बुधवार, 31 जुलाई 2024

 उधार के 500/- रुपए से 5 करोड़ रुपए का सफर
कहानी श्री कृष्णा पिकल्स की

उधार के 500/- रुपए से 5 करोड़ रुपए बनाना यूं तो आसान काम नहीं होता, लेकिन कृष्णा यादव के कठिनाइयों और संघर्षों से भरे बुलंदशहर से दिल्ली तक के सफर में उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक सफल उद्यमी बना दिया। आज उनकी कंपनी श्रीकृष्णा पिकल्स 5 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर कर रही है, जो उनके अद्वितीय व्यावसायिक कौशल और मेहनत का प्रमाण है।

बुलंदशहर की कृष्णा यादव का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है, वह तमाम महिला उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 2001 में फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद अचार बनाने के व्यवसाय से उन्होंने अपने उद्यम की शुरुआत की। आज उनकी कंपनी, श्रीकृष्णा पिकल्स, 5 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर कर रही है। यह सफर न केवल संघर्षपूर्ण था, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी है।

प्रारंभिक संघर्ष और प्रेरणा

कृष्णा यादव का जन्म बुलंदशहर के एक छोटे से गाँव में हुआ था। पारंपरिक ग्रामीण परिवेश और सीमित संसाधनों के बावजूद, कृष्णा ने हमेशा अपने सपनों को ऊँचा उड़ान दी। उनके परिवार को बुलंदशहर में गंभीर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। स्थिति तब और बिगड़ गई जब उनके पति की नौकरी चली गई और उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। अपने कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ देखते हुए, कृष्णा ने बेहतर अवसर तलाशने का फैसला किया। एक नई शुरुआत की उम्मीद में, वह अपने पति के साथ दिल्ली चली गईं। शादी के बाद, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने काम करने का निश्चय किया। यही वह समय था जब उन्हें फूड प्रोसेसिंग में ट्रेनिंग का अवसर मिला।

व्यवसाय की शुरुआत

2001 में ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद, कृष्णा ने छोटे पैमाने पर अचार बनाने का व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले अपने घर के किचन में ही अचार बनाना शुरू किया। शुरुआती दौर में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि कच्चे माल की उपलब्धता, विपणन, और प्रतिस्पर्धा। लेकिन कृष्णा ने हार नहीं मानी। उनके बनाए अचार की गुणवत्ता और स्वाद ने धीरे-धीरे ग्राहकों का दिल जीत लिया।


500 रुपये उधार लेकर शुरू किया काम

दिल्ली में शुरुआती दिनों में कृष्णा को नौकरी खोजने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। उनके सारे प्रयास विफल हो गए। हतोत्साहित न होते हुए, उन्होंने खेती करने का फैसला किया और इसे कुछ वर्षों तक जारी रखा। 2001 में, उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब उन्होंने फूड प्रोसेसिंग में तीन महीने के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। इस नए ज्ञान के साथ, उन्होंने एक रिश्तेदार से 500 रुपये उधार लिए और दो तरह के अचार बनाने में 3,000 रुपये का निवेश किया।

ऐसे बढ़ता गया भरोसा

अचार के अपने शुरुआती काम से कृष्णा को 5,250 रुपये का मुनाफा हुआ। वैसे तो यह रकम मामूली थी, लेकिन यह उनके लिए एक बड़ा प्रोत्साहन था। उन्होंने खुद को अचार के व्यवसाय को बेहतर बनाने और उसका विस्तार करने के लिए समर्पित कर दिया। उनके पति सड़कों पर उनके बनाए अचार बेचते थे। ग्राहकों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया ने कृष्णा के आत्मविश्वास को बढ़ाया और उन्हें उत्पादन बढ़ाने का हौसला मिला।

सफलता की सीढ़ियाँ

कृष्णा की मेहनत और समर्पण रंग लाने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय का विस्तार किया और बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया। उनकी कंपनी, श्रीकृष्णा पिकल्स, आज विभिन्न प्रकार के अचार बनाती है जो न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। उनका टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से अधिक है, जो उनके अद्वितीय व्यवसायिक कौशल और गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

आज करोड़ों की मालकिन

आज, श्रीकृष्णा पिकल्स के बैनर तले, कृष्णा यादव 5 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों की मालिक हैं। 500 रुपये उधार लेने से लेकर करोड़पति बनने तक की उनकी उद्यमशीलता की यात्रा ने कई महिलाओं को खुद पर विश्वास करने, कड़ी मेहनत करने और कभी हार न मानने के लिए प्रेरित किया है। महिला उद्यमिता में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए कृष्णा को पहचान और सम्मानित किया गया है, जो उन्हें हर जगह इच्छुक उद्यमियों के लिए एक रोल मॉडल बनाता है।

अन्य महिला उद्यमियों के लिए प्रेरणा

कृष्णा यादव की सफलता की कहानी उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करने की इच्छा रखती हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।

अन्य प्रेरणादायक उदाहरण

कृष्णा यादव की तरह ही अन्य महिला उद्यमियों की कहानियाँ भी प्रेरणादायक हैं। जैसे, लिज्जत पापड़ की संस्थापक जसवंतीबेन जमनादास पोपट, जिन्होंने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर 1959 में मात्र 80 रुपये की पूंजी से व्यवसाय शुरू किया था और आज लिज्जत पापड़ एक ब्रांड बन चुका है। इसी तरह, सुशीला देवी, जिन्होंने अपने घर के आँगन में सिलाई का काम शुरू किया और आज उनकी सिलाई यूनिट में 100 से अधिक महिलाएँ काम करती हैं।


कृष्णा यादव की कहानी हमें यह सिखाती है कि सपनों को पूरा करने के लिए हमें किसी विशेष संसाधनों या परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं होती। ज़रूरत होती है तो बस दृढ़ संकल्प, मेहनत, और कभी न हार मानने वाले जज़्बे की। उनके द्वारा स्थापित श्रीकृष्णा पिकल्स की सफलता इस बात का प्रमाण है कि सही दिशा में किए गए प्रयास निश्चित रूप से सफलता की ओर ले जाते हैं।

कृष्णा यादव की तरह, अगर हम भी अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहें, तो कोई भी चुनौती हमें रोक नहीं सकती। उनकी कहानी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है और हमें अपने सपनों को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।

मंगलवार, 30 जुलाई 2024

 

