शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

ग्रामीण भारत का हर तीसरा व्यक्ति है कर्जदार
दक्षिण भारतीय ग्रामीण राज्य कर्ज में सबसे आगे


कल यानि 26 फरवरी को सरकार द्वारा इकोनॉमिक सर्वे 2015-16 पेश कर दिया गया। इसमें आगामी बजट की रूपरेखा दिखाई गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार बजट का सबसे अधिक फोकस रहेगा-जर्जर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने में। चूंकि देश का मूल आधार है कृषि और अभी की हालत देखों तो ग्रामीण भारत का प्रत्येक तीसरा व्यक्ति ऋण के बोझ तले दबा हुआ है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो हम पाते हैं कि सबसे अधिक कर्ज आंध्र प्रदेश के ग्रामीणजनों पर है। साथ ही तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यांे के लोगों पर भी ऋण का कहर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दक्षिण भारतीय राज्यों से ही आते हैं। नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के वर्ष 2013 के डाॅटा बताते हैं कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कनार्टक और केरल में सबसे अधिक आत्महत्याओं के मामले उजागर हुए हैं।

ऐसा हम नहीं कह रहे, यह बता रही है नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की ‘‘भारत में कर्ज और निवेश’’ नामक रिपोर्ट। इसमें बताया गया है कि दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि कर्ज में आगे हैं। 54 प्रतिशत परिवार की दर के साथ सबसे आगे है आंध्र प्रदेश। जहां पर आधे से अधिक ग्रामीणजनों पर ऋण का बोझ है। जहां तक शहरी क्षेत्र की बात है तो इसमें 47 प्रतिशत परिवार की दर के साथ केरल बढ़त बनाए हुए है। आंकड़े बताते हैं कि ऋण के मामले में उत्तर भारतीय राज्य दक्षिण भारतीय राज्यों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में हैं।

गत दस वर्ष में ग्रामीण परिवारों पर कर्ज के स्तर में विशेष वृद्धि हुई है, जोकि 27 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत तक पहुंच गई है। दूसरी ओर शहरी आबादी पर भी ऋण का भार बढ़कर 18 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक जा पहुंचा है। यद्यपि यह आंकड़े 2012 तक के हैं। वास्तव में 2002-2012 के बीच यह सर्वे सभी राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों के 4,529 गांवों और 3,507 शहरी ब्लाॅकों में करवाए गए सैंपल पर आधारित है। चलिए आपको इन आंकड़ों से अवगत करवा देते हैंः
प्रदेश शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र

आंध्र प्रदेश 40 54
कर्नाटक 27 46
केरल 47 50
तमिलनाडु 35 40
बिहार 13 29
उत्तर प्रदेश 19 30
भारत 22 31

एक ओर जहां 2002-12 के मध्य तक कर्ज की राशि लगभग दुगुनी हुई वहीं कुल एसेट्स में डिपाजिट्स की औसत भागीदारी 2.3 प्रतिशत से घटकर 1.7 प्रतिशत तक जा पहुंची। शहरी क्षेत्रों में तो यह 9.7 से 4.3 तक आ गई। जहां तक डेट एसेट रेशो का प्रश्न तो तो इस क्षेत्र में हरियाणा के ग्रामीण इलाकों पर सबसे कम यानि केवल 1 प्रतिशत ऋण है। यद्यपि वर्ष 2002-2012 के बीच कर्नाटक (6.5 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश(14.1 प्रतिशत), केरल(5.4 प्रतिशत) व तमिलनाडू(6.8 प्रतिशत) के ग्रामीण क्षेत्रों में डेट एसेट रेश्यों तेजी से आगे बढ़ा परंतु महाराष्ट्र में जरूर इसमें गिरावट देखी गई।

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