नोटबंदी से होने वाले अच्छे-बुरे प्रभावों
की समीक्षा विशेषज्ञों की जुबानी
नोटबंदी को लेकर राजनीतिक दल, मीडिया और विशेषज्ञ बंटे हुए दिखाई देते हैं। एक ओर जहां यह दावा पेश किया जा रहा है कि यह बहादुरी भरा निर्णय भारत को विश्व की सबसे तेजी से उन्नति करती अर्थव्यवस्था बना देगा। वहीं अर्थशास्त्रियों की माने तो इससे देश की सकल घरेलू आय यानि जीडीपी की ग्रोथ रेट कम हो सकती है। फिलहाल 2017 वित्त वर्ष में घरेलू अर्थव्यवस्था 7.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रही थी। जुलाई में विश्व बैंक ने भी कहा था कि वर्ष 2016-17 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत दर से बढ़ोतरी करेगी। वर्ष 2015-16 में भी भारतीय अर्थव्यस्था ने निरंतर दूसरे वर्ष चीन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए 7.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि की थी, जबकि इस निर्णय के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी की ग्रोथ 3.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी। वहीं दूसरी ओर चीनी अर्थव्यवस्था 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी करेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम से देश में मुद्रा का डिमॉनेटाइजेशन राजनीतिक प्रणाली, अर्थव्यवस्था, कॉरपोरेट तथा साधारण जन के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। निश्चित रूप से इसका देश की जीडीपी, ब्लैकमनी, आम आदमी, आर्थिक क्षेत्र और व्यवसाय पर प्रभाव पड़ेगा, चलिए जानते हैं इसके अच्छे और बुरे प्रभावों को वो भी विशेषज्ञों की जुबानी...।
लाभ
1. 3 लाख करोड़ रुपए काले धन का हो सकता है खात्माएक रिपोर्ट की माने तो हिंदुस्तान की लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी में देश में मौजूद लगभग 17 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा में 3 लाख करोड़ रुपए कालाधन हैं। कोटक सिक्युरिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमानतः अर्थव्यवस्था में 3.06 लाख करोड़ रुपए का कालाधन 500 एवं 1000 रुपए के नोटों में है, जोकि नोटबंदी के बाद समाप्त हो जाएगी। केयर रेटिंग रिपोर्ट का कहना है कि 500 और 1000 रुपए नोटों को बाहर करने से यह पुनः व्यवस्था में न आने से मनी सप्लाई को स्वतः ही घटा देगे। इससे देश के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 11 प्रतिशत भाग वाले रियल एस्टेट, स्टॉक मार्केट, और गोल्ड में काले धन के प्रवाह पर काफी हद तक अंकुश लगेगा। रॉ और आईबी की माने तो कुल सर्कुलेशन करंसी की 0.004 प्रतिशत करंसी नकली है, जोकि समाप्त हो जाएगी।
2. लॉन्ग टर्म में अर्थव्यवस्था की जीडीपी ग्रोथ 1- 2 प्रतिशत तक बढ़ सकती है
यह निर्णय देश के सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी ला सकता है। इससे अर्थव्यवस्था के सही आकार का आकलन हो सकेगा, जिससे नीतियो के निर्माण और उनके परिणाम तेजी से मिलेंगे। नकदी पर लोगों की धारणा बदलेगी। चूंकि भारत में जीडीपी का 12 प्रतिशत मुद्रा सर्कुलेशन में है, वहीं दूसरी ओर इमर्जिंग इकोनॉमी में यह तीन से चार प्रतिशत है तो वहीं विकसित देशों में इससे भी कम है। बड़ी संख्या में ट्रांजैक्शन कैशलेस होगे। इससे अर्थव्यवस्था के बड़े भाग को टैक्स के अंतर्गत लाया जा सकेगा जिससे सरकार को लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का लाभ होगा। यद्यपि यह अभी तक साफ नहीं है कि यह लाभ कहां से होगा पर निश्चित रूप से लॉन्ग टर्म में यह फायदेमंद है। टैक्स कलेक्शन में वृद्धि से सरकार रोड, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्टेशन आदि विकासशील चीजों पर अधिक खर्च कर सकेगी।
