सोमवार, 29 जनवरी 2018

विकास से रूक रही
 पर्यावरण संरक्षण की राह 


विकास की जरूरत देश एवं नागरिकों सभी को है, लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर इसे पाना सभी के लिए घातक है। यह बातें हम वर्षों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन हमने कभी भी इनपर अमल कर पर्यावरण मित्र बनने का प्रयास नही किया। यही वजह है कि बरसात के समय बरसात नहीं होती, तो गर्मी में गर्मी बेहिसाब पड़ती है और अब तो सर्दी का भी यह अलाम है कि समय के पहले या बाद आती हड़ कंपकंपा देने वाली सर्दी पड़ रही है। आपको बता दें कि वर्ष 1901 के बाद से इस वर्ष की जनवरी सबसे सूखी और कम बारिश वाली होगी। यानि यह जनवरी 117 वर्ष के इतिहास में सबसे ड्राई जनवरी साबित हो सकती है।

मौसम का रेकॉर्ड रखने की व्यवस्था 1901 में शुरू हुई। इसके बाद से यह सबसे सूखी जनवरी सिद्ध होती दिख रही है। 24 जनवरी तक देश में औसत मात्र 2.2 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, जबकि जनवरी माह में भारत में सामान्य तौर पर 19.2 मिमी बारिश का औसत रहा है। इससे पहले वर्ष 2007 में केवल 2.8 मिमी बारिश रेकॉर्ड हुई थी। महत्ववूर्ण बात यह है कि जनवरी महीने में होने वाली बारिश न सिर्फ रबी की फसल के लिए उपयोगी होती है, बल्कि जल स्रोतों के रिचार्ज, ग्राउंडवॉटर और पर्वतीय ग्लेशियरों के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। साथ ही शीत ऋतु की वर्षा प्रदूषण को कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाती है। चूंकि सर्दियों में पारा गिरने और हवा की गति कम होने से प्रदूषण स्तर बढ़ता है। ऐसे में बारिश का न होना समस्या को गंभीर बना सकता है।

इतना ही नहीं हाल ही में देश की पर्यावरण स्थिति पर कड़ा प्रहार किया गया है एन्वायरनमेंटल परफॉर्मेंस इंडेक्स (ईपीआई) की ताजा रपट में। दावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की बैठक में जारी की हुई इस वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत इस मामले में संसार के चार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में खड़ा है। 180 देशों की इस सूची में भारत को 177 वां स्थान मिल पाया है। विशेष तथ्य यह है कि भारत की यह गिरावट बिल्कुल नई है। जहां दो वर्ष पूर्व हम इसी सूची में 141वें स्थान पर थे। दो वर्षों में 36 अंक नीचे लुढ़कना सहज और स्वाभाविक गिरावट को साबित नहीं करता।

विचार करने योग्य बात है कि इस दो वर्षों में ऐसा क्या हुआ है, जिससे हमारे देश के पर्यावरण पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा। सबसे पहले तो इसकी जड़ में पर्यावरण मंत्रालय की कार्यशैली में हुआ बदलाव है। यूपीए सरकार में पर्यावरण मंत्रालय बेहद सक्रिय था। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से किसी औद्योगिक प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी मिलना आसान नहीं था। अक्सर शिकायतें की जाती थीं कि पर्यावरण मंत्रालय विकास की गति को अवरूद्ध कर रहा है। इसे मंत्रियों की मनमानी व संतरियों के भ्रष्ट से भी जोड़ दिया जाता था। वर्तमान सरकार बदलने के बाद विकास को गति दी गई। प्रक्रिया में बदलाव हुआ। पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति एक औपचारिकता बनकर रह गई।

निश्चित रूप से विकासशील देशों की श्रेणी में शामिल हमारे देश में तीव्र एवं रोजगारपरक विकास की जरूरत हैं, लेकिन प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुंचाए बिना। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण को विशेष तरजीह देने की जरूरत है। हमें प्राकृतिक संपदा को संजोकर विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाना है। हम जर्मनी, जापान, कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से यह गुर सीख सकते हैं कि कैसे पर्यावरण और विकास दोनों को साथ-साथ आगे बढ़ाया जा सकता हैं। इससे सीख लेकर ही चीन भी अब इसी राह पर आगे बढ़ रहा है। अब यह हम पर है कि इस चुनौती को स्वीकार करते हैं या इससे घबराकर निगराहे फेरने को ही अपनी उन्नति मानते हैं।

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