रंगों की बहार, उल्लास का सैलाब: होली का जादू
होली—यह नाम आते ही मन में रंगों की फुहार, गुझिया की मिठास और ढोलक की थाप गूँज उठती है। यह त्योहार न सिर्फ़ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि जीवन को रंगों से सराबोर करने का संदेश भी देता है। दो दिन तक चलने वाला यह उत्सव पहले दिन होलिका दहन के साथ शुरू होता है, जहाँ अग्नि में डूबी लपटें अंधकार को मिटाती हैं, और दूसरे दिन धुलेंडी की धूम में सबके चेहरे गुलाल की चादर से ढक जाते हैं।
यह पर्व सदियों से हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा रहा है। प्रह्लाद की आस्था से लेकर राधा-कृष्ण की रासलीला तक, होली की जड़ें पौराणिक गाथाओं में गहराई तक समाई हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह त्योहार नववर्ष के आगमन का संकेत भी देता है? या फिर गोबर के भरभोलिए और मटका फोड़ जैसी अनोखी परंपराएँ इसकी रोचकता को और बढ़ाती हैं?
चलिए, इस लेख में होली के उन खास पहलुओं से रूबरू होते हैं, जो इसे सिर्फ़ एक "रंगों के त्योहार" से कहीं बढ़कर बनाते हैं — एक सांस्कृतिक क्रांति, सामाजिक एकता का उदाहरण, और प्रकृति के साथ तालमेल का प्रतीक। आइए जानें इससे जुड़े 10 रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य:
1. दो दिवसीय उत्सव: होलिका दहन और धुलेंडी
होली का आगाज़ होलिका दहन से होता है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संकल्प लिया जाता है। अगले दिन धुलेंडी या धूलिवंदन पर रंगों की बौछार, गीत-नृत्य और मिठाइयों के साथ उत्सव की धूम रहती है।
2. प्रह्लाद-होलिका की पौराणिक गाथा
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान था, लेकिन भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर जलने पर वह स्वयं भस्म हो गई। यह कथा आस्था और सत्य की विजय का प्रतीक है।
3. नवसंवत और वसंत का प्रारंभ
फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। होली इस नवजागरण और प्रकृति में बहार का संदेशवाहक है।
4. वैदिक काल से जुड़ाव
प्राचीन ग्रंथों में होली को "होलाका" कहा गया है। वैदिक युग में नवान्न और वसंतोत्सव के रूप में इसकी शुरुआत हुई, जहाँ महिलाएँ पूर्णिमा के चंद्रमा की पूजा करती थीं।
5. सामाजिक एकता की मिसाल
इस दिन जाति, धर्म और संपदा का भेद मिट जाता है। होलिका दहन से पहले गोबर के "भरभोलिए" बनाए जाते हैं, जिन्हें भाइयों के सिर से उतारकर अग्नि को समर्पित किया जाता है।
6. मुखवास: गुझिया से लेकर ठंडाई तक
गुझिया, मालपुआ और दही-बड़े जैसे पकवान होली की थाली की शान हैं। कई क्षेत्रों में भांग की ठंडाई का भी विशेष महत्व है।
7. मथुरा का मटका फोड़ उत्सव
वृंदावन में दही-मक्खन से भरा मटका ऊँचाई पर लटकाया जाता है। युवाओं की टोलियाँ मानव पिरामिड बनाकर इसे तोड़ती हैं, जो कृष्ण की बाल लीला की याद दिलाता है।
8. साहित्य और संस्कृति में छाप
प्राचीन कवि हेमाद्रि और लिंग पुराण में होली का उल्लेख मिलता है। इसे "हुताशनी" और "फाल्गुनिका" कहा गया, जो समृद्धि और उल्लास का प्रतीक है।
9. बरसाना की लट्ठमार होली
यहाँ महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारती हैं, जो राधा-कृष्ण की रस्म का हिस्सा है। नंदगाँव के "हुरियार" और बरसाना की "हुरियारिन" इस अनोखी परंपरा को जीवंत करते हैं।
10. प्रकृति और स्वास्थ्य का संदेश
होलिका दहन में नीम और औषधीय लकड़ियाँ जलाई जाती हैं, जो वातावरण को शुद्ध करती हैं। रंगों का खेल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार माना जाता है।
निष्कर्ष
होली सिर्फ़ रंगों का नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और सद्भाव का त्योहार है। यह हमें प्रकृति और परंपरा से जुड़ने का अवसर देता है। इस बार टेसू और पलाश के प्राकृतिक रंगों से होली मनाएँ और पानी बचाएँ।
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