गुरुवार, 2 मार्च 2017

भारत में बढ़ता स्वच्छ ऊर्जा का दायरा
पारंपरिक स्रोतों ऊर्जा का सामना करने की स्थिति में वैकल्पिक ऊर्जा 


भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश है इसीलिए हमपर स्वच्छ ऊर्जा अपनाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार ने भी इसे अपने अजेंडे में प्रमुख स्थान दिया हुआ है। यही कारण है कि वर्ष 2022 तक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से 175 गीगावाट ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य है। इसी टारगेट को पूरा करने के लिए वैकल्पिक अथवा स्वच्छ ऊर्जा के अधिक से अधिक उपयोग की संभावनाएं बनने लगी हैं।

गत सप्ताह सरकार की नीलामी में पवन ऊर्जा दरों में रिकॉर्ड गिरावट आई। एक गीगावाट प्रॉजेक्ट्स की बिल्डिंग में 5 कंपनियों ने 3.46 रुपये प्रति यूनिट की बोली देकर टेण्ड्रर ले लिया। इतना ही नहीं हाल ही में सौर ऊर्जा दरों में भी भारी गिरावट आई थी, जोकि अब तीन रुपये प्रति यूनिट से भी कम हो चुकी है। यही कारण है कि पहली बार वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत दाम की तुलना में परम्परागत स्रोत से मिलने वाली ऊर्जा का मुकाबला करने की स्थिति में आ गए हैं। इसमें सरकार के प्रोत्साहन की बहुत बड़ी भूमिका रही। पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन दाम कम करने में तकनीकी विकास की भूमिका सबसे बड़ी है, पर इस काम को अंजाम देने वाले संस्थानों को जरूरी लाभ भी मिलना चाहिए, ताकि दूसरे संस्थान भी इससे प्रेरणा लेकर वैकल्पिक ऊर्जा के इस क्षेत्र में उतरकर बढ़-चढ़कर भाग ले सकें। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वैकल्पिक बिजली के नए दामों से इसकी मांग में तेजी आ सकती है। इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार ने 2020 तक सौर ऊर्जा उत्पादन का अपना लक्ष्य दोगुना करते हुए 40 गीगावाट तय कर दिया है।

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से अगर मौजूदा बाजार दाम के लगभग बराबर मूल्य पर अतिरिक्त ऊर्जा मिले, तो देश में बिजली की कमी दूर होगी। इससे घरेलू उपयोग एवं उद्योग-धंधों तक पर सकारात्मक असर होगा। 

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