महात्मा गांधी 'राष्ट्रपिता' कैसे बने?
यह सर्वविदित है कि महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया जाता है, लेकिन यह उपाधि उन्हें किसने दी, यह कम लोग जानते हैं।

महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' (Father of Nation) का पहला संबोधन सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो पर अपने प्रसारण में महात्मा गांधी को पहली बार 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था। यह सम्मानजनक उपाधि गांधी जी को उनके अद्वितीय नेतृत्व और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अहिंसक आंदोलन के योगदान के लिए दी गई थी।
बोस ने अपने प्रसारण में कहा था, "फादर ऑफ नेशन! हमें आशीर्वाद दीजिए ताकि हम भारतीय जनता के लिए आजादी और सम्मान की नई लड़ाई में सफल हो सकें।" इस तरह, सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' का सम्मान दिया, जो आज तक लोकप्रिय और सम्माननीय रूप में उपयोग होता है।
हां, यह सही है कि महात्मा गांधी को आधिकारिक रूप से 'राष्ट्रपिता' घोषित नहीं किया गया है। भारतीय संविधान या किसी सरकारी दस्तावेज़ में उन्हें 'राष्ट्रपिता' की उपाधि नहीं दी गई है। हालांकि, उनके योगदान और प्रभाव को देखते हुए, आम जनता और कई नेता उन्हें सम्मानपूर्वक 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित करते हैं।
सुभाष चंद्र बोस द्वारा उन्हें 'राष्ट्रपिता' का संबोधन दिए जाने के बाद, यह उपाधि आम लोगों के बीच में और भी प्रचलित हो गई। लेकिन औपचारिक रूप से यह उपाधि नहीं दी गई है। महात्मा गांधी के प्रति इस सम्मान का भाव उनकी निस्वार्थ सेवा, सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित नेतृत्व के कारण है।
गृह मंत्रालय ने लखनऊ की बाल आरटीआई कार्यकर्ता ऐश्वर्या पाराशर को दी गई सूचना में स्पष्ट किया है कि सरकार महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' घोषित करने के संबंध में कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकती। हालांकि महात्मा गांधी को देशभर में 'राष्ट्रपिता' के रूप में जाना जाता है, भारत सरकार आधिकारिक रूप से उन्हें 'राष्ट्रपिता' घोषित नहीं कर सकती। संविधान के तहत, भारत सरकार इस संबंध में कोई अधिसूचना जारी करने में असमर्थ है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी एक-दूसरे का गहरा सम्मान करते थे, लेकिन उनके बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद भी थे। नेताजी महात्मा गांधी के इस विचार से सहमत नहीं थे कि केवल अहिंसा के मार्ग पर चलकर स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। नेताजी का मानना था कि अहिंसा एक विचारधारा हो सकती है, लेकिन इसका पालन किसी पंथ की तरह नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, राष्ट्रीय आंदोलन को हिंसा-मुक्त होना चाहिए, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर हथियार उठाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके विपरीत, महात्मा गांधी का मानना था कि अहिंसा ही देश को स्वतंत्र कराने का एकमात्र मार्ग है। महात्मा गांधी ने कई अहिंसात्मक आंदोलनों के माध्यम से अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था।
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