मंगलवार, 19 नवंबर 2019

जलवायु परिवर्तन से 

अब हिमालय की जड़ी बूटियां खतरे में



कम तापमान वाले हिमालयी क्षेत्र जड़ी-बूटियों वाले माने जाते हैं। अब जलवायु परिवर्तन से ये क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। वैज्ञानिकों (पौड़ी-गढ़वाल, उत्तरांचल) ने पाया कि जहां कुछ औषधीय पौधे विलुप्ति की कगार पर हैं, तो कई की प्रकृति बदल गई है। वैज्ञानिक डॉ आरके मैखुरी (जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट) एवं उनके सहयोगियों ने 2007-2014 तक पांच हिमालयी जिलों रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, बागेश्वर तथा पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) में जलवायु परिवर्तन से औषधीय पौधों पर पड़ रहे प्रभाव को जानकर पाया कि औषधीय पौधों के जीवन-चक्र, संख्या, समय से पूर्व फूल खिलने आदि में परिवर्तन आए हैं। इससे कुछ पौधे समाप्ति की कगार पर हैं, जिसमें प्रमुख हैं-Aconitum heterophyllum (अतीश-पेट दर्द), Angelica glaucaArnebia benthami (बालछड़ी-गंजापन), Asparagus racemosus (झिरणी-मिर्गी), Dactylorrhiza hatagirea (हत्ताजड़ी-चोट/जख्म), Delphinium denudatum  (जदवार-सांप के काटने पर), Nardostachys grandiflora (जटामाफी-गठिया), Paeonia emodi (धांधरू-डायरिया), Picrorhiza kurrooa (कुटकी-पीलिया), Podophyllum hexandrum (वन ककड़ी-कैंसर), Polygonatum verticillatum (सालम मिश्री-ल्यूकोरिया), Saussurea costus (कूट-खुजली), Saussurea obvallata (ब्रह्म कमल-हृदय परेशानियां), Selinum tenuifolium (भूतकेशी-खांसी), Swertia chirayita Roxb  (चिराइता-डायबेटीज)। 


40-45 तरह की जड़ी-बूटियां उगाने वाले वैद्य रघुनाथ गैरोला (त्रिजुगीनारायण, रुद्रप्रयाग) की माने तो उन्होंने औषधीय पौधे उगाने बंद कर दिए हैं। चूंकि पहले बर्फ अधिक गिरने से कम तापमान में औषधीय पौधे आराम से उगते थे, मौसम में गर्माहट आने से उनके उगने-खिलने की प्रक्रिया बदल गई है। इससे कुटकी, कूट, वन-ककड़ी, रिस्वक, जीवक और लाइकेन तो पूर्णतः समाप्त हो रहे हैं। बुरांश समय से पूर्व खिल रहा है साथ ही इसकी तासीर भी बदल गई है। धनरा के औषधीय तत्व क्षीण हुए है। पहले सेब कम खराब होने वाले मोटे बकल के थे, अब पतली परत वाले सिकुड़े आकार वाले सेब हो रहे हैं। 1970-71 में छः फीट तक गिरने वाली बर्फ अब 4-5 इंच तक रह गई है। समुद्र तल से लगभग 1800 फीट ऊंचे क्षेत्र पर तापमान 40 डिग्री तक पहुंचने वाला है। औषधीय और सुगंधित पौधों की संख्या एवं जगह प्रभावित हुई है। कुछ पौधे ऊंचाई की और बढ़ गए हैं। ये औषधियां जैव-विविधता संरक्षण एवं क्षेत्रीय लोगों की आजीविका का माध्यम भी हैं। 

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