विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में दावा
प्रत्येक 10 में से 9 लोग ले रहे हैं जहरीली सांसें
हमारे देश में प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से लगभग छः लाख एवं विश्व में 60 लाख लोग काल के मुंह में समा जाते हैं। विश्वास नहीं होता न लेकिन यह सच है। इस बात का दावा किया गया है विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में।रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष आठ लाख जानें जा रही हैं। इनमें से 75 प्रतिशत से भी अधिक मौतें भारत में हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर से होती हैं। मरने वालों में बड़ी संख्या में पांच साल से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 01 लाख 10 हजार 500 मौतें फेफड़ों की बीमारी से हो रही है, 01 लाख 95 हजार एक मौतें केवल हार्ट अटैक से हो रही हैं, 02 लाख 49 हजार तीन सौ अठासी की हृदय रोग से मौत हो रही है और 26 हजार 334 मौतें फेफड़ों के कैंसर से हो रही हैं।
मारिया नायरा (प्रमुख, पब्लिक हेल्थ और इन्वाइरनमेंट डिपार्टमेंट, विश्व स्वास्थ्य संगठन) के शब्दों में दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र से हवा के जो नमूने मिले हैं, उनके अनुसार हम आपातकालीन स्थिति में हैं। प्रत्येक 10 में से 9 लोग ऐसी वायु में सांस ले रहे हैं, जोकि उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 90 प्रतिशत गरीब देशों में हुई हैं। रिपोर्ट में गांवों में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जताई गई है। आगे कहा गया है कि 3000 अलग-अलग भागों में वायु प्रदूषण की जांच की गई है। इसमें निकलकर सामने आया कि निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के देशों के 98 फीसदी से अधिक शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निश्चित वायु स्वच्छता के मानकों का पालन नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही घरों में भी वायु प्रदूषण के आंकड़े चिंताजनक हैं।
कुछ समय पूर्व ही बीबीसी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मद्देनजर जानकारी दी थी कि वायु प्रदूषण अनेक देशों के विकास में बाधक बन रहा है। वायु प्रदूषण के कारण चीन अपनी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दसवां भाग, भारत एवं कंबोडिया जीडीपी का आठ प्रतिशत भाग गंवा रहे हैं। इस हानि में श्रमिकों के वेतन और वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का खर्च शामिल है।
रिपोर्ट में इससे निपटने के उपाय भी बताते हुए कहा गया है कि सड़क पर गाड़ियों की संख्या कम की जाए, कूड़ा निपटान के तरीकों में सुधार किया जाए और खाना बनाने में कम से कम प्रदूषक तरीकों का इस्तेमाल किया जाए।