3. आम आदमी को होगा फायदा-सस्ता ऋण और सबके घर का सपना होगा आसान
इससे बैंकों के डिपॉजिट बढ़ेगे। लैंडिंग क्षमता बढ़ने से डिपॉजिट्स पर लागत कम आएगी, जिससे ब्याज दर में लगभग 1-2 प्रतिशत की कमी आएगी। विश्व के अधिकांश विकसित देशों में ब्याज दर 2-2.5 प्रतिशत हैं, जबकि हमारे यहां काफी ज्यादा हैं। प्रॉपर्टी रिसर्च कंपनी जेएलएल की माने तो इस निर्णय के बाद अगले छः माह में प्रॉपर्टी की कीमतों में 25-30 प्रतिशत की कमी आएगी। अरविंद पनगढ़िया (वाइस चेयरमैन, नीति आयोग) का कहना है कि व्यवस्था से कालाधन के बाहर जाने से मनी सप्लाई कुछ कम होगी, जिससे महंगाई दर में कम होगी। कंज्यूमर डिमांड बढ़ेगी एवं रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे।
4. बैंक, ई-कॉमर्स, डिजिटल वॉलेट और आईटी क्षेत्र रहेगे लाभ में
यह कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने वाला सबसे बड़ा कदम है, जिससे बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड, डिजिटल वॉलेट को लाभ होगा। बैंकिंग व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से 12.27 लाख करोड़ रुपए आएंगे। कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने में आईटी क्षेत्र की प्रमुख भूमिका रहने से आईटी क्षेत्र फायदे में रहेगा। डिजिटल या ऑनलाइन पेमेंट कंपनियों को भी बड़ा लाभ होगा। विजय शेखर शर्मा (प्रमुख, पेटीएम ) की माने तो सरकार के इस निर्णय के बाद उसके डेली ट्रांजैक्शन 50 लाख हो गए हैं। मोबिक्विक ने कहा कि इसके कुल ट्रांजैक्शन में 18 गुना का बढ़ोतरी हुई।
5. टैक्स में होगी बढ़ोतरी
इसे देश के सबसे बड़े टैक्स रिफॉर्म के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि अप्रैल, 2017 से जीएसटी आने से इसे एक इंटिग्रेटेड स्टेप बताया जा रहा है जोकि छिपी हुई मुद्रा को सामने आएगा। फिलहाल देश में कुल 2.87 करोड़ लोग आयकर रिटर्न फाइल करते हैं, पर इनमें से केवल 1.25 करोड़ लोग टैक्स चुकाते हैं। यह निर्णय टैक्स बेस बढ़ाएगा।
नुकसान
1. नहीं खत्म होगी ब्लैकमनी आरबीआई ने एक रिपोर्ट में कहा है कि कुल अर्थव्यवथा में ब्लैकमनी की भागीदारी करीब 1 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 67 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें रियल एस्टेट, गोल्ड आदि आते हैं। अतः 3 लाख करोड़ रुपए के कालेधन के खात्मे से विशेष लाभ नहीं होगा। अर्थशास्त्री प्रणब सेन की माने तो देश में ब्लैकमनी प्रतिदिन पैदा होती है, यह कर चोरी और भ्रष्टाचार से बनती रहती है। आयरकर विभाग भी कहता रहा है कि भारत में केवल 6 प्रतिशत मुद्रा पर कर लगता है तो इसका मतलब हुआ कि शेष रकम ब्लैकमनी हो गई। सीबीडीटी (वित्त मंत्रालय) चेयरमैन की अध्यक्षता वाली एक समिति की वर्ष 2012 की रिपोर्ट ’मेजर्स टू टैकल ब्लैकमनी इन इंडिया’ के अनुसार इससे पहले 1946 और 1978 में हुए डिमॉनेटाइजेशन से अर्थव्यवस्था का कोई लाभ नहीं हुआ था। थिंक टैंक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (वित्त मंत्रालय) की ओर से नोट बैन पर जारी किए गए पेपर की लेखक कविता राव ने की माने तो 1000 रुपए एवं 500 रुपए निकालने का अर्थ यह नहीं है कि ब्लैकमनी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। राव का कहना है कि अनेक प्रमाण हैं कि गोल्ड और रियल एस्टेट में ब्लैकमनी बहुत अधिक है और एजुकेशन और हेल्थ जैसे सेक्टर्स में काफी इन्वेस्टमेंट के मामले भी सामने आए हैं।
