खाद्य बर्बादी से पर्यावरण
पर पड़ रहा बुुरा प्रभाव
खाद्य उत्पादन बहुत ही मुश्किल से होता है, ऐसे में इनको बर्बादी से बचाना एक बड़ी चुनौती है। चूंकि आज सभी ओर से खाद्य पदार्थो के उत्पादन बढ़ाने पर तो जोर दिया जाता है पर उसकी बर्बादी पर अंकुश लगाने की बात कोई नहीं सोचता। यही वजह है कि आज भरपूर मात्रा में खाद्य पदार्थ होने पर भी संसार में लगभग 80 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। यूरोपीय लोग अपने भोजन का अधिकांश भाग बेकार कर देते हैं। अकेले अमेरिका में उत्पादित खाद्यान्न व मांस का 31 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। डेली मेल की माने तो ब्रिटेन में प्रतिमाह 2 मिलियन पौंड के फल व सब्जियां नष्ट की जाती है, जबकि देश में 4 मिलियन लोग भूखे रहते है। भारत भी इसमें पीछे नहीं है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री शरद पवार ने 2013 में संसद में जानकारी दी कि देश में प्रतिवर्ष 44 हजार करोड़ के खाद्य उत्पाद खराब हो जाते है, जोकि कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत है।
यूएनओ की खाद्य व कृषि संस्थान (एफएओ )की रिपोर्ट के अनुसार संसार के कुल कृषि उत्पादन का 33 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। इनकी कीमत 750 बिलियन डॉलर होती है। यदि उत्पादन के लिए उपयोग पानी की कीमत, पर्यावरण बदलाव की कीमत को बेकार खाद्य पदार्थो की कीमत में जोड़ने पर यह लगभग दुगनी हो जाएगी। संसार में 30 प्रतिशत उत्पादित खाद्यान्न खराब होते है, जिनके उत्पादन में लगभग 230 क्यूबिक जल का उपयोग होता है।
वैज्ञानिकों द्वारा अब यह पता लगाया गया कि बर्बाद होने वाले खाने का पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यूनिवर्सिटी आॅफ मिसोरी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि फल-सब्जी की अपेक्षा मंासाहारी चीजे कम खराब होती हैं। साथ ही मांस उत्पादन में फल-सब्जी की अपेक्षा अधिक ऊर्जा खर्च होती है। मांस उत्पादन में खर्च यह एनर्जी सामान्यतः उन संसाधनों के रूप में होती है जिनका हमारे आसपास के पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस अध्ययन में यूजर्स के हाथ में जाने से पहले और बाद में होने वाले खाद्य की बर्बादी के आंकड़े तीन महीने तक रेस्टोरेन्ट व होटलों से एकत्र किए गए। कोस्टो की टीम ने इन्हें तीन भागों-मांस, सब्जी व अनाज में बांटा। फिर उन्होंने उर्वरक के इस्तेमाल, वाहन-परिवहन व खेत में उपकरणों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का भी विश्लेषण किया।
इस अध्ययन में शामिल क्रिस्टाइन कोस्टेलो (सहायक शोध प्रोफेसर, काॅलेज आॅफ एग्रीकल्चर, फूड एंड नेचुरल रिसोर्सेस) की माने तो संसार में बर्बाद होने वाले भोजन से हम सब चिंतित हैं पर हमें इन संसाधनों पर भी ध्यान करने की आवश्यकता है जो इस खाद्य के साथ ही बर्बाद हो जाते हैं। पशुधन को चारा खिलाने, स्वस्थ रखने व पशुचारा उगाने के लिए बड़ी मात्रा में डीजल/ईंधन/जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल होता है। जब लोग मांस को बर्बाद करते हैं तो साथ में इसके उत्पादन में लगा ईंधन व उर्वरक भी खराब जाता है। कोस्टेलो ने सुझाव दिया है कि लोगों व संस्थानों को पकाए जाने वाले मांस की न केवल मात्रा का ध्यान रखना चाहिए वरन बर्बाद किए जाने वाले खाद्य के बारे में भी विचार करना चाहिए।
अतः विश्व में खाद्य पदार्थो की कमी नहीं है बल्कि भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं हैं जिससे बर्बाद खाद्यान्न की लागत को सही उत्पादों की कीमत में जुड़ देने से खाद्यान्न महंगे हो जाते है। यदि आप इन्हें बर्बादी से बचा लें तो हर उत्पाद केवल अपनी लागत वसूल करेगा, जिससे महंगाई कम होगी, उत्पाद सस्ते होगे व गरीबी तक उनकी पहुुंच बन सकेगी।
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