लेह की असामान्य गर्मी 
जलवायु परिवर्तन की गंभीर चेतावनी

हाल ही में, लेह ने एक असामान्य और चिंताजनक घटना का सामना किया। यहां तापमान 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो इस क्षेत्र के लिए अप्रत्याशित है। इस ऊंचाई पर हवा की विरलता के कारण, टेकऑफ और लैंडिंग में मुश्किलें आ रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप 12 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। यह घटना केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक प्रत्यक्ष संकेत है। इस आलेख में, हम लेह की इस असामान्य गर्मी के कारण और इसके व्यापक प्रभावों पर चर्चा करेंगे, जो जलवायु परिवर्तन की गंभीर चेतावनी है।


लेह के कुशोक बकुला रिंपोची एयरपोर्ट पर पिछले तीन दिनों में तापमान 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के कारण 12 उड़ानें रद्द की गईं। इस ऊंचाई पर हवा विरल होती है जिससे टेकऑफ और लैंडिंग में समस्याएं आईं। यह जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष संकेत है और भविष्य में और भी बड़े खतरों की गंभीर चेतावनी है।

लेह, जिसे 'ठंडा रेगिस्तान' कहा जाता है, अपने अद्वितीय भूगोल और ठंडी जलवायु के लिए प्रसिद्ध है। समुद्र तल से लगभग 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुशोक बकुला रिंपोची एयरपोर्ट भारत का सबसे चुनौतीपूर्ण हवाई अड्डा माना जाता है। यहां के पायलट और कॉकपिट क्रू को पहाड़ी इलाके और कठिन मौसम स्थितियों में काम करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। यह हवाई अड्डा साल भर में लगभग 11 लाख यात्रियों को संभालता है।

असामान्य गर्मी: एक गंभीर संकेत

लेह की असामान्य गर्मी ने न केवल स्थानीय लोगों और यात्रियों को चौंकाया है, बल्कि वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। आमतौर पर इस क्षेत्र का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक रहता है, जहां बर्फ जमी रहती है। इतनी ऊंचाई पर हवा पहले ही विरल होती है और तापमान बढ़ने से यह और भी विरल हो जाती है, जिससे टेकऑफ और लैंडिंग मुश्किल हो जाती है। आईआईटी के प्रोफेसर चेतन सोलंकी, जिनकी उड़ान भी रद्द हुई, ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उनके लिए यह अकल्पनीय था कि लेह में 11,000 फीट की ऊंचाई पर तापमान -20 डिग्री सेल्सियस से 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। यह घटना वैश्विक तापवृद्धि का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

जलवायु परिवर्तन की गंभीर चेतावनी

लेह की यह स्थिति जलवायु परिवर्तन की स्पष्ट चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन का अर्थ है किसी क्षेत्र विशेष में मौसम में गंभीर बदलाव आना। भारत पहले से ही जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रहा है। 1901 से 2018 तक देश के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 2016 सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया और 2023 का जुलाई सवा लाख वर्षों में अब तक का सबसे गर्म महीना रहा।

असामान्य मौसम की घटनाएं

जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक मौसम स्थितियों में वृद्धि हो रही है, जैसे अधिक बारिश या सूखा, बाढ़, लू, और कड़कड़ाती ठंड। 1950 के बाद से भारत में मॉनसूनी बारिश में कमी आई है। विश्व बैंक की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को सूखे की मार झेलनी पड़ी है, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय शहरों को खतरा हो सकता है।

आर्थिक नुकसान

जलवायु परिवर्तन से भारत को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक गर्मी और उमस के कारण श्रम घंटों में कमी होने से 2030 तक भारत की जीडीपी को 4.5 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है। लेह की गर्मी में हो रही अत्यधिक वृद्धि को निश्चित रूप से क्लाइमेट चेंज का नतीजा माना जा सकता है। लेह जैसी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि के कारण कई गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख खतरे हैं:

  1. ग्लेशियरों का पिघलना: तापमान में वृद्धि के कारण लेह और आसपास के क्षेत्रों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे जल स्तर में वृद्धि होती है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

  2. जल स्रोतों पर प्रभाव: ग्लेशियरों के पिघलने से जल स्रोतों पर भी प्रभाव पड़ता है। यह समस्या विशेष रूप से उन क्षेत्रों में गंभीर हो सकती है जहाँ ग्रामीण और शहरी समुदाय अपनी जल आपूर्ति के लिए इन स्रोतों पर निर्भर हैं।

  3. जैव विविधता पर प्रभाव: तापमान में वृद्धि के कारण वनस्पतियों और वन्यजीवों की प्रजातियों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच सकती हैं।

  4. कृषि पर प्रभाव: लेह जैसे क्षेत्रों में कृषि जलवायु पर अत्यधिक निर्भर होती है। तापमान में वृद्धि और मौसम की अनिश्चितता से कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

  5. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: अत्यधिक गर्मी और बदलते मौसम के कारण मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। गर्मी से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

लेह की असामान्य गर्मी एक गंभीर चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमें तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। जागरूकता फैलाना, सतत विकास की नीतियां अपनाना, और पर्यावरण संरक्षण के उपाय करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समय की मांग है कि हम अपनी धरती को बचाने के लिए मिलकर प्रयास करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण मिल सके।


सोमवार, 29 जुलाई 2024

क्या भुट्टे से बने पैट्रोल से चलती है आपकी कार 

वर्तमान युग में ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के संदर्भ में इथेनॉल ब्लेंडिंग एक महत्वपूर्ण पहल बन चुकी है। भारत में पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण बढ़ाने के प्रयास के तहत, हाल ही में मक्के से बने इथेनॉल का उपयोग बढ़ रहा है। यह बदलाव न केवल ऊर्जा की सुरक्षा में सहायक हो रहा है, बल्कि कृषि क्षेत्र पर भी इसके दूरगामी प्रभाव पड़ रहे हैं।

पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग से प्राप्त होने वाले लाभों के साथ-साथ, इसका एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हर तीसरा लीटर इथेनॉल अब मक्के से तैयार किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति भारतीय ऊर्जा नीति और कृषि के भविष्य की दिशा को प्रभावित कर रही है। इस पृष्ठभूमि में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि कैसे मक्का, जो पहले केवल खाद्य पदार्थ के रूप में जाना जाता था, अब ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और इसके परिणामस्वरूप मक्का के आयात और कीमतों पर प्रभाव पड़ रहा है।

