गुरुवार, 1 सितंबर 2016

खतरनाक तरीकों से स्कूल जाते हैं 
इन राज्यों के स्कूली बच्चे


सभी सरकारों का यह प्रयास रहता है कि बच्चे अधिक से अधिक शिक्षित हो। इसके लिए तरह-तरह की सुविधाएं भी मुहैया करवाई गईं हैं। इसमें प्रधानमंत्री की कौशल विकास योजना के अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाएं हो या मीड डे मिल, सभी शिक्षा को प्रोत्साहित करते दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं अनेक बड़ी-बड़ी कंपनियों भी सीएसआर गतिविधियों के नाम पर शिक्षा क्षेत्र में कार्य करती दिखाई देती हैं। इसके बावजूद भी स्थिति आज स्वतंत्रता के 60 बरस बाद भी अनेक स्थानों पर बद से बदतर होती दिखाई देती हैं। इसी का नतीजा है कि आज विद्यार्थियों को कहीं पर उफनते नदी-नालों को पार करके स्कूल जाना पड़ता है तो कहीं स्वयं नाव चलना पड़ता है। समय बीता गया, अनेक पार्टियों की सरकारें आई और चली गईं साल पर हालात आज भी वैसे ही हैं। जब इस बारे में सांसदों, विधायकों और पंच-सरपंचों से बात करो तो वही पुराने जवाब मिलते हैं-प्रोजेक्ट फंसे हुए हैं, फिक्र न करें शीघ्र ही स्थिति सुधरेगी, पिछली सरकार की दी हुई समस्या है, अगली बारिश तक इसे सुधार देंगे।
गत माह अनेक राज्यों में आए बाढ़ जैसे हालात से स्थिति और भी गंभीर हो चली है। चलिए लेते हैं ऐसे ही राज्यों के कुछ क्षेत्रों के बारे में जानकारी। पिछले महीने अमझेरा (मध्यप्रदेश) में नदी उफान पर होने से 8 दिन से स्टूडेंट्स स्कूल नहीं पहुंचे। वैसे भी यह विद्यार्थी प्रतिदिन रस्सी के भरोसे स्कूल जाते हैं। क्षेत्रीय सांसद सावित्री ठाकुर का इस बारे में कहना है कि यह कांग्रेस विधायक का क्षेत्र है। फिर भी मैं प्रयास करूंगी।

मुजफ्फरपुर (बिहार) के स्कूली विद्यार्थियों को बांस के पुलों पर से गुजरकर स्कूल जाना पड़ता हैं। इतना ही नहीं, इसके लिए उन्हें टैक्स भी देना पड़ता है। क्षेत्रीय सांसद अजय निषाद का इस बारे में कहना है कि अगले साल तक पुल बनवा देंगे।

उदयपुर की जयसमंद झील के बीच भटवाड़ा एवं बीड़ा टापुओं पर स्थित मछुआरों के 30 घर के 16 बच्चे प्रतिदिन नाव चलाकर स्कूल जाते हैं। यही नहीं रोज तीन कि.मी. की यात्रा बिना लाइफ जैकेट के करते हैं। यद्यपि जयसमंद-सलूंबर मार्ग पर रोड़ बनवाने का प्रस्ताव है पर सड़क की भूमि वन विभाग के अंतर्गत आती है। इस संबंध में उदयपुर क्षेत्रीय सांसद अर्जुनलाल मीणा का कहना है कि मैं खुद जयसमंद जाऊंगा। ग्रामीणों एवं कलेक्टर से बात करूंगा। सड़क बनवाएंगे। नहीं तो बच्चों को लाइफ जैकेट दिलाएंगे। जबकि स्कूली बच्चों का कहना है कि अगर रास्ता नहीं सुधार सकते तो क्या स्कूल को भी घर के पास नहीं ला सकते?

