गुरुवार, 21 जुलाई 2016

काॅरपोरेट नौकरी नहीं आई रास तो इन जनाब ने अपनाई खेती की राह
2 लाख रुपए महीने की नौकरी छोड़ खड़ी की 
2 करोड़ रुपए के टर्न ओवर वाली कंपनी


उत्तम खेती मध्यम बान, निषिद चाकरी भीख निदान। घाघ की यह कहावत बहुत पुरानी और प्रसिद्ध है जिसका अर्थ है कि खेती सबसे अच्छा कार्य है। व्यापार मध्यम है, नौकरी निषिद्ध है और भीख माँगना सबसे बुरा कार्य है। आज इस कहावत के उल्ट गांव के नवयुवक शहरों को पलायन करते जा रहे हैं। इससे गांवों एवं शहरों दोनों की स्थिति बदहाल होती जा रही है। पर इस दुःखद हालात में कुछ ऐसे अलबेले भी हैं जोकि बढ़िया नौकरी को लात मारकर धरती माँ की गोद में रहना पसंद करते हैं। आज हम आपको बिलासपुर के ऐसे ही एक मतलावे व्यक्ति सचिन काले से मिलवाने जा रहे हैं जोकि 24 लाख रुपए वार्षिक का पैकेज छोड़कर न केवल गांव लौटे बल्कि खेती करने का भी निर्णय लिया। इतना ही नहीं आजकल घाटे के सौदे के नाम से प्रसिद्ध इस खेती को वह न केवल काॅरपोरेट रूप दे रहे हैं बल्कि इससे लगभग 2 करोड़ रुपए सालाना का टर्न ओवर भी ले रहे हैं।

देश की प्रसिद्ध कंपनियों में नौकरी कर चुके सचिन काले बीई मैकेनिकल, एमबीए फाइनेंस, एलएलबी, इकॉनेमी और इंजीनियरिंग में पीएचडी हैं। है। लगभग 12 वर्षों तक नागपुर, पुणे, दिल्ली, बंबई में नौकरी कर चुके सचिन ने सबसे पहले पढ़ाई खत्म होते ही वर्ष 2003 में इंजीनियर की नौकरी से शुरुआत नागपुर स्थित कंपनी से की। कुछ महीनों बाद ही नए ऑफर के मिलने पर उन्होंने पुणे स्थित कंपनी को ज्वाइन कर लिया। यहां भी ज्यादा समय नहीं हुआ था कि एनटीपीसी सीपत में नौकरी निकली जिसका पेपर क्लियर होने पर वर्ष 2005 में उस नौकरी में लग गए। तीन वर्ष बाद यानि 2008 में काले एनटीपीसी की नौकरी छोड़कर पुणे चले गए जहां उन्हें 12 लाख रुपए वार्षिक पैकेज पर नौकरी मिल गई। वर्ष 2011 में दिल्ली स्थित कंपनी ने उन्हें 24 लाख रुपए सालाना पैकेज पर रखा। अब सचिन के पास आराम की हर चीज थी जैसेकि बढ़िया नौकरी, गाड़ी, बंगला और नौकर आदि पर। यहां भी तीन वर्ष तक ही नौकरी की और 2014 में वे अपने गांव आ पहुंचे। पिता (अशोक काले) ने उनसे पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बांटने को कहा पर सचिन ने साफ कर दिया कि वे इसके लिए गांव नहीं आएं, वे खेती करेंगे।

आखिरकार 38 वर्षीय सचिन ने मेढ़पार में अपनी लगभग 20 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर खुद ट्रैक्टर चलाकर खेत की जुताई की। खेती को कॉर्पोरेट का रूप देने के लिए इनोवेटिव एग्री लाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी बनाई जोकि न केवल इस खेती पर हुए खर्च का इंतजाम करती है बल्कि उसका हिसाब भी रखती है और इससे होने वाली आय में कंपनी का भी हिस्सा होता है। सचिन की माने तो गत वर्ष उनकी कंपनी का टर्न ओवर दो करोड़ रुपए तक पहुंच गया। यही कारण है कि सचिन से गांव के 70 किसान सलाह लेने आते हैं। किसानों को फाॅर्म पर बुलाकर बताया जाता है कि कैसे अलग-अलग भागों में सब्जी, धान, दाल आदि की खेती की जा सकती है। जब इन किसानों के खेतों में फसल अच्छी हुई तो देखते ही देखते दो वर्षों में 70 किसान उनसे जुड़ गए। सचिव की माने तो उन्हें इसके लिए प्रेरणा अपने दादा वसंतराव काले से मिली जोकि अक्सर कहा करते थे कि नौकरी में कुछ नहीं रखा है। सिर्फ पैसे कमाना ही जिंदगी नहीं है। समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। इससे प्रभावित होकर उन्होंने स्थानीय लोगों के लिए ताजी सब्जियां और आर्गेनिक उत्पाद  उगाने का मन बनाया।

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