मक्के का इथेनॉल: एक महत्वपूर्ण विकास

भारत में पेट्रोल की ब्लेंडिंग के लिए उपयोग होने वाला इथेनॉल अब मक्के से व्यापक रूप से तैयार किया जा रहा है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चालू सप्लाई ईयर (नवंबर 2023 से अक्टूबर 2024) के दौरान, चीनी मिलों और डिस्टिलरीज ने 401 करोड़ लीटर इथेनॉल की सप्लाई की। इनमें से 211 करोड़ लीटर इथेनॉल मक्का या टूटे चावल से उत्पादित किया गया, जबकि गन्ने के रस या शीरे से 190 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन हुआ। यह दर्शाता है कि पेट्रोल में ब्लेंडिंग के लिए उपयोग होने वाले इथेनॉल का लगभग 52.7 फीसदी हिस्सा अब मक्का और अन्य खाद्यान्नों से आ रहा है।

ब्लेंडिंग की वृद्धि और लक्ष्य

वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग 13 फीसदी तक पहुंच चुकी है। केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में कहा कि 2030 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल की ब्लेंडिंग का लक्ष्य निर्धारित है। हालांकि, अगर इथेनॉल की उपलब्धता में वृद्धि जारी रहती है, तो यह लक्ष्य 2025 तक ही प्राप्त किया जा सकता है।

मक्के के आयात की आवश्यकता

मक्का के इथेनॉल बनाने में बढ़ते उपयोग के कारण, मक्का के आयात की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है। हाल ही में, खाद्य सचिव को 35 लाख टन मक्का के शुल्क मुक्त आयात की सिफारिश की गई है। इससे मक्का की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं और इसकी कीमतों पर असर पड़ सकता है।


सरकारी पहल और समर्थन

2018-19 में इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम को तेजी देने के लिए, सरकार ने चीनी मिलों को बी-हैवी मोलेसेस और गन्ने के जूस से सीधे इथेनॉल बनाने पर अतिरिक्त इंसेंटिव प्रदान किए। इसके साथ ही डिस्टिलरी की क्षमता बढ़ाने के लिए मंजूरी प्रक्रिया को सरल किया गया और कर्ज पर ब्याज छूट का प्रावधान किया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, मक्का और अन्य खाद्यान्न आधारित डिस्टिलरी की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

पेट्रोल में इथेनॉल की बढ़ती ब्लेंडिंग और मक्का से बने इथेनॉल का बढ़ता हिस्सा देश की ऊर्जा नीति और कृषि उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह न केवल पेट्रोल की कीमतों को प्रभावित करेगा बल्कि मक्का के उत्पादन और आयात पर भी असर डालेगा। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी संबंधित पक्ष इस परिवर्तन को समझें और इसके संभावित प्रभावों के लिए तैयार रहें।

रविवार, 28 जुलाई 2024

 क्या 2028 तक मिलेगी एलियन जीवन की पुष्टि?

ब्राज़ीलियन भविष्यवक्ता एथोस सैलोमे ने एक बार फिर से दुनिया को हैरत में डाल दिया है। उनके हालिया दावे ने वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता दोनों के बीच गहन चर्चा को जन्म दिया है। सैलोमे का कहना है कि 2026 से 2028 के बीच बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर विदेशी जीवन की खोज होगी। यह भविष्यवाणी उस समय आई है जब विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है, और अंतरिक्ष में जीवन की संभावना को लेकर नई-नई खोजें सामने आ रही हैं। सैलोमे की यह भविष्यवाणी न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे समाज, धर्म और दर्शन पर भी गहरा प्रभाव डाल सकती है। क्या वाकई 2028 तक हम एलियन जीवन के अस्तित्व की पुष्टि कर पाएंगे? यह सवाल अब सभी के मन में गूंज रहा है।

एथोस सैलोमे, जिन्हें "जीवित नास्त्रेदमस" के रूप में जाना जाता है, ने एक और बड़ी भविष्यवाणी की है। उन्होंने कहा है कि 2026 से 2028 के बीच एलियन जीवन की खोज हो जाएगी, और यह खोज विशेष रूप से बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर होगी।


सैलोमे ने इससे पहले कई महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां की हैं, जिनमें ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु, एलन मस्क द्वारा ट्विटर की खरीद, और स्पेन के यूरो 2024 जीतने की भविष्यवाणी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने तीसरे विश्वयुद्ध की भी भविष्यवाणी की है।

यूरोपा पर जीवन की संभावना

एथोस सैलोमे के अनुसार, नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) यूरोपा के समुद्र की गहराई में जीवन की खोज करेंगे। उनका दावा है कि इस खोज में ऐसे जीव शामिल होंगे, जो पृथ्वी पर ज्ञात किसी भी जीव से अधिक जटिल होंगे। यह खोज 2026 से 2028 के बीच होने की संभावना है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

सैलोमे की भविष्यवाणियों के बाद, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के खगोल भौतिकीविद् जेसी क्रिस्टियनसेन ने कहा कि हम अपने जीवनकाल में एक ऐसा ग्रह खोज लेंगे, जो पृथ्वी जैसा ही होगा और जिस पर जीवन हो सकता है। क्रिस्टियनसेन ने यह भी कहा कि ऐसी कोई भी खोज जीवन, धर्म, दर्शन और विज्ञान में क्रांति ला सकती है।

नैतिक और दार्शनिक विचार

सैलोमे ने यह चेतावनी भी दी है कि जब लोग यह जानेंगे कि वे इस ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं, तो इसके क्या परिणाम होंगे। इस खोज का हमारे समाज, धर्म और दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

हालिया वैज्ञानिक खोजें

पृथ्वी पर हाल ही में प्रशांत महासागर के समुद्र तल पर आलू जैसी असामान्य गांठों की खोज हुई है, जो पूर्ण अंधेरे में ऑक्सीजन का उत्पादन करती हैं। यह खोज हमारी वर्तमान समझ को चुनौती देती है और यह सुझाव देती है कि जीवन अत्यधिक कठोर परिस्थितियों में भी पनप सकता है।


एथोस सैलोमे की भविष्यवाणियां निश्चित रूप से चर्चा और उत्सुकता का विषय हैं। हालांकि, इन्हें वैज्ञानिक प्रमाण और अनुसंधान के माध्यम से ही सत्यापित किया जा सकता है। सैलोमे की भविष्यवाणियों पर विचार करते हुए, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वैज्ञानिक अनुसंधान और मिशनों के माध्यम से क्या नई जानकारियां सामने आती हैं। यदि उनकी भविष्यवाणी सही साबित होती है, तो यह हमारे जीवन के हर पहलू को बदलने की क्षमता रखता है।आने वाले वर्षों में जीवन की खोज के क्षेत्र में क्या प्रगति होती है, यह देखना रोमांचक होगा। 

