अपने दम पर इन 21 गांवों ने
इंतजाम कर लिया 24 घंटे पानी का
कभी पीने के पानी को तरसने वाले यह गांव
आज ले रहे हैं साल में दो फसलें
जाट आंदोलन जोरों पर है और अगर आप दिल्ली में रहने वाले हैं तो आपको पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा होगा। कई बुर्जुगों को तो रहिमन का वर्षों पुराना दोहा ‘‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।’’ याद आ गया होगा। नीतिवाद से प्रेरित यह दोहा आज सत्य प्रतीत होता दिखाई दे रहा है। प्रमुख पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने तो यहां तक कह दिया कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर लड़ा जाएगा। इसीलिए वैदिक युग से लेकर आधुनिक युग तक जल को विशेष महत्व दिया गया है। पर इसके बावजूद भी आज चिंतनीय स्थिति है कि पानी कहीं नहीं है? सावन को तरसती नमन आँखे आज फसलों को जलते देखने के लिये विवश हैं, रेगिस्तान निरंतर फैलते जा रहे हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदियाँ, नालों में तब्दील होती जा रही हैं। कमोबेश समूचे विश्व की यही स्थिति है। सरकारी और निजी स्तर जल संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वह नगण्य ही हैं।
ऐसे में, झारखंड की घाटशिला तहसील के लगभग 21 गांववालों ने अपने दम पर करिश्मा कर दिखाया है। इसी का नतीजा है कि इन गांवों में बिना मोटर पंप, बिजली के चैबीस घंटे पानी की सप्लाई हो रही है। इस पानी से न केवल घरों की जरूरतें पूरी हो रही हैं बल्कि खेतों को भी सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके बदले देना पड़ता हैं केवल 20 रुपए महीना।
हुआ यूं कि बागडूबा गांव में खेतों की सिंचाई के लिए तो दूर पीने के पानी के लिए लोग तरसते थे। हां, गांव से आधा कि.मी. की दूरी पर पहाड़ी से पानी गिरकर बह जाता था। ऐसे में, गांव के लोगों ने पहाड़ से गिरते पानी का सही तरह से इस्तेमाल करने की ठानी। गांववालों की मेहनत और एनजीओ से जुड़े कंचन कर की प्रेरणा से जहां एक ओर गांव को 24 घंटे पीने का पानी मिला तो वहीं खेतों को भी सिंचाई के लिए भरपूर पानी। पहाड़ से गांव तक की दूरी को नापा गया और स्थानीय प्रशासन की सहायता से पाइप लाइन डाली गई ताकि पहाड़ से गिरने वाले पानी को पाइप के सहारे गांवांे तक और फिर फिल्टर लगाकर घरों तक पहुंचाया गया। इतना ही नहीं गांव के पांच विद्यालयों में भी भरपूर पानी मिलने लगा है। यह मॉडल इतना प्रसिद्ध हुआ कि दूसरे 21 गांवों ने भी इसको अपनाया। इससे इन गांवों में घरों और खेतों को भरपूर जल मिल रहा है। गर्मी में भी झरना सूखता नहीं है, हां पानी अवश्य कुछ कम हो जाता है। इसी का परिणाम है कि आज किसान वर्ष में दो फसलें उगाने लगे। कंचन की माने तो पहले यह काम बहुत मुश्किल लगता था पर जब सभी गांववालों ने एक साथ कदम आगे कदम बढ़ाएं तो राह आसान होती चली गई। पीयूष जेना (रूरल डेवलपमेंट एसोसिएशन) के अनुसार, किसानों की जिद से जलक्रांति आई है। अन्य गांवों के किसान भी इस दिशा में काम कर रहे हैं।
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