आयुर्वेद और हर्बल की ओर बढ़ रहा है रुझान
देसी कंपनियांे ने बजाया विदेशी ब्राॅन्ड्स का बैंड
कभी दादी-नानी की पिटारी, रसोईघर में मिलने वाले साधारण बीमारियों से छुटकारे के नुस्खे, गोली-वटी और चूर्ण की विद्या माना जाने वाले आयुर्वेद को हमारे समाज ने भुलाने का काम किया है और हम अपनी घरेलू चिकित्सा पद्धति से दूर होते चले गए। पर आज स्थिति पलट रही है धीरे-धीरे आयुर्वेदिक और हर्बल विद्या देश-विदेश को अपने पकड़ में लेती जा रही है। या यूं कहे तो गलत नहीं होगा कि अब यह हमारे दैनिक जीवन का अंग बन चुका है। यही वजह है कि प्राकृतिक, आयुर्वेदिक और हर्बल के दम पर डाॅबर, इमामी और मैरिको आदि एफएमसीजी कंपनियों के अलावा भी पंतजलि और श्री श्री रवि शंकर की फर्म जैसी देसी कपंनियां शैंपू, टूथपेस्ट, हेयर आॅयल, बिस्कुट और नूडल्स आदि उत्पादों में विदेशी ब्राॅन्ड्स (हिंदुस्तान यूनिलीवर, प्राॅक्टर एंड गैंबल आदि) पर अच्छी खासी बढ़त बनाएं हुए हैं।
अगर बात करें 2015-मई 2016 की अवधि की तो डाॅबर (बबूल, मिस्वाॅक, रेड टूथपेस्ट और टूथ पाउडर) और पंतजलि (दंत कांति) ने बाजार में अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ाई तो पेप्सोडेंट और क्लोज अप बनाने वाली हिंदुस्तान यूनिलीवर के शेयर 22.4 से लुढ़ककर 20.6 पर आ गिरे। वहीं शैंपू में प्राॅक्टर एंड गैंबल (हेड एंड शोल्डर्स व पैंटीन शैंपू) के शेयर 27.2 से 24.9 प्रतिशत पर आ गए, तो पतंजलि (कैश कांति) की भागीदारी दुगुनी यानी 0.8-1.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसी तरह मेरिको (पैराशूट व हेयर एंड केयर आॅयल) के वैल्यू शेयर गत वर्ष मई से इस साल तक 36 से 40 प्रतिशत तक पहुंच गए।
आईएमआरबी कैंटार (रिसर्च फर्म) की ब्राॅन्ड फुटप्रिंट नामक गत माह जारी रिपोर्ट में कहा गया कि सर्वाधिक पसंदीदा उपभोक्ता ब्राॅन्ड्स की वार्षिक रैकिंग में भारतीय कंज्यूमर्स डोमेस्टिक ब्राॅन्ड्स को सबसे अधिक पसंद कर रहे हैं और इन ब्र्र्र्र्राॅन्ड्स की पहुंच भी मल्टीनेशनल कंपनियों के ब्राॅन्डस से ज्यादा है।
उपभोक्ता उत्पाद क्षेत्र में आयुर्वेद के बढ़ते महत्व को लेकर आनंद बर्मन (चेयरमैन, डाॅबर इंडिया) ने 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट में शेयरहोल्डर्स को जानकारी देते हुए कहा कि कंज्यूमर सेक्टर में प्राकृतिक, आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पाद का ट्रेंड बढ़ रहा है। पहले से हर्बल उत्पाद और मजबूत आरएंडडी रखने वाली कंपनियों को इससे बहुत लाभ होने की संभावना है। डाॅबर को इसका काफी लाभ होगा।
चलिए आपको आयुर्वेद एवं हर्बल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों की जानकारी दिए देते हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगेः
1. विश्व में हर्बल दवाओं का व्यवसाय लगभग 62 बिलियन डॉलर है जबकि इसमें भारत हिस्सेदारी केवल एक बिलियन डॉलर की है। ‘स्लाइडशेयर डॉट नेट’ की रिपोर्ट को माने तो हर्बल मार्केट में सबसे बड़ा योगदान (लगभग 45 प्रतिशत) यूरोपियन यूनियन का है। इसमें उत्तरी अमेरिका का 11 प्रतिशत, जापान का 16 प्रतिशत और आसियान देशों का 19 प्रतिशत योगदान है।
2. ‘एकेडमिक जर्नल ऑफ प्लांट साइंसेज’ की रिपोर्ट बताती है कि हर्बल मेडिसिन की बिक्री में विश्व में प्रतिवर्ष औसतन 6.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हर्बल मेडिसिन के बढ़ते दायरे को रेखांकित किया है।
3. वैश्विक स्तर पर हर्बल उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार यूरोप है जबकि फ्रांस, जर्मनी, इटली व नीदरलैंड आदि देशों को हमारे देश से बड़ी संख्या में यह उत्पाद निर्यात किये जाते हैं।
4. हमारा देश विश्व में औषधीय उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है इसीलिए इसे ‘बोटेनिकल गार्डेन ऑफ द वर्ल्ड’ अर्थात् ‘विश्व का वनस्पति उद्यान’ भी कहा जाता है।
5. भारत में आयुर्वेद का भविष्य इसलिए भी उज्ज्वल माना जा रहा है, क्योंकि औषधीय गुणों से भरपूर करीब 25 हजार पौधों में से महज 10 फीसदी को ही औषधीय कार्यो के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।
5. भारत की गिनती विश्व के 12 मेगा बायोडायवर्स देशों में होती है।
6. हर्बल जानकारों की माने तो 2050 तक हर्बल का वैश्विक व्यवसाय पांच खरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
7. विशेषज्ञों की माने तो आने वाले समय में इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के बाद हर्बल टेक्नोलॉजी से भारत को सबसे अधिक आमदनी होगी।
8. शीतल वर्मा और एस पी सिंह (डिपार्टमेंट ऑफ फार्माकोलॉजी एंड टोक्सिकोलॉजी, कॉलेज ऑफ वेटरेनरी एंड एनिमल साइंस, पंतनगर) की ‘करेंट एंड फ्यूचर स्टेटस ऑफ हर्बल मेडिसिन’ शोध रिपोर्ट की माने तो पश्चिमी देशों में लोग कृत्रिम दवाओं की क्षमता एवं उसके साइड इफेक्ट से भली-भांति परिचित हैं। इसलिए इन देशों में प्रकृति और प्राकृतिक दवाओं की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है।
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