2) चालू वर्ष घटेगी इकोनॉमी ग्रोथ 1 फीसदी तक
इससे निर्णय से चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की ग्रोथ एक प्रतिशत तक कम हो सकती है। अर्थशास्त्री सेन ने की माने तो सरकार के इस निर्णय से जीडीपी ग्रोथ पर बड़ी मार पड़ेगी। जीडीपी का करीब 40 फीसदी इन्फॉर्मल सेक्टर है जो सबसे अधिक प्रभावित होगा। विशेषकर ग्रामीण भारत।
3. नकदी की परेशानी रहेगी जारी
आरबीआई के अनुसार मार्च 2015 तक 89.22 लाख करोड़ रुपए डिपॉजिट हैं। अधिक नकदी जमा करने से बैंक डिपॉजिट पर ब्याज दर को कम कर देंगे। इसका असर दिखने भी लगा है। अर्थशास्त्री सेन का कहना है कि सब्जियों सहित कुछ सामान सस्ते होने का अर्थ यह नहीं कि उनकी कॉस्ट कम हो गई है, वरन् नकदी की कमी से लोग सस्ते में सामान बेचने को मजबूर हो रहे हैं। लॉन्ग टर्म में महंगाई कम हो, ऐसा मुश्किल है। 1-2 महीने बाद की स्थिति क्या होगी, इस पर कुछ कहना मुश्किल है। रिटायर व्यक्ति के जीवन पर करंसी डिमॉनेटाइजेशन का नकारात्मक असर होगा। रिटायर्ड लोगों की इनकम का प्रमुख स्रोत ब्याज से आय है। डिमॉनेटाइजेशन के बाद बैंक डिपॉजिट पर ब्याज दरें कम करेंगे।
4. रूरल, गारमेंट, कंज्यूमर ड्यूरेबल, ऑटो, टू व्हीलर सेक्टर पर गिरेगी गाज
नोटबंदी के बाद टू-व्हीलर्स की सेल 20-25 प्रतिशत कम हो सकती है। कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों का कहना है कि रूरल और अर्बन इंडिया में कैश सेल अधिक होती है। नोटबंदी से कैश में डील करने वाले 50 प्रतिशत मार्केट पर असर पड़ेगा। छोटे व्यवसायी, छोटे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का अधिकांश व्यवसाय नकद में होता है।
5. सुस्त होगा ट्रेड और बनेगी ‘टैक्स टेरर’ वाली स्थिति
इससे शॉर्ट टर्म में टैक्स टेरर वाली स्थिति बन सकती है बड़ी संख्या में छोटे उद्योग-धंधे बंद होगे। सेन के अनुसार इससे छोटे उद्योगों के प्रोडक्शन पर प्रभाव पड़ेगा। इनमें अधिकांश व्यापार नकद होता है और दिहाड़ी स्टाफ काम करता है। इससे आगे समस्याएं और भी बढ़ेगी। ब्रोकिंग हाउस एम्बिट कैपिटल की माने तो भारतीय जीडीपी 330 बेसिस पॉइंट के आधार पर ग्रोथ करेगी। एम्बिट अर्थशास्त्री सुमित शेखर, रितिका मंकर मुखर्जी एवं प्रशांत मित्तल का कहना है कि नोटबंदी से कुछ समय के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में ठहराव आएगा, जबकि इससे कर न देने वाले गैर संस्थागत बिजनेस (जो जीडीपी में 40 प्रतिशत योगदान देते है) संस्थागत बन सकते हैं। अतः हमने 2018 के वित्त वर्ष के लिए भी भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.8 पर्सेंट कर दिया है। केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री मदन सब्नावीस की माने तो हालांकि 2017 में जीडीपी ग्रोथ रेट में कमी आएगी परंतु संभावना है कि वर्ष 2018 में ऐसा नहीं होगा। ब्रोकरेज आनंद राठी सिक्यॉरिटीज का कहना कि अगली दो तिमाही तक भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट होगी परंतु इसके बाद इसमें एक तेज वृद्धि देखने को मिलेगी। प. बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा की माने तो नोटबंदी से राष्ट्रीय जीडीपी में प्रतिदिन 25,000 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
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