शनिवार, 5 नवंबर 2016

गांव में जलते खेतों के धुएं से
शहरों में घुटता दम


हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में पिछले 17 वर्षों में सबसे अधिक खतरनाक धुंध छाई हुई है। संस्था ने दिल्ली सरकार को स्वास्थ्य चेतावनी दी और लोगों से आग्रह किया कि वह अपने बच्चों को घर के अंदर रखे। इसे यूं कहे तो अतिश्योक्ति न होगी कि वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण स्वास्थ्य के लिए आपातकाल जैसी स्थिति बनी हुई है। चूंकि दीवाली के बाद दिल्ली की हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बनी हुई है।

जहरीली होती आबोहवा
प्रदूषणकारी तत्वों पीएम 2.5 एवं पीएम 10 की अधिकता के साथ-साथ नमी से दिल्ली के ऊपर धुंध की चादर बन गई है। स्थानीय स्तर पर हवा न चलने से भी परेशानी हो रही है। स्थिति बेहद खतरनाक है क्योंकि खेतों में जल रही पराली से शहरों की आबोहवा में निरंतर जहर घुल रहा। इससे श्वास रोग में वृद्धि हुई है। ऐसे में फेफड़े की बीमारी वाले लोगों को घरों मंे रहने की सलाह दी जा रही है। बीएलके अस्पताल के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विकास मौर्य की माने तो अधिक समय तक प्रदूषित हवा में रहने से दिल का दौरा और फेफड़े का कैंसर हो सकता है। गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण से भ्रूण वृद्धि पर बुरा असर पड़ सकता है।
आजकल दिल्ली के आकाश पर सुबह-शाम छाई धुंध ने दिल्ली-एनसीआर के लाखों निवासियों के लिए सांस लेना दूभर कर दिया है। कोहरेनुमा यह धुंध दिल्ली के पड़ोसी राज्यों के खेतों में जलाए जाने वाले पराली का धुआं है, जिसने राजधानी में प्रदूषण के स्तर को अनेक गुना बढ़ा दिया है। यद्यपि प्रतिवर्ष अक्टूबर-नवंबर में फसल अवशेष जलाना पिछले कई वर्षों से जारी है लेकिन इस बार दिल्ली-एनजीआर में पहली बार स्थिति अधिक खतरनाक हो गई है। यह बात दूसरी है कि सरकार ने काफी वर्षों पहले से ही फसल अवशेष जलाने को गैरकानूनी घोषित किया हुआ है।

क्या है फसल अवशेष या पराली जलाना
धान की कटाई के बाद दिल्ली के पड़ोसी राज्यों (उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब) के किसान रबी की दूसरी फसल जैसेकि गेहूं, आलू, सरसों लगाने के लिए धान की ठूंठ और पराली को खेत में आग के हवाले कर देते हैं। इसकी खोज खबर लेने अमेरिकी पत्रकार गीता आनंद भारत पहुंची। उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ बातचीत की और पाया कि किसानों की तरफ से धान की पराली जलाना मजबूरी बन गई है चूंकि सरकार की ओर से धान की पराली के बचाव के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया गया। किसान इससे होने वाले नुकसान को जानता है पर उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा। आरटीआई एक्टीविस्ट बिरष्भान बुजरक की माने तो धान की कटाई और गेहूं की बिजाई में किसान को केवल एक सप्ताह मिलता है। इसलिए वह जल्दी में पराली जलाकर गेहूं बीजने की जल्दी में रहता है।

क्यों जलाई जा रही है पराली

  • गाँवों में निरंतर घटती गाय, बैल और पालतू पशुओं की संख्या और बढ़ती महंगाई 
  • सरकार की मनरेगा योजना ने बेरोजगारी कम को कम किया है जिससे खेतों में खड़ी फसलों की कटाई के लिए मजदूरों का अभाव हो गया है।
  • अब किसान फसल की कटाई मशीनों से करता हैं। मशीनों से कटाई में धान और गेहूं तो अलग हो जाते है पर तना नहीं कट पाता है। 
  • किसानों को जागरूकता का अभाव


सख्ती पर नहीं मिल रहे ठोस परिणाम
पंजाब और हरियाणा में तो ऐसा करने पर जुर्माने से लेकर जेल तक की सजा का प्रावधान है। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी अहमद और आरुणेश कुमार की बेंच ने तो एक जनहित याचिका पर सुनवाई में कहा कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के खेतों में फसलों के अवशेष जलाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे क्योंकि जब तक पराली जलाने पर रोक नहीं लगेगी, तक तक दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में फैले प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी तल्खी से कहा था कि किसानों को वोट बैंक न समझिये, पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यह कह चुके हैं कि खेतों में पराली को आग लगाने से धरती मां की चमड़ी जलती है। रायबरेली उपकृषि निदेशक महेंद्र सिंह की माने तो जो किसान ऐसा कर रहे हैं वो स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं क्योंकि इससे मिट्टी में मौजूद मित्र जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। दिल्ली में छाई इस स्मॉग का जिक्र अमेरिका में भी उस समय पहुंचा जब वहां के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने इस पर समाचार प्रकाशित किया।

न्यूयार्क टाइम्स से बातचीत में पंजाब के किसान हरजिंदर सिंह का कहना था कि अगर सरकार चाह ले तो वह फसलों के अवशेष जलाने की इस पद्धति को बंद करा सकती है परंतु आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। उम्मीद है कि अगले साल इस संबंध में सरकार उचित कार्रवाई करेगी।
पंजाब की ही तरह उत्तर प्रदेश के किसान भी पराली जलाने में पीछे नहीं हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की फसल अपशिष्टों को जलाने पर रोक के बावजूद किसान इसे मान नहीं रहे हैं। बरेढ़ी गांव (बाराबंकी से 50 किलोमीटर दूर) के अवतार सिंह और हीरा सिंह प्रतिवर्ष लगभग 30-30 बीघा फसल प्राप्त करने के बाद खेत में बची खूँटियों को आग के भेंट चढ़ा देते हैं। मुकेश कुमार वाजपेई की माने तो फसल मिलने के बाद जरूरत के हिसाब से उसमें बचे पैरे को रखकर गाँववालों को कहा जाता है कि वो अपने पशुओं को चरा लें। इसके बाद बचे हुए को जला दिया जाता है क्योंकि खूंटियों से फसल अच्छी पैदा नहीं हो पाती है। खेत में जंगल अधिक होने से आलू बोने में काफी परेशानी देता है इसलिए हमें मजबूरन खेत को जलाना ही पड़ता है। यही स्थिति कन्नौज और फैजाबाद जैसे जिलों में भी बनी हुई है ।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को कृषि अपशिष्ट के निपटान हेतु उठाए गए कदमों की सूचना देने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कृषि अपशिष्ट के कुल सृजन, इनका कहां उपयोग किया जा रहा है और कृषि अपशिष्ट की समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस संबंध में व्यापक ब्यौरा दाखिल करेंगे।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की माने तो नई दिल्ली से उत्तर दिशा में 100 मील दूर पंजाब में हाल-फिलहाल ही धान की कटाई के बाद बचे लगभग 320 लाख टन भूसी और ठूंठ जलाए गए, जिससे राजधानी नई दिल्ली के लगभग 20 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। खेत के क्षेत्रफल के अनुसार अगर इन किसानों पर जुर्माना लगाया जाए तो एक पर ढाई हजार से 15 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा।


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