शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

इस हस्ती को नाकामी की मिजी चुनौती पर 
इसने समस्याओं को भी झुकाकर जीत ली मंजिल 


किसी सच ही कहा है कि आदमी गरीब जन्म लेता है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं लेकिन हां अगर वह गरीब मरता है तो इसमें उसकी जरूर कमी है। यह गरीबी और भूख ही तो है जो मनुष्य को हर तरह का संघर्ष करना सिखाती है। आज हम आपको ऐसे  शख्स से मिल रहे हैं जिसे कंपनी तो विरासत में मिली थी पर उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से उसे कई गुना बढ़ाया दिया है। हम बात कर रहे हैं कभी तेल, साबुन आदि चीजें बेचने वाली कंपनी के कर्ताधर्ता और चेयरमैन अजीम प्रेमजी की जिनकी कंपनी आज 1,110 अरब रुपए नेटवर्थ वाली बन चुकी हैं। आज विप्रो विश्व की चिरपरिचत आईटी कंपनी है। विप्रो में अजीम प्रेमजी की शुरुआत अत्यंत कठिन परिस्थितियों में हुई थी। इसे उनके शब्दों में कहे तो ‘‘उन्हें स्वीमिंग पूल में फेंक दिया गया था।’’

प्रेमजी के पिता की इच्छा थी कि वह एजुकेशन पूरी करें। प्रेमजी 1966 में अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग कर रहे थे, लेकिन पिता की अचानक मृत्यु के कारण उन्हें पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापस आना पड़ा था और 21 वर्ष की आयु में उन्होंने विप्रो की बागडोर संभाली। उस समय उन्हें कारोबार की कोई जानकारी नहीं थी। कंपनी संभालने के बाद उन्होंने इसे जाना। कम उम्र और अनुभव की कमी ने इन्वेस्टरों को उनके खिलाफ कर दिया था। वह उनकी योग्यता को लेकर संदेहित थे। इसीलिए प्रेमजी कहते हैं कि यह स्वीमिंग पूल में फेंक दिए जाने जैसा था। ऐसे समय में डूबने से बचने के लिए आपको बहुत जल्दी तैरना सीखना होता है।

अजीम प्रेमजी के पिता मो. हुसैन हशम प्रेमजी द्वारा 29 दिसंबर, 1945 को वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रॉडक्ट्स लि. बनाई गई। बाद में इसमें से वेजिटेबल शब्द को हटा दिया गया। कंपनी संभालने के बाद अजीम प्रेमजी ने कंपनी के नाम को शॉर्ट फॉर्म में विप्रो कर दिया। चेयरमैन बनाने के बाद प्रेमजी को लगा कि शायद वे कंपनी नहीं चला पाएंगे। ऐसे में, प्रेमजी समझ नहीं पा रहे थे कि वे कंपनी चलाएं अथवा किसी अनुभवी को सौंप दें। इसी कशमकश में उन्होंने एक मीटिंग में चेयरमैनशिप छोड़ने का एलान का निश्चय किया। तभी एक शेयर होल्डर के उनकी योग्यता को लेकर सवाल करने पर प्रेमजी को उसकी तीखी बातें चुभ गईं। तब प्रेमजी ने पक्का इरादा किया कि अब तो किसी भी परिस्थिति में कंपनी चलाकर ही दिखाएंगे। इस तरह आलोचना ने उनके जीवन को बदल दिया।

प्रेमजी में पक्का इरादा और मेहनती स्वभाव तो था परंतु बिजनेस का अनुभव नहीं था। बिजनेस के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए अजीम प्रेमजी तब मुंबई के एक प्रतिष्ठित मैनेजमेंट स्कूल के प्रोफेसर के पास गए। प्रेमजी ने उनसे टेक्स्ट बुक्स की लिस्ट मांगी। उसके बाद उन्होंने ढेर सारी पुस्तकें खरीदीं और एक साल में सारी पुस्तकें पढ़ भी लीं। प्रेमजी दिन में बिजनेस संभालते और देर रात जागकर एवं सुबह जल्दी उठकर पुस्तकें पढ़ते थे।

बिजनेस की सभी समस्याएं प्रेमजी अपने तरीके से सुलझाते थे। वे लीड बाय एग्जांपल में विश्वास रखते हैं। विप्रो की अमलनेर (महाराष्ट्र) नामक फैक्टरी एरिया में बहुत गर्मी पड़ती है। गर्मियों के मौसम में सुविधाओं की कमी से काम धीमा हो जाता था, जिससे प्रॉडक्शन घटता था। एक बार अजीम प्रेमजी भी इसी गर्मी में तीन माह अमलनेर रहे। उन्होंने एयर कंडीशनर जैसी कोई सुविधा नहीं ली। सभी लोगों की तरह प्रेमजी भी रहे। इसके बाद कर्मचारियों ने कभी कोई शिकायत नहीं की।

अजीम प्रेमजी देश में कहीं भी हवाई सफर करते हैं, तो इकानॉमी क्लास में ही करते हैं। एक फोरम में भाग लेने प्रेमजी और नारायण मूर्ति पेरिस गए। वहां दोनों थ्री स्टार होटल में ठहरे जबकि फोरम के दूसरे सदस्यों ने फाइव स्टार होटल में रुकना पसंद किया। इतना ही नहीं वहां पर दोनों ने टैक्सी में ही सफर करते थे। प्रेमजी सेकंड हैंड कारें रखते हैं। वे ऑफिस में लोगों को इलेक्ट्रिक स्विच बंद करने की याद भी दिलाते हैं। प्रेमजी के गुजराती परिवार को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में बसने के लिए बुलाया था। जिन्ना ने प्रेमजी के पूर्वज हशम प्रेमजी को पाकिस्तान का वित्त मंत्री बनाने की पेशकश भी की थी पर हशम प्रेमजी ने अपनी जन्मभूमि भारत में ही रहना पसंद किया।

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