तुलसी अब आंगन से निकल कर पहुंची खेतों में
किसानों को दी रही लाखों की कमाई
एक वह समय भी था जबकि तुलसी न केवल प्रत्येक परिवार के घर-आंगन में पाई जाती थी बल्कि पूजी भी जाती थी। इसका कारण था तुलसी के औषधीय गुण। तुलसी के नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आज बढ़ते हुए शहरीकरण और बिखरते परिवारों में न तो आंगन रहे हैं और न ही तुलसी। यह बात दूसरी है कि दवाई निर्माता कंपनियों ने आज तुलसी की मांग को कई गुणा बढ़ा दिया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुलसी की खेती में कम लागत और श्रम से बड़ा लाभ लिया जा सकता है। यह बात आपको शायद हैरान कर रही होगी परंतु यह सच हैं। इसी वजह से जो किसान इसकी खेती कर रहे हैं वह मालामाल हो रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान हैं अनोखीलाल पाटीदार (खाचरौद, उज्जैन)। पाटिदार की माने तो उन्होंने अपनी दस बीघा खेत पर तुलसी की खेती की। जहां उनकी दूसरी फसल सोयाबीन भारी वर्षा और खेतों में पानी भरने से खराब हो गई वहीं तुलसी को कोई हानि न हुई। जहां तक कीटों से बचाव की बात है तो औषधीय पौधा होने से वह भी नहीं होता। पाटीदार ने खरीफ के पिछले सीजन में भी तुलसी की खेती करते हुए दस बीघा जमीन में दस कि.ग्रा. तुलसी के बीज की बुवाई की थी।
पाटिदार का कहना है कि 10 कि.ग्रा. बीज का दाम तीन हजार रुपए, खाद पर दस हजार रुपए और अन्य खर्चों में दो हजार शामिल थे। जहां तक सिंचाई की बात है तो वह भी केवल एक बार ही करनी पड़ी। पिछले सीजन में लगभग 8 क्विंटल उपज हुई जिससे औसतन तीन लाख रुपए का लाभ हुआ। नीमच मंडी से तुलसी का बीज 30-40 हजार रुपए प्रति क्विंटल मिल जाता हैं। इस जिले में अन्य औषधीय पौधों की खेती भी की जाती है। इनमें अश्वगंधा की 102 हैक्टेयर, तुलसी की 30 हैक्टेयर, सफेद मूसली की 15 हैक्टेयर और इसबगोल की 20 हैक्टेयर आदि फसलों की खेती की जा रही है।
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