सोमवार, 11 नवंबर 2019

जाने-राजस्थान में निरंतर 

क्यों कम हो रहे ऊंट 

राजस्थान में नाचना, गोमठ, अलवरी, बाड़मेरी, बीकानेरी, कच्छी, सिंधु और जैसलमेरी ऊंट की नस्लें पाई जाती हैं। राजस्थान में ऊंटों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। राजस्थान के 2012 पशुगणना के मुताबिक राज्य में 3.26 लाख ऊंट थे। 2017 की पशु गणना के अनुसार इनकी संख्या 2.13 लाख ही रह गई है। एक राजस्थानी पशुपालक की माने तो सरकार ने ऊंट को राज्य पशु तो बना दिया, पर उसके संवर्धन के लिए कुछ नहीं किया। ऊंटों की तस्करी, बाहर ले जाने पर रोक और उपयोगिता में कमी आने कारण प्रदेश में ऊंटों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। 2012 पशुगणना के अनुसार राज्य में 3.26 लाख ऊंट थे, 2017 की पशु गणना में इनकी संख्या 2.13 लाख ही रह गई है। यद्यपि ऊंट पालक इसे 1.5 लाख ही मानते हैं। देश के 80 फीसदी ऊंट राजस्थान में ही पाए जाते हैं। ऊंट कभी पश्चिमी राजस्थान के जीवन की धुरी था, परंतु गत 15-20 वर्षों में यातायात के साधन बढ़ने से परिवहन में इनका उपयोग कम हुआ। कृषि में नए संसाधनों और मशीनों से इसकी उपयोगिता कम हुई। ऊंट चरने की भूमि भी नहीं बची है। वन विभाग ऊंट को वन उजाड़ने वाला पशु मानता है। ऊंटों की खुराक के जुड़ में उनके पालकों की स्थिति गत कुछ वर्षों से बिगड़ती चली गई। विगत वर्ष से ऊंटों को पालने के लिए सरकारी सहायता ऊंट पालकों को नहीं दी गई है। ऊंटों की संख्या और प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए 2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरु हुई, जिसमें ऊंट पालकों को ऊंटनी के ब्याने पर टोडरियों (ऊंटनी के बच्चे) के रख-रखाव हेतु तीन किश्तों में 10 हजार रुपए सरकार देती है, जोकि नई सरकार ने अभी तक नहीं दी है। 

पहले ऊंट का बच्चा 10 हजार रुपये तक में बिकता था। अब जवान ऊंट मात्र पांच सौ से तीन हजार रुपए तक में ही बिक पाता है। मजबूर होकर हमें ऊंटनियां बेचनी पड़ रही हैं। ऊंटपालकों द्वारा भीलवाड़ा में ऊंट के दूध का प्लांट लगाने की मांग की जा रही है। चूंकि उदयपुर, चित्तौड़ और भीलवाड़ा में लगभग सात हजार लीटर ऊंट के दूध का उत्पादन होता है।


 


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