शनिवार, 27 जुलाई 2024

 नॉर्थ सेंटिनल द्वीप: दुनिया का सबसे खतरनाक द्वीप

भारत में एक ऐसा द्वीप है जिसे दुनिया का सबसे खतरनाक द्वीप माना जाता है। इसका नाम है नॉर्थ सेंटिनल द्वीप, जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है। इस द्वीप का नाम सुनते ही लोग कांप जाते हैं और यहाँ टूरिस्ट के जाने पर सख्त पाबंदी है।


अनछुई संस्कृति और खतरनाक जनजाति

नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर सेंटिनलीज जनजाति रहती है, जो बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कटे हुए हैं। ये जनजाति किसी भी बाहरी व्यक्ति के संपर्क में आने पर हिंसक प्रतिक्रिया देती है। सैंकड़ों सालों से ये लोग आधुनिक समाज से दूर अपने पारंपरिक जीवन जी रहे हैं और बाहरी लोगों को अपने द्वीप पर प्रवेश करने नहीं देते।

सरकार द्वारा प्रतिबंध

भारतीय सरकार ने इस द्वीप पर जाने के लिए सख्त नियम बना रखे हैं और यहाँ टूरिस्ट के जाने पर पूरी तरह से पाबंदी है। इसका कारण यह है कि सेंटिनलीज जनजाति बाहरी लोगों के संपर्क में आने पर गंभीर रूप से हिंसक हो जाती है, जिससे उनकी सुरक्षा के साथ-साथ बाहरी लोगों की जान का भी खतरा रहता है। सेंटिनल द्वीप के तीन मील के दायरे में आना भी अवैध माना जाता है।

ऐतिहासिक घटनाएं

यह द्वीप हमेशा से ही अपनी हिंसक घटनाओं के लिए जाना जाता रहा है। 2006 में, दो मछुआरे गलती से इस द्वीप के करीब चले गए थे, और सेंटिनलीज जनजाति ने उन्हें मार डाला था। 2018 में, एक ईसाई मिशनरी, बार-बार इस द्वीप पर पहुंचने की कोशिश कर रहा था। जब वे लोग उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर पहुंचे, तो उन पर तीरों से हमला हुआ और वे मारे गए। उसी साल नवंबर में, एक अमेरिकी नागरिक की भी हत्या कर दी गई थी जब उसे अपनी कश्ती पर इस द्वीप पर ले जाया गया।

प्राकृतिक सुंदरता और अनछुई संस्कृति

नॉर्थ सेंटिनल द्वीप की प्राकृतिक सुंदरता और अनछुई संस्कृति के कारण यह विशेष ध्यान आकर्षित करता है। लेकिन यहाँ की खतरनाक परिस्थितियों और सेंटिनलीज जनजाति की आक्रामकता के कारण इसे देखने का कोई मौका नहीं मिलता। मानवविज्ञानियों का अनुमान है कि द्वीप पर 50 से 100 के बीच लोग रह सकते हैं।


सुरक्षित वापसी के कम मौके

इस द्वीप पर जाने वाले बहुत कम लोग सुरक्षित वापस लौटे हैं। 1981 में, एक नाव प्राइमोज बांग्लादेश से ऑस्ट्रेलिया तक मुर्गी का चारा ले जाते समय इस द्वीप पर फंस गई थी। नाव पर मौजूद लोगों ने द्वीप पर लकड़ी से बने हथियारों के साथ करीब 50 लोगों को देखा और अपनी आपबीती सुनाई। खुशकिस्मती से, उन्हें मारा नहीं गया और उन्हें हेलीकॉप्टर की मदद से निकाल लिया गया।


सेंटिनलीज की आक्रामकता

सेंटिनलीज जनजाति बाहरी लोगों के प्रति अपनी हिंसक प्रवृत्ति के लिए जानी जाती है। वे पहले पीठ के बल बैठकर अनचाहे मेहमानों को वापस जाने का इशारा करते हैं और यदि कोई नहीं लौटता, तो तीर चला देते हैं। ये लोग झोपड़ियों में रहते हैं और हर समय धनुष-तीर और भाले अपने साथ लेकर चलते हैं।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

 पाकिस्तान से बड़ी महाराष्ट्र की इकॉनमी

भारतीय राज्यों की दौड़: कौन बनेगा पहला ट्रिलियन डॉलर का दावेदार?

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और 2027 तक इसके 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसी क्रम में, देश के विभिन्न राज्य भी 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दौड़ में शामिल हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, और तमिलनाडु प्रमुख राज्यों में से हैं जो इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अग्रसर हैं।


महाराष्ट्र: सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आकार 439 अरब डॉलर है, जो पाकिस्तान की 338 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था से कहीं अधिक है। राज्य का औद्योगिक उत्पादन देश में सबसे ज्यादा है और मुंबई को देश की आर्थिक और वित्तीय राजधानी माना जाता है। राज्य की जीडीपी में महाराष्ट्र का योगदान 13.24% है। महाराष्ट्र सरकार ने 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए राज्य की अर्थव्यवस्था को 11% की दर से बढ़ना होगा।

तमिलनाडु: औद्योगिक विकास का केंद्र

तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था 294 अरब डॉलर है और राज्य सरकार ने 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है। तमिलनाडु में देश की सबसे अधिक फैक्ट्रियाँ हैं और यह ऑटोमोबाइल, टैक्सटाइल, लेदर, फार्मा, कैमिकल, और प्लास्टिक उद्योगों में अग्रणी है। देश की जीडीपी में तमिलनाडु का योगदान 8.82% है।

उत्तर प्रदेश: कृषि से लेकर सेवाओं तक

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था 281 अरब डॉलर है और राज्य ने 2027 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए राज्य को अपनी जीडीपी ग्रोथ 32% तक ले जानी होगी। वर्तमान में राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि का 23%, मैन्युफैक्चरिंग का 27%, और सेवाओं का 50% योगदान है। देश की जीडीपी में यूपी का योगदान 8.41% है।

कर्नाटक: इनोवेशन और स्टार्टअप्स का हब

कर्नाटक की अर्थव्यवस्था 279 अरब डॉलर है और राज्य ने 2027 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। कर्नाटक को ग्लोबल इनोवेशन और स्टार्टअप्स का हब माना जाता है, और यहां बायोटेक्नोलॉजी, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। देश की जीडीपी में कर्नाटक का योगदान 8.36% है।

गुजरात: व्यापार और उद्योग का गढ़

गुजरात की अर्थव्यवस्था 277 अरब डॉलर है और राज्य ने 2027 तक अपनी जीडीपी को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए राज्य को 14.5% की दर से विकास करना होगा। गुजरात में ऑटो, फार्मा, केमिकल, टेक्सटाइल, और पेट्रोलियम उद्योगों का वर्चस्व है। देश की जीडीपी में गुजरात का योगदान 8.25% है।

कौन जीतेगा रेस?

