तो ऐसे बढ़ सकता है निजी क्षेत्र
के कर्मियों का पीएफ कंट्रीब्यूशन
सबका साथ, सबका विश्वास में विश्वास रखने वाली केंद्र सरकार को मिल रहे चैतरफा समर्थन से सरकार के हौंसले बहुत मजबूत हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए काफी जागरूक नजर आती है। इसी श्रृंखला में काफी समय से सरकार प्रयास कर रही है कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को सोशल सिक्युरिटी उपलथ्ध करवाई जाए।
ऐसी संभावना काफी समय से जताई जा रही है कि भविष्य में केंद्र सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन तय करने में कंपनियों के मनमाने रैवये पर रोक लगाई जा सकती है। इसलिए सरकार न्यूनतम फीसदी ग्रॉस सैलरी निश्चित करने पर विचार कर रही है, जिसे कंपनियों के लिए अनिवार्य रूप से बेसिक प्लस डीए के तौर पर मानना होगा। इससे जहां कर्मचारियों का प्रॉविडेंट फंड और पीएफ कंट्रीब्यूशन बढ़ेगा वहीं उनकी इन हैंड सैलरी कम हो जाएगी। वास्तव में अभी तक ऐसा होता रहा है कि निजी क्षेत्र में कंपनियां ग्रॉस सैलरी पर पीएफ न काट कर बेसिक सैलरी और डीए पर पीएफ काटती हैं। इससे कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी तो बढ़ती है पर पीएफ कंट्रीब्यूशन कम हो जाता है। इससे उनके पीएफ में इतनी रकम जमा नहीं हो पाती है जो रिटायरमेंट के बाद उनकी जरूरतों को पूरा कर सके।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की निर्णयाक शीर्ष बॉडी सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी सीबीटी के सदस्य और हिंद मजदूर सभा के महामंत्री एडी नागपाल ने सीबीटी की सब कमेटी की बैठक में कंपनियों द्वारा सैलरी को भत्तों में बांटने की बात उठाते हुए कहा कि कुछ कंपनियां ग्रॉस सैलरी का केवल 10-20 प्रतिशत बैसिक सैलरी और डीए के रूप में दिखाती रहीं हैं। इस बैठक में सदस्यों ने सुझाया कि कंपनियों की इस मनमानी पर रोक लगनी चाहिए और ईपीएफओ को ग्रॉस सैलरी का मिनिमम पर्सेंट निश्चित करना चाहिए, जिसे कंपनियों हेतु बेसिक सैलरी एवं डीए के रूप में मानना अनिवार्य हो।
उपस्थित एम्पलॉयर प्रतिनिधियों ने माना कि यह एक गंभीर मुद्दा है, जिसके दूरगामी प्रभाव होंगे। इसलिए इसपर सीबीटी की अगली बैठक में चर्चा होगी। ईपीएफओ अगर मिनिमम बेसिक सैलरी और डीए निश्चित करने का निर्णय लेता है तो इससे लगभग 4 करोड़ से अधिक कर्मचारियों को लाभ होगा। इन का पीएफ कंट्रीब्यूशन बढ़ जाएगा।
वास्तव में, इंप्लाइज प्रॉविडेंट फंड स्कीम का लक्ष्य अपने सदस्यों को सोशल सिक्युरिटी उपलब्ध कराना है परंतु कर्मचारियों की ग्रॉस सैलरी पर पीएफ न कटने से पीएफ बहुत कम कटता है और इसकी वजह से कर्मचारियों को बहुत कम पेंशन मिलती है। ऐसे में स्कीम का अपने कर्मचारियों को सोशल सिक्युरिटी कवर मुहैया कराने का मकसद नहीं पूरा हो पा रहा है।
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