शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

बिना खेतों और किसानी किए कमाते हैं 
हर साल 40-45 लाख रुपए 


आज के समय में जहां खेती और किसानी को नुकसान का सौदा माना जा रहा है। किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अनेक ऐसे लोग भी हैं जोकि अपनी मेहनत, लगन और दूरदर्शिता से न केवल स्वयं तरक्की की इबारत लिखते हैं बल्कि दूसरे के लिए भी आदर्श बन जाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक युवा किसान राजेंद्र बैरागी (बुलढाणा, मुंबई) से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिसने बार-बार नुकसान होने पर निराशा भरे समय में भी हौसला नहीं खोया और आज वह बिना खेत, पानी व उपज उगाए हर साल 40-45 लाख रुपए कमा रहा है। मजे की बात तो यह है कि वह भी दूसरों के खेत से।

दूसरे किसानों की तरह ही राजेंद्र बैरागी को अपने पूर्वजों से खेती और 8 एकड़ पुश्तैनी भूमि विरासत में मिली। बैरागी इसपर मुनगा यानि ड्रम स्टिक्स की खेती करते थे। प्रकृति की मार और बदलते-बिगड़ते मौसम ने राजेंद्र की खेती को चैपट कर रखा था। फसल के बार-बार बर्बाद होने से परेशान राजेंद्र ने हार नहीं मानी। अनेक दरवाजों पर दस्तक दी। आखिरकार वह बुलढाणा एग्रीकल्चर कॉलेज जा पहुंचे। यहां से उन्हें एक नई राह दिखाई गई वह थी-मधुमक्खी पालन की।

राजेंद्र ने इस सलाह पर गंभीरता से विचार करते हुए ग्रामोद्योग से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में परामर्श किया। जब उन्हें यह व्यवसाय पसंद आया तो उन्होंने मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद भी इस क्षेत्र में अधिक जानकारियों की उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हुई। उन्होंने मधुमक्खी पालन पर दूसरे स्रोतों से जानने की भी कोशिश शुरू की। ऐसे में उन्हें एक बेहतरीन और अनमोल साधन मिला-इंटरनेट। इसपर पढ़कर और उससे जानकर उन्हें अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां मिली जिन्होंने उनके इस व्यवसाय में संजीवनी का काम किया।

अब राजेंद्र ने इस जानकारियों को व्यावहारिक धरातल पर उतारने की ठानी। इसके लिए उन्होंने अपने खेतों में एक्सपेरिमेंट शुरू कर दिए। अब राजेंद्र ने बिना खेत, पानी, मिट्टी व बिजली के मधुमक्खी पालन आरंभ कर दिया। आज स्थिति यह है कि इन्हीं मधुमक्खियों की बदौलत न केवल आज राजेंद्र हर माह लाखों रुपए कमा रहे हैं बल्कि उनका व्यवसाय मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब व आंध्र प्रदेश तक पहुंच चुका है।

राजेंद्र की माने तो वह बहुत सारे राज्यों के किसान उनसे संपर्क में रहते हैं। राजेंद्र इन किसानों की मदद करते हैं। इसके लिए वह उन किसानों के खेतों पर जाते हैं। जहां वह फसल तथा वहां की पर्यावरणीय स्थितियों का जायजा लेते हैं। फिर वह उस किसान से समझौता करके कुछ सप्ताह के लिए उसके खेतों का एक भाग ऑक्युपाय करते हैं। इसके बाद वह इस हिस्से पर रैक्स वाले डिब्बे में मधुमक्खी पालन करते हैं। इससे राजेंद्र व किसान दोनों को लाभ होता है। चूंकि मधुमक्खियों के फसल पर बैठने से जहां उपज अच्छी होती है तो वहीं शहद की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। इसके बाद पैदा होने वाले शहद को बेचने पर अच्छी-खासी कमाई भी होती है।

मधुमक्खी पालन में एक्सपर्ट हो चुके राजेंद्र के पास मधुमक्खी पालन की 700 पेटियां हैं। इन पेटियों से वह प्रतिवर्ष 10-15 टन शहद पैदा कर लेते हैं। आयुर्वेद के बाजार में शहद की अच्छी-खासी मांग है। इस वजह से उन्हें लगभग 300/- रुपए प्रतिकिलो के दाम भी मिल जाते हैं और साल में वह कमा लेते हैं-40-45 लाख रुपए।

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