ग्रोथ की दृष्टि से कर्नाटक 6.2% की दर से सबसे आगे है, इसके बाद गुजरात 6.1% पर है। तमिलनाडु की ग्रोथ दर 5.3%, उत्तर प्रदेश की 4.7%, और महाराष्ट्र की 3.8% है। उच्च ग्रोथ रेट को देखते हुए, कर्नाटक और गुजरात के अगले 22 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जबकि महाराष्ट्र को इस मुकाम तक पहुंचने में 28 साल का समय लग सकता है।

इन राज्यों की आर्थिक प्रतिस्पर्धा भारत की समग्र आर्थिक प्रगति को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यदि महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है, तो यह समीकरण बदल सकता है। इस दौड़ में कौन आगे निकलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

गुरुवार, 25 जुलाई 2024

इस आईटी कंपनी के सीईओ का वार्षिक वेतन 
दूसरे कर्मचारियों से 700 गुना अधिक

भारत के आईटी सेक्टर में सीईओ की सैलरी में तेजी से वृद्धि हो रही है। इस रेस में सबसे आगे हैं HCLTech के सीईओ सी विजयकुमार, जिनकी सालाना सैलरी 84.16 करोड़ रुपये है। यह किसी भी भारतीय आईटी कंपनी के सीईओ के लिए अब तक की सबसे बड़ी सैलरी मानी जा रही है।


सी विजयकुमार: सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले आईटी सीईओ

HCLTech ने हाल ही में जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में सी विजयकुमार की सैलरी का खुलासा किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, विजयकुमार की सैलरी में पिछले साल की तुलना में 191 फीसदी की वृद्धि हुई है। उनकी इस सैलरी में 16.39 करोड़ रुपये बेसिक सैलरी, 9.53 करोड़ रुपये बोनस और 19.74 करोड़ रुपये लॉन्ग टर्म इन्सेंटिव शामिल हैं। इसके अलावा, अन्य शेयर, लाभ और भत्ते भी उनकी कुल सैलरी का हिस्सा हैं।


कर्मचारियों से सैलरी में विशाल अंतर

विजयकुमार की सैलरी HCLTech के एक औसत कर्मचारी की सैलरी से 707.46 गुना अधिक है। यह अंतर ना केवल आईटी सेक्टर में, बल्कि अन्य उद्योगों में भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।

सी विजयकुमार का करियर और शैक्षिक पृष्ठभूमि

सी विजयकुमार 1994 से HCLTech से जुड़े हुए हैं और कंपनी में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उन्होंने तमिलनाडु के PSG कॉलेज ऑफ टेक्नॉलजी से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की है और वर्तमान में अमेरिका के न्यू जर्सी में रहते हैं।

अन्य प्रमुख आईटी सीईओ

HCLTech के सीईओ के बाद, इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख इस सूची में दूसरे स्थान पर हैं, जिनकी सालाना सैलरी 66.25 करोड़ रुपये है। तीसरे स्थान पर विप्रो के नए सीईओ स्रीनी पल्लिया हैं, जिनकी सैलरी करीब 50 करोड़ रुपये सालाना है।

HCLTech के वित्तीय परिणाम

अप्रैल में HCLTech ने वित्त वर्ष 24 के नतीजे जारी किए थे। कंपनी का रेवेन्यू 13.3 बिलियन डॉलर रहा, जो साल दर साल 5.4 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। कंपनी का EBIT मार्जिन 18.2 फीसदी था, जो इसे टियर 1 की दुनिया की आईटी सर्विस कंपनियों में सबसे आगे रखता है।

भारत में आईटी कंपनियों के सीईओ की सैलरी में लगातार वृद्धि हो रही है। सी विजयकुमार की सैलरी ने इस ट्रेंड को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में यह अंतर और कितना बढ़ता है और यह उद्योग पर किस प्रकार का प्रभाव डालता है।

बुधवार, 24 जुलाई 2024

आईआईटी क्रैक करके भी बकरियां चरा रही लड़की 
मधुलता की कहानी - प्रेरणा की अद्वितीय मिसाल

सपने देखने का साहस और उन्हें साकार करने की लगन, यही किसी भी व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी होती है। कठिन परिस्थितियों में भी जिसने अपने सपनों को नहीं छोड़ा, उसकी सफलता निश्चित है। ऐसी ही प्रेरणा की मिसाल हैं तेलंगाना की आदिवासी लड़की मधुलता, जिसकी कहानी संघर्ष और संकल्प की अद्वितीय गाथा है।


मेहनत और लगन का प्रतीक

राजन्ना सिरसिला जिले की रहने वाली मधुलता ने इस साल संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में 824वीं रैंक हासिल की और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) पटना में इंजीनियरिंग फिजिक्स में बी.टेक के लिए सीट प्राप्त की। यह उपलब्धि उनके अथक प्रयास और कठिन परिश्रम का परिणाम थी।

आर्थिक कठिनाइयों का सामना

मधुलता के पिता एक खेतिहर मजदूर हैं, और उनके बीमार होने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति और भी दयनीय हो गई। परिवार के पास ट्यूशन फीस और अन्य खर्चों के लिए 2.51 लाख रुपये का इंतजाम करने का कोई साधन नहीं था। मधुलता ने अपने एडमिशन के लिए केवल 17,500 रुपये का भुगतान ही कर पाई थी, जिसके बाद उसे बकरियां चराने का काम करना पड़ा ताकि वह परिवार का भरण-पोषण कर सके।


