सोमवार, 3 मार्च 2025

उत्तराखंड सुरंग रेस्क्यू: 17 दिनों के संघर्ष के बाद 41 मजदूरों को मिली मुक्ति

 अंधेरे से उजाले की ओर एक ऐतिहासिक सफर

12 नवंबर, 2023 की सुबह, उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बन रही सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग का एक हिस्सा अचानक ढह गया। अंदर फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए शुरू हुआ अभियान देश-विदेश की सांसें थामने वाला बन गया। 17 दिनों के अथक प्रयासों के बाद, 28 नवंबर की शाम, जब अंतिम मजदूर बाहर निकला, तो पूरा देश राहत की सांस ले सका। यह भारत की सबसे लंबी और जटिल रेस्क्यू ऑपरेशनों में से एक था।



1. घटना का क्रम: कैसे फंसे मजदूर?

तकनीकी खामी: सुरंग निर्माण के दौरान 200 मीटर के दायरे में भूस्खलन हुआ, जिससे 60 मीटर मलबे ने निकास मार्ग अवरुद्ध कर दिया।
फंसे मजदूरों की स्थिति: सुरंग के अंदर हवा और पानी की सप्लाई पाइपलाइन के जरिए बनाए रखी गई।
पहला संपर्क: छठे दिन, रेस्क्यू पाइप के जरिए मजदूरों से वॉकी-टॉकी पर बात हो सकी।

2. रेस्क्यू ऑपरेशन: चुनौतियाँ और तकनीकी दांव-पेच

ऑगर मशीन का संकट: 25 टन वजनी अमेरिकी ऑगर मशीन ने 47 मीटर ड्रिलिंग की, लेकिन 24 नवंबर को यह खराब हो गई।

मैन्युअल ड्रिलिंग: "रैट-होल माइनिंग" तकनीक से 6 भारतीय सेना के विशेषज्ञों ने 12 मीटर मलबा हटाया।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: थाईलैंड के 12 गुफा रेस्क्यू विशेषज्ञों ने सलाह दी, जिन्होंने 2018 में थाम लुंग गुफा ऑपरेशन में भाग लिया था।


3. संघर्ष के पीछे के नायक
एनडीआरएफ की भूमिका: 24 घंटे ड्यूटी में तैनात टीम ने मलबे में 900 मिमी व्यास का पाइप डालकर खाना और दवाएं पहुँचाईं।
स्थानीय ग्रामीणों का योगदान: उत्तरकाशी के लोगों ने रेस्क्यू टीम के लिए भोजन और कंबल का इंतजाम किया।
मनोवैज्ञानिक सहायता: मजदूरों को मोटिवेशनल संदेश और भजन सुनाए गए तनाव कम करने के लिए।

4. सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी: "यह ऑपरेशन मानवीय संकल्प और टीमवर्क का उदाहरण है। हमने 41 जिंदगियों को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।"
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी: "सुरंग निर्माण में सुरक्षा मानकों की जाँच के लिए उच्चस्तरीय कमेटी गठित की जाएगी।"

5. विशेषज्ञ विश्लेषण: "भविष्य के लिए सबक"
डॉ. एस.के. चंद्रा (भूवैज्ञानिक): "हिमालयी क्षेत्र में निर्माण से पहले जियोलॉजिकल सर्वे अनिवार्य होना चाहिए।"
मेजर जनरल (रिटायर्ड) अरुण कुमार: "देश में आपदा प्रबंधन तकनीक को और मॉडर्न बनाने की जरूरत है।"

6. मजदूरों की जुबानी: "हमने मौत को चेहरे से देखा"

गोविंद (मजदूर, झारखंड): "हर दिन लगता था, अब बाहर नहीं निकल पाएंगे। लेकिन सेना के जवानों ने हिम्मत बँधाई।"
विक्रम (मजदूर, बिहार): "जब पहली बार रोशनी दिखी, तो समझ आया—भगवान ने दूसरा जन्म दिया है।"


जीवन बचाने की जिद ने लिखी इतिहास की नई इबारत

यह ऑपरेशन साबित करता है कि तकनीक, टीमवर्क और दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने कोई चुनौती असंभव नहीं। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा— "हर भारतीय के लिए यह दिन गर्व का है। हमने मानवता को जीत दिलाई है।"



स्रोत:

  • एनडीआरएफ प्रेस ब्रीफिंग

  • उत्तराखंड सरकार की आधिकारिक रिपोर्ट

  • मजदूरों और रेस्क्यू टीम के सदस्यों के साक्षात्कार

  • भूवैज्ञानिक विश्लेषण रिपोर्ट

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