मंगलवार, 6 अगस्त 2024

 कभी करती थी भारत पर हुकूमत
आज एक भारतीय है ईस्ट इंडिया कंपनी का स्वामी

अगस्त का महीना भारत के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी महीने की 15 तारीख को 1947 में भारत को सदियों की गुलामी से आजादी मिली थी। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की कहानी में ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम प्रमुखता से जुड़ा है। इस कंपनी ने भारत पर करीब 250 साल तक शासन किया, जिससे भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा।


ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम कौन भारतीय नहीं जानता होगा! इस कंपनी के बारे में तो हमने स्‍कूली पढ़ाई के दौरान भी पढ़ा है। 17वीं सदी की शुरुआत में यानी सन 1600 ईस्वी के आस-पास भारत की जमीन पर पहला कदम रखने वाली इस कंपनी ने सैकड़ों साल तक हमारे देश पर शासन किया। 1857 तक भारत पर इसी कंपनी का कब्जा था, जिसे कंपनी राज के नाम से इतिहास में पढ़ाया जाता है।

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और प्रारंभिक उद्देश्य

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ईस्वी में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के द्वारा की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से व्यापार करना था। 1601 ईस्वी में जेम्स लैनकास्टर की अगुवाई में कंपनी का पहला जहाज भारत पहुँचा। कंपनी ने 1608 में सूरत में अपना पहला ठिकाना स्थापित किया और 1611 में आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम में अपनी पहली फैक्ट्री लगाई।

व्यापार से शासन तक का सफर

ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत समेत कई देशों में व्यापार के माध्यम से ब्रिटिश उपनिवेश बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। खुद कंपनी के पास ढाई लाख सैनिकों की फौज भी थी, लेकिन कारोबार करने आई एक कंपनी देश की सरकार कैसे बन बैठी यह गुत्थी यहीं से खुलती है। जहां व्यापार या व्यापार से लाभ की संभावना न होती, वहां फौज उसे संभव बना देती। कंपनी को मुगल बादशाह जहांगीर से व्यापारिक अधिकार दिलाने का श्रेय थॉमस रो को जाता है। धीरे-धीरे, कंपनी ने सूरत, कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) और अन्य शहरों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। 1764 के बक्सर युद्ध में विजय के बाद कंपनी का भारत में शासन स्थापित हो गया। 1857 की क्रांति से पहले तक कंपनी ने भारत पर बेरहमी से शासन किया और अपनी ताकत का उपयोग करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों को अपने नियंत्रण में लिया।

बंगाल की विजय और कंपनी राज की शुरुआत

1668 में जब पुर्तगालियों ने बॉम्बे आइलैंड ब्रिटिश राजपरिवार को दहेज में दे दिया तो राजा के आदेश से वह ईस्ट इंडिया कंपनी को लीज़ पर मिल गया। भारत और कंपनी के इतिहास में बड़ा मोड़ आया 1756 में जब सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। बंगाल एक समृद्ध राज्य था, जो पूरे विश्व में कपड़ा और जहाज़ निर्माण का एक प्रमुख केंद्र था। कंपनी ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में अपना विस्तार करना शुरू किया। नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफ़र को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने साथ मिला लिया। खुद गद्दी पर बैठने की चाहत में सेनापति ने नवाब को धोखा दिया। मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में 23 जून 1757 को कंपनी और नवाब में युद्ध हुआ। कंपनी ने सिराजुद्दौला की सेना को हरा दिया था। मीर जाफर नवाब बने। 1765 में मीर जाफर की मौत के बाद कंपनी ने रियासत अपने हाथ में ले ली। यहीं से शुरू हुआ था भारत पर अगले सौ बरस शासन करने वाला ‘कंपनी राज।’


दक्षिण में संघर्ष और विस्तार

मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने कंपनी का विरोध करते हुए कंपनी को दो युद्धों में हराया, लेकिन 1799 में श्रीरंगपट्टनम की जंग में वे मारे गए। हैदराबाद के निजाम को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। फिर मराठाओं की हार और 1839 में रणजीत सिंह के मारे जाने के बाद हालात और बदतर हुए। फिर आयी लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति। 1848 में लागू इस नीति के अनुसार जिस शासक का कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, उस रियासत को कंपनी अपने कब्जे में ले लेती। इस नीति के आधार पर सतारा, संबलपुर, उदयपुर, नागपुर और झांसी पर अंग्रेजों ने कब्जा जमाया। और देखते ही देखते ईस्ट इंडिया कंपनी का क़ब्ज़ा देश पर फैल गया।

ब्रिटिश हुकूमत का आगमन

1857 की क्रांति ने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभुत्व को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया और 1858 में "भारत सरकार एक्ट" के तहत कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसके बाद, 1874 में एक नया कानून "एक्ट ऑफ पार्लियामेंट" बनाकर कंपनी को भंग कर दिया गया।


ईस्ट इंडिया कंपनी का पुनर्जन्म

समय का पहिया घूमता रहा और 2010 में भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद लिया। मेहता ने कंपनी को एक नए रूप में ढाला और उसे एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बना दिया। अब यह कंपनी चाय, चॉकलेट, कॉफी और अन्य उपहार सामग्रियों की ऑनलाइन बिक्री करती है।

वर्तमान स्थिति और महत्व

आज, ईस्ट इंडिया कंपनी एक भारतीय के स्वामित्व में है, जो एक समय भारत पर शासन करने वाली कंपनी का मालिक बन गया है। संजीव मेहता ने इसे एक लग्जरी ब्रांड में बदल दिया है, जो ब्रिटेन, यूरोप, जापान, अमेरिका और मिडल-ईस्ट में व्यापार करता है। यह कंपनी अब साम्राज्यवादी उपनिवेश का प्रतीक नहीं है, बल्कि एक सामान्य व्यापारिक इकाई है।

भारत की आजादी की कहानी में ईस्ट इंडिया कंपनी का उल्लेख एक महत्वपूर्ण अध्याय है। एक समय जिस कंपनी ने भारत पर शासन किया था, आज वह एक भारतीय के स्वामित्व में है। यह बदलाव भारतीय समाज और आर्थिक परिदृश्य में बदलाव का प्रतीक है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे इतिहास का चक्र पूरा होता है और कैसे एक समय के ग़ुलाम, आज के स्वामी बन जाते हैं।

भारत की आजादी का यह महीना हमें हमारी इतिहास की याद दिलाता है और यह भी सिखाता है कि किस तरह संघर्ष और परिवर्तन का चक्र पूरा होता है। ईस्ट इंडिया कंपनी की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि समय बदलता है और शक्ति संतुलन भी बदलता है।

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