नूरवाला (पानीपत, हरियाणा) के सरकारी स्कूल में वर्षा के दिनों में पानी भरा ही रहता है। इससे 1450 विद्यार्थियों के स्कूल में न पढ़ाई होती है और न ही मिड डे मील बच्चों को मिलता है। क्षेत्रीय सांसद अश्विनी चोपड़ा की माने तो पिछली सरकार यह समस्या देकर गई है। नई सरकार ने काम किए हैं। कुछ काम रह गए हैं, उसी में ये स्कूल शामिल हैं। समाधान जल्द दिखेगा।

चांदोरी, सायखेड़ा और इगतपुरी गांवों (नासिक, महाराष्ट्र) में तेज बारिश के दिनों में गांवों का संपर्क कट जाता है। स्कूल बंद हो जाते हैं। बच्चे कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते। वहां के दिंडोरी के सांसद दिंडोरी हरिश्चंद्र चैहाण का कहना है कि केंद्र से मदद लेकर स्थानीय पुल की ऊंचाई बढ़वाने पर काम करेंगे।

सावर तहसील, अजमेर (राजस्थान) में सरकारी स्कूल और हरमाड़ा तिलोनिया के स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के रास्ते भी आसान नहीं है। वर्षा में नाले एवं कीचड़ से होकर बच्चे गुजरते हैं। तेज बारिश होने पर तो छुट्टी ही करनी पड़ती है। सांवरलाल जाट, अजमेर सांसद का कहना है कि जितनी जल्दी होगा हम स्कूल के रास्तों का निर्माण कराने का काम करेंगे। प्रशासन को निर्देश दे दिए हैं कि जल्द से जल्द सड़कें बनवाई जाए।

कोलायत और लूणकरणसर (बीकानेर, राजस्थान) में दर्जनों गांवों में स्कूली बच्चे प्रतिदिन कटे हुए पेड़ पर चलते हुए नहर पार कर स्कूल जाते हैं। अर्जुनराम मेघवाल, केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट राज्य मंत्री एवं बीकानेर सांसद का कहना है कि बीएडीपी, मनरेगा, सांसद कोटा व सर्वशिक्षा के मद से जो भी हो बजट की व्यवस्था करेंगे।
नमाना रोड, बैरवा (बूंदी) की झोंपड़ियां गांव के स्कूली बच्चों को आगे की पढ़ाई हेतु पिछले 50 साल से नाव से बरूंधन जाना पड़ता है। ओम बिरला, सांसद, कोटा-बूंदी सांसद की माने तो चाहे जो कुछ भी करना पड़े इसके लिए हम नदी पर पुल का निर्माण करवाएंगे।

ईरागांव और चुरेगांव (कोंडागांव, केशकाल, छत्तीसगढ़) के बीच बारदा नदी पर आज तक पुल नहीं बन पाया है। सिर्फ डेढ़ फीट चैड़े लकड़ी के अस्थायी पुल से ही बच्चे स्कूल जाते हैं। विक्रम उसेंडी, सांसद कांकेर का कहना है कि अब तक पुल के लिए कोई मांग नहीं आई थी। अब ग्रामीण यहां पुल की मांग कर रहे हैं। यह मेरी प्राथमिकता रहेगी।

बिलासपुर में अचानकमार अभयारण्य रोड पर बसा बम्हनी सहित 30 गांव ऐसे हैं, जहां पिछले 50 साल से प्रतिवर्ष वर्षा से बच्चे स्कूल ही नहीं जा पाते। लखन लाल साहू, सांसद का कहना है कि पुल एवं सड़क बनाने का प्रोजेक्ट तो तैयार है लेकिन वन विभाग एनओसी नहीं दे रहा। कच्चा रास्ता बार-बार बह जाता है। समस्या लंबे समय से है।
समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो इन स्कूली बच्चों के हौंसले के सामने कुछ नहीं है। यही कारण है कि वह सरलता से इन्हें पार करते रहे हैं।

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