शिक्षकों की अपील और मदद

मधुलता ने 12वीं कक्षा ट्राइबल वेलफेयर जूनियर कॉलेज से उत्तीर्ण की थी। वहां के शिक्षकों ने उसकी कठिनाई को समझते हुए अधिकारियों से मदद की अपील की। शिक्षकों के इस प्रयास से यह मुद्दा मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी तक पहुंचा।

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने मधुलता की इस परिस्थिति पर गंभीरता से ध्यान दिया और उसकी सहायता के लिए आगे आए। उन्होंने मधुलता की शिक्षा और अन्य आवश्यकताओं के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे वह अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ा सके।


प्रेरणा की नई कहानी

मधुलता की कहानी न केवल उसकी मेहनत और लगन का प्रतीक है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सही समय पर मिली मदद और समर्थन से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सहायता से अब मधुलता के सपनों को पंख मिल गए हैं और वह अपनी उच्च शिक्षा जारी रख सकेगी।

मधुलता की यह कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। सही प्रयास और समर्थन से हर मुश्किल का समाधान संभव है।

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

 

बिना सिर के जिंदा रह सकता है यह जीव

आमतौर पर, सभी जीव अपने सिर के धड़ से अलग हो जाने पर अपनी जीवन शक्ति खो देते हैं। यह माना जाता है कि किसी भी जीव के गले में ही उसकी जीवन शक्ति होती है। यदि वही न रहे तो वह तुरंत मर जाता है। लेकिन आज जिस जीव के बारे में हम बात करने जा रहे हैं, उसके साथ ऐसा नहीं होता। यह जीव अपने सिर के बिना भी एक सप्ताह तक जीवित रह सकता है।

जी हां, भले ही आपको इस पर विश्वास न हो, यह पूरी तरह सच है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर कोई बिना सिर के कैसे सांस ले सकता है और जीवित रह सकता है। आपके मन में यह भी सवाल आ सकता है कि यह कौन सा जीव है। दरअसल, यह कोई असामान्य जीव नहीं, बल्कि हर जगह पाया जाने वाला कॉकरोच (Cockroach) है।


सिर के बिना जीवित रहना लगभग असंभव लगता है, लेकिन यह सच है कि धरती पर एक ऐसा प्राणी है जो बिना सिर के भी करीब एक सप्ताह तक जीवित रह सकता है। यह कोई दुर्लभ प्राणी नहीं बल्कि हर जगह पाया जाने वाला कॉकरोच (Cockroach) है।

इस करिश्मे के पीछे का विज्ञान

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कॉकरोच अपने सिर के बिना भी करीब एक हफ्ते तक जिंदा रह सकता है। दरअसल, इस अद्भुत क्षमता के पीछे विज्ञान का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसके बारे में जानना आवश्यक है।

कॉकरोच की खास बनावट

कॉकरोच के शरीर की विशेष बनावट ही उसे यह क्षमता प्रदान करती है। कॉकरोच के शरीर में ओपन सर्कुलेटरी सिस्टम (Open Circulatory System) होता है। इसका मतलब है कि उनका रक्त शरीर के अंदर खुले स्थानों में बहता है, न कि रक्त वाहिकाओं (blood vessels) में। इसके अलावा, उनके शरीर में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जिन्हें स्पिरैकल्स (spiracles) कहते हैं। ये स्पिरैकल्स कॉकरोच को सांस लेने में मदद करते हैं।


बिना सिर के सांस लेना

कॉकरोच के शरीर पर स्थित ये छोटे-छोटे छिद्र (स्पिरैकल्स) उन्हें सिर के बिना भी सांस लेने की अनुमति देते हैं। यही कारण है कि कॉकरोच को सांस लेने के लिए अपने सिर की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार, यदि उनका सिर कट भी जाए, तो भी वे जीवित रह सकते हैं और अपने शरीर के अन्य हिस्सों से सांस ले सकते हैं।

कॉकरोच की मौत कैसे होती है?

अगर कॉकरोच की मौत होती है, तो उसका प्रमुख कारण प्यास होती है। सिर के धड़ से अलग हो जाने पर वह पानी नहीं पी पाता, जिसके कारण वह प्यास से तड़प कर मर जाता है। इसके बिना, वह कई दिनों तक बिना सिर के भी जीवित रह सकता है।


कॉकरोच की शारीरिक विशेषताएं और ओपन सर्कुलेटरी सिस्टम उन्हें बिना सिर के भी एक सप्ताह तक जीवित रहने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह जीव अपनी कठोरता और जीवटता के लिए प्रसिद्ध है और इस कारण से हमारे लिए हमेशा आश्चर्य का विषय बना रहता है।

कॉकरोच की यह विशेषता न केवल हमें उनकी अद्भुत जीवटता के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि प्रकृति में ऐसे कई रहस्य छिपे हैं, जिन्हें समझने के लिए हमें लगातार अध्ययन करते रहना चाहिए।

सोमवार, 22 जुलाई 2024

ऐसे टैक्स जो आपको हैरान कर देंगे

केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण कल यानि 23 जुलाई 2024 को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का बजट प्रस्तुत करेंगी। जहां कई लोग इससे राहत की उम्मीदें लगाएं बैठे हैं, तो वहीं इस बार कुछ अजीबोगरीब टैक्स प्रस्तावित होने की संभावना जताई जा रही है। यहां हम आपको कुछ असामान्य टैक्सों के बारे में बताते हैं, जिनकी जानकारी आपके लिए रोचक हो सकती हैः

गायों की गैस पर टैक्स

डेनमार्क ने 2030 से मवेशियों द्वारा उत्सर्जित गैसों पर टैक्स लगाने की योजना बनाई है। यह कदम ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इससे पहले न्यूजीलैंड ने भी गायों की डकार पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया था। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, मीथेन उत्सर्जन में पशुपालन की 32þ हिस्सेदारी है।


यूरीन पर टैक्स

प्राचीन रोम में यूरीन पर टैक्स लगाया गया था, क्योंकि इसका उपयोग कपड़े धोने और दांत साफ करने में होता था। रोम के राजा वेस्पेशन ने पब्लिक यूरिनल्स से यूरीन पर टैक्स लगाया और जब उनके बेटे ने इसका विरोध किया, तो वेस्पेशन ने कहा कि ’पैसों से दुर्गंध नहीं आती।’


नमक पर टैक्स

14वीं शताब्दी में फ्रांस में नमक पर टैक्स लगाया गया, जो फ्रांस की क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण बना। भारत में भी अंग्रेजों ने नमक पर टैक्स लगाया था, जिसे 1946 में समाप्त किया गया।


