गुरुवार, 24 नवंबर 2016

तुलसी के इन फायदों को
नहीं जानते होंगे आप


भारतीय संस्कृति में तुलसी को उसके श्रेष्ठ गुणों के कारण महत्व दिया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी माना जाता है। भारतीय व यूरोपीय दोनों ही होम्योपैथ सिद्धान्त तुलसी को अमृतोपम मानते हैं। आपके आंगन की शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि तुलसी अनेक रोगों के इलाज में मददगार हैं। यह रामबाण औषधि हर प्रकार के रोगों जैसेकि स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास रोग, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग रोग आदि में काम आती है। यह वातावरण का भी शोधन कर पर्यावरण संतुलन बनाती है। अथर्ववेद (1-24) में कहा गया है-सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥ अर्थात् श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे या अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है। महर्षि चरक तुलसी के गुणों के बारे में लिखते हैं, हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः। पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥ तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है। सूत्र स्थान में उन्होंने लिखा हैं, गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके। क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5) सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं। सुश्रुत महर्षि लिखते हैं, कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः। पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46) तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है। भाव प्रकाश में उद्धरण है, तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी। पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥ तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है। पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है। यह हृदय के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है। श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं।

इण्डियन ड्रग्स पत्रिका (अगस्त 1977) में कहा गया है कि तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं, जितना वर्णन शास्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीट प्रतिकारक तथा प्रचण्ड जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनांफिलिस जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है। डॉ. पुष्पगंधन एवं सोबती ने अपने खोजपूर्ण लेख में बड़े विस्तार से विश्व में चल रहे प्रयासों की जानकारी दी है। ’वेल्थ ऑफ इण्डिया’ की माने तो तुलसी का स्वरस तथा निष्कर्ष कई अन्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सक्रिय पाया गया है। इनमें प्रमुख हैं-स्टेफिलोकोकस आंरियस, साल्मोनेला टाइफोसा और एक्केरेशिया कोलाई। इसकी जीवाणु नाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से 6 गुना अधिक है। नए अनुसंधान में तुलसी की जीवाणुनाशी सक्रियता अन्यान्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सिद्ध की गई है। डॉ. कौल एवं डॉ. निगम (जनरल ऑफ रिसर्च इन इण्डियन मेडीसिन योगा एण्ड होम्योपैथी-12/1977) के अनुसार तुलसी का उत्पत तेल कल्वेसिला न्यूमोंनी, प्रोंटिस बलेगरिस केन्डीडां एल्बीकेन्स जैसे घातक रोगाणुओं के विरुद्ध भी सक्रिय पाया गया है। बहुत सारी आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने जीवनदायी औषधीयों में तुलसी का उपयोग करती है। तुलसी की जड़, पत्र, बीज व पंचांग का प्रयोग होता हैं।

उपयोगः 


  • खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ को सुपारी की तरह चूसने से लाभ होता है।
  • श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
  • तुलसी की हरे पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला बैठना ठीक हो जाता है।
  • तुलसी पत्तों को 4 भुनी लौंग सहित चबाने से खांसी चली जाती है।
  • तुलसी पत्तों को चबाने से खांसी और नजले से राहत मिलती है।
  • काली तुलसी का स्वरस लगभग डेढ़ चम्मच काली मिर्च के साथ लेने से खाँसी शान्त होने लगती है।
  • 10 ग्राम तुलसी रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी, अस्थमा एवं श्वांस रोग ठीक हो जाते हैं।
  • अदरक, तुलसी, कालीमिर्च, दालचीनी थोड़ी-थोडी मिलाकर एक गिलास पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो चीनी नमक मिलाकर पीएं। फ्लू, खांसी, सर्दी, जुकाम ठीक हो जाएगी।
  • शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
  • तुलसी के नियमित सेवन से दमा, टीबी नहीं होती।
  • फ्लू रोग तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से ठीक होता है।
  • तुलसी की जड़ को पीसकर, सोंठ मिलाकर जल के साथ प्रातः पीने से कुष्ठ रोग निवारण का लाभ मिलता है।
  • तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
  • तुलसी के पत्ते पीसकर जख्मों पर लगाने से रक्त मवाद बंद हो जाता है।
  • तुलसी के रस को नारियल के तेल को समान भाग में लें और उन्हें एक साथ धीमी आंच पर पकाएं। जब तेल रह जाए तो इसे रख लें। इसे फोड़े, फुंसी पर लगाएं।
  • तुलसी के बीजों को पीसकर गर्म करके घाव में भर दें लाभ होगा।
  • तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। हाल में हुए शोधों से पता चला है कि तुलसी तनाव से बचाती है। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
  • तुलसी प्रदूषण जन्य रोगों से सुरक्षित रखती है।
  • तुलसी के रस में शहद मिलाकर नियमित थोड़े दिनों तक लेते रहने से स्मरण शक्ति बढ़ती है, यह एक प्रकार का टॉनिक है।
  • तुलसी की पिसी पत्तियों में एक चम्मच शहद मिलाकर नित्य एक बार पीने से आप निरोगी रहेंगे, गालों में चमक आएगी।
  • तुलसी के पत्तों का दो तीन चम्मच रस प्रातः ख़ाली पेट लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  • पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
  • पक्षाघात (लकवा) होने पर आवश्यकतानुसार तुलसी के पत्ते और थोड़ा सा सेंधा नमक पीस लें। इसे दही में भली प्रकार मिलाएं और रोगग्रस्त अंग पर लेप करें। जल में तुलसी के पत्ते (एक बार में 25) उबालें और रोगग्रस्त अंग को उसकी भाप दें।
  • प्रातः तुलसी की 5-6 पत्तियां खाने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल लेबल कम होता है।
  • गैस की समस्या होने पर सुबह तुलसी की पत्तियां के साथ एक गिलास पानी पीने से आराम होता हे।
  • मुंह से बदबू आने पर तुलसी के बीज या 5-6 पत्तियां चबाकर पानी पिएं।
  • तुलसी की जड़, पत्ती, डंठल और बीज को सुखाकर एक साथ पीसें। इसमें गुड़ मिलाकर गोलियां बनाएं। 2 गोलियां रोज खाने से आर्थराइटिस और जोड़ों के दर्द में आराम होता है।
  • प्रतिदिन तुलसी की 5 पत्तियां खाने से ब्लड सर्कुलेशन सही होता है और हाई वीपी. में आराम मिलता है। 

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