शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

चावल में वृद्धि कर सकता है कैंसरकारी आर्सेनिक, 

घटेगा 40 प्रतिशत उत्पादन


आप चावल अथवा चावल के व्यंजन के शौकीन हैं, तो शीघ्र ही अपनी खाने की आदत बदलने के लिए तैयार रहे। अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के नए अध्ययन के मुताबिक जलवायु में परिवर्तन और मिट्टी में बढ़ते आर्सेनिक से विश्व में चावल की खेती तेजी से गिर सकती है। इससे खाद्य असुरक्षा का खतरा बढ़ सकता है। इस शताब्दी के अंत तक चावल की पैदावार करीब 40 प्रतिशत कम हो जाएगी ।


तापमान में वृद्धि से मृदा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और उसमें आर्सेनिक की मात्रा बढ़ रही है। एक अनुमान है कि आज की अपेक्षा इस सदी के अंत तक चावल में मौजूद आर्सेनिक में दोगुनी वृद्धि होगी। आर्सेनिक मानव स्वास्थ्य हेतु हानिकारक है। आज कई खाद्य फसलों में कुछ मात्रा में आर्सेनिक होता है। वैज्ञानिकों का मत है कि जरुरी नहीं कि इन कारकों का असर सभी फसलों और पौधों पर एक जैसा हो। आर्सेनिक प्राकृतिक सेमी-मेटालिक केमिकल है, जो अधिकांश मिट्टी और अवसादों में मिलता है, पर सामान्यतः यह पौधों द्वारा अवशोषित नहीं किया जाता। इसके लगातार संपर्क में रहने से त्वचा पर घाव, कैंसर एवं फेफड़ों के रोग बढ़ जाते हैं, जिससे अंततः मृत्यु भी हो सकती है। अतः एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते चावल का उत्पादन घट जाएगा, जबकि मिट्टी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने से चावल खाना शरीर के लिए नुकसानदायक साबित होगा।  


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