टोपी पर टैक्स

1784 में यूके के प्रधानमंत्री विलियम पिट ने पुरुषों की टोपी पर टैक्स लगाया था। इसके तहत सभी हैट के अंदर एक स्टांप लगाया जाता था, और इस नियम का पालन न करने वालों को गंभीर दंड का सामना करना पड़ता था। यह टैक्स 1811 में समाप्त हो गया।


सेक्स पर टैक्स

1971 में रोड आइलैंड, अमेरिका में सेक्स पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। जर्मनी में, प्रॉस्टिट्यूशन पर टैक्स लगाने का प्रावधान है, जिसके तहत प्रॉस्टिट्यूट्स को हर महीने और दिन के काम के लिए टैक्स चुकाना पड़ता है।

कुंवारों पर टैक्स

रोम में 9वीं सदी में बैचलर टैक्स लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य शादी को बढ़ावा देना था। इसी तरह, 15वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य और 1924 में इटली में भी बैचलर टैक्स लागू किया गया था।


स्तन ढकने पर टैक्स

19वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजा ने निचली जातियों की महिलाओं पर स्तन ढकने पर टैक्स लगाया था। इस टैक्स का विरोध करने वाली नांगेली नामक महिला ने अपने स्तन काट दिए और इस विरोध की वजह से राजा को यह टैक्स समाप्त करना पड़ा।

आत्मा पर टैक्स

1718 में रूस के राजा पीटर द ग्रेट ने आत्मा (सोल) पर टैक्स लगाया। यह टैक्स उन लोगों से लिया जाता था जो आत्मा में विश्वास करते थे, और वे लोग भी इससे प्रभावित होते थे जो धार्मिक आस्था नहीं रखते थे।


दाढ़ी पर टैक्स

1535 में इंग्लैंड के सम्राट हेनरी अष्टम ने दाढ़ी पर टैक्स लगाया। यह टैक्स व्यक्ति की सामाजिक हैसियत के अनुसार था और दाढ़ी बढ़ाने पर टैक्स देना पड़ता था। रूस के शासक पीटर द ग्रेट ने भी इसी तरह का टैक्स लागू किया था।

खिड़कियों पर टैक्स

1696 में इंग्लैंड और वेल्स के राजा विलियम तृतीय ने खिड़कियों पर टैक्स लगाया। इस टैक्स के तहत जिन घरों में 10 से अधिक खिड़कियां थीं, उन्हें टैक्स देना पड़ता था। कई लोगों ने खिड़कियों को बंद कर दिया था, जिससे उनकी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गईं। यह टैक्स 1851 में समाप्त हो गया।


इन अनोखे और असामान्य टैक्स उपायों से यह स्पष्ट होता है कि सरकारें अपने खजाने को भरने के लिए विभिन्न और कभी-कभी अजीब उपायों पर विचार करती हैं। 

रविवार, 21 जुलाई 2024

विष्णु अवतार होने पर भी क्यों नहीं होती परशुराम जी की पूजा

परशुराम जी को भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक माना जाता है, लेकिन उनकी पूजा व्यापक रूप से नहीं की जाती है। चलिए जानते हैं ऐसा क्यों है?


परशुराम जी की पूजा व्यापक रूप से नहीं की जाती, क्योंकि उनका अवतार युद्ध और क्रोध से संबंधित था, जबकि राम और कृष्ण की पूजा शांति और समृद्धि के प्रतीक के रूप में होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, परशुराम जी अमर हैं और वर्तमान में पृथ्वी पर निवास कर रहे हैं, उनके कर्तव्यों की समाप्ति के बाद ही उनका अंतिम संस्कार होगा। विष्णु अवतार होने पर परशुराम जी की पूजा न होने के कई कारण हो सकते हैं:
  1. चरित्र और भूमिका: परशुराम जी का मुख्य रूप से क्षत्रियों के विनाश के लिए अवतार हुआ था। उनके क्रोध और युद्धकारी स्वभाव के कारण उन्हें शांति और समृद्धि के देवता के रूप में नहीं देखा जाता है, जो कि पूजा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

  2. संस्कृति और प्रचलन: भगवान राम और कृष्ण की कहानियाँ और लीलाएँ जनसामान्य में अधिक प्रचलित और प्रिय हैं। उनकी लीलाएँ और उपदेश समाज के लिए अधिक प्रेरणादायक माने जाते हैं। इसके विपरीत, परशुराम जी की कथाएँ अधिकतर युद्ध और क्रोध पर आधारित हैं।

  3. पूजा की विधि और परंपरा: पारंपरिक पूजा विधियों में भगवान विष्णु, राम, और कृष्ण की पूजा की विधि और परंपराएँ अधिक विस्तृत और लोकप्रिय हैं। परशुराम जी की पूजा की विधि और परंपराएँ इतनी व्यापक रूप से नहीं फैली हैं।

  4. संदेश और उपदेश: राम और कृष्ण के उपदेश और संदेश मानवता, धर्म, और नैतिकता के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हैं, जो समाज में शांति और सौहार्द्र का संदेश देते हैं। परशुराम जी के संदेश मुख्यतः वीरता और युद्ध से संबंधित हैं।


इन कारणों से परशुराम जी की पूजा व्यापक रूप से नहीं की जाती, हालांकि वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और उनके भक्त भी होते हैं।

पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान परशुराम की मृत्यु के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। दरअसल, यह माना जाता है कि भगवान परशुराम अभी भी जीवित हैं और उन्हें अमरत्व प्राप्त है। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं और उनकी भूमिका केवल अपने समय तक सीमित नहीं है।

परशुराम जी की मृत्यु की पौराणिक कथाएँ:

  1. अमरता और वर्तमान में अस्तित्व: भगवान परशुराम को अमर माना जाता है। उनके अमरत्व का मुख्य उद्देश्य यह है कि वे भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि को शिक्षा दें और उन्हें अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्रदान करें। इसलिए, वे अब भी इस पृथ्वी पर निवास कर रहे हैं और अपनी भूमिका के पूर्ण होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

  2. कल्कि अवतार की भूमिका: पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्कि प्रकट होंगे, तब परशुराम जी उन्हें युद्ध और धर्म की शिक्षा देंगे। इसके बाद ही उनका कर्तव्य पूर्ण होगा।

  3. धार्मिक मान्यताएँ: विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और कथाओं में परशुराम जी की मृत्यु के बजाय उनके अमरत्व और वर्तमान में उनकी उपस्थिति पर अधिक ध्यान दिया गया है। उनके कर्तव्यों की समाप्ति के बाद वे भगवान विष्णु में विलीन हो जाएंगे।


परशुराम जी के मंदिर और पूजा स्थल:

हालांकि भगवान परशुराम की पूजा व्यापक रूप से नहीं होती, लेकिन दक्षिण भारत में, विशेष रूप से उडुपी के पास पजका के पवित्र स्थान पर, भगवान परशुराम को समर्पित एक बहुत बड़ा मंदिर है। यह मंदिर उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है और यहाँ भक्त उनकी पूजा और आराधना करते हैं।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि भगवान परशुराम की मृत्यु का कोई विशिष्ट वर्णन नहीं है क्योंकि वे अमर माने जाते हैं और उनके कर्तव्यों की समाप्ति के बाद ही उनका अंतिम संस्कार होगा।




शनिवार, 20 जुलाई 2024

 

महात्मा गांधी 'राष्ट्रपिता' कैसे बने?

यह सर्वविदित है कि महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया जाता है, लेकिन यह उपाधि उन्हें किसने दी, यह कम लोग जानते हैं। 


महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' (Father of Nation) का पहला संबोधन सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो पर अपने प्रसारण में महात्मा गांधी को पहली बार 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था। यह सम्मानजनक उपाधि गांधी जी को उनके अद्वितीय नेतृत्व और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अहिंसक आंदोलन के योगदान के लिए दी गई थी।

बोस ने अपने प्रसारण में कहा था, "फादर ऑफ नेशन! हमें आशीर्वाद दीजिए ताकि हम भारतीय जनता के लिए आजादी और सम्मान की नई लड़ाई में सफल हो सकें।" इस तरह, सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' का सम्मान दिया, जो आज तक लोकप्रिय और सम्माननीय रूप में उपयोग होता है। 


हां, यह सही है कि महात्मा गांधी को आधिकारिक रूप से 'राष्ट्रपिता' घोषित नहीं किया गया है। भारतीय संविधान या किसी सरकारी दस्तावेज़ में उन्हें 'राष्ट्रपिता' की उपाधि नहीं दी गई है। हालांकि, उनके योगदान और प्रभाव को देखते हुए, आम जनता और कई नेता उन्हें सम्मानपूर्वक 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित करते हैं।

सुभाष चंद्र बोस द्वारा उन्हें 'राष्ट्रपिता' का संबोधन दिए जाने के बाद, यह उपाधि आम लोगों के बीच में और भी प्रचलित हो गई। लेकिन औपचारिक रूप से यह उपाधि नहीं दी गई है। महात्मा गांधी के प्रति इस सम्मान का भाव उनकी निस्वार्थ सेवा, सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित नेतृत्व के कारण है।


गृह मंत्रालय ने लखनऊ की बाल आरटीआई कार्यकर्ता ऐश्वर्या पाराशर को दी गई सूचना में स्पष्ट किया है कि सरकार महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' घोषित करने के संबंध में कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकती। हालांकि महात्मा गांधी को देशभर में 'राष्ट्रपिता' के रूप में जाना जाता है, भारत सरकार आधिकारिक रूप से उन्हें 'राष्ट्रपिता' घोषित नहीं कर सकती। संविधान के तहत, भारत सरकार इस संबंध में कोई अधिसूचना जारी करने में असमर्थ है।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी एक-दूसरे का गहरा सम्मान करते थे, लेकिन उनके बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद भी थे। नेताजी महात्मा गांधी के इस विचार से सहमत नहीं थे कि केवल अहिंसा के मार्ग पर चलकर स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। नेताजी का मानना था कि अहिंसा एक विचारधारा हो सकती है, लेकिन इसका पालन किसी पंथ की तरह नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, राष्ट्रीय आंदोलन को हिंसा-मुक्त होना चाहिए, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर हथियार उठाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके विपरीत, महात्मा गांधी का मानना था कि अहिंसा ही देश को स्वतंत्र कराने का एकमात्र मार्ग है। महात्मा गांधी ने कई अहिंसात्मक आंदोलनों के माध्यम से अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था।

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

 कहीं आपका नमक भी तो एक्सापार नहीं हो गया

जाने जांच करने का तरीका और समाधान

क्या आप यह जानते हैं कि घर की रसोईघर में सबसे अधिक उपयोग होने वाला नमक भी एक्सपायर हो जाता है। चलिए चलिए आज हम आपको ऐसी ही जानकारी देने जा रहे हैं कि आप कैसे अपने नमक की जांच कर सकते हैं कि वह एक्सपायर तो नहीं है, ताकि आप उसे खाने से बच सकें।

भोजन का असली स्वाद नमक से ही आता है। नमक के बिना सभी मसाले अधूरे हैं। प्रिजर्वेटिव नमक टेक्सचर जोड़ने और स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ निश्चित मात्रा में उपयोग करने से पोषक तत्व भी प्रदान करता है। यही नमक तापमान के संपर्क से जल्दी ही खराब हो जाता है। नमक मिलाने पर भी यदि खाने का स्वाद नहीं आए, तो आपको इसकी जांच की जरूरत है। 


ताजा नमक स्वच्छ व सफेद होता है। नमक का रंग बदलने व उसमें दाग-धब्बे दिखने पर नमक खराब हो सकता है। ऐसे नमक का प्रयोग न करें। घर की साफ-सफाई में इसका उपयोग कर सकते हैं।

नमक के स्वाद की जांच के लिए एक चुटकी चमक को चखें, सामान्य से अलग अथवा कड़वा स्वाद आने पर यह खराब हो सकता है। नमक से अजीब गंध या बदबू आने पर इसका प्रयोग न करें।


नमक सूखा, ताजा, अच्छा और बिना गठ्ठेदार होता है। नमी से चिपकने वाले अथवा गीले नमक को धूप में सुखाएं, फिर भी नमक न सुखे, तो प्रयोग न करें।

ऐसे करें जांच

खराब नमक की जांच के लिए एक बर्तन में आधा कप गर्म पानी में एक चौथाई सिरका या नींबू रस मिलाएं, फिर एक चौथाई छोटा चम्मच नमक डालें। यदि घोल में बुलबुले उठें, तो नमक अच्छा है। कोई बुदबुदाहट न हो, तो समझे नमक खराब हो गया है।