रोग देते नोट
रुपयों या नोटों की चाहत कौन नहीं रखता। पर क्या आप जानते हैं कि यही पुराने नोट आपके शरीर में इन्फेक्शन और रोग भी पैदा कर सकते हैं। यह पढ़कर शायद आप हैरान हो रह होंगे। लेकिन यह सत्य है, हाल ही में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और इंस्टीट्यूट ऑफजिनोमिक्स एवं इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वैज्ञानकों ने भारतीय मुद्रा के 10, 20 और 100 रुपए केनोट पर स्टडी की तो पाया कि उसपर खतरनाक वायरस, एंटीबायोटिक प्रतिरोधक और बैक्टीरिया थे।
जून के साइंस जर्नल में प्लोस वन नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने A shotgun metagenome sequencing approach तकनीक की गई स्टडी में नोटों में 78 रोगाणु और 18 ऐसे जीन पाएं, जिनसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर होती हैं। 70 प्रतिशत यूकेरियोटा या फफूंद और प्रोटोजोआ, 9 फीसदी बैक्टीरिया और 1 प्रतिशत से कम वायरस मिला। यह जीव कोशिकाओं को नष्ट करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नोट की बारीक सतह पर यह वायरस सरलता से लंबे समय तक जमे रह सकते हैं, जोकि उपभोक्ताओं के लिए जान तक का खतरा पैदा कर सकते हैं। इन वायरस की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि वह नोट कितने पुराने है। पुराने और गले नोट के ज्यादा इन्फेक्टेड होने की संभावना होगी।यह नोट किराना दुकान, दवाई की दुकान, स्नैक्स बार, हार्डवेयर शॉप और स्ट्रीट वेंडर से लिए गए थे। यानि ऐसी जगह से जहां करेंसी का प्रतिदिन सबसे अधिक आदान-प्रदान होता है। यहां नोट कई हाथों से निकलने के बाद इन वेंडर्स तक पहुंचते हैं। जनरल ऑफ रिसर्च इन बायोलॉजी की 2014 की रिपोर्ट में भी भारतीय करेंसी मेंपैथोजेनिक बैक्टीरिया पाए गए थे। इसमें कहा गया था कि मीट और किराना दुकान के अतिरिक्तबैंक, अस्पताल, म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में जो नोट चलन में आते हैं वो भी ज्यादा संक्रमित होते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि नोटों से फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी है कि प्लास्टिकमुद्रा का उपयोग हो। चंूकि यह मुद्रा जल्दी से गलती नहीं है और उससे संक्रमण को हटाया जासकता है। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में प्लास्टिक करंसी चलन में है।
दूसरा एक और रास्ता है कि नोटों के प्रचलन को कम कर क्रेडिट और डेबिट कार्ड का अधिक से अधिकउपयोग किया जाए। क्रेडिट और डेबिट कार्ड ज्यादा लोगों के हाथों से नहीं गुजरता, इसलिए उनमेंसंक्रमण की संभावना कम है।
क्या होता है वायरस या विषाणु
विषाणु यानी वायरस का शाब्दिक अर्थ है विष। विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव होता हैं, जोकिकेवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकता हैं। शरीर के बाहर तो ये मृतप्राय होते हैं पर शरीरके अंदर जीवित हो जाते हैं। यह कई वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवितमध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर उसे बीमार कर देता है। एकबार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए कीजेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसेसंक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है।
सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है।विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है,यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों सेरक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी,इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं।
कैसे फैलाते हैं ये रोग
· यह वायरस पीडि़त व्यक्ति के सम्पर्क में आने से, हाथ मिलाने, वायु, भोजन, जल तथा कीटों द्वाराविषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं।
· कैसे करें इनसे बचाव
· रोगी या पीडि़त व्यक्ति से बचें,
· आंख, मुंह, नाक, कान आदि को ढककर रखें
· खाद्य पदार्थों को अच्छे से धोकर प्रयोग करें
· भोजन से पूर्व और शौच के बाद साबुन से अच्छे से हाथ धोने की आदत बनाएं
· स्वच्छ पेयजल का प्रयोग करें
तो यदि आप इन बातों का ध्यान रखेंगे तो रोगों से दूर रहेंगे।
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