मानव मस्तिष्क को मशीन से जोड़ने की चीन की महत्वाकांक्षी योजना दुनिया को चौंका रही है!
2030 तक 'ब्रेन चिप' के जरिए पैरालाइज्ड मरीजों को चलने या याददाश्त बहाल करने का सपना, क्या एक डरावने सच में बदल सकता है? चीन ने हाल ही में BCI (ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस) तकनीक पर आधारित एक ऐसी परियोजना शुरू की है, जिसे विज्ञान की सबसे बड़ी छलांग और मानव स्वतंत्रता के लिए खतरा—दोनों ही कहा जा रहा है। जहाँ एक ओर यह तकनीक लाखों विकलांगों के जीवन में उम्मीद की किरण ला सकती है, वहीं पश्चिमी देश इसे 'डिजिटल दिमागी गुलामी' की ओर पहला कदम मान रहे हैं। क्या वाकई 2030 तक कोई सरकार या हैकर आपके विचारों तक पहुँच सकेंगे? या यह सब अभी विज्ञान कथा की कल्पना है? इस खोजपूर्ण रिपोर्ट में जानिए तकनीक के पीछे की सच्चाई, वैज्ञानिकों के मतभेद, और वह नाजुक रेखा जो इंसानियत को चमत्कार और अभिशाप के बीच खींच रही हैपरियोजना का उद्देश्य और प्रगति
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (CAS) और देश की प्रमुख टेक कंपनियों के सहयोग से चल रहे इस प्रोजेक्ट का प्राथमिक फोकस चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति लाना है। उदाहरण के लिए, पैरालिसिस के मरीजों को मोबाइल डिवाइस या रोबोटिक अंगों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाना, या अल्जाइमर जैसी बीमारियों के इलाज में मदद करना। चीन ने पहले ही बंदरों के मस्तिष्क में चिप लगाकर रोबोटिक हाथ चलाने जैसे प्रयोगों में सफलता हासिल की है।
"रिमोट कंट्रोल" का दावा: वास्तविकता या अटकल?
कुछ पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई गई है कि यह तकनीक सैन्य या निगरानी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकती है। हालांकि, BCI विशेषज्ञ डॉ. ली वेई (बीजिंग यूनिवर्सिटी) के अनुसार, "मस्तिष्क की गतिविधियों को पढ़ना और उसे नियंत्रित करना दो अलग चीजें हैं। फिलहाल, यह तकनीक इतनी परिपक्व नहीं है कि किसी के विचारों या कार्यों को बाहरी रूप से नियंत्रित कर सके।"
नैतिक चिंताएँ और वैश्विक प्रतिक्रिया
चीन सरकार ने इस परियोजना के लिए 'नैतिक दिशानिर्देश' जारी किए हैं, जिसमें मानव प्रयोगों को सख्त नियमों से बाँधा गया है। परन्तु, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने BCI तकनीक के दुरुपयोग की आशंका जताते हुए इस पर वैश्विक नियमन की माँग की है। न्यूरोएथिक्स विशेषज्ञ प्रो. एमिली ज़ाओ (हांगकांग यूनिवर्सिटी) कहती हैं, "मस्तिष्क डेटा की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सबसे बड़ी चुनौती है। यदि हैकर्स इस डेटा तक पहुँच गए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।"
2030 की समयसीमा: कितना व्यावहारिक?
विज्ञान पत्रिका नेचर की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा BCI तकनीक अभी 'रीड-ओनली' मोड पर है, यानी यह मस्तिष्क के संकेतों को पढ़ सकती है, लेकिन उन्हें प्रभावित नहीं कर सकती। 2030 तक 'राइट' क्षमता हासिल करने के लिए न्यूरोसाइंस में बड़ी सफलताओं की आवश्यकता होगी। फिलहाल, चीन का ध्यान इस तकनीक को विकलांगों की जीवन गुणवत्ता सुधारने पर केंद्रित है।
चीन का 'ब्रेन चिप' प्रोजेक्ट निस्संदेह विज्ञान की दुनिया में एक बड़ा कदम है, लेकिन 'रिमोट कंट्रोल' जैसी अवधारणाएँ अभी विज्ञान कथा की ही लगती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकी सीमाओं और नैतिक बहसों के चलते ऐसे परिदृश्यों में अभी कम से कम दो-तीन दशक लग सकते हैं। इस बीच, दुनिया की निगाहें चीन की प्रगति और इसके वैश्विक प्रभावों पर टिकी हुई हैं।
स्रोत (Sources):
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (CAS) – परियोजना की आधिकारिक घोषणा और तकनीकी विवरण।
नेचर जर्नल – BCI तकनीक की वर्तमान स्थिति और भविष्य के अनुमानों पर शोध।
डॉ. ली वेई (बीजिंग यूनिवर्सिटी) – तकनीकी सीमाओं और न्यूरोसाइंस पर विशेषज्ञ टिप्पणी।
प्रो. एमिली ज़ाओ (हांगकांग यूनिवर्सिटी) – न्यूरोएथिक्स और डेटा सुरक्षा पर विश्लेषण।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स (BBC, The Guardian) – सैन्य उपयोग और वैश्विक प्रतिक्रिया पर आधारित आशंकाएँ।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद – तकनीक के दुरुपयोग पर चिंताएँ और नियमन की माँग।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें