बेरोजगारी से परेशान होकर शुरू किया डेरी व्यवसाय
एक गाय से शुरू कर बनाई 56 गायों की गुजन डेरी
दूध से कमाते हैं प्रतिदिन पंद्रह हजार रुपए
आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान श्रीकृष्ण का बहुप्रचलित नाम गोपाल गौवंश के महत्व को रेखांकित करता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने गौपालन व गाय चराने का कार्य संपादित कर गौवंश के महत्व को प्रतिपादित किया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र की माने तो उस समय गायों की समृद्धि और स्वास्थ्य हेतु विशेष विभाग ‘‘गोऽअध्यक्ष’’ चलता था। गांधीजी ने कहा है कि ‘‘देश की सुख-समृद्धि गाय के साथ ही जुड़ी हुई है।’’ अंग्रेजों ने भी भांप लिया था कि ‘गाय’ के कारण ही भारत संपन्न है और भारतीय बौद्धिक दृष्टि से भी तेज हैं जिसको नष्ट करने के लिए चाय व काफी लाई गई। डॉ. फ्रैंक लाऊन्टेन ने जब एक लीटर गाय का दूध लेकर उसका पृथक्करण किया तो इसमें आठ अण्डे, पांच सौ ग्राम मुर्गी का मांस और ७५० ग्राम मछली जितने तत्व मिले। यही कारण है कि वर्ष १९३५ में प्रसिद्ध पशु विशेषज्ञ डॉ. राइट ने माना कि गोवंश से होने वाली वार्षिक आय ११ अरब रुपये से अधिक है। आज १९३५ की अपेक्षा वस्तुओं के भाव कई गुना अधिक बढ़ गये हैं अतः गोवंश से होने वाली आय १०० अरब रुपये से अधिक हो सकती है।डेरी व्यवसाय से अच्छा-खासा मुनाफा ले रहे सफल लोगों से हम आपको समय-समय पर मिलवाते रहते हैं। इसी श्रेणी में आज हम आपको मुजफ्फरपुर जिले की गुंजन डेरी के बारे में बताने जा रहे हैं। ब्रजेश रंजन व गंगेश गुंजन (इब्राहिमपुर, सरैया पंचायत) ने अपने घर पर ही गुंजन डेरी की स्थापना की है। कभी एक गाय से शुरू हुआ कारोबार आज 56 गायों की गुंजन डेरी के रूप में बदल चुका है जबकि अब तक इन गायों के 40 बछड़े भी बेचे जा चुके हैं। तीन करोड़ की गुंजन डेरी में 14 बछिया व 56 गायें हैं। औसतन 20 लीटर दूध देने वाली प्रति गाय की कीमत लगभग 50 हजार रुपये है। रोजाना 15 हजार का दूध सुधा व आसमा डेरी के साथ-साथ सरैया के पीएचसी व एसटीएफ कैंप और मांग पर स्थानीय लोगों को भी दिया जाता है। बचे हुए दूध का पनीर बनाकर बेचा जाता है।
अंग्रेजी में पीजी करने के बाद ललन ठाकुर ने काफी दिनों तक बेरोजगार रहे। आखिकार 24 जनवरी, 2000 को हाजीपुर के चंद्रालय से 22 हजार में 20 लीटर दूध देनेवाली काली गाय खरीदीं। वैज्ञानिक तरीके से दुधारू पशुओं का प्रबंधन किया। गुंजन डेरी में गुणवत्तायुक्त तिमुल के सुधा दाना का उपयोग किया जाता है। स्वयं दलिया तैयार कर गायों को दिया जाता है। रोज प्रति गाय को चार किलो गेहूं, तीसी खल्ली दो किलो, मसूर दाल दो किलो, चना बेसन एक किलो, गुड़ आधा किलो को पानी में उबाल कर दिया जाता है साथ ही 50 ग्राम नमक, कैल्शियम व मिनरल्स भी किया जाता है।
सर्दी और गर्मी में अलग-अलग आहार दिया जाता है। हरे चारे में जई बरसीम, गरमी में केला, केले का पत्ता व पेड़ भी देते हैं। गर्मी में यूपी का ज्वार व बाजरा, सर्दी में बरसीम और जई प्रयोग करते हैं। डेरी की पहली गाय ने अप्रैल, 2014 में 14 वें बच्चे को जन्म दिया। इसी समुचित प्रबंधन का परिणाम है कि आज यहां फ्रिजियन और साहिवाल नस्ल की करीब पांच दर्जन गायें हैं। डेढ़ एकड़ जमीन में फैली गौशाला ने एसबीआइ की कृषि विकास शाखा से 20 लाख कर्ज लेकर पशुओं को आधुनिक सुविधाएं दी। छः शेड बनाएं गए हैं, बछड़ों के लिए अलग शेड है, गर्मी से बचाने के लिए गाय के लिए कूलर की व्यवस्था है, प्रतिदिन दूध वाले बर्तन को उपचारित किया जाता है।
आज ललन ठाकुर संत पल स्कूल, वैशाली में अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं तो धर्मपत्नी नूतन कुमारी शिक्षिका हैं। ब्रजेश रंजन गणित विषय से बीएससी हैं। इसके बावजूद सभी परिजन गौशाला की देख-रेख भी करते हैं। ब्रजेश रंजन गायों का दूध दूहते हैं। गंगेश गुंजन द्वारा पशुओं को वैज्ञानिक तरीके से चारा दिया जाता है। गंगेश ने बीसीए के बाद आइआइबीएमए तक शिक्षा ली है। ब्रजेश ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड से, दाजिर्लिंग में, क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र से कृत्रिम गर्भाधान सह पशु प्राथमिक उपचार का तीन महीने का प्रशिक्षण भी लिया जिससे डेरी व्यवसाय में बहुत फायदा हुआ।
धन्य हैं गुंजन डेरी के जन्मदाताओं जैसे लोग जोकि भगवान श्रीकृष्ण के दिखाएं मार्ग पर चलकर न केवल गौ सेवा कर रहे हैं बल्कि उससे लाभ भी ले रहे हैं। यही वजह है कि आज गुंजन डेरी अनेक पशुपालकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
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