपने आप मुख्य पेड़ से जुड़ने लगती है व उसमें फल-फूल भी आने लगते हैं।


Friday 20 November 2015

इन्हें भी आजमाएं
और भरपूर लाभ पाएं

कहते हैं न छोटी-छोटी बातों पर अमल करके हम बहुत लाभ उठा सकते हैं। इन्हीं बातों को हम बचपन से ही अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं लेकिन आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में इन बातों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। तो चलिए इन्हीं बातों की ओर हम आपका ध्यान खींचने का प्रयास करते हैं ताकि आप भी इन घरेलू नुस्खों से बड़ी राहत ले सकें।

1. चमकदार दांत के लिए अपनाएं सुपारीः 

दांतों की शोभा तभी होती है जबकि वो मोती से चमके। इस काम के लिए आप सुपारी को बारीक पीसे उसमें करीब 5 बूंद नींबू रस व जरा-सा काला अथवा सेंधा नमक मिलाकर इससे प्रतिदिन दांतों की सफाई करें।

2. नाखूनों को चमकाएं ऐसे: 

प्रतिदिन सोने से पूर्व नाखूनों की सतह की अरंडी तेल से कुछ समय तक मुलायम हाथों से मालिश करने से नाखून सुंदर व चमकदार बन जाते हैं।

3. कार के भीतर हो बदबू को ऐसे भगाएंः 

कप अथवा छोटी कटोरी में सेब के टुकड़ों रखें। इन्हें कार सीट के निचले हिस्से में रखने से एक-दो दिन में जहां एक ओर ये टुकड़े सिकुड़ जाएंगे तो वहीं दूसरी ओर कार की गंध भी दूर होती जाएगी।

4. चींटी से न घबराएं लौंग को अपनाएं: 

चीनी हो या चावल चींटियों का डर बना रहा है। अब इनसे घबराएं नहीं इसमें आप 2-4 लौंग डाल दें फिर देखे कमाल।

5. जूतों में लाएं ऐसे चमकः 

गुड़हल या जासवंत के लगभग 4-5 ताजे फूलों को जूतों पर रगड़ने वे जूतों न जैसे चमक उठेगे।

6. नमक की नमी को ऐसे करे दूरः 

मौसम के हिसाब से नमक में नमी आ जाना साधारण बात है। ऐसे में यदि आप नमक के डिब्बे में कुछ चावल के कच्चे दाने रख दें तो नमक में नमी नहीं आएगी।

7. कोलेस्ट्राॅल करें ऐसे कंट्रोल: 

आपके शरीर के लिए खतरनाक कोलेस्ट्राॅल के स्तर को कम करने और उच्च रक्त चाप को सामान्य बनाने के लिए प्रतिदिन प्रातः खाली पेट लहसुन की दो कलियों का छिलका उतारकर पानी के साथ सेवन करें। कई लोगों की माने तो निरंतर तीन महीने ऐसा करने से शरीर में ट्यूमर बनने की संभावना भी कम हो जाती है।

8. डायबिटीज से ऐसे पाएं छुटकाराः​

प्रतिदिन प्रातः खाली पेट व रात को सोने से पूर्व लगभग एक चम्मच अलसी के बीजों को अच्छे से चबाएं तथा साथ ही एक गिलास पानी पीये। यह डायबिटीज में बहुत लाभदायक होता है।