बुधवार, 14 दिसंबर 2016

दरिद्रता और नेत्रहीनता भी न रोक पाई रास्ता
इस दिव्यांग ने खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी


किसी सच कहा है कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है। अगर इंसान सोच ले और पूरी लगन और इच्छा शक्ति से उस लक्ष्य के लिए समर्पित हो जाए तो वह हर चीज को पा सकता है। ऐसा कर दिखाया है नेत्रहीन भावेश चंदू भाई भाटिया ने जिन्होंने अपनी अक्षमता को ही अपनी शक्ति बनाकर 25 करोड़ की कम्पनी सन राइज कैंडल कंपनी खड़ी कर दी। यह कंपनी विजुअली डिसिबल लोगों द्वारा चलाई जा रही है। चलिए जानते हैं भावेश भाटिया की कहानी।
जन्म से ही भावेश की आँखों की दृष्टि कमजोर थी। इनकी माँ गृहणी थी, जोकि भावेश की बाल्यावस्था से ही कैंसर से पीड़ित थी। पिताजी गेस्ट हाउस में केयर टेकर थे। धीरे-धीरे भावेश की आँखों की रोशनी चली गई। उनकी नौकरी चली गयी एवं कैंसर ग्रस्त माँ भी कुछ समय बाद चल बसीं पर उन्हें अपनी माँ की यह बात हमेशा झझोरती रहती कि तुम दुनिया नहीं देख सकते? कुछ ऐसा करो कि तुमको दुनिया देखे। शायद इन्ही शब्दों की शक्ति से भावेश निरंतर आगे बढ़ते गए।
1993 में नेशनल एसोसिएशन आॅफ बालाइन्ड (मुंबई) में प्रवेश लेकर 4 माह मोमबत्ती बनाना सीखा। भावेश ने वही से एक्यूपेशर थैरेपी आदि का भी प्रशिक्षण लिया। इनके बाद भावेश अपना व्यापार शुरू करना चाहते थे, पर धन न होने से ऐसा संभव नहीं हो पाया। धन एकत्र करने के लिए महाबलेश्वेर के होटलों में मसाज और एक्यूपेशर थैरेपी किया। कुछ पैसे बचाकर वे 5 कि.ग्रा. मोम व सांचा खरीद लाये और मोमबती बनाकर होली क्रॉस चर्च के सामने ठेला लगाकर बेचने लगे, जिससे प्रायः रोज 25 रुपये बचाते जोकि अगले दिन की मोम खरीदने में प्रयोग करते। बैंक ने भी लोन देने से मना कर दिया। भावेश मोमबत्ती बनाने की विकसित तकनीक का ज्ञान लेना चाहते थे, परंतु कामयाब न हुए।

एक दिन भावेश के ठेले पर मोमबत्तियां लेने नीता आई। भावेश का विनम्र स्वभाव एवं हंसी भावेश को भाई, जल्द ही दोनों गहरे दोस्त बन गए। दोस्ती प्रेम में बदली और दोनों ने शादी कर ली। यद्यपि नीता के घर वाले इस शादी के विरुद्ध थे क्योंकि भावेश गरीब, मोमबती बेचने वाला अंधा आदमी था, पर नीता ने भावेश का साथ न छोड़ा। वह दो-पहिये वाली गाड़ी से भावेश को जगह-जगह ले जाकर कैंडल बेचने में मदद करतीं। स्थिति सुधरी तो उन्होंने वैन चलाना भी सीखा।
नीता भावेश को बाजार ले जाती जहां वह मोमबत्तियों की जानकारी लेते उन्हें छूकर महसूस करते एवं घर आकर घंटों उससे अच्छी मोमबती बनाने का प्रयास करते। कड़ी मेहनत और इच्छाशक्ति से वह अनेक रंगों एवं आकृतियों की मोमबत्तियों तैयार करने लगे। भावेश को एनबीए से नेत्रहीनों के लिए चलाई गई विशेष योजना के अंतर्गत सतारा बैंक से 15000 रुपये मिले। भावेश ने उससे 15 किलो मोम, भिन्न सांचे और दूसरे जरूरी उपकरण खरीदे।
एक दोस्त भावेश की प्रतिभा से अत्यंत प्रभावित हुआ और एक वेबसाइट बना कर उन्हें भेंट की। उस वेबसाइट से उन्हें अनेक बड़े आर्डर मिलने लगे। धीरे-धीरे वह नई तकनीक विकसित कर नये रंग-रूप की मोमबत्ती बनाते। काम बढ़ने लगा। अब उन्होंने अपनी तरह के ही दृष्टिबाधित सहायकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सनराइज कैंडल कंपनी खोली, जहां 225 दृष्टिबाधित सहायक कार्य करतें हैं। रॉ मैटेरियल उत्तराखंड से आता है जिससे पीलर कैंडल, फ्लोटिंग कैंडल, जैल कैंडल, टॉय कैंडल, ट्रेडिशनल कैंडल आदि बनाएं जाते हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज, बिग बाजार, रोटरी क्लब, नारद इंडस्ट्रीज, रैन्बोक्सी इत्यादि उनके क्लाइंट हैं। कंपनी का टर्नओवर 25 करोड़ रूपये है। इसके अलावा, भावेश ने मलेश्वर गाँव में दृष्टिबाधितों के लिए एक कोचिंग सेंटर खोला, जोकि मोमबत्तियां बनाने का प्रशिक्षण देता हैं। भावेश को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

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