बुधवार, 10 अगस्त 2016

विश्व बायोफ्यूल दिवस पर विशेष
खेतों में लगेगे अब जैविक ईंधन वाले पौधे
जैविक खाद के बाद अब बारी है जैविक पैट्रोल और डीजल की


किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार अनेक प्रयास कर रही है। खेती बाड़ी हो या पशुपालन सभी क्षेत्र में नई-नई योजनाएं लाई जा रही हैं। इसी कड़ी में अब सरकार बायोफ्यूल को भी एक नए रूप में परिभाषित करने की योजना बना रही है। भावी बायोफ्यूल की संभावनाओं के बारे में बताते हुए रामाकृष्णा वाईबी (अध्यक्ष, बायोफ्यूल) ने कहा कि बायोफ्यूल को लेकर सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके लिए फीडस्टॉक कहां से लाया जाए। हमें ये बात समझ में आ गई है कि सिर्फ मोलासीज से एथनॉल बनाने से देश की जरूरत का पांच-सात प्रतिशत से अधिक बायोफ्यूल नहीं बनाया जा सकता। इस चुनौती के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा किसानों एवं निजी क्षेत्र को बायोफ्यूज से जोड़ना होगा। इसे किसानो की आय दोगुनी करने की योजना से जोड़कर हम काफी प्रगति कर सकते हैं। इससे किसानों की दशा सुधारने में काफी मदद मिलेगी। 

उन्होंने आगे बताया कि हमारा अध्ययन बताता है कि देश की 70 फीसद उपजाऊ जमीन कम से कम 5 महीने खाली रहती है। इस अवधि में हम वहां जैविक ईंधन वाले प्लांट्स लगा सकते हैं। अब आप देखिए कि सिर्फ पंजाब और हरियाणा में 4.50 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। पूरे देश में 30 करोड़ टन फसलों को जलाया जाता है या बर्बाद किया जाता है। इन्हें अब जैविक ईंधन में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कार्य के लिए 18-20 हजार करोड़ रुपए निवेश की जरूरत होगी, जो सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी से आसानी से जुटाई जा सकती है। बायोफ्यूल बनाने के लिए जो संयंत्र लगाए जाएंगे उनसे बायोगैस और बिजली भी सह-उत्पाद के तौर पर बन सकते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि भारत बहुत आसानी से अगले पांच वर्षों में पैट्रोल में मिलाने के लिए 20 फीसद जैविक ईंधन और डीजल में मिलाने के लिए 5 फीसद जैविक ईंधन का उत्पादन घरेलू स्तर पर ही कर सकते हैं। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी, तेल आयात बिल कम होगा, किसानों की आय बढ़ेगी और सबसे अहम पर्यावरण की सुरक्षा होगी।

रामाकृष्णा वाईबी की माने तो बायो फ्यूल ईंधन को बढ़ावा देने वाली पहली नीति पंद्रह वर्ष पहले राजग सरकार में बनी थी। तब इसके लिए अनेक अहम लक्ष्य तय कर कुछ काम भी शुरु हुआ था, परंतु संप्रग कार्यकाल में इसमें खास प्रगति नहीं हुई। संप्रग-दो के कार्यकाल में बायोफ्यूल नीति की घोषणा की गई। वर्ष 2017 तक देश में पेट्रोल और डीजल में 20 प्रतिशत तक जैविक ईंधन मिश्रण का लक्ष्य रखा गया। इसे हासिल करने के लिए भी कुछ खास नहीं हुआ। जब राजग सरकार सत्ता में आई तो सिर्फ 1.7 फीसद ही मिश्रण हो रहा था। नई सरकार ने पूरे हालात की समीक्षा की और अब देश में बायोफ्यूल को नए सिरे से बढ़ावा देने की नीति लागू की जा रही है। इससे अगले पांच-छः वर्ष में बायोफ्यूल को लेकर पूरी तस्वीर बदल जाएगी।

रामाकृष्णा बताते हैं कि बायोफ्यूल में अनेक समस्याएं आड़े आ रही थी जिनमें पहली समस्या थी बायोफ्यूल खरीदने के लिए अभी तक एक प्राइसिंग नीति नहीं थी। सरकार की तरफ से बायोफ्यूल के लिए 48.50 रुपए प्रति लीटर का आधार मूल्य तय करने से कई दिक्कतें एक साथ खत्म हो गई। राज्यों ने अपने-अपने तरह से नियमन की नीति बनाई थी जिसे समाप्त करते हुए पूरे देश में एक जैसी नीति बनाने की कोशिश की गई। इसका असर दिखाई दे रहा है। केवल एक वर्ष में एथॉल मिश्रण का स्तर 1.7 फीसद से बढ़कर दिसम्बर 2015 में 3.9 फीसद हो गया। दिसम्बर 2016 तक ये 5 प्रतिशत हो जाएगा। अब हम पांच फीसद से ज्यादा के मिश्रण की तरफ बढ़ेंगे। खासतौर पर जिन राज्यों में बायोफ्यूल पर्याप्त है वहां ज्यादा मिश्रण करने को तैयार है। कुछ राज्यों में 10 प्रतिशत से भी ज्यादा का मिश्रण किया जाएगा। सिर्फ एथनॉल मिश्रण में ही नही बल्कि बायोडीजल के मामले में भी अच्छी प्रगति हो रही है। एक वर्ष पहले देश के 5 शहरों के 12 पेट्रोल पंप पर बायोडीजल बिक्री शुरु की गई थी। अभी छः राज्यों के 2300 जिलों में बायोडीजल की बिक्